इंदौरी पत्रकारिता का शिव पुराण: लाखों करोड़ के वादे और सिर्फ़ छह सवाल!



मध्‍यप्रदेश के इंदौर में बीते 22-23 अक्‍टूबर को दो दिन की ग्‍लोबल इनवेस्‍टर्स समिट का सरकारी आयोजन किया गया। दूसरे निवेशक सम्‍मेलनों से यह किसी भी मायने में अलग नहीं रहा। यहां कारोबारियों की ओर से सरकार को  काग़ज़ी वादे किए गए। यहां भी सरकार ने अपनी उपलब्धियों के पुल बांधे। विकास, जीडीपी आदि की खूब चर्चा हुई। दो दिन तक जनता को सब्‍ज़बाग दिखाए गए। कार्यक्रम के अंत में जब मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रेस कॉन्‍फ्रेंस रखी, तो राहुल बारपुते, प्रभाष जोशी और राजेंद्र माथुर की धरती पर पैदा हुए स्‍वनामधन्‍य पत्रकारों के मुंह से कुल जमा छह सवाल (अगर उन्‍हें सवाल कहा जा सके तो) ही निकल सके। आखिर क्‍यों? जानिए इस लंबी रपट को पढ़ के, जिसे वहां मौके पर मौजूद एक पत्रकार ने मीडियाविजिल को भेजा है।  



 

पत्रकारिता हर सुबह हमारे सामने अपने पतन के नए-नए पैमाने गढ़ रही है, जैसे गिरने की होड़ मची हो कि कौन कितना नीचे गिर सकता है। हर बार हम पत्रकार लोग बदनाम होती पत्रकारिता के लिए मीडिया घरानों के मालिकों को ज़िम्मेदार ठहराकर ख़ुद को बरी करते नज़र आते हैं, मग़र यह पूरा सच नहीं है। पत्रकारिता को शासन-प्रशासन का चकलाघर बनाने वाले सिर्फ़ मालिक नहीं, पत्रकार बिरादरी ख़ुद भी है। इसका एक त्रासद लेकिन दिलचस्‍प नज़ारा ग्‍लोबल इनवेस्‍टर्स समिट, इंदौर में 22-23 अक्‍टूबर को देखने को मिला।

मध्‍यप्रदेश जनसंपर्क विभाग द्वारा निवेशक सम्‍मेलन के लिए एंट्री पास बनाए जाने थे। पत्रकारों ने इस पास को हासिल करने के लिए गज़ब की लड़ाई लड़ी। लड़ाई इसलिए नहीं लड़ी गई कि समिट को कवर करना था। पत्रकारों का कुल उद्देश्य समिट में मिलने वाला जूट का एक अदद झोला हासिल करना था जिसमें चार जीबी की एक पेन ड्राइव थी और साथ में डायरी व कलम भी थे। समिट से पहले इंदौर के सभी पत्रकारों के लिए इसका पास हांसिल करना अहं की लड़ाई बन चुका था। समिट को आधिकारिक रूप से और पूरी जिम्‍मेदारी से कवर करने वाले पत्रकारों की संख्‍या काफी कम थी। अधिकतर वे पत्रकार पास लेकर इसमें शामिल थे जिनके घर में भले ही दो टाइम की चाय का टोटा हो, लेकिन जो वहां कॉफ़ी पीने के लिए आंखें दिखा रहे थे। दो वक्त की रोटी के लिए दिन भर सौ से पांच सौ की लिफ़ाफेबाज़ी करने वाले पत्रकार कैटरिंग वालों पर इस बात की रौब झाड़ते देखे गए कि उनकी रोटी में घी क्यों नहीं लगा है।

समिट की तारीख़ जैसे-जैसे नज़दीक आती जा रही थी, वैसे-वैसे मध्यप्रदेश का मीडिया सत्ता के पैरों में अपने आपको बिछाने की होड़ में जुट चुका था। सितंबर-अक्टूबर में प्रदेश के अख़बारों को देखें, तो समिट से जुड़ी ख़बरों के प्रकाशन के रूप में इस बात की ताकीद की जा सकती है।

बहरहाल, समिट हुई। कथित तौर पर कामयाब भी रही। मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मानें तो इस बार निवेशकों ने मध्यप्रदेश में 5,62,847 करोड़ रुपए के निवेश का वादा किया। वादा तो वादा है, वादों का क्‍या। पिछली बार भी कुछ वादे हुए थे। कितने ज़मीन पर उतरे और कितने काग़ज़ों में रह गए, इन सब पर बाकायदे सवाल बनते हैं। ज़ाहिर है, ये सवाल पत्रकारों के अलावा और कौन पूछेगा। सूबे के मुखिया शिवराज सिंह चौहान ने समिट के अंत में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस रखी। घंटे भर चली इस पत्रकार वार्ता में शिवराज सिंह से केवल छह सवाल पूछे गए। या तो पत्रकारों के पास सवाल नहीं थे, या फिर उनके मुंह बंद कर दिए गए थे। ऐसा नहीं है कि सवालों के स्रोत मौजूद नहीं थे। राष्‍ट्रीय डेटा शेयरिंग नीति के तहत सूचना और प्रौद्योगिकी विभाग के मुहैया कराए आंकड़ों के आधार पर पिछले साल जुलाई में ही यह बात सामने आ चुकी थी कि पिछले दस साल में मध्‍यप्रदेश में वादों के बरक्‍स वास्‍तविक निवेश कितना हुआ है, लेकिन सवाल पूछने की मंशा हो तब तो सवाल पूछे जाएं।

आइए, मुख्‍यमंत्री से पूछे गए कुछ सवालों को देखकर अंदाज़ा लगाएं कि क्‍या पत्रकारों के पास सवाल नहीं थे या फिर सवाल पूछने की उनकी मंशा ही नहीं थी। मसलन, एक पत्रकार ने सवाल किया:

सन् 2004 में शिवराज जी जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई थी तो टोटल मध्यप्रदेश का जीडीपी था उसमें इंडस्ट्री का शेयर कितना था और 2016 में कितना है और 2018-19 तक “हमनें” क्या अनुमान लगाया है कितना शेयर होगा। और एग्रीकल्चर का भी बताएं।”

इस सवाल में ”हमने” पर विशेष ध्‍यान दीजिएगा।

अगला सवाल प्रवीण शर्मा नाम के एक पत्रकार-सह-मालिक ने किया जो इंदौर से एक सांध्य दैनिक हैलो हिंदुस्तान निकालते हैं। इससे पहले शर्मा ग्वालियर में नई दुनिया के स्‍थानीय संपादक रह चुके हैं। उनका सवाल देखें:

शिवराज जी, इसमें कोई शक नहीं है मध्यप्रदेश इनवेस्टमेंट हब बन गया है, पूरे देश का ही नहीं पूरी दुनिया का भी आकर्षण का केंद्र बन रहा है। आपकी सरकार ने, आपकी नौकरशाही ने व्यापक मेहनत की है। पिछले दस सालों में ये स्वीकार करने में कोई हर्ज़ नहीं है कि परिणाम सकारात्मक रहे हैं। अभी आपने कहा कि साढ़े पांच लाख करोड़ तक इनवेस्टमेंट प्रस्तवित है इस समिट में। गुजरात की वाइब्रेंट गुजरात समिट जो थी, उसमें पच्चीस लाख करोड़ के इक्कीस हज़ार इंटेशन ऑफ इनवेस्टमेंट (आईओआई) हुए थे। गुजरात बेशक पहले से औद्योगिक क्रांति रहा है, मध्यप्रदेश के मुक़ाबले विकसित राज्य है फ़िर भी आपको नहीं लगता मध्यप्रदेश में काफी संभावनाएं है काम करने की। वो कौन से ऐसे क्षेत्र हैं काम करने के जिसमें मध्यप्रदेश पिछड़ रहा है… चूंकि आप एक पारदर्शी मुख्यमंत्री हैं… अपनी कमियां स्वीकार करने में कभी हिचकते नहीं हैं, तो आपको क्या लगता है मध्यप्रदेश को किन क्षेत्रों में ज़्यादा काम करने की आवश्कता है।”

एक महिला पत्रकार का मुख्‍यमंत्री की निगाह में आने के लिए बात करने का अंदाज़ देखिए- छह बार ”शिव भैया, शिव भैया” पुकारते हुए शिवराज सिंह चौहान का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करते हुए वे कहती हैं:

मेरे को आपसे कोई सवाल नहीं करना है। आपको बधाई देनी है आपकी सुपर डूपर सफ़लता की, समिट की, दीपावली की। और आपने कुछ बचाया है क्या जो मैं आपसे क्रॉस क्वेश्चन करूं?

पहले सवाल में एक खास वाक्‍य है: “हमने क्या अनुमान लगाया है”। सवाल प्रदेश के मुखिया से है और सवाल करने वाला एक पत्रकार है। एक पत्रकार द्वारा सवाल में “हमने” शब्द का इस्तेमाल सरकार और पत्रकार बिरादरी के बीच की ढेरों अनकही कहानियां बयां कर रहा है। हम किसी की साठगांठ को महज एक शब्‍द से नहीं आंक रहे। दरअसल उद्योग और कृषि का मुद्दा मध्यप्रदेश में गहरे विवादों में घिरा हुआ है जिसे सरकार सामने नहीं आने दे रही है। चूंकि सच्‍चाई को सामने लाने की मंशा भी नहीं है, इसलिए सवाल में बरबस ”हमने” का किया गया इस्‍तेमाल बताता है कि दिक्‍कत कहां है।

दूसरा सवाल अख़बार के मालिक प्रवीण शर्मा ने मुख्‍यमंत्री से पूछा। यह सवाल कम, जवाब ज्‍यादा था। उन्‍होंने अपने सवाल की भाषा की मिठास से शिवराज सिंह को ऐसा तरबतर किया कि मुख्यमंत्री के साथ सभी अधिकारियों के चेहरे पर मुस्‍कान आ गई और पीसी में मौज़ूद कुछ पत्रकारों ने अपना सिर पीट लिया। क्‍या यह आश्चर्य की बात नहीं है कि व्यापमं जैसे घोटाले में बुरी तरह से उलझे और इस सिलिसिले में हुई चार दर्जन हत्‍याओं के ढेर पर बैठे शिवराज सिंह चौहान प्रवीण शर्मा को “पारदर्शी, अपनी कमियां स्वीकार करने वाले और कभी न हिचकिचाने वाले मुख्यमंत्री नज़र आते हैं”? लगता है प्रवीण शर्मा यह भूल चुके हैं कि व्‍यापमं घोटाले में मारे  गए पचासों निर्दोष लोगों में आजतक चैनल के एक साहसी पत्रकार भी शामिल थे।

सवाल पूछने के बजाय शिवराज को तारीफ़ों का गुलदस्ता भेंट करने वाली महिला पत्रकार इंदौर में ‘लेडी भीम’ के नाम से जानी जाती हैं। शिवराज सिंह चौहान के लिए कई पत्रकार सवालों के ढेर लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस में पहुंचे थे, लेकिन लेडी भीम की बारी आने पर शिवराज सिंह को पत्रकारों के सवालों से बचने का मौका मिला गया और सिंह ने साथ में चाय पीने की रेवड़ी देकर प्रेस कॉंन्फ्रेंस ही ख़त्‍म कर दी!

पत्रकारों द्वारा इस तरह के सवालों का पूछा जाना अनायास नहीं है। ऐसे सवालों के पीछे की वजह है बीजेपी सरकार की ब्रांडिंग के लिए की गई लंबी कवायद। 2004 से 2019 के बीच इंडस्ट्रियल शेयर और एग्रिकल्चर का भूत-भविष्य बांचने वाले ये पत्रकार दरअसल सरकार और प्रशासन के सीखे-सिखाए पूत थे। ख़बर है कि इंदौर के पत्रकारिता जगत के मठाधीशों और दलालों को ग्लोबल इनवेस्टर्स समिट में लिजलिजी पत्रकरिता करने के लिए दो से पांच लाख रुपये तक दिए जाने की डील सरकार ने की थी। यह बात सही हो या अफ़वाह, लेकिन धुआं साफ़ दिख रहा है। आग भी कहीं होगी ही।

पत्रकारों का सत्‍ता और राजनीतिक दलों के साथ नत्‍थी होना कोई नई बात नहीं है, लेकिन साष्‍टांग हो जाना एक बिलकुल अलग परिघटना है जो पिछले तीन साल के दौरान देखने में आई है। इसका सबसे पहला नज़ारा 2014 में दिवाली मिलन समारोह पर दिल्‍ली में देखने को मिला था जब पत्रकारों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ सेल्‍फी लेने के लिए एक-दूसरे से धक्‍का-मुक्‍की कर ली थी। यह प्रवृत्ति अब छोटे कस्‍बों और सूबों तक पहुंच चुकी है, जो पत्रकारिता को हाल फिलहाल तक बचाए हुए थे। प्रेस कॉन्फ्रेंस खत्‍म कर के शिवराज सिंह कुर्सी से जैसे ही उठे, एक महिला पत्रकार उनके सुरक्षाकर्मियों से झगड़ कर सीएम के पास पहुंच गईं। इसके बाद उन्‍होंने शिवराज सिंह चौहान से ज़बरदस्ती आशीर्वाद लेने के लिए अपने सिर पर उनका हाथ रखवा लिया। शिवराज का हाथ उनके सिर पर जैसे ही पड़ा, उन्‍होंने सीएम के पैर छू लिए।

ग्‍लोबल इनवेस्‍टर्स समिट, इंदौर का यह क्‍लाइमैक्‍स 2016 की पत्रकारिता पर एक टिप्‍पणी है। इसे कैसे लिया जाए और क्‍या कहा जाए, यह देखने-समझने वाले लोगों के विवेक पर छोड़ दिया जाना चाहिए। इंदौर की पत्रकारिता की विरासत को जिस तरह यहां के पत्रकारों ने खुद अपने पैरों तले रौंदा है, उनके लिए ऐसे दृश्‍य कतई चिंतित करने वाले नहीं होंगे। जिस शहर में हत्यारों को पुलिस से बचाने की डील करते हुए पकड़े जाने पर बीस दिन की जेल काट कर आया एक प्रवीण खारीवाल नाम का एक पत्रकार प्रेस क्लब का उपाध्यक्ष बन जाए, वहां उसूलों और क़ायदों की बात कौन सुनने वाला। वैसे दिल्‍ली ही कौन सी पाक-साफ़ है। इसे यूं भी कह सकते हैं कि जिस देश में करोड़ों की रिश्‍वतखोरी के आरोप में तिहाड़ जेल जा चुके सुधीर चौधरी नाम के पत्रकार को न्‍यूजीलैंड के राष्‍ट्राध्‍यक्ष से मिलने के लिए राजकीय न्‍योता भेजा जा चुका हो, वहां कहने-सुनने को क्‍या रह जाता है। यह अनैतिक होने की प्रतिस्‍पर्धा का दौर है। अनैतिक होना ही आज नैतिकता का सर्वश्रेष्‍ठ मानदंड बन चुका है। इस मामले में क्‍या दिल्‍ली और क्‍या इंदौर!

इंदौर की महिला पत्रकार शायद ठीक ही कहती है, ”आपने कुछ बचाया है क्या जो मैं आपसे क्रॉस क्वेश्चन करूं”?