गुरदीप सिंह सप्पल
नोटबंदी के फ़ैसले के दिन रामा गांधी रिज़र्व बैंक के डेप्युटी गवर्नर थे। अब वे PayTM से बतौर सलाहकार जुड़ गए हैं!!
ये वही PayTM हैं जिसने नोटबंदी के एलान के कुछ ही मिनट में अख़बारों में फ़ुल पेज विज्ञापन दे दिए थे।
ये वही PayTM है जिसने देश के प्रधानमंत्री की तस्वीर का विज्ञापन में बिना इजाज़त के कमर्शियल इस्तेमाल किया। ख़ुद प्रधानमंत्री कार्यालय ने RTI में ये ख़ुलासा किया, लेकिन PayTM पर फिर भी कोई कार्यवाही नहीं की।
ये वही PayTM है जिसका आपने नाम भी पहले नहीं सुना होगा, लेकिन अब गाँव गाँव,मुहल्ले मुहल्ले में लोग इसे जानते हैं।
ये चमत्कार कैसे हुए? क्या ये नियुक्ति कुछ संकेत देती है?
आमतौर पर उच्च सरकारी पदों पर रहे लोगों के लिए दो साल का कूलिंग ऑफ़ पिरीयड होता है। यानि, वे लोग पद छोड़ने के बाद सम्बंधित क्षेत्र से जुड़ी निजी कम्पनियों में नौकरी नहीं कर सकते। इस शर्त को केवल प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली कमेटी ही माफ़ कर सकती है।
तो सवाल है कि नोटबंदी से जुड़े इस दूसरे सबसे बड़े अफ़सर को दो साल के कूलिंग ऑफ़ से छूट क्यों मिली? क्यों नहीं रामा गांधी पर शर्त लगाई गई कि नोटबंदी से सबसे ज़्यादा फ़ायदा पाने वाली, या कहें कि फ़ायदा पाने वाली अकेली कम्पनी को वे ज्वाइन नहीं कर सकते।
ऐसा तो नहीं ही है कि इस नियुक्ति देश में जो संकेत जाएँगे, इसके जो मतलब निकाले जाएँगे, PayTM – रिज़र्व बैंक – नोटबंदी की तिगड़ी को लोग किस नज़र से देखेंगे, ये भाजपा का उच्च नेतृत्व समझता नहीं है।
तो फिर प्रधानमंत्री की क्या मजबूरी रही कि रामा गांधी पर वो रोक नहीं लगा पाए? या फिर सब उनकी सहमति या इशारे से ही हुआ है?
या कहें कि देश में अब खुला खेल फ़र्रुख़ाबादी चल रहा है। पर्दे की भी फ़िक्र नहीं बची, ज़्यादातर संस्थाएँ सरेंडर कर चुकी हैं और बहुत से लोग अब जागरूक नागरिक नहीं, भक्त बन गए हैं। तो सवाल कौन पूछेगा ?
लेखक राज्यसभा टीवी के पूर्व सीईओ हैं।