दास मलूका
अप्रैल के आखिरी दिनों की एक गरम सी सुबह, दिल्ली से सटे गाजियाबाद के उपनगर इंदिरापुरम की शिप्रा सन सिटी के एक कुशादा फ्लैट में स्मार्ट फोन की घंटी गनगनाई, फोन उठाने वाले ने पहले नंबर देखा, फिर जरा चौंक कर देखा, तो फोन पर चमक रहा था….प्राइवेट नंबर !
इस प्राइवेट नंबर की जाहिर कहानी फिर कभी, लेकिन फोन उठाने वाले को इस नंबर का हस्बे-हाल मालूम था। फोन उठाते ही उसने जिस अंदाज में बात शुरु की उससे साफ था कि अगला पुराना परिचित ही नहीं, खासा ठसकदार भी है।
– प्रणाम…प्रणाम भाई साब
– जी…जी
– अरे….जी, जी
– अच्छा !!!
– क्या बात कर रहे हैं !!
– …………………………
चौंकी हुई आंखों और सरगोशियों से लबरेज़ ये बात तकरीबन आधा घंटे चली।
इस बातचीत को 5 रोज़ भी न गुजरे थे कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक बार फिर खबरों में थी। इस बार फिर उसे खबरों में लाने का क्रेडिट उसके ख़ैरख्वाह और अलीगढ़ से BJP सांसद सतीश गौतम को मिला।
मई दिवस की सुबह अखबारों में कहीं अटकी, कहीं लटकी एक छोटी सी खबर शाम तक टीवी के न्यूज चैनलों पर झंझावात ले आई। खबर थी कि अलीगढ़ के सांसद सतीश गौतम ने यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर तारिक मंसूर को चिट्ठी लिख कर मांग की है कि यूनिवर्सिटी में लगी पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर हटाई जाए।
जिन्ना के नाम पर ये तूफ़ान खड़ा होते ही BJP के विकराल मुख्यालय के छोटे मगर AC कमरे में ठहाका लगाते एक भगवा पटका धारी ने दूसरे से पूछा
क्या आप दसवीं पास से तेज़ हैं ?
जी हां, अलीगढ़ से पहली बार सांसद बने सतीश गौतम महज 10वीं पास हैं, उन्होने यूनिवर्सिटी क्या इंटरमीडिएट कक्षाओं का तक का मुंह नहीं देखा, लेकिन दक्षिण एशिया की नामी सेंट्रल यूनिवर्सिटी AMU को दो-दो बार सर के बल खड़ा करने की पुरज़ोर कोशिश कर चुके हैं।
महज 10वीं पास सतीश गौतम 2014 में पहली बार अलीगढ़ से लड़े और सांसद बने, सूत्रों के मुताबिक ये संघ की कृपा थी, समय के मुताबिक ये पार्टी का ‘शाही’ फरमान था, तथ्यों के मुताबिक ये अलीगढ़ के वोटों का समीकरण था, लेकिन सत्य के मुताबिक ये समय का षटकोण था जिसने उन्हें अचानक ‘शादियों के कपड़े बेचने वाले’ से ‘सांसद की कुर्सी’ तक पहुंचा दिया। जी हां, गाजियाबाद का मशहूर ‘दूल्हा घर’ सतीश गौतम का पारिवारिक प्रतिष्ठान है। स्वयं सेवक होने के साथ-साथ ‘सतीश’ जी के ‘गौतम’ होने का भी उनके सांसद बनने में बड़ा योगदान है, उनसे पहले अलीगढ़ सीट से शीला गौतम चार बार सांसद रहीं, लेकिन कहते हैं उनसे ‘गौतम’ छोड़ सतीश जी का कोई नाता नहीं।
बहरहाल 10वीं पास सांसद जी की अपने ही शहर में बसी यूनिवर्सिटी से कितनी रब्त है, इसका मुलाहिजा वो खत है जो तारीख 30अप्रैल 2018 को उन्होने यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर को लिखी, नजर फरमा हो
सेवा में,
“कुलपति”
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय,
अलीगढ़
महोदय,
आज सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर लगी हुई है. मुझे इस बारे में जानकारी नहीं है कि यह तस्वीर एएमयू के किस विभाग में और किन कारणों से लगी हुई है.
कृपया इस संबंध में संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर मुझे अवगत कराने का कष्ट करें, साथ ही उन कारणों का भी उल्लेख करें जिनकी वजह से यह तस्वीर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में लगाने की मजबूरी बनी हुई है, क्योंकि संपूर्ण विश्व जानता है कि मोहम्मद अली जिन्ना भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के मुख्य सूत्रधार थे और वर्तमान में भी पाकिस्तान द्वारा गैर जरूरी हरकतें लगातार जारी हैं. ऐेसे में जिन्ना की तस्वीर एएमयू में लगाना कितना तार्किक है.
सधन्यवाद
सतीश कुमार गौतम
सांसद (अलीगढ़)
जाहिर है सांसद जी को यूनिवर्सिटी के भीतर की कोई खैर-ख़बर ही नहीं।
चिट्ठी से ही जाहिर है उन्हें 30 अप्रैल 2018 तक पता ही नहीं था कि जिन्ना की तस्वीर यूनिवर्सिटी के किसी शोबे (विभाग) में नहीं छात्रसंघ भवन में लगी है, जो वहां 15 अगस्त 1947 से नहीं 1938 से लगी है, उनसे पहले सेे तो वहां महात्मा गांधी की तस्वीर लगी है। ये एक तरह का सम्मान है जो अलीगढ़ यूनिवर्सिटी छात्रसंघ अपने आजीवन मानद सदस्यों को देता रहा है। और इसे देकर खुद सम्मानित होता रहा है।
लेकिन 10वीं पास सांसद के लिए यूनिवर्सिटी के बारे में ये सब जानने, न जानने का मतलब ही क्या ?
अगर सतीश गौतम अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के बारे में ठीक-ठीक सब कुछ जान रहे होते तो शायद 2014 में उन्होने ताजा-ताजा बनी BJPकी सरकार की वैसी थुक्का-फजीहत न कराई होती जैसी कराई।
ये उनका AMU के खिलाफ़ खड़ा किया पहला विवाद था, जिससे वो नेशनल लाइम लाइट में आए।
नवंबर 2014 में उन्होने यूनिवर्सिटी में राजा महेंन्द्र प्रताप की जयंती मनाने का ऐलान कर दिया। ये वो राजा महेंद्र प्रताप थे जिन्होंने AMU के लिए अपनी जमीन दान में दी थी। तब भी जोरदार माहौल बना, मीडिया खास कर टीवी चैनलों पर खूब हंगामा खड़ा हुआ।
लेकिन इस हंगामे की हवा निकाल दी तब के कुलपति जहीरुद्दीन शाह ने (ये लेफ्टिनेंट जनरल (रि) जहीरुद्दीन शाह फिल्म अभिनेता नसीरूद्दीन शाह के बड़े भाई हैं, शाह परिवार का रिश्ता UP से कितना गहरा है बताने की जरूरत नहीं)
रिटायर्ड फौजी, कुलपति शाह रणनीतिक कौशल के माहिर थे। उन्हें 10वीं पास सांसद की सीमाएं पता थीं। बताते हैं कि ताजा-ताजा बनी सरकार की शिक्षा मंत्री के सामने उन्होने तथ्यों के आधार पर इस केस कोो कुछ यूं पेश किया-
“ मोहतरमा, गजब हो जाएगा, राजा महेन्दर प्रताप वाज अ स्टॉंच कॉम्युनिस्ट, मार्क्सिस्ट मैम….मार्क्सिस्ट, नेशलिज्म में तो बंदे का कोई यकीन ही नहीं था, अलग ही था….एक्जाइल (निर्वासन) में अपनी सरकार बना ली थी…..खैर छोड़िए ये सब असल मसला तो ये है कि अटल जी के खिलाफ….जी हां एक्स PM अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ चुनाव लड़ा था मथुरा से….हराया था मैम हराया था”
कहते हैं मोहतरमा की आखें फटी रह गईं। उन्होने वाजपेयी वाला तथ्य अपने जरायों से पता कराया। पता चला कि 100 फीसदी सच-
“दूसरी लोकसभा के लिए वाजपेयी मथुरा से जनसंघ के उम्मीदवार थे और उनके मुकाबिल थे राजा महेन्दर प्रताप, वाजपेयी को हराकर राजा महेन्दर प्रताप लोकसभा चले गए थे”
यही नहीं राजा साहब तो उसी एंग्लो मुस्लिम स्कूल के एलमुनस निकले जो बाद में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय बना।
जाहिर है हीरो तो हड़पे जा सकते हैं, लेकिन ‘विलेन’ के लिए शहादत कौन देता ?
पार्टी को इस केस में अपनी मिट्टी पलीद होती दिखी, लिहाजा सतीश गौतम को हड़का कर मामला ठंडा करने का ‘सीधा’ आदेश मिला। और वो आंदोलन ये जा-वो जा।
सवाल उठता है कि एक बार AMU में हाथ जला चुके सतीश गौतम को दुबारा क्या सूझी जो वो फिर यूनिवर्सिटी की टर्फ पर फिर उछल कूद करने लगे?
कुछ ने कहा ‘कर्नाटक’ कुछ ने कहा’ कैराना ‘ लेकिन सच इससे इतर कहीं और है। जी हाँ कर्नाटक में जो हुआ वो तो अपनी गवाही आप है। साथ में इतना और जोड़ लीजिए कि अगर जिन्ना वहां कारगर होते तो आखिरी दौर में टीपू सुल्तान का जिन्न खडा करने की जरुरत न पड़ती। जी, ये कोशिश भी पाकिस्तान के हवाले से कई गयी।
रहा कैराना तो आइए वहां भी हो लें। सहारनपुर जिले की दो और शामली की तीन विधान सभा सीटों से मिलकर बनी इस लोकसभा सीट पर मुसलमान सबसे बड़ा वोटर समूह है। लेकिन यहाँ जिन्ना से बड़ा कद मुकीम काला का है। जी हां, वही गैंगस्टर काला जिसपर कैराना से हिंदुओं को खदेड़ने का कथित इल्जाम लगा।
सीएम योगी किस कार्ड पर चुनाव लड रहे हैं ये उनकी पहली ही रैली से साफ हो गया जब उन्होंने आरोप लगाया कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के हाथ मुजफ्फरनगर दंगे के खून से रंगे हैं।
लेकिन इस चुनाव में न सतीश गौतम को BJP ने पूछा न किसी प्रचारक ने जिन्ना का जिक्र छेड़ा। गौतम से ज्यादा यहां कांता कर्दम की पूछ है। कांता दलित हिंदूवादी की नयी देवी हैं और गौतम न सिर्फ टीकाधारी ब्राह्मण बल्कि घोषित ब्राह्मणवादी।
बताते चलें कि बीते साल तुलसी जयंती पर सतीश गौतम ने ये कह कर सेल्फ गोल कर लिया था कि ” राजा हो या प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष हो या मुख्यमंत्री सबके साथ ब्राह्मण पाए जाते हैं, बिना ब्राह्मण के कोई सरकार नहीं चल सकती”
ये बयान ‘सबका साथ सबका विकास’ वाले नारे की एंटी थीसिस था जिसपर पार्टी में कई भंवें टेढी हुईं।
दरअसल कैराना पर जयंत चौधरी की वो टिप्पणी ही सबकुछ कह देती है जो उनके मुंह से अनायास ही निकली होगी
” यहां जिन्ना से ज्यादा अहम गन्ना है”
अब दास मलूका भी हैरान कि न ‘कर्नाटक’ न’ कैराना’ तो आखिर किस पर है सतीश गौतम का निशाना? तो इसके जवाब में फिर वही सवाल आया।
क्या आप दसवीं पास से ज्यादा तेज हैं?
आइए एक बार फिर लौटते हैं कुछ प्राइवेट बातों और उस प्राइवेट नंबर पर जिसका जिक्र दास मलूका ने कथा गौतम के आरंभ मे किया था।
सियासत में सतीश गौतम को कल्याण सिंह परिवार का करीबी कहा जाता है या अब था भी कह सकते हैं। 2014 के टिकट बंटवारे में कल्याण की खूब चली थी। अमित शाह ने बतौर प्रभारी उन्हें बड़ी तरजीह दी थी। कहते हैं अलीगढ़ में गौतम होने की अहमियत भी अमित शाह को उन्होंने ही बताई और चेले सतीश को टिकट भी उन्होंने ही दिलवाया।
लेकिन बीते 4 साल में बहुत पानी बह चुका। कल्याण सिंह जयपुर के राज भवन मे हैं और उनके उत्तराधिकारी राजवीर सिंह उर्फ राजू भैया के राज पैलेस में सतीश गौतम की आवाजाही भी कम हुई है। और तो और अब अमित भाई शाह पार्टी के यूपी प्रभारी नही राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।
शाह और मोदी की सियासी कार्य शैली से वाकिफ लोग जानते हैं कि दोनों बेदर्दी से सिटिंग कैंडिडेट के टिकट काटने के लिए कुख्यात हैं।
अब आइए उस प्राइवेट नंबर पर जिससे आए एक फोन के बाद जिन्ना का जिन्न अचानक जाग उठा।
दास मलूका जानते हैं कि वो नंबर किसका था। लेकिन उससे अहम ये जानना है कि उधर से कहा क्या गया।?
दरअसल प्राइवेट नंबर ने खबर दी कि
… 2019 का डेस्क वर्क शुरु हो चुका है गौतम। 35 से 40 फीसदी तक टिकट कटने वाले हैं। दुबारा टिकट पाना है तो खुद को चर्चा में रखना होगा। पार्टी मुख्यालय से लेकर केशव कुंज तक और दिल्ली के लोक कल्याण मार्ग से लेकर नागपुर के रेशिम बाग मैदान और अयाचित रोड तक को साधना होगा। हालात संगीन हैं…
कहते हैं कि इसके बाद जो गौतम की नींद उडी तो फिर वो टीवी चैनलों के उस शोर मे ही चैन से सो पाए जब एंकर ने चीख चीख कर सवाल पूछना शुरु किया…
“जब पाकिस्तान में गांधी की तस्वीर नहीं तो अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी में जिन्ना की क्यों?”
… तो साहब इस कथा गौतम का कुल हासिल ये कि हर मुद्दे का फलक व्यापक हो ये बिलकुल जरुरी नहीं। कई बार एजेंडा बेहद निजी होता है और ‘बैठे – ठाले’ उसकी राष्ट्रव्यापी, राष्ट्रवादी व्याख्या करने लग जाते हैं, क्योकि
…. सबका अपना अपना एजेंडा है। सबके अपने अपने जिन्ना हैं।