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प्रकाश के रे
शहर के पुराने हिस्से की एक छत पर
तीसरे पहर की धूप में सूख रहे हैं कपड़े
एक सफ़ेद चादर उस औरत की जो मेरी दुश्मन है,
एक तौलिया उस आदमी का जो मेरा दुश्मन है,
उससे पोछता है पसीना वह अपने माथे का.
पुराने शहर के आसमान में एक पतंग
उसकी डोरी की दूसरी ओर एक बच्चा,
जिसे मैं नहीं देख सकता दीवार की वज़ह से.
हमने ढेरों झंडे टाँग रखे हैं,
उनने ढेरों झंडे टाँग रखे हैं.
हमें यह दिखाने के लिए कि वे ख़ुश हैं
उन्हें यह दिखाने के लिए कि हम ख़ुश हैं.
“जेरूसलम एकमात्र ऐसा शहर है जहाँ मृतकों को भी मताधिकार दिया गया है.”
– यहूदा अमीखाई (जेरूसलम का एक नज़ारा)
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ईसाईयत की आध्यात्मिकता को लेकर रोमन साम्राज्य की दोनों ऑगस्टा- पुखेरिया और यूडोकिया- आपस में सहमत तो हो गयी थीं कि ईसा मसीह देवत्व में भी पूर्ण थे और मनुष्यता में भी, तथा इस समझौते से आज भी ईसाईयत के तीन अहम फरीक- ऑर्थोडॉक्स, कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट- सहमत हैं, लेकिन दो तबके- मोनोफिजिट्स और नेस्ट्रोरियंस- इसे नहीं माने. ये दोनों ऑर्थोडॉक्स चर्च से हमेशा के लिए अलग हो गये और आज हम इन्हें असीरियन चर्च और मिस्र के कॉप्टिक चर्च के नाम से जानते हैं. रोमन साम्राज्य की नीतियों ने न सिर्फ ईसाईयों में भेद पैदा कर दिया था, बल्कि प्रजा के विभिन्न समुदाय भी असंतुष्ट हो रहे थे. यहूदी पहले से ही नाराज थे. हूणों के हमलों से भी साम्राज्य की चूलें हिल रही थीं. और, इन हंगामों के बीच जेरूसलम ईसाईयत के रंग में डूबा जा रहा था. शहर की पवित्रता का केंद्र अब माउंट जॉयन या टेंपल माउंट नहीं, बल्कि होली सेपुखर चर्च था. जेरूसलम के बनने और तबाह होने के सिलसिले में एक और नया जेरूसलम बस रहा था- ईसाई जेरूसलम.
वर्ष 518 में वृद्ध जस्टिन रोमन सम्राट बना, पर वह राजकाज के लिए 35 साल के अपने भतीजे पीटर, जिसने अब अपना नाम जस्टिनियन रख लिया था, पर निर्भर था. दरअसल, जस्टिनियन के हाथों में ही बैजंटाइन साम्राज्य की बागडोर थी. यह तेजतर्रार युवा भी अकेले न था. उसके साथ उसकी प्रेमिका थियोडोरा भी थी. दराबारी रोमन इतिहास में थियोडोरा की रंगीनियों और कामुकता की खूब चर्चा है. मोंटेफियोरे का मानना है कि अपनी चाटुकारिताभरी नौकरी से खिन्न होकर इतिहासकार ने यह सब बढ़ा चढ़ा कर लिखा होगा. उसका पिता रथों की दौड़ का प्रशिक्षक था और उसी माहौल में वह पली-बढ़ी थी. बचपन में वह तमाशे में हिस्सा लेती थी, पर बाद में वह सामूहिक सेक्स के आयोजनों का बड़ी आकर्षण बन गयी. इतिहास की मानें, तो वह एक ही साथ कई पुरुषों को संतुष्ट करने का दम रखती थी. खैर, जस्टिनियन उस पर इस तरह आसक्त था कि उसने उससे शादी करने के लिए शासकीय नियमों में भी बदलाव कर दिया था, पर चतुर थियोडोरा की हरकतें जस्टिनियन के लिए मुश्किल का सबब भी बनती रहीं. लेकिन, ऐसा भी हुआ कि इस स्त्री ने जस्टिनियन को संकट के समय हौसला और साहस भी दिया. एक दफा जब नाइका दंगों में कुस्तुंतुनिया जस्टिनियन के हाथों से तकरीबन निकल गया था और वह राजधानी छोड़ने की तैयारी कर रहा था, थियोडोरा ने साफ कह दिया कि वह जामुनी रंग के शाही पोशाक में मरना पसंद करेगी, लेकिन इसके बगैर जीना नहीं. उसने अपने सैनिक भेजे और दंगाइयों को काबू में किया.
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वर्ष 527 में शासक बननेवाला जस्टिनियन पूरब का आखिरी लैटिन-भाषी सम्राट था. वह मानता था कि उसके जीवन का लक्ष्य रोमन साम्राज्य को फिर से स्थापित करना और ईसाईयत को एक करना है. उसकी पैदाइश से कुछ समय पहले ही एक जर्मन योद्धा ने रोम से वहाम के आखिरी सम्राट को भगा दिया था. इससे एक तो रोमन बिशप की प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई और दूसरे साम्राज्य के पश्चिमी और पूर्वी हिस्से में अलगाव भी बढ़ गया. युद्ध, आस्था और कला के जरिये जस्टिनियन को जोरदार कामयाबी मिली. उसने इटली, उत्तर अफ्रीका और दक्षिणी स्पेन पर फिर से कब्जा किया. पर इस दौरान फारसी पूर्वी क्षेत्र पर लगातार हमले कर रहे थे और इस हिस्से को उन्होंने तबाह कर दिया था. ईसाईयत को ‘मनुष्यता का पहला और महानतम आशीर्वाद’ कहते हुए जस्टिनियन और थियोडोरा ने अपने साम्राज्य को मजबूत करने का लगातार प्रयास किया. इस प्रयास में उन्होंने समलैंगिकों, बहुदेववादियों, सामारियों, धर्मद्रोहियों और यहूदियों का भयानक दमन किया. यहूदी धर्म को अनुमतिप्राप्त धर्मों की सूची से हटा दिया, इस्टर से पहले पड़ने पर पासओवर पर्व पर पाबंदी आयद कर दी, यहूदी मंदिरों को चर्चों में बदल दिया, यहूदियों का बलात धर्म-परिवर्तन कराया और यहूदी इतिहास में बदलाव किया.
कहा जाता है कि जब 537 में जस्टिनियन ने शानदार हाया सोफिया चर्च का उद्घाटन किया, तो उसने कहा- ‘सोलोमन, मैं तुमसे भी आगे निकल गया’. आज भी यह इमारत तुर्की के इंस्ताबुल की सबसे भव्य इमारत है. वर्ष 1453 तक यह ऑर्थोडॉक्स चर्च के रूप रहा था, पर बीच में 1204 से 1261 तक यह क्रुसेडरों द्वारा रोमन कैथोलिक चर्च बना दिया गया था. वर्ष 1453 की मई से 1931 तक हाया सोफिया उस्मानिया सल्तनत के तहत मस्जिद बना दिया गया था. तुर्की की सेकुलर सरकार ने 1935 में इसे एक संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया. तुर्की में इस्लामिक राष्ट्रवाद के बढ़ते माहौल में बीते सालों में इस इमारत को फिर से मस्जिद में बदलने की मांग तेज हुई है और सरकारी तथा सरकार की शह पर कुछ संगठनों द्वारा वहां नमाज भी पढ़ी गयी. कुछ यूरोपीय और अमेरिका अभियान इसे चर्च में बदलने की मांग भी कर रहे हैं.
बहरहाल, 543 में जस्टिनियन प्रथम और थियोडोरा ने जेरूसलम का रुख किया और वहां सोलोमन की प्राचीन जगह पर भव्य इमारत की तामीर पर काम शुरू किया. टेंपल माउंट के सामने बन रहा यह चर्च सेंट मेरी मदर ऑफ गॉड को समर्पित था. उसी दौरान जस्टिनियन के सेनापति बेलिसारियस ने कार्थेज की राजधानी पर जीत हासिल की. वहां उसे वह पवित्र स्टैंड मिला जिस पर यहूदियों के पवित्र मंदिर में दीप जलाये जाते थे. जेरूसलम के उस मंदिर को तबाह कर इसे कई सदी पहले रोमन ही लूट कर ले गये थे. इस सीरिज में हम उस प्रकरण का उल्लेख शुरू में ही कर चुके हैं. उस स्टैंड को पहले तो कुस्तुंतुनिया में जीत की खुशी में प्रदर्शित किया गया और फिर उसे जेरूसलम वापस लाया गया.
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जस्टिनियन के नये चर्च के उद्घाटन के मौके पर जेरूसलम में हजारों तीर्थयात्रियों के उनकी आर्थिक और सामाजिक हैसियत के मुताबिक ठहरने का इंतजाम हुआ. खुदाई में मिली चीजों और लिखित वर्णनों के आधार पर कहा जा सकता है कि जस्टिनियन का जेरूसलम एक शानदार शहर था. चर्च का काम पूरा होने के कुछ समय बाद ही कैंसर से थियोडोरा की मौत हो गयी, पर उससे बीस साल बड़ा जस्टिनियन 565 तक जिंदा रहा. मरते समय वह अपनी उम्र की आठवीं दहाई में था. ऑगस्टस और ट्राजन को छोड़ कर कोई शासक साम्राज्य को बढ़ाने में उसकी बराबरी नहीं कर सकता है. पर उसके बाद उसे संभालना आसान न था.
वर्ष 602 में एक सेनापति फोकास ने सम्राट मौरिस को अपदस्थ कर सत्ता हथिया लिया. कहा जाता है कि मौरिस की हत्या से पहले फोकास ने उसके छह बेटों को उसके सामने मारा. महारानी और बेटियों को किसी मठ में भेज दिया गया. उसने रथों की दौड़ के ‘नीले’ प्रशंसकों के खेमे का इस्तेमाल अपने विरोधियों को दबाने के लिए किया जिन्हें ‘हरे’ प्रशंसकों का समर्थन था. खेल प्रशंसकों की यह गुटबाजी और दंगों का उनका इतिहास बहुत दिलचस्प है. आज भी अक्सर फुटबॉल के मैदानों में जो उदंडता देखने को मिलती है, उसका सिरा रोमन इतिहास से जुड़ता है. एक बार तो ऐसे ही हंगामे के कारण रोम कई दिनों तक जलता रहा था. ये नीले और हरे गिरोह जेरूसलम में भी भिड़े और कुछ समय के लिए हरे गिरोह का कब्जा भी हो गया था, पर जल्दी ही उन्हें शाही नियंत्रण में ले लिया गया.
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रोमनों के इस अफरातफरी पर फारस के शाह खुसरो द्वितीय की नजर थी. जब वह बच्चा था, तो उसे गद्दी दिलाने में कुतुंतुनिया के सम्राट मौरिस ने मदद की थी, पर उसकी हत्या के बाद खुसरो को पूरब में हमले का बहाना मिल गया. उसे उम्मीद थी कि वह कुतुंतुनिया को हमेशा के लिए बरबाद कर देगा. अगले पच्चीस सालों में जेरूसलम पर चार धर्म- ईसाईयत, पारसी, यहूदी और इस्लाम- राज करनेवाले थे. शहर एक बार फिर उथल-पुथल के मुहाने पर खड़ा था.
पहली किस्त: टाइटस की घेराबंदी
दूसरी किस्त: पवित्र मंदिर में आग
तीसरी क़िस्त: और इस तरह से जेरूसलम खत्म हुआ…
चौथी किस्त: जब देवता ने मंदिर बनने का इंतजार किया
पांचवीं किस्त: जेरूसलम ‘कोलोनिया इलिया कैपिटोलिना’ और जूडिया ‘पैलेस्टाइन’ बना
छठवीं किस्त: जब एक फैसले ने बदल दी इतिहास की धारा
सातवीं किस्त: हेलेना को मिला ईसा का सलीब
आठवीं किस्त: ईसाई वर्चस्व और यहूदी विद्रोह
नौवीं किस्त: बनने लगा यहूदी मंदिर, ईश्वर की दुहाई देते ईसाई
दसवीं किस्त: जेरूसलम में इतिहास का लगातार दोहराव त्रासदी या प्रहसन नहीं है
ग्यारहवीं किस्त: कर्मकाण्डों के आवरण में ईसाइयत
बारहवीं किस्त: क्या ऑगस्टा यूडोकिया बेवफा थी!
(जारी) Cover Photo : Rabiul Islam