अरसे बाद भारत के शिक्षा परिसरों में ऐसी अंगड़ाई दिख रही है जिसका रिश्ता नवजागरण से बनता है। रोहित वेमुला की ख़ुदकुशी और इसके ज़रिये सामने आये शोषण की दिल दहला देने वाली कहानी के ख़िलाफ़ पूरे देश के छात्र और बुद्धिजीवी समाज सड़क पर है। यह एक ऐसा आंदोलन है जिसने जाति और धर्म की तमाम दीवारें तोड़ दी हैं। एक तरफ ब्राह्मणवादी शोषण को एन-केन-प्रकारेण बरकरार रखने वाली शक्तियाँ हैं तो दूसरी तरफ़ दलित, वंचित सुमदायों के साथ-साथ न्याय के पक्ष में खड़ा भारत का विशाल जनगण है जिसका रिश्ता हर जाति, धर्म, समुदाय से है।
लेकिन अफ़सोस हिंदी की सबसे बड़ी पत्रिका होने का दम भरने वाली इंडिया टुडे के लिए यह ‘जातीय उबाल’ है। पत्रिका के हिंदी संस्कऱण का मुखपृष्ठ यही कह रहा है। पत्रिका के संपादक अंशुमान तिवारी ने क्या सोचकर यह शीर्षक दिया है और मालिक अरुण पुरी ने क्या सोचकर तिवारी जी के इस सोच को स्वीकृति दी है, यह समझना मुश्किल है….या फिर बिलकुल भी मुश्किल नहीं है.