जस्टिस बीएच लोया कि रहस्मय मौत से जुड़ी दो याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई है। यह मामला मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खण्डपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए लाया जाएगा।
दो दिन पहले इस मामले में नया मोड़ आया था जब कांग्रेस ने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से एक अलग एसआइटी बनाकर जांच कराने की मांग की और बताया कि लोया के बाद एक और रिटायर्ड जज व एक अधिवक्ता की रहस्यमय स्थितियों में मौत हुई थी।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष जो दो याचिकाएं लगी हैं, उनमें एक तहसीन पूनावाला ने दायर की है और दूसरी महाराष्ट्र के एक पत्रकार बीएस लोन ने दायर की है। इसके अलावा पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल रामदास ने भी अवकाश प्राप्त जजों व पूर्व पुलिस अफसरों से स्वतंत्र जांच के लिए सर्वोच्च न्यायालय में एक आवेदन किया था।
सीबीआइ के विशेष जज लोया सोहराबुद्दीन मुठभेड़ कांड की जांच कर रहे थे जिसमें मुख्य आरोपी अमित शाह थे जो लोया की 2014 में संदिग्ध मौत के बाद मामले की सुनवाई करने के लिए बहाल किए गए जज गवई द्वारा बरी कर दिए गए थे। पिछले नवंबर के तीसरे सप्ताह में इस मामले को द कारवां पत्रिका ने उठाया और लगातार इस पर स्टोरी की, जिसके बाद अधिवक्ताओं और जजों की ओर से दबाव पड़ा जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट ने सारी याचिकाएं मंगवा लीं और निचली अदालतों को लोया की मौत से जुड़ी कोई भी याचिका लेने से मना कर दिया।
इस बीच यूथ बार असोसिएशन ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट में लगी याचिकाओं में अपना प्रतिवाद जोड़ दिया है। अपने आवेदन में बार ने कहा है कि लोया की मौत के मामले में जो कुछ हुआ, वह निचली अदालतों की कार्यशैली पर सवाल खड़े करता है। बार ने लोया की मौत से जुड़ी मीडिया रिपोर्टों में से छांट कर सात सवाल अपने आवेदन में पेश किए हैं:
- लोया को छाती में दर्द हुआ, वे अस्पताल कैसे पहुंचे?
- दांडे अस्पताल में ईसीजी किया गया कि नहीं?
- मेडिटिना अस्पताल में मृत घेषित किया गया?
- मौत का समय?
- पंचनामा और उसके बाद?
- जज के पहने कपड़े पर खून
- लाश का परिवहन?
देश के इस अतिसंवेदनशील मामले में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण रवैया मीडिया का रहा। कुछेक वेबसाइटों को छोड़ दें इस मामले में इंडियन एक्सप्रेस और एनडीटीवी ने प्रतिकूल भूमिका निभाते हुए एक फर्जी ईसीजी रिपोर्ट के आधार पर द कारवां की स्टोरी पर ही सवाल खड़ा कर डाला। लोया के मामले पर मीडिया की चुप्पी की चारों ओर आलोचना हुई है।
दो दिन पहले कांग्रेस की प्रेस कॉन्फ्रेंस को भी अधिकतर मीडिया संस्थानों ने रिपोर्ट नहीं किया। अंग्रेजी भाषा के अखबारों ने जहां इस मामले को भीतर के पन्नों पर द हिन्दू (पेज8), ट्रिब्यून (पेज7), टाइम्स ऑफ़ इण्डिया (पेज10) पर स्थान दिया, वहीं हिन्दी मीडिया ने इस मामले पर पूरी चुप्पी साधे रखी। हिंदी के इक्का दुक्का प्रतिष्ठानों ने ही इस कॉन्फ्रेंस को स्थान दिया जिसमें अमर उजाला, क्विंट प्रमुख हैं। दैनिक जागरण ने बजट वाले दिन खबर को अपने यहां जगह दी। दैनिक भास्कर ने कांग्रेस की प्रेस कॉन्फ्रेंस से ज्यादा जस्टिस अरुण मिश्र के बयान को प्रमुखता दी जिसमें जस्टिस मिश्र अपने को जूनियर और छोटा आदमी बता रहे हैं।
किसी भी अखबार (हिन्दी/अंग्रेज़ी) ने इस मामले को अपने मुखपृष्ठ पर स्थान न देकर अपने सत्तावादी चरित्र को ही उजागर किया है। सवाल यह है कि आज सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई जब शुरू होगी, तब भी मीडिया क्या उसे रिपोर्ट नहीं करने की बेशर्मी उठा सकेगा?