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नोटः जेरूसलम आने वाले अनेक विदेशी पर्यटकों/तीर्थयात्रियों को अचानक लगने लगता है कि वह बाइबल से संबद्ध कोई पैगंबर है या कोई खास व्यक्ति है जिसके साथ कुछ दैवी घटित होने वाला है. हर साल ऐसे करीब 100 मामले आते हैं. इस प्रवृत्ति को ‘जेरूसलम सिण्ड्रोम’ कहा जाता है. शहर के टूरिस्ट गाइडों को हिदायत होती है कि वे पर्यटकों की हरकतों पर नजर रखें, और जैसे ही वह कुछ ऐसा करे, तो तुरंत उसे अस्पताल रवाना करें. इस सीरीज का नाम इसी से लिया गया है. तीन हजार सालों से जो जेरूसलम के साथ होता आ रहा है, वह एक अद्भुत पागलपन के अलावा और है भी क्या! यह भी विडंबना है कि जेरूसलम का मानसिक अस्पताल जहां बना है, वह देर यासिन नामक गांव हुआ करता था जिसके बाशिंदो को 1948 को भयावह जनसंहार का शिकार होना पड़ा था और जो कुछ बचे-खुचे थे, उन्हें बतौर शरणार्थी कहीं और जाना पड़ा था.
प्रकाश के. रे
मैं तुमसे सच कहता हूं, यहां एक-दूसरे पर रखा हुआ एक भी पत्थर नहीं बचेगा; सब ढाह दिये जायेंगे.
– ईसा मसीह (जैतून की पहाड़ी/अल तूर/माउंट ऑफ ओलिव्स से पवित्र मंदिर की ओर देखते हुए)
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रोमन सेना और उसके क्षेत्रीय सहयोगियों की चार महीने की जेरूसलम की घेराबंदी ने शहर के बाशिंदों को तबाह कर दिया था. खाने-पीने की चीजों की भारी किल्लत के चलते हर तरफ लूट-मार का आलम था. जो लोग भूख से बच जा रहे थे, उन्हें भूखे लोग मार दे रहे थे. सन सत्तर के अप्रैल में पासओवर त्योहार के मौके पर शहर के बाहर से बड़ी संख्या में तीर्थयात्री शहर में जमा हुए थे जो रोमन घेराबंदी के कारण बाहर नहीं निकल सके थे. इनके अलावा जूडिया में चल रहे हमलों से भागे शरणार्थी भी जेरूसलम में थे. लुटेरों का कहर था, आसन्न तबाही का अवसाद था, कट्टरपंथ चरम पर था, डेविड के शहर जेरूसलम की सड़कों पर अकालग्रस्त लोग लाशों में तब्दील हो रहे थे. मंदिर और शहर पर कब्जे की आजमाइश में लगे तीन फिरके आपसी फूट को किनारे रख कर रोमनों के हमलों का मुकाबला करने की तैयारी कर रहे थे. साठ हजार रोमनों के सामने 21 हजार सैनिक पूरब के सबसे पवित्र शहर को बचाने की जुगत लगा रहे थे.
अप्रैल से जुलाई तक की घेराबंदी और शहर की बर्बादी का त्रासद चित्रण जोसेफस ने किया है. जोसेफस पवित्र मंदिर में हुई उस बैठक का हिस्सा था जिसमें यह तय हुआ था कि रोमन सम्राट के नाम पर होने वाली रोजाना बलि रोक दी जाये. जैसा कि पहले बताया जा चुका है, उसे अन्य विद्रोहियों के साथ गिरफ्तार किया गया था. युसुफ बेन मतितयाहू नामक यह यहूदी अब रोमनों के साथ था और टाइटस के साथ जेरूसलम के भीतर मची अफरातफरी को देख रहा था. हालांकि कई लोग मानते हैं कि जोसेफस के लेखन में रोमन फ्लेवियन परिवार की चमचागिरी साफ दिखायी देती है. पर, वह हमारा एकमात्र स्रोत है. इतना ही नहीं, शहर के भीतर उसके माता-पिता, रिश्तेदार और दोस्त भी फंसे हुए थे.
शहर में मौत और आतंक के माहौल का अंदाजा किसी दूसरे इलाके से जेरूसलम में शरण ली हुई एक धनी स्त्री की कहानी से लगाया जा सकता है. उसके पास जो धन, अनाज वगैरह था, वह विद्रोहियों ने लूट लिया था और बचा-खुचा लूटेरे ले गये थे. भूख ने बाकियों की तरह उसकी मति भी हर ली थी. चीखती-चिल्लाती उसने अपने दुधमुंहे बच्चे को संबोधित कर कहा कि यदि हम भूख से बच गये, तो रोमन हमें गुलाम बना लेंगे. विद्रोहियों और रोमनों की लानत-मलानत करते हुए उसने अपने बच्चे को अपना भोजन बनाने का फैसला कर लिया. उस औरत ने बच्चे को मारते हुए कहा कि मेरी यह हौलनाक करतूत दुनिया के सामने यहूदियों की तबाही की मिसाल बने. जब वह बच्चे के मांस को पका रही थी, उसकी गंध ने लड़ाकों और लूटेरों को बुलावा भेज दिया. पर वे भी इस भयावह दृश्य को देख कर उल्टे पांव भाग गये.
शहर में जिसे जो मिल रहा था, वह वही खा रहा था- गोबर, जूते, चमड़ा, लुगदी… मरे हुए लोगों के पेट चीर कर देखे जा रहे थे कि कहीं वे सोना या सिक्के तो नहीं निगले हुए थे. मृतकों की तादाद इतनी थी कि अब उन्हें कोई दफन भी नहीं कर पा रहा था. कई बार तो लाशें दीवार के बाहर फेंक दी जाती थीं जिन्हें रोमन सड़ते हुए देखते रहते थे. टाइटस को भीतर की खबरें कैदियों और भगोड़ों से मिल रही थी. लोग एक-दूसरे को गद्दार और जमाखोर बता रहे थे. विद्रोहियों के पास अनाज था, फिर भी वे लूट-मार और हत्याएं कर रहे थे. जोसेफस लिखता है कि ऐसा वे अपने पागलपन को बरकरार रखने के लिए कर रहे थे. वह यह भी लिखता है कि जबसे यह दुनिया बनी है, ऐसा भयावह पागलपन कभी किसी शहर पर तारी नहीं हुआ.
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इतना सब कुछ होने के बावजूद विद्रोही समर्पण के लिए मजबूर नहीं किये जा सके. अंततः जुलाई के आखिरी दिनों में टाइटस का धैर्य जवाब दे गया और उसने अपनी पूरी सेना को अल्लसुबह मंदिर पर हमला करने का आदेश दे दिया. यह वही तारीख थी जिस दिन छह सदी पहले बेबिलोनियाई सेना ने जेरूसलम पर हमला कर शाह सुलेमान/किंग सोलोमन के बनवाये गये मंदिर को नष्ट कर दिया था और यहूदियों को गुलाम बना कर ले गये थे. तब तो पांच दशक बाद ही फारसी बादशाहों की कृपा से यहूदी वापस लौट आये थे और मंदिर को आबाद कर दिया था, पर टाइटस के हमले के तकरीबन दो हजार साल बाद ही जेरूसलम फिर से जेरूसलम बन पाया और यहूदी वहां सम्मान के साथ बस सके. यह वही शहर था जिसे पहली बार देख कर टाइटस अभिभूत हो गया था, और उसी के हाथों वह बर्बाद हुआ.
पहले दिन सुबह की लड़ाई में रोमनों को पीछे हटना पड़ा. बाद में समीक्षा करते हुए टाइटस ने चिंता जतायी कि विधर्मियों के मंदिर को नष्ट होने से बचाने के चक्कर में उसे अपने सैनिक खोने पड़ रहे हैं. उसकी नजर में अब हल यही था कि पवित्र मंदिर और परिसर में आग लगा दी जाये. आदेश पर अमल हुआ, पर उम्मीद के उलट आग बहुत तेजी से फैल गयी और पूरा प्रांगण जलने लगा. कीमती चीजें बचाने के इरादे से टाइटस अपने सेनापतियों को आग पर काबू पाने का आदेश देकर अंतोनिया किले के टावर में बने अपने कक्ष में आराम करने चला गया. यह किला रोमनों ने जून में जीता था और उसके एक टावर को छोड़कर बाकी हिस्से को गिरा दिया था. टावर से मंदिर को जलते हुए और वहां हो रही भीषण लड़ाई को किले से साफ देखा जा सकता था. रोमन राजकुमार टाइटस के साथ जेरूसलम के तीन निवासी भी उस टावर से हेरोड के बनाये मंदिर को तबाह होते हुए देख रहे थे. ये लोग थे- जूडिया का राजा अग्रिप्पा, उसकी बहन बेरेनिस और इतिहासकार जोसेफस. बेरेनिस शायद यह सब अपने प्रेमी टाइटस के बिस्तर से देख रही थी.
पहली किस्त: टाइटस की घेराबंदी
(जारी)
Cover Photo : Rabiul Islam