मंदिर आन्दोलन के किस नेता ने कहा प्रसून से- गुजरात में बीजेपी और संघ,दोनों हार रहे हैं !



स्वयंसेवक की चाय का तूफ़ान ,मोदी-संघ दोनों को ले उड़ेगा…!

पुण्य प्रसून बाजपेई

” राम मंदिर..राम मंदिर की रट लगाते लगाते उम्र पचास पार कर गयी,आंदोलन किया…सड़क पर संघर्ष किया । देश भर के युवाओं को एकजुट किया । कार सेवा के लिये देश के कोने कोने से सिर्फ साधु संत ही नहीं निकले बल्कि युवा भी निकले…और आज जब चुनाव में विकास के बदले झटके में फिर राम मंदिर का जिक्र आ गया तो पहली बार लगा यही हिन्दुत्व भी ठगने की सियासत है । राम मंदिर सिर्फ सत्ता की दहलीज पर पड़ा एक पत्थर हो चला है । ऐसा क्या अचानक हुआ कि विकास का जो नारा गुजरात चुनाव में लगातार गूंज रहा था । झटके में वह 5 दिसबंर को गायब हो गया । और बहुत ही सलीके से राम मंदिर की इंट्री गुजरात चुनाव में हुई। आपको लगा होगा कि ये सुप्रीम कोर्ट में राम मंदिर के टाइटल केस को लेकर जो बहस हुई उसी के बाद गुजरात चुनाव में मंदिर-मस्जिद की इंट्री हुई ..पर मेरी मानिये सुप्रीम कोर्ट की तारीख भी 5 दिसबंर हो । 5 दिसबंर के अगले दिन 6 दिसबंर को देशभर में मंदिर की गूंज सुनाई दे.ये सब कुछ बहुत ही सिस्टेमिक तरीके से तय किया गया ।”

“तो क्या ये भी फिक्स था ?”

“हा हा ..आप चाय पीने आये हैं ….इसे पीजिये..खास गांव से मैंने मंगायी है ..”

“खूशबू से तो यही लग रहा है। …..वाकई शानदार है ..”

“हां.. इसमें दूध मिलाने की कोई जरुरत नहीं …”

“जी..मैं बिना दूध वाली ही चाय यूं भी पीता हूं…पर ये तो बताईये कि क्या सुप्रीम कोर्ट में 5 को सुनवाई हो ये भी फिक्स था ?”

” देखिये.. ये तो लोअर कोर्ट में भी नहीं होता कि सबसे बड़ी सुनवाई की तैयारी ना हो, और तैयारी के बाद सुनवाई 5 दिसंबर को होगी ये कहने के बाद 5 दिसबंर को फिर अगली तैयारी की तारीख तय हो जाये ।…छोडिये इसे…”

” पर आप कुछ क्यो नहीं बोलते । राम मंदिर का नाम आते ही आपका नाम तो हमारे जहन में आता ही है !”

“..ठीक कह रहे है आप …मुझ पर भी बहुत दबाव था मैं कुछ बोलू..मैं नहीं बोला । ना किसी को बोलने दिया ।”

“…क्यों, आप खामोश क्यो रहे, जबकि आपकी पहचान तो राम मंदिर से जुड़ी हुई है ?..  और आप बोलते तो सत्ता सरकार पर दवाब पडता !”

“आपको लग सकता है कि दवाब पडता ! सच तो यही है कि हम बोलते तो राम मंदिर कहते हुये सत्ता की चौखट पर जा पहुंची नेताओ की चौखट पर फिर राम मंदिर आ जाता । यानी सिर्फ लाभ भुनाने की सियासत है ये । लाभ नहीं भावनात्मक तौर पर राजनीति साधने का मंत्र बना दिया गया राम मंदिर । और मैं तो इस हकीकत को समझ रहा हूं.. क्योंकि राम मंदिर के लिये ही समूचे देश के भ्रमण करने के दौरान देश के हालात को बेहद करीब से मैंने देखा है । देख रहा हूं ..”

“तो क्या राम मंदिर की जरुरत अब देश के लोगो को नहीं है ?”

“मैंने नहीं कहा !…मैं तो ये समझाना चाह रहा हूं कि राम मंदिर सत्ता – सरकार -सियासत नहीं बनायेगी । राम मंदिर हमीं बनायेंगे । और हम भी तभी बना पायेंगे जब हिन्दुत्व के सवाल को हम देश के मुद्दो से लोगो को जोड सकें।

“यानी हिन्दुत्व ने क्या देश के मुद्दे को सामने आने नहीं दिया ?”

“हिन्दुत्व नहीं राम मंदिर को ही जिस तरह हिन्दुत्व का प्रतीक बना दिया गया । और इस दिशा में किसी ने सोचा ही नहीं कि इस प्रतीक को सियासत हड़प लेगी। तो हिन्दुत्व की परिकल्पना भी हवा हवाई हो जायेगी !”

” हा हा हा..तो आप ये कह रहे हैं कि राम मंदिर शब्द को राजनीतिक सत्ता ने इस तरह परोसना शुरु किया कि हिन्दुत्व के असल मायने गायब हो जायें ?”

” मैं ये नहीं कह रहा है ..मेरा मानना है कि राम मंदिर के आसरे सत्ता ने अपनी कमजोरी ढंकना शुरु कर दिया। और हिन्दुत्व से जो जुड़ाव युवाओं का होना चाहिये .जो जुडाव किसानों का होना है वह तो हुआ ही नहीं । और ये गुजरात में नजर भी आ रहा है । ”

“कैसे….?”

” देखिये गुजरात के युवा ने तो होश संभलाने के बाद से ही यहाँ उसी की सत्ता देखी है जो राम मंदिर का जिक्र आते ही हिन्दु भावना को जाग्रत कर दें । पर इसी दौर में युवाओं की एस्पेरेशन उनकी सोच को किसी ने ना पूरा किया …पूरा तो दूर …समझा तक नहीं !”

” तो क्या हार्दिक पटेल उसी एस्पेरेशन की उपज है?”

“आप कह सकते हैं। क्योंकि बेहतर जिन्दगी का मतलब ये तो कतई नहीं हो सकता है कि आपके पास खूब पैसा है तो आपका जीवन अच्छा होगा । पैसा नहीं है तो ना शिक्षा । ना स्वास्थ्य । ना रोजगार । फिर पॉलिटिक्स ही एकमात्र इंस्टीट्यूशन !”

“आप और चाय लेंगे और साथ में कुछ मंगाऊ..?”

“ना ना साथ में कुछ और नहीं पर चाय जरुर मंगवाये …इसकी खुशबू वाकई गर्म है !”

“गर्म यानी ?”

“…ठंडे माहौल को भी गर्म कर देती है! खैर छोड़िये इसे, आप ये बताइये कि.. आप ये तो ठीक कह रहे है कि राजनीतिक सत्ता ही सबकुछ हो चली है ….पर युवाओ का राजनीतिकरण भी इस दौर में तेजी से हुआ है !”

“…हो सकता है, पर गुजरात का सच देखिये 20 लाख से ज्यादा बेरोजगार है । उनके भीतर के सवालों को कोई रिपरजेंट कर रहा है । कोई नहीं । इसी तरह किसानों की जो हालत है उनके हालात कैसे ठीक होंगे । इस पर कहां किसी का ध्यान है । किसानो की जमीन सरकारी योजनाओं के तहत हथियाई भी गई । और फसल बर्बादी से लेकर कर्ज का जो बोझ किसानों पर है, उसमें उसके पास युवाओं सरीखे एस्पेरेशन तो नहीं पर हर दिन जीने का संकट जरुर है। और किसान को आप सिर्फ एक किसान भर ना मानिये। ये भी सोचिये कि उसके घर के बच्चे भी बडे हो रहे होंगे। वह भी स्कूल कालेज जाना चाहते होंगे । तो कौन सा हिन्दुत्व उनके लिये मायने रखेगा । हम तो उनके बीच जाते हैं और उनकी मुश्किलो से जब खुद को जोड़ते हैं तो एक ही बात समझ में आती है कि युवाओं के एस्परेशन और किसानो की त्रासदी से खुद को कैसे जोडा जाये !”

” तो क्या ये सरकार नहीं समझ पायी ? सीधे कहें तो मोदी तो गुजरात में भी रहे और दिल्ली में भी पहुंच गये । तो जिन हालातो को आप परख रहे हैं, ..समझ तो वह भी रहें होगें .. फिर ये सवाल बीजेपी और संघ परिवार को क्या परेशान नहीं करते ?”

” अब बीजेपी या संघ परिवार के भीतर ये सवाल है या नहीं…ये तो सीधे वहीं बता पायेंगे ..लेकिन मेरी एक बात लिख लीजिये…संघ परिवार वक्त के साथ इरेलेवेंट हो जायेंगे!”

“क्या कह रहे है आप ..? आप खुद संघ परिवार से ना सिर्फ जुडे हैं, बल्कि आपकी तो पहचान भी संघ परिवार ही है ..और देश का सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा कहिये या फिर संघ तो जिस राम मंदिर के आसरे हिन्दुत्व को सुलगाता है आप उसके कर्णधार रहे है !”

” आप जो कहे ..जो समझे…पर ये समझना होगा कि जबतक युवाओं और किसानों को वक्त की धारा के साथ नहीं जोडेंगें तब तक कभी राम मंदिर तो कभी हिन्दुत्व तो कभी भारत पाकिस्तान शब्द ही भारी पडेगें .. और एक वक्त के बाद हम सभी इरेलेवेंट हो जायेंगे !”

“तो ऐसे में तो आज की तारीख में नरेन्द्र मोदी शब्द ही सबसे रेलेंवेंट है ! आप बीजेपी कहें या संघ परिवार या राम मंदिर ..मोदी शब्द के आगे कहां कोई टिकता है ?”

” ठीक कह रहे हैं आप, महँगाई, बेरोजगारी, किसान इसीलिये मायने नहीं रखते। क्योकि मोदी शब्द है। और ये भी समझ लीजिये कि इस बार गुजरात चुनाव को लेकर इतना हंगामा है फिर भी पहले चरण में दो फिसदी वोट पिछली बार की तुलना में कम पड़े । क्यों ? क्योंकि जो मोदी को वोट नहीं देना चाहते वह कांग्रेस को भी वोट देना नहीं चाहते थे । तो वोट डालने ही नहीं निकले । हिन्दुत्व फीका पड़ रहा है।”

” तो ऐसे में आप जिस इक्नामी का सवाल उठा रहे हैं वही सवाल तो वामपंथी भी उठाते रहे है । पर उनके साथ को कोई खड़ा नहीं होता है । चुनाव दर चुनाव हार रहे हैं वामपंथी !”

” देखिये कम्युनिस्टों का विचार सही है पर व्यवहार सही नहीं है। हिन्दुत्व को लेकर उनके भीतर अंतर्विरोध है । और भारतीय राजनीति का अनूठा सच तो यही है कि जो अंतर्विरोधो का लाभ उठा सके ..सत्ता उसी को मिल जायेगी। और मोदी फिलहाल सटीक है।और कम्युनिस्ट इसीलिये सफल नहीं है !”

” तो फिर आप अपने कन्ट्रडिक्शन को कैसे दूर करेंगे ?”

” इसके लिये तरीके तो रिवोल्यूशन वाले ही अपनाने होंगे !”

” यानी ?”

“यानी, जब राम मंदिर के लिये देश के लाखों-करोडों लोग सड़क पर उतर सकते हैं, तो फिर जिन आर्थिक हालातो को लेकर देश में युवा मन सोच रहा है और किसान मुश्किल हालातो में जी रहे है, उसे भी जोड़ना होगा । जेपी आंदोलन के वक्त तो हिन्दुत्व या राम मंदिर या धर्म का सवाल तो नहीं था,  तब भी कितनी तादाद में लोग जुटे। और अन्ना आंदोलन के वक्त भी तो करप्शन का ही सवाल था। दिल्ली में लोग देशभर से पहुंच रहे थे कि नहीं। पाटीदारों का सवाल भी आरक्षण भर से नहीं है। आरक्षण पालेटिक्स का शार्ट-कट रास्ता है । युवा पाटीदार इसीलिये जुटे क्योंकि वह मौजूदा हालात से नाराज हैं !”

” नाराजगी समाधान नहीं होती । और समाधान सिर्फ नाराजगी से नहीं आती !”

“हा हा ..जो समझे जो कहें !”

“..मै कुछ कह नहीं रहा हूं पर ये तो समझ रहा हूं कि आपने जो संघर्ष राम मंदिर के लिये किया , उस संघर्ष को नये तरीके से रास्ता दिखाने की जरुरत क्या नहीं आन पड़ी है । और गुजरात चुनाव के परिणाम क्या कोई रास्ता दिखायेगें ?”

” मुझे तो भरोसा है गुजरात चुनाव के परिणाम से भी रास्ता निकलेगा । और हिन्दुत्व की उस परिभाषा को भी आंदोलन से गढ़ेंगें, जिस पर बीजेपी-संघ परिवार तक चुप्पी मारे हुये हैं !”

” रुकिये रुकिये ….आप कह रहे हैं बीजेपी गुजरात में हार रही है …?”

“अरे आप चाय पीजिये और 18 दिसंबर का इंतजार कीजिये !”

” इंतजार तो हम कर ही रहे हैं। पर क्या वाकई बीजेपी हार रही है। हमें तो नहीं लगता !”

” ..दिल्ली की पत्रकारों की ये खासियत है । वह वे बात कहेंगे नहीं, जो वह चाहते हैं !”

” हा हा आप ही साफ कह दीजिये ….!”

” जो हालात हैं, उसमें बीजेपी-संघ परिवार दोनों हार रहे हैं.!”

” तो क्या हम माने गुजरात चुनाव परिणाम के बाद मुनादी होगी?”

” हा हा हा….!”

तो पढ़ने वाले खुद समझ लें ये शख्स कौन है । क्योंकि इस शख्स के पास अभी उम्र भी है और हिन्दुत्व या राम मंदिर के मुद्दे पर मोदी और संघ परिवार से ज्यादा साख भी।

पुण्य प्रसून वाजपेयी मशहूर पत्रकार और टी.वी. के चर्चित चेहरे हैं। फ़िलहाल आज तक के साथ हैं।