राणा अयूब
राजन प्रियदर्शी गुजरात एटीएस के महानिदेशक 2007 में थे जब फर्जी मुठभेड़ में हुई हत्याओं की जांच गुजरात सीआइडी ने शुरू की थी। इतना ही नहीं, 2002 के दंगे के दौरान वे राजकोट के आइजी भी थे। उन्होंने हमें चौंकाने वाली बात बताई कि उनके गांव का एक नाई उनके बाल काटने से मना कर देता था इसलिए उन्हें दलित निवास में अपना घर बनाना पड़ा, बावजूद इसके कि वे बॉर्डर रेंज गुजरात के आइजी पद पर थे। उनके साथ उनका दलित होना हमेशा जुड़ा रहा। कई बार उन्हें वरिष्ठों के गंदे काम करने को मजबूर होना पड़ा। वे ऐसे कामों के लिए इनकार कर देते थे।
आपके मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी यहां गुजरात में काफी लोकप्रिय हैं?
हां, वे सबको बेवकूफ़ बनाते हैं और लोग बेवकूफ़ बन जाते हैं।
ऐसे में एक अडीशनल डीजी के बतौर आपको उनके मातहत काम करने में बड़ी दिक्कत आई होगी?
इनके पास इतनी हिम्मत नहीं रही कि ये मुझसे कोई गैर-कानूनी काम करवा सकें।
यहां तो कानून का उल्लंघन खूब होता है। बमुश्किल ही कोई ईमानदार अफ़सर बचा होगा?
ऐसे बहुत कम हैं। ये नरेंद्र मोदी नाम का आदमी हर जगह (राज्य भर में) मुसलमानों को मरवाने के लिए जिम्मेदार है।
अच्छा, मैंने सुना है कि पुलिसवाले भी सरकार की ही लीक पर चलते हैं?
सब के सब, जैसे ये पीसी पांडे, सब कुछ इन्हीं लोगों की मौजूदगी में हुआ था।
अधिकतर अफसरों का कहना है कि उन्हें गलत तरीके से फंसाया गया है?
गलत तरीके से क्या, उन्होंने जो किया है उसी के लिए वे जेल में सज़ा काट रहे हैं। इन लोगों ने एक जवान लड़की को एनकाउंटर में मार दिया।
सच में?
हां, उन्होंने उसे लश्कर का आतंकी बताया था। वह मुंब्रा की रहने वाली थी। कहानी बनाई गई कि वह आतंकवादी थी जो मोदी की हत्या करने गुजरात आई थी।
तो यह गलत है?
हां, बिलकुल गलत।
मैं जब से यहां आई हूं, हर कोई सोहराबुद्दीन मुठभेड़ की चर्चा कर रहा है?
पूरा देश उस मुठभेड़ की बात कर रहा है। इन्होंने एक मंत्री की शह पर सोहराबुद्दीन और तुलसी प्रजापति को उड़ा दिया। ये मंत्री अमित शाह है जो मानवाधिकारों में विश्वास नहीं करता। वो हमें बताया करता था कि उसका मानवाधिकार आयोगों में कोई भरोसा नहीं है। अब देखिए, अदालत ने भी उसे ज़मानत दे दी है।
आपने कभी उनके मातहत काम नहीं किया?
किया है, जब मैं एटीएस का प्रमुख था। उन्होंने वंजारा का ट्रांसफर कर के मुझे नियुक्त किया था। मैं तो मानवाधिकारों में भरोसा रखता हूं। इस शाह ने मुझे एक बार अपने बंगले पर बुलवाया। मैं तो आज तक न किसी के बंगले पर गया हूं, न ही किसी के घर या दफ्तर में। तो मैंने उसे बताया कि सर, मैंने आपका बंगला नहीं देखा है। वह खीझ गया। उसने पूछा कि मैंने उसका बंगला क्यों नहीं देखा है। फिर उसने कहा कि ठीक है, मैं अपना निजी वाहन भेज दूंगा लिवा आने के लिए। मैंने कहा ठीक है, भेज दीजिए। मेरे पहुंचते ही वे बोले, ”अच्छा, आपने एक बंदे को गिरफ्तार किया है न, जो अभी आया है एटीएस में, उसको मार डालने का है।” मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। तब वे बोले, ”देखो मार डालो, ऐसे आदमी को जीने का कोई हक़ नहीं है।”
मैं तुरंत अपने दफ्तर लौटा और अपने मातहतों की एक बैठक बुलवाई। मुझे डर था कि अमित शाह उन्हें सीधे निर्देश देकर उसे मरवा सकता है। मैंने उनसे कहा, देखो, मुझे उसे मारने का आदेश मिला है, लेकिन कोई उसे छुएगा भी नहीं, केवल पूछताछ करनी है। मुझसे कहा गया है और चूंकि मैं ऐसा नहींीं कर रहा हूं, इसलिए कोई भी ऐसा नहीं करेगा।
ये तो बड़े साहस की बात थी।
इस नरेंद्र मोदी ने मुझे उस दिन बुलाया जिस दिन मैं रिटायर हो रहा था। उसने कहा, ”तो अब आपकी क्या योजना है।’ ऐसे ही कई सवाल पूछे। मैंने उन्हें बताया कि कितना दबाव महसूस कर रहा था। फिर वे बोले, ”अच्छा ये बताओ, सरकार के खिलाफ कौन कौन लोग हैं, मतलब कितने अफ़सर सरकार के खिलाफ हैं।”
मैंने मोदी से कहा, ”क्या मैं आपसे कुछ पूछ सकता हूं?” उन्होंने कहा, ”हां, पूछिए।”
मैंने कहा, पिछले दो दशक के दौरान मैंने अलग-अलग पदों पर सेवा की है। क्या आपको मेरे खिलाफ़ कुछ सुनने को मिला है?” उनका जवाब यह था कि मैं बहुत बढि़या काम कर रहा था। तब मैंने उनसे कहा, ”सर, पिछले चार साल के दौरान मेरे तात्कालिक वरिष्ठों और गृह सचिवों ने मेरी सालाना गोपनीय रिपोर्टों को एक्सेलेंट और आउटस्टैडिंग करार दिया है, फिर आपने क्यों उसे कम कर के आंका? मेरे प्रदर्शन को आपने क्यों खराब किया? मैंने उन्हें बताया कि सूचना के अधिकार से मैंने सब पता कर लिया है। वे ठगे से थे। वे बोले, ”मैं अपने अफसरों और गृहसचिव से बात नहीं करता?” मैंने उनसे कहा, ”सर, आपको गृह सचिव को कॉल करने की ज़रूरत ही नहीं थी क्योंकि फाइल पहले ही आपके पास पहुंच चुकी थी और आप सब कुछ जानते थे।”
मैं डीजी बन सकता था, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं होने दिया।
आपके राज्य में कोई डीजी क्यों नहीं है?
क्योंकि मोदी को कुलदीप शर्मा नाम के एक अफसर से बदला लेना है।
मुझे पता चला है कि उनकी अफसरों की एक अपनी टीम भी है?
मैं जब राजकोट का आइजी था, तब जूनागढ़ के पास एक दंगा हुआ था। मैंने कुछ लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज की थी। गृ मंत्री ने मुझे कॉल कर के पूछा, ”राजनजी, कहां हैं आप?” मैंने जवाब दिया, ”सर, मैं जूनागढ़ में हूं।” फिर उन्होंने कहा, ”अच्छा, तीन नाम लिखो, आपको इन तीनों को अरेस्ट करना है।” मैंने कहा, ”सर, ये तीनों मेरे साथ अभी बैठे हुए हैं और मैं आपको बताना चाहता हूं कि ये तीनों मुस्लिम हैं और इन्हीं के चलते हालात सामान्य हुए हैं। इन्हीं लोगों ने अपनी कोशिशों से हिंदुओं और मुस्लिमों को एकजुट किया है और दंगे को खत्म करवाया है।” वे बोले, ”देखो, सीएम साहब ने कहा है”। उस वक्त ये नरेंद्र मोदी ही मुख्यमंत्री था। उन्होंने मुझे कहा कि ये सीएम के आदेश हैं। मैंने जवाब दिया, ”सर, मुख्यमंत्री के आदेश के बावजूद मैं ऐसा नहीं कर सकता क्यों ये तीनों निर्दोष हैं।”
फोन पर कौन था?
गृह मंत्री गोर्धन जड़फिया।
कब की बात है?
जुलाई 2002 के आसपास की, तब जड़फिया ने कहा था कि वे खुद वहां आएंगे।
और ये लोग कौन थे?
अरे, ये अच्छे लोग थे। वे मुसलमान थे जो दंगे को खत्म कराना चाह रहे थे। मेरी जगह कोई और होता तो इन्हें ही गिरफ्तार कर लेता।
और ये सिंघल का क्या मामला है? उन्होंने ही मुझे आपसे बात करने को कहा था।
मैं उसका बॉस था, अब वो एटीएस में है। वह मेरे मातहत डिप्टी एसपी के प्रोबेशन पर था।
उनके मातहत कौन कौन काम करता था?
जो लोग जेल में हैं, जैसे वंजारा आदि। मैं बॉर्डर रेंज का आइजी था। वे वंजारा को लाना चाहते थे तो उन्होंने मेरा ट्रांसफर कर दिया। उसे रखने के लिए उन्होंने उसका पद कम कर दिया।
तो क्या यहां की पुलिस मुस्लिम विरोधी है?
नहीं, वास्तव में नेता ऐसे हैं। अगर कोई अफसर उनकी नहीं सुनता है तो वे उसे किनारे कर देते हैं, ऐसे में वह क्या करेगा।
अमित शाह ने आपसे जिस शख्स को उड़ाने को कहा था, क्रूा वह मुस्लिम था?
नहीं, वह उसे इसलिए हटाना चाहते थे क्योंकि बिजनेस लॉबी की ओर से कोई दबाव था।
मुझे पता चला है कि कुछ अफसरों से जबरन इशरत जहां की मुठभेड़ करवाई गई?
देखो, यह बात मेरे और तुम्हारे बीच की है। इन लोगों ने… वंजारा और उसके गैंग ने पांच सरदारों को अरेस्ट किया था, उनमें एक कांस्टेबल भी था। वंजारा का कहना था कि ये सब आतंकवादी हैं और इनका एनकाउंटर कर दिया जाना चाहिए। संजोग से पांडियन उस वक्त एसपी था। उसने इनकार कर दिया और पांचों बच गए।
यानी अफसर मुस्लिम विरोधी नहीं हैं?
बिलकुल नहीं। नेता उनसे ऐसा करवाते हैं। अगर आप ईमानदार हैं तो वे आपको किसी पद पर नहीं रहने देंगे। देखो, इन्होंने रजनीश राय और राहुल शर्मा के साथ क्या किया।
यह सरकार सांप्रदायिक और भ्रष्ट है। ये अमित शाह मेरे पास आकर डींग हांकता था कि कैसे इसने 1985 में दंगे भड़काने का काम किया था। वह हर किसी को अपने यहां मीटिंग के लिए बुलाता था। एक बैठक में उसने गृह सचिव, मुख्य सचिव, एक सांसद और मुझे भी बुलाया था। उस वक्त मैं आइजी था। सांसद ने अमित शाह से कहा कि तुम एक सिपाही का भी ट्रांसफर नहीं करवा सकते। अमित शाह ने मेरी ओर मुड़कर कहा, ”ये काम अब तक क्यों नहीं हुआ?” मैंने बताया कि उस सिपाही ने कुछ भी गलत नहीं किया है। वह तो बीजेपी सांसद के बेटे को बस रोक रहा था।
मुझे हैरत है कि उन्होंने आपसे ऐसा कहा?
उन्हें मेरे में भरोसा था। वासतव में वे ही थे जिन्होंने मुझे इशरत के मामले से अवगत कराया था। उन्होंने बताया था कि इशरत को मारने से पहले उन्होंने उसे अपने पास हिरासत में रखा था और इन पांचों की हत्या की गई थी, मुठभेड़ नहीं हुई थी। उन्होंने मुझे बताया था कि वो कोई आतंकवादी नहीं थी।
मुझे हैरत है कि उन्होंने आपको एटीएस जैसी अहम जगह पर आने दिया?
हां, वे सोचते थे कि मैं उनका आदमी हूं और वही करूंगा जैसा कहा जाएगा। शाह ने मुझसे कहा, ”देखो, दो अहम जगहें खाली हैं, एटीएस और पुलिस आयुक्त की। हमें इन दोनों जगहों पर अपने आदमी चाहिए। हम आशीष भाटिया को आयुक्त बना रहे हैं और आपको एटीएस चीफ़।” उन्होंने कहा कि मेरे में उनको पूरा भरोसा है और मैं वही करूंगा जो मुझसे सरकार कहेगी। तब मैंने उनसे कहा कि अगर आपको वाकई इतना भरोसा था तो आपने मुझे कमिश्नर क्यों नहीं बनाया।
पी.सी. पांडे को देखिए, उन्होंने दंगाइयों के खिलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की। उसे सज़ा मिलनी चाहिए। वह मुख्यमंत्री के खास लोगों में है। उनका चहेता है। मुसलमानों की हत्या के लिए वही जिम्मेदार है। इसीलिए उसे रिटायरमेंट के बाद भी पद दिया गया है। मेरा उससे अच्छा संबंध है, इसके बावजूद मैं जानता हूं कि उसने क्या गलत किया है।
(पत्रकार राणा अयूब ने मैथिली त्यागी के नाम से अंडरकवर रह कर गुजरात के कई आला अफसरों का स्टिंग किया था, जिसके आधार पर उन्होंने ”गुजरात फाइल्स” नाम की पुस्तक प्रकाशित की है। उसी पुस्तक के कुछ चुनिंदा संवाद मीडियाविजिल अपने हिंदी के पाठकों के लिए कड़ी में पेश कर रहा है। इस पुस्तक को अब तक मुख्यधारा के मीडिया में कहीं भी जगह नहीं मिली है। लेखिका का दावा है कि पुस्तक में शामिल सारे संवादों के वीडियो टेप उनके पास सुरक्षित हैं। इस सामग्री का कॉपीराइट राणा अयूब के पास है और मीडियाविजिल इसे उनकी पुस्तक से साभाार प्रस्तुत कर रहा है।)