तहलका की पूर्व प्रबंध संपादक शोमा चौधरी ने अपनी संवाददाता रहीं राणा अयूब के इस आरोप को गलत ठहराया है कि तहलका ने किसी ‘राजनीतिक दबाव’ में आकर 2010-11 में गुजरात में किए स्टिंग ऑपरेशनों पर आधारित उनकी रिपोर्ट छापने से इनकार कर दिया था।
शोमा ने लिखा है, ”राणा ने जो आरोप तरुण तेजपाल पर लगाए हैं उसका जवाब मैं उन पर छोडती हूं, लेकिन उस वक्त तहलका की प्रबंध संपादक होने के नाते मैं कम से कम इतना कहना चाहूंगी कि ‘राजनीतिक दबाव’ में तहलका के झुक जाने संबंधी उनके दावे परेशान करने वाले हैं।”
ध्यान रहे कि तहलका ने गुजरात और नरेंद्र मोदी पर सिलसिलेवार खुलासे किए थे और राणा अयूब यहां की स्टाफर होने के नाते लगातार छपती रही थीं। लिहाजा राणा का यह दावा कि पत्रिका ने नरेंद्र मोदी के डर से उन्हें छापने से मना कर दिया, बहुत से लोगों को समझ में आने वाली बात नहीं है।
अपनी स्वप्रकाशित और हाल ही में लोकार्पित पुस्तक ‘गुजरात फाइल्स’ के आखिर अध्याय में राणा अयूब ने नरेंद्र मोदी का स्टिंग करने के बाद के घटनाक्रम का हवाला दिया है जब उन्हें अचानक दिल्ली दफ्तर बुला लिया गया था। वे लिखती हैं, ”तरुण अपने केबिन में थे। शोमा भी वहां पहुंच गईं। मैंने उन्हें फुटेज दिखाए और वे ओबामा की किताबें देखकर हंस दिए।” नरेंद्र मोदी की मेज़ पर ओबामा की किताबें थीं जिसका जि़क्र राणा ने किताब में पहले किया है।
वे लिखती हैं, ”तो, मुझे क्यों वापस बुला लिया गया?मुझे क्यों वापस बुला लिया गया कुछ दिनों में दोबारा मुझे उनके (मोदी) दफ्तर से कॉल आएगी और मुझे उनसे दोबारा मिलने जाना होगा।” तरुण ने कहा, ”देखो राणा, बंगारू लक्ष्मण पर तहलका के स्टिंग के बाद उन्होंने हमारा दफ्तर बंद करवा दिया था। मोदी प्रधानमंत्री बनने जा रहा है यानी सबसे ताकतवर आदमी। उसे छूने का मतलब है खुद को खत्म कर लेना।”
शोमा चौधरी इस आरोप पर अपने जवाब में आगे लिखती हैं, ”बहुत सीधी सी वजह है कि राणा का स्टिंग तहलका ने क्यों नहीं छापा- वह हमारे अनिवार्य संपादकीय मानकों पर खरा नहीं उतरता था। स्टोरी के कुछ हिस्से वाकई अच्छे थे लेकिन कई कमियां थीं और अपनाए गए तरीके को लेकर कुछ चिंताएं थीं। राणा एक साहसी रिपोर्टर है और उनके काम का सम्मान करते हुए मैं इसके विवरण में नहीं जाना चाहूंगी। हालांकि कई बार राणा के साथ विस्तार से इस पर चर्चा हुई थी, मौखिक भी और ईमेल के माध्यम से भी।”
”ऐसा लगता है कि राणा ने उन कारणों को जायज़ मान लिया था क्योंकि नौकरी छोड़ने के बजाय वे कई साल तक तहलका में बनी रहीं। तहलका ने भी गुजरात और मोदी पर उनकी कई कहानियां प्रकाशित कीं।”
शोमा कहती हैं, ”इस सब के आलोक में उनका यह दावा कि उन्हें ‘गिनी पिग’ बनाया गया और खबर को ‘राजनीतिक दबाव’ के चलते रोक दिया गया, हकीकत से काफी दूर की कौड़ी है। रिपोर्टर अपनी खबर के संपादक द्वारा मूल्यांकन से बेशक असहमत हो सकता है लेकिन तब बेहद दुर्भाग्यपूर्ण होता है जब वे सही नीयत से लिए गए कठोर संपादकीय फैसलों को गलत नीयत से जोड़ देते हैं।”
(साभार: दि इंडियन एक्सप्रेस)