D.U की फ़ीस सुनकर बेटे का एडमिशन कैंसिल करा दिया मज़दूर ने !



दीपक भास्कर

 

दुखी हूं, कॉलेज में काम खत्म होने के बाद भी स्टाफ रूम में बैठा रहा, कदम उठ ही नहीं रहे थे। दो बच्चे ने आज ही एड्मिसन लिया और जब उन्होंने फीस लगभग 16000 सुना और होस्टल फीस लगभग 120000 सुनकर एड्मिसन कैंसिल करने को कहा। गार्डियन ने लगभग पैर पकड़ते हुए कहा कि सर! मजदूर है राजस्थान से, हमने सोचा कि सरकारी कॉलेज है तो फीस कम होगी, होस्टल की सुविधा होगी सस्ते मे, इसलिए आ गए थे। मैने रोकने की कोशिश भी की लेकिन अंत में एडमिशन कैंसिल ही करा लिया।

बैठकर, ये सोच रहा था कि एक तरफ जहां लोग सस्ती शिक्षा चाह रहे हैं वहीं दूसरी तरफ सरकार कह रही है कि 30 प्रतिशत खुद जेनेरेट कीजिये। ऑटोनोमी के नाम पर निजीकरण हो रहा है। सोचिये दिल्ली विश्विद्यालय के चारो तरफ प्राइवेट यूनिवर्सिटी का जाल बिछ रहा है। जो लोग 15000 की फीस नही दे पा रहे हैं, वो लाखों की फीस प्राइवेट यूनिवर्सिटी को कहां से देंगे।

ऐसे कई बच्चे डीयू के तमाम कॉलेजों में एड्मिसन कैंसिल कराते होंगे। इन दो बच्चों में एक बच्चा हिन्दू और दूसरा मुसलमान था, दोनों ओबीसी। ये उस देश मे हो रहा है जहां के प्रधानमंत्री ओबीसी क्लेम कर रहे हैं, ये उस देश में हो रहा है जिसके प्रधानमंत्री चाय बेचने का ढोंग करते हैं। अरे भाई आप गरीब है तो इनके लिए ही कुछ कर देते। कॉलेज में कई तरह की स्कालरशिप तो हैं लेकिन फीस भरने के लिए काफी नही, होस्टल फीस भरने लायक तो कतई नही। PG में रेंट पर रहना तो अच्छी आर्थिक व्यवस्था वाले लोगों के भी वश का नही। शिक्षक एक कार्पस फण्ड बनाने की बात कर रहे हैं ताकि ऐसे बच्चों की मदद किया जा सके। इससे एक दो लोगों की मदद तो हो सकती है लेकिन सर्व कल्याण तो सरकार की नीतियों से ही होगा। लेकिन प्रधान मंत्री को खुद बचे रहना है और बाकी मंत्रालयों को उनको बचाये रखना है तो गरीब मजदूर क्या करें।

दुखी हूं 95 प्रतिशत का कटऑफ और बच्चे के पास 95 प्रतिशत, इसके बावजूद गरीब बच्चे क्या करें। बेटी बचाओ बेटी बढ़ाओ का नारा कितना फेक लगता है। गर्ल्स कॉलेज बेटियों को उच्च शिक्षा देने के लिए ही बना था लेकिन आज एक गरीब की बेटी उसी से महरूम हो गई। विश्विद्यालय अपने ‘युनिवर्सिटी’ होने का मतलब खो रहा है। बाकी फर्स्ट कट ऑफ का एडमीशन खत्म हो गया है। दूसरे और तमाम कटऑफ में भी शायद ऐसे कितने बच्चे आएंगे और वापस चले जायेंगे। ये सालों से हो रहा होगा लेकिन जब भारत बदल रहा था तो ये भी बदल जाता। लेकिन अब कुछ नहीं। MHRD रोज एक नया फरमान ला रहा है, बस।

उस गार्डियन ने कहा कि सुना था कि JNU की फीस कम है, उसी से सोच लिए थे कि यहां भी कम होगी। अब आप समझे JNU को खत्म क्यों किया जा रहा है। सत्यमेव जयते !

 

दीपक भास्कर, दिल्ली विश्वविद्यालय मे ंअसिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं। उनकी फ़ेसबुक दीवार से साभार।