बहुत लंबे इंतजार के बाद पिछले साल क्रिसमस के दिन छोड़े गए जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप की भेजी जिन तस्वीरों का पहला पुलिंदा नासा की ओर से जारी किया गया है, वे देखने में अद्भुत हैं। हर तस्वीर के साथ उसकी व्याख्या भी दी हुई है, जिसे पढ़कर आप उसके महत्व से परिचित हो सकते हैं। लेकिन ब्रह्मांड को लेकर दुनिया की समूची समझ बदल देने की जो क्षमता इस टेलीस्कोप में है, उसका एक अंदाजा भी हमें होना चाहिए, क्योंकि यहां से आने वाली सूचनाएं अगले दस-पंद्रह साल तक हमें चौंकाती रहेंगी। जेम्स वेब से पहले हबल टेलीस्कोप ने भी ऐसा ही किया था और आज ब्रह्मांड के बारे में हम जो कुछ भी जानते हैं, उसमें बहुत बड़ा योगदान हबल का है। लेकिन जेम्स वेब की ताकत हबल की सौ गुनी है और आसमान में उसकी जगह भी ऐसी तय की गई है, जहां से प्रेक्षणों का दायरा बहुत बढ़ जाता है।
खगोलशास्त्र से जुड़े सारे ही सवालों पर कुछ नई रोशनी जेम्स वेब के जरिये पड़ने की उम्मीद की जा रही है, लेकिन जो दो सवाल सबसे ज्यादा शिद्दत से इसके नतीजों का इंतजार कर रहे हैं, उनमें एक का संबंध ब्रह्मांड की उत्पत्ति से और दूसरे का पृथ्वी से इतर जीवन के साथ है। 13 अरब साल या उससे भी पहले की, दूसरे शब्दों में कहें तो ब्रह्मांड की उत्पत्ति के थोड़े ही समय बाद जन्मी नीहारिकाओं (गैलेक्सीज) और उनमें मौजूद तारों का धुंधला खाका हबल ने भी खींचा था लेकिन जेम्स वेब टेलीस्कोप ने तो अपने पहले ही पुलिंदे में 13.1 अरब प्रकाशवर्ष दूर स्थित एक पुरातन गैलेक्सी की तस्वीर उतार ली, जिसके स्पेक्ट्रम पर काम करके जाना जा सकेगा कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति के मात्र 70 करोड़ साल बाद की इस रचना में तारों का स्वरूप कैसा है, किन पदार्थों से ये बने हैं और भौतिकी के नियम वहां किस तरह काम करते हैं।
दूरी और समय
पाठकों के लिए एक समस्या दूरी और समय के घालमेल की है। कोई चीज इतनी दूर है, यह बात तो समझ में आती है लेकिन वह इतनी पुरानी है, इस बात को कैसे समझा जाए। आपके बक्से में कोई दादाजी का कोट रखा है जो पचास साल पुराना है। इस बात का वही मतलब नहीं है, जो सूरज को देखकर यह कहने का कि यह जो दिन में ही दिखने वाला इतना बड़ा तारा गर्मी से हमारी हालत खराब किए हुए है, वह साढ़े आठ मिनट पुराना है। एक सेकंड में तीन लाख किलोमीटर चलने वाली रोशनी सूरज से निकलकर हम तक पहुंचने में साढ़े आठ मिनट लगाती है। आपके दो बार पलक झपकने के बीच अगर सूरज किसी वजह से फटकर सौ टुकड़े हो जाए, तो भी साढ़े मिनट तक वह आपको ज्यों का त्यों गोल ही नजर आ जाएगा। अब आप इस साढ़े आठ मिनट को कुछ लाख, करोड़ या अरब साल में बदलकर देखें।
नासा के भेजे चित्र में दिखने वाली 13.1 अरब प्रकाशवर्ष दूर की वह गैलेक्सी असल में 13.1 अरब साल पहले वाली हालत में दिख रही है। वह अभी वहां है या फटकर नष्ट हो चुकी है, यह जानने का कोई तरीका हमारे पास नहीं है और कभी किसी के पास नहीं होगा। खगोलशास्त्र की एक बड़ी उलझन ब्रह्मांड के विकास की व्याख्या करने की है। इसके उत्पत्ति बिंदु, 13.8 अरब साल पहले हुए बिग बैंग से अबतक यह चाहे जितनी भी तेजी से फैला हो, पर उतना नहीं फैल सकता, जितना अभी फैला हुआ जान पड़ता है। इसकी व्याख्या के लिए ‘इन्फ्लेशन थिअरी’ पेश की गई, जिसे लेकर बहुत सारे विवाद हैं। कुछ वैज्ञानिक इसे भौतिकी में जादू घुसाने जैसा मानते हैं। स्टीफन हॉकिंग इसे रद्दी की टोकरी में फेंकने की उम्मीद लिए-लिए दुनिया से विदा हो गए। लेकिन व्यवहार में ऐसा तभी होगा जब इसको खारिज करने वाले कुछ प्रेक्षण आपके पास हों।
डार्क मैटर, डार्क एनर्जी
एक बहुत बड़ी गुत्थी डार्क मैटर की है। हमारी आकाशगंगा जैसी गैलेक्सियों के घूमने की प्रणाली का जो अध्ययन किया गया है, उसमें हर गैलेक्सी के लिए यह अलग-अलग निकलती है। हिसाब-किताब से यह अंदाजा मिलता है कि इनमें बहुत सारा- किसी-किसी में तो 90 फीसदी तक- वजन किसी ऐसे पदार्थ का है, जिसका किसी भी तरह प्रेक्षण ही नहीं हो पाता। इसी से मिलती-जुलती गुत्थी डार्क एनर्जी की है। आकाशगंगाएं एक दूसरे से दूर भाग रही हैं और जो जितनी दूर है वह उतनी ही ज्यादा तेजी से दूर भाग रही है। आखिर कौन सी चीज इन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर कर रही है?
बाद में पता चला कि ब्रह्मांड अपनी मौजूदा उम्र के आधे से कम तक पहुंचा था, तभी उसके फैलने की रफ्तार अचानक बहुत तेज हो गई। इसके लिए जिम्मेदार अज्ञात ऊर्जा, डार्क एनर्जी क्या है, उसके नियम क्या हैं, कोई नहीं जानता। उम्मीद की जा रही है कि जेम्स वेब टेलीस्कोप अपनी उम्र पूरी करते-करते कुछ प्रेक्षण ऐसे दे जाएगा, जिनसे या तो इन्फ्लेशन, डार्क मैटर और डार्क एनर्जी से जुड़े सवालों के जवाब खोजने में कुछ मदद मिल सके, या फिर इन गुत्थियों के बगैर ब्रह्मांड की उत्पत्ति और विकास की व्याख्या करने वाला कोई अधिक सुसंगत सिद्धांत ही मिल जाए।
रही बात पृथ्वी से इतर जीवन वाले सवाल की, तो इस बारे में कोई चौंकाने वाली तस्वीर अभी तक जेम्स वेब टेलीस्कोप से नहीं आई है। लेकिन 2013 में वाइड एंगल सर्च फॉर प्लैनेट्स (वास्प) द्वारा खोजे गए लगभग 1120 प्रकाशवर्ष दूर स्थित ग्रह वास्प 96 बी नाम के के बारे में एक अद्भुत बात उसने जरूर बताई है। बृहस्पति के आधे यानी पृथ्वी से हजार गुना वजन वाला यह विशाल गैसीय ग्रह अपने तारे वास्प 96 से लगभग सटा हुआ घूमता है। उसके इतने करीब से कि ग्रह का साल धरती के साढ़े तीन दिनों के ही बराबर निकलता है।
नया ग्रह सिद्धांत
वास्प 96 तारा हमारे सूरज की डिट्टो कॉपी जैसा है और हम जानते हैं कि हमारे सौरमंडल में 88 दिनों के साल वाले बुध ग्रह पर बादल या धुंध जैसा कुछ भी नहीं पाया जाता। लेकिन वास्प 96 बी नाम के ग्रह को लेकर अपने पहले ही प्रेक्षण में जेम्स वेब टेलीस्कोप इस नतीजे पर पहुंचा है कि इस ग्रह का औसत तापमान 1027 डिग्री सेल्सियस है और लोहे तक को नरम रख ले जाने वाले इस ग्रह के भीषण वातावरण में न सिर्फ पानी की भाप मौजूद है, बल्कि यहां बादलों और धुंध की भी साफ शिनाख्त की जा सकती है।
हमारे सौरमंडल से बाहर अभी तक पांच हजार से कुछ ज्यादा ग्रह खोजे जा सके हैं। इनके निर्माण और विकास को लेकर कोई भरोसेमंद सिद्धांत यह तादाद एक लाख के आसपास होने के बाद ही बनाया जा सकता है। उम्मीद की जा रही है कि जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप अगले दस साल के अंदर न सिर्फ यह संख्या पूरी कर देगा, बल्कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के इस्तेमाल से सैकड़ों की तादाद में ऐसे चुनिंदा ग्रहों की भी पहचान की जा सकेगी, जिनपर जीवन की उत्पत्ति से जुड़ी कुछ बुनियादी स्थितियां पाई जाती हों। पृथ्वी से इतर जीवन को लेकर इससे आगे की खोजों के लिए ज्यादा फोकस्ड टेलीस्कोपों की जरूरत पड़ेगी, जो अभी के लिए दूर की बात है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।