भारतीय राजनीति में एक आम धारणा यह बनी हुई है कि मुस्लिम अल्पसंख्यकों का वोट उसी को जाता है जो भारतीय जनता पार्टी को हराता है। पिछले कई चुनाव इसी समझदारी के ढांचे में विश्लेषित किए गए हैं। इसकी एक बड़ी वजह यह भी रही है कि मुस्लिमों की तरफ से कोई ऐसा आंदोलन या अभियान नहीं खड़ा किया गया जो अपनी शर्तों पर वोट देने की बात कहता हो। समय के साथ यह गतिरोध टूटा है, तो इस बार आम चुनाव से पहले अल्पसंख्यकों के एक तबके की ओर से कुछ ऐसी मांगें उठ रही हैं जो खुद को मुस्लिमपरस्त कहने वाले राजनीतिक दलों के गले की फांस बन सकती हैं।
उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से अल्पसंख्यक हिस्सेदारी आंदोलन के नाम से एक नया मोर्चा खुला है। आश्चर्य की बात है कि जब तमाम चुनाव विश्लेषक पहले से यह मानकर चल रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोट मोटे तौर पर सपा-बसपा गठबंधन को जाएंगे, ऐसे में इस आंदोलन ने मुद्दा आधारित मतदान करने की बात कह कर सबको चौंका दिया है।
दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में आज अल्पसंख्क हिस्सेदारी आंदोलन की एक अहम प्रेस कॉन्फ्रेंस होने जा रही है। आंदोलन के प्रणेता आरटीआइ एक्टिविस्ट सलीम बेग हैं जिन्होंने कुछ अहम सवाल उठाए हैं-
- अल्पसंख्यको के सुरक्षा, सम्मान, और भारतीय नागरिक होने के अधिकार सुनिश्चित करने का वचन, कौन राजनैतिक दल देगा और क्या गारंटी होगी कि वह दल अपने उस किये वादे को निभाएगा भी?
- देश के विकास में अल्पसंख्यकों की बराबर की भागीदारी का वादा आज कौन राजनैतिक दल करेगा और उन वादों को निभाने का वचन मयूसी के दौर से गुज़र रहे अल्पसंख्यकों को देकर उनका विश्वास हासिल करने की जुर्रत करेगा?
- देश के सभी संवैधानिक और राजनीतिक प्लेटफॉर्म पर अल्पसंख्यकों की बराबर की भागीदारी/हिस्सेदारी का वादा, अल्पसंख्यकों से आज कौन राजनैतिक दल करेगा और भारतीय संविधान की मूल आत्मा को बल देगा?
इन तीन बुनियादी सवालों के साथ अल्पसंख्यक हिस्सेदारी आंदोलन ने अल्पसंख्यकों से जुड़े कुछ ठोस मुद्दों को वापस हवा दी है जिन पर धूल चढ़ गई थी: