राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने प्रसव कराने अस्पताल आयी महिला को रेफर करने के मामले में दुमका के डीसी से 4 सप्ताह के अंदर रिपोर्ट मांगी है। दुमका सदर अस्पताल में प्रसव कराने आयी आदिवासी महिला कालीदासी मरांडी को ऐनेथेसिया के विशेषज्ञ चिकित्सक ना होने के कारण दूसरे अस्पताल में रेफर करने के कारण अजन्मे शिशु की मौत हो गयी थी।
मालूम हो कि 28 मई, 2020 को झारखंड के दुमका जिला के मसलिया प्रखंड की रहनेवाली गरीब आदिवासी महिला कालीदासी मरांडी को प्रसव पीड़ा प्रारंभ हुई। इसी दिन शाम 05:30 बजे इनके परिजनों ने इन्हें दुमका के सदर अस्पताल में भर्ती कराया। लगभग ढाई घंटे कालीदासी मरांडी प्रसव पीड़ा से तड़पती रही, लेकिन सदर अस्पताल के डाॅक्टरों ने प्रसव कराने की कोशिश नहीं की। अंततः रात्रि 8 बजे बिना प्रसव कराये उन्हें किसी दूसरे अस्पताल ले जाने के लिए बोल दिया गया। जब कालीदासी मरांडी को दुमका सदर अस्पताल से रेफर किया जा रहा था, तब वह प्रसव पीड़ा से कराह रही थी और काफी ब्लड भी आ रहा था। रेफर करने के बाद काफी मशक्कत से कालीदासी मरांडी को उनके परिजनों ने शहर के ही एक निजी अस्पताल ‘उर्सला नर्सिंग होम’ में भर्ती करा दिया। वहाँ कालीदासी मरांडी का ऑपरेशन जब तक हुआ, तब तक अजन्मे शिशु की मौत हो गयी। उर्सला नर्सिंग होम के डाॅक्टर का कहना था कि बच्चादानी फट गयी थी।
दुमका सदर अस्पताल, जो डीएमसीएच यानि दुमका मेडिकल काॅलेज एंड अस्पताल के नाम से भी जाना जाता है, संथाल परगना का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है। यहाँ जब एक गरीब आदिवासी महिला का प्रसव नहीं हो पाया और समय पर प्रसव ना होने के कारण बच्चे की मौत हो गयी, तो उस समय इस मामले में नई-नवेली झारखंड सरकार व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की काफी किरकिरी हुई थी। बाद में मामले की लीपापोती करते हुए डीएमसीएच के तत्कालीन अधीक्षक डाॅक्टर रविन्द्र कुमार ने बयान जारी कर कहा था कि “महिला को ब्लड की कमी थी और इस अस्पताल में कोई बढ़िया एनेथेसिस्ट नहीं है। बड़ा ऑपरेशन के लिए ऐनेथेसिया के विशेषज्ञ चिकित्सक की जरूरत थी, जो यहाँ नहीं है। इसलिए रेफर किया गया।”
उक्त खबर उस समय सभी अखबारों में प्रमुखता से छपी थी। दैनिक हिन्दुस्तान अखबार में छपी खबर के आधार पर मानवाधिकार कार्यकर्ता ओंकार विश्वकर्मा ने 01 जून, 2020 को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को एक आवेदन देते हुए इस पूरे मामले की न्यायिक जांच कर दोषी चिकित्सक पर हत्या की प्राथमिकी दर्ज करते हुए पीड़ित परिवार को उचित मुआवजा देने की मांग की थी। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने दुमका डीसी को 18 अगस्त, 2020 को इस पूरे मामले पर 4 सप्ताह के अंदर रिपोर्ट मांगी, लेकिन दुमका डीसी ने कोई जवाब नहीं दिया।
अंततः 2 मार्च, 2021 को दोबारा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने दुमका डीसी से 9 अप्रैल, 2021 के अंदर रिपोर्ट मांगी है।
रूपेश कुमार सिंह, स्वतंत्र पत्रकार हैं।