मीडियाविजिल प्रतिनिधि
आज से कोई बारह साल पहले गुजरात के मु्ंद्रा पोर्ट को अडानी कंपनी को बेच दिया गया था। उसके बाद से अडानी से वहां मछुआरों का जीना मुहाल कर दिया था। मुंद्रा का बंदरगाह निजी हाथों में दिए जाने से न केवल मछलीपालन पर असर पड़ा, बल्कि वहां कालांतर में टाटा और अडानी ने कोयला चालित दो थर्मल पावर प्लांट लगा दिए। इन संयंत्रों को लगाने में विश्व बैंक की एजेंसी आइढफसी से पैसे उधार लिए गए और उसके बदले में गलत तरीके से दर्शाया गया कि ये कंपनियां किसी भी मानक का उल्लंघन नहीं कर रही हैं। टाटा और अडानी ने न केवल पर्यावरणीय मानकों का उल्लंघन किया, बल्कि इनके परिचालन से मुंद्रा पोर्ट पर पायी जाने वाली बेहतरीन मछलियां नष्ट हो गईं और समुद्र तट पर आजीविका के लिए निर्भर रहने वाले समुदायों के सामने खाने-पीने तक का संकट खड़ा हो गया।
करीब दस साल पहले यहां बने मच्छीमार अधिकार संघर्ष संगठन ने मुंद्रा के मछलीपालकों की लड़ाई शुरू की और अडानी व टाटा द्वारा किए गए उल्लंघनों को चुनौती दी थी। इंटरनेशन फाइनेंस कॉरपोरेशन के भीतर एक आंतरिक शिकायत प्रणाली होती है जिसका नाम है कम्पलायंस एडवाइज़ा ओम्बड्समैन (सीएओ)। संगठन ने इसी के माध्यम से लड़ाई की शुरुआत की। जब आइएफसी के नेतृत्व ने संगठन की चिंताओं को खारिज कर दिया, तब जाकर संगठन ने यह मामला अमेरिका की सर्वोच्च अदालत में उठाया। वहां की अदालत में मुंद्रा के ग्रामीणों की पैरवी की अर्थराइट्स इंटरनेशनल नाम की संस्था ने, जिसे इस काम में स्टेनफोर्ड लॉ स्कूल सुप्रीम कोर्ट लिटिगेशन क्लीनिक ने मदद दी।
इसी मामले की सुनवाई करते हुए अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने विश्व बैंक को उसकी औकात बताते हुए फैसला दिया है कि विश्व बैंक जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं कानून से बड़ी नहीं हैं और इनके ऊपर अमेरिकी अदालतों में मुकदमा कायम किया जा सकता है।
यह फैसला इसलिए ऐतिहासिक है क्योंकि विश्व बैंक की दानदाता एजेंसी आइएफसी हमेशा से खुद को कानून से ऊपर मानती रही है और दूसरे देशों में अपने परिचालन में वहां के कानून से खुद को ‘’अप्रभावित’’ यानी इम्यून भी मानती रही है। इस मामले में आइएफसी खुद को एक स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर देखती रही है जिसके ऊपर कोई मुकदमा नहीं चल सकता क्योंकि उसका अस्तित्व स्वायत्त है।
अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने इसी कथित स्वायत्तता को तोड़ते हुए मुंद्रा के मछुआरों के हक़ में फैसला सुनाते हुए कहा, ‘’इंटरनेशनल फाइनेंस कॉरपोरेशन मुकदमों से निरपेक्ष रूप से इम्यून नहीं है।‘’ इस फैसले के साथ अब यह तय हो गया है कि मुंद्रा का संगठन अपने लोगों के हक के लिए भारत में कॉरपोरेट कंपनियों को गलत तरीके से उधारी देने वाले विश्व बैंक पर मुकदमा चला सकेगा।
मच्छीमार अधिकार संगठन के महासचिव डॉ. भारत पटेल ने मीडियाविजिल से बात करते हुए इस फैसले पर खुशी जाहिर की। उन्होंने बताया कि लंबे समय से मुंद्रा के इलाके में ग्रामीणों का जीना मुहाल हो रखा है लेकिन अडानी जैसी कंपनियों को कोई कहने वाला नहीं है। वे बताते हैं, ‘’हमने 2007 में संगठन बनाकर संघर्ष शुरू किया। पहले हमने सीओए के जरिए अपनी चुनौती रखी। वहां जब हम नाकाम रहे तो हमें अमेरिका की अदालत में जाना पड़ा।‘’
वे बताते हैं कि कम से कम इस मामले से इतना तो तय हो गया है कि विश्व बैंक अपराजेय नहीं है और उसके खिलाफ कोई मामूली से मामूली संगठन भी मुकदमा कर सकता है। ‘’अब हम लोग निचली अदालत में जाएंगे और यहां के ग्रामीणों को जितना नुकसान हुआ है उसके मुआवजे की मांग करेंगे।‘’
मुआवजे की राशि के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा, ‘’अभी इसका दावा तय नहीं हुआ है। यह कुछ भी हो सकता है। यहां की आजीविका, पीने का पानी, रहवास, सब कुछ नष्ट हो चुका है। मछलियां पलायन कर गई हैं। लोगों का काम धंधा बंद हो गया है। अडानी ने पूरे तट पर कब्ज़ा कर लिया है। पहले हमारा केस शुरू हो, उसके बाद मुआवजे की राशि देखी जाएगी।‘’
गुजरात के मुंद्रा जैसे छोटे जिले के लिए यह खबर बहुत बड़ी है। मुंद्रा के तेजतर्रार युवा पत्रकार इब्राहिम तुर्क ने भी इस बात पर संतोष जताया कि इतने बरसों की लड़ाई के बाद अमेरिका की अदालत में जो फैसला आया है, वह दुनिया भर में कॉरपोरेट को अनुदान देने वाले विश्व बैंक की कारस्तानियों को जनता द्वारा चुनौती देने की राह खोलेगा।
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