कोरोना काल: छत्तीसगढ़ में गरीबों को बेघर करती सरकार, उनका मज़ाक उड़ाता मीडिया

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छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में 6 जून को गरीबों पर अत्याचार की नई कहानी लिखी गई. कोरोना महामारी और लॉकडाउन के बीच निगम और पुलिस की टीम ने गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले लगभग 668 परिवारों को घरों से बाहर निकाल कर सड़कों पर पटक दिया.

मीडिया विजिल के इस ख़बर को प्रकाशित करने से पहले ही, इन आवासों को बुलडोज़रों ने ढहाना भी शुरु कर दिया था…और हम इन गरीबों की कोई मदद नहीं कर सके – क्योंकि छत्तीसगढ़ और देश की किसी मीडिया को ये ज़रूरी ख़बर नहीं लगी। मीडिया विजिल ने रात 1 बजे, इसका लाइव ब्रॉडकास्ट किया था। अब ख़बर फिर छाप रहा है…हमारे हाथ में जो है – हम करेंगे…

जगह, लोग और घटना..

बिलासपुर जिले में बहतराई नाम का गाँव है. गाँव में ग़रीब परिवारों को बसाने के लिए ‘अटल आवास’ नाम से करीब 786 सरकारी मकान बनाए गए हैं. इनमें से 500 मकान विधिवत आवंटित कर दिए गए हैं, बाकि ख़ाली पड़े 268 मकानों में गरीबी रेखा से नीचे जीवन जीने वाले लोग मजबूरी में ख़ुद ही आकर रहने लगे हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक विधिवत आवंटित 500 मकानों में से केवल 100 ही ऐसे हैं जहां उनके असल मालिक रहते हैं, बाकि 400 में लोगों ने कब्जा कर रखा है.

शनिवार 6 जून की सुबह नगर निगम और पुलिस की एक टीम इस आवासीय परिसर में पहुची. बगैर आवंटन के रह रहे सभी लोगों को पुलिस ने तुरन्त घर खाली कर देने के आदेश दिए. ग़रीब लोगों ने पुलिस के सामने हाथ जोड़े कि साहब थोड़ी मोहलत दे दीजिये. इस लॉकडाउन में हम कहां जाएँगे. लेकिन किसी ग़रीब की फ़रियाद नहीं सुनी गई और उन्हें ज़बरदस्ती घरों से बाहर निकाल दिया गया. लोग पुलिस और नगर निगम की इस कार्रवाई का विरोध कर रहे थे.

सारी ग़लती गरीब की!

एक मीडिया पोर्टल ने मारपीट का वीडियो जारी किया है जिसमें सफ़ेद शर्ट पहने मुह में गमछा बांधे हुए एक व्यक्ति मारपीट की शुरुआत करता हुआ दिखता है. फिर निगम के अधिकारी और पुलिस मिलकर एक व्यक्ति की पिटाई करते दिखते हैं. बेघर हुए लोगों की भीड़ भी आक्रोशित हो जाती है और खाली खड़ी पुलिस की गाड़ियों पर पत्थर फ़ेंक देती है. फिर अपने स्वभाव के मुताबिक पुलिस भारी बल के साथ वापस आती है और लोगों को पीट पीट कर घरों से बाहर निकालने लगती है. लोगों ने बताया कि महिलाओं और विकलांगों से भी मारपीट की गई.

लोगों के घरों का सामान बाहर फेंक दिया गया, ताला लगा दिया गया

जिस समय पुलिस ये कार्रवाई कर रही थी तब बहुत से लोग घर पर ताला लगा कर काम पर गए हुए थे. उनके घरों का ताला तोड़कर सामन बाहर निकलवा दिया गया. लोगों को बाहर निकाल कर अब सभी घरों में सरकारी ताला लगा दिया गया है. कईयों को अपना सामन निकालने तक का समय नहीं दिया गया और सामान सहित उनके घरों पे ताला जड़ दिया गया.

राज्य कोई हो, पुलिस पीड़ितों पर ही करेगी FIR

बिलासपुर में जिन गरीबों को सरकार ने बेघर कर दिया, जिन्हें पुलिस ने पीटा – उनपर ही FIR दर्ज कर, उन्हें गिरफ्तार भी कर लिया गया है. पुलिस ने महिलाओं समेत 13 लोगों के ख़िलाफ़ धारा 147, 148, 186, 294, 332, 353, 427, और 506 के तहत मामला दर्ज किया है.

ये सारे परिवार रातभर सड़क पर सोए रहे, दिनभर तेज़ धूप में भी वो बाहर रहे और जब ये ये खबर लिखी जा रही थी, तो बाहर बारिश शुरू हो गई.  अंदाजा लगाइए कि लोगों का क्या हाल हो रहा होगा.

वो गरीब हैं, प्रोजेक्ट अमीरों के लिए है, वोट गरीब का

दरअसल ग़रीब परिवारों को बेरहमी से पीटकर घर से बाहर सड़क पर फ़ेंक देने की ये सारी कवायद एक कमर्शियल प्रोजेक्ट को आगे बढाने के लिए की जा रही है. प्रदेश की पिछली भाजपा सरकार में शहर की अरपा नदी के किनारे नया बिलासपुर बसाने के लिए अरपा प्रोजेक्ट तैयार किया गया था. इस प्रोजेक्ट का मास्टर प्लान फरवरी 2014 में पास हुआ. नदी के दोनों ओर 200-200 मीटर चौड़ाई में ज़मीन की खरीदी बिक्री पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है. प्रोजेक्ट के लिए संभावित ज़मीन में से 450 एकड़ ज़मीन को प्रोजेक्ट एरिया का नाम दिया गया जहां गार्डन, व्यावसायिक कॉम्पलेक्स, कम्युनिटी सेंटर, आदि बनाए जाने हैं. ग्राम दोमुहानी से सेंदरी तक के इस प्रस्तावित इलाके की दूरी लगभग 27 किलोमीटर की थी.

विरोध के कारण प्रोजेक्ट को अघोषित तौर पर 15 किलोमीटर करने की बात कही गई. एनिकट, चौपाटी, कॉम्प्लेक्स आदि बनाने की इस योजना के ज़मीन पर दिखने से पहले इसकी तैयारियों में ही करोड़ों ख़र्च किए जाने की ख़बरें आने लगीं. कितने प्रभावितों को मुआवज़ा मिला इसकी कोई आधिकारिक जानकारी नहीं हैं. लगभग 1850 करोड़ के इस अनुमानित प्रोजेक्ट में अब फिर से हलचल शुरू हो गई है.

गरीबों का आवास बनाने को, गरीबों का आवास गिरेगा, लेकिन गरीब को आवास नहीं मिलेगा

अरपा प्रोजेक्ट को आगे बढाने के लिए ज़रूरी है कि नदी किनारे प्रोजेक्ट एरिया में रह रहे लोगों को वहां से हटाकर दूसरी जगह बसाया जाए. नदी किनारे रह रहे लोगों के घर तोड़कर उन्हें अटल आवास में बसाने की योजना है. पर जो लोग पहले से अटल आवास में रह रहे हैं उनको कहां बसाया जाएगा इसकी कोई योजना नहीं है. एक दिन पहले तक अटल आवास और नदी किनारे दोनों ही जगह के लोग घर के अन्दर रह रहे थे. पर अब अटल आवास वाले सड़कों पर हैं और नदी किनारे वालों के घर तोड़कर उन्हें शहर से दूर अटल आवास में भेजा जाएग. मतलब स्थिति पहले से भी बदतर हो जाएगी. अब तक सभी घर के अन्दर थे, लेकिन अब आधे सड़कों पर आ गए हैं.

दुधमुंहे बच्चों के साथ, मांएं सड़क पर सो रही हैं

इस पूरी कार्रवाई में ग़रीब लोगों का कहीं से कोई लाभ नहीं है. इसके मूल में बेघरों को घर देने की मंशा बिलकुल भी नहीं है. दरअसल बात ये है कि अरपा नदी शहर के बीच से गुज़रती है. नदी के दोनों ओर शहर के मुख्य बाजारों वाला मंहगा इलाका है. यहाँ शॉपिंग कॉम्पलेक्स बनेगा तो खूब चलेगा. और शॉपिंग कॉम्पलेक्स तभी बनेगा जब ग़रीब लोगों को वहां से हटा दिया जाएगा. नदी किनारे रहने वाले ग़रीब फिलहाल बिलासपुर के सिटी एरिया में रह रहे हैं. उन्हें यहां से हटाकर दूर बहतराई गाँव भेज दिया जाना उनके लिए नुकसान की ही बात है. वहीं बहतराई में जो ग़रीब अभी रहे हैं उन्हें घर से बाहर निकाल देना तो उनका नुकसान है ही. कुल मिलाकर इस करोड़ों के प्रोजेक्ट से फायदा जिसका भी है, हम समझ सकते हैं पर वो ग़रीब आदमी तो नहीं ही है.

मीडिया विजिल के लाइव ब्रॉडकास्ट में, लोगों ने सच भी बता दिया कि कैसे उनको आवास आवंटित हुए हैं – गरीबी रेखा के नीचे हैं ही नहीं – देखिए नीचे दिया गया वीडियो लाइव…

घर में रहें का नारा देकर – घर से बाहर फेंक दिया

महत्वपूर्ण बात ये भी है कि ग़रीब परिवारों को बेघर कर देने की ये कार्रवाई कोरोना लॉकडाउन के गंभीर संक्रमण वाले समय में की जा रही है. एक तरफ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल लोगों से ‘घर पर रहें, सुरक्षित रहें’ की अपील कर रहे हैं तो वहीँ दूसरी तरफ़ उनकी सरकार ने इन सैकड़ों ग़रीब परिवारों को घर से निकाल कर सड़कों पर खुले में, कोरोना महामारी के तमाम खतरों के बीच मरने के लिए छोड़ दिया है.

बेघर किए गए इन लोगों ने बताया कि वे अब तक दूसरी जगह किराए के मकान में रह रहे थे. पर लॉकडाउन में घर का किराया देने जितने भी पैसे नहीं थे, इसलिए मकान छोड़ना पड़ा और उन्हें मजबूरी में अटल आवास में पनाह लेनी पड़ी. मारपीट करने वाली पुलिस और निगम के दस्ते से इन लोगों नें हाथ जोड़कर अपनी समस्या बताई और समय मांगा कि लॉकडाउन के कारण बिगड़ी आर्थिक स्थिति थोड़ी सुधर जाएगी तो हम फिर से किराए के मकान में चले जाएंगे हमें कम से कम एक महीने का समय दे दीजिये. पर उनकी एक नहीं सुनी गई.

मीडिया को देखती जनता है – चलाता कोई और है

“घर खाली करवाने गए निगम के दस्ते पर बेजा कब्जाधारियों ने किया पथराव” ऐसी सुर्ख़ियों के साथ शहर के सभी अखबारों और मीडिया पोर्टल्स ने खूब ख़बरें चलाईं. एक पोर्टल ने शर्म को ताक पर रख कर लिखा कि “गरीबी वाला कार्ड, हर बार थोड़ी न चलेगा” एक ने गरीबों को चोरी और ऊपर से सीनाजोरी करने वाला बता दिया. किसी ने लिखा कि ग़रीब अवैध रूप से घरों में घुसे हुए थे. इस मुद्दे पर ग़रीब विरोधी होकर और प्रशासन तथा पुलिस का चाटुकार होकर मीडिया जो कुछ लिख सकती था उसने लिखा. एक्सक्लूसिव सबने लिखा और असल खबर गायब कर दी.

अखबारों ने ये नहीं लिखा कि ये ग़रीब लोग जिन्हें कल ज़बरदस्ती घर से निकाल दिया गया वे पिछले 6 वर्षों से लगातार सरकारी आवास के लिए आवेदन कर रहे हैं पर उन्हें घर नहीं मिला है.

अखबारों ने ये नहीं बताया कि मकान आबंटित कराने के नाम से इन ग़रीब लोगों से निगम में रिश्वत मांगी जाती है.

अखबारों ने ये नहीं लिखा कि घर से बाहर निकाल दिए गए एक बच्चे को बुखार है और वो सड़क में कुत्तों के साथ सोया हुआ है.

अखबारों ने ये नहीं लिखा कि इन गरीबों को पूरी रात मच्छर कटवाते हुए सड़कों पर खुले आसमान के नीचे बितानी पड़ रही है.

अखबारों ने ये नहीं लिखा कि दुधमुहा बच्चा गोद में लिए माएं रातभर बाहर जागती रहीं.

अखबारों ने नहीं लिखा कि टोटल लॉकडाउन में बगैर किसी पूर्व सूचना के एक हज़ार से भी ज़्यादा लोगों को एक घंटे के अन्दर घरों से निकाल कर सड़कों पर फ़ेंक दिया गया.

इसके बाद, ये आवासीय परिसर तो़ड़ना चालू कर दिया गया – क्योंकि कोरोना के समय में सबसे अहम काम यही था और गरीबों की जान अहम नहीं थी…

बेघर कर दिए गए इन ग़रीब मजबूर लोगों की तरफ से एक भी बात अखबार ने नहीं लिखी…टीवी चैनल्स ने नहीं दिखाई…और वो नहीं दिखाएंगे…कभी नहीं…

ये ख़बर-बिलासपुर से अनुज ने की है। छत्तीसगढ़ के अनुज श्रीवास्तव ने करियर की शुरुआत थिएटर से की, फिर बरास्ता आकाशवाणी – मुंबई जा पहुंचे और HW न्यूज़ में एंकर रहे। अब फिर से वापस छत्तीसगढ़ में हैं और एक्टिविस्ट पत्रकारिता कर रहे हैं।  

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