सत्यपाल मलिक के इंटरव्यू को गोदी मीडिया ने सेंसर क्यों कर दिया?

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
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इंटरव्यू तो छोड़िये, यह भी नहीं बताया कि इसपर सरकार और संबंधितों ने कुछ नहीं कहा  

एक भेदिया का इंटरव्यू इतना भी सीधा सरल नहीं है कि हर कोई खबर छापने से आजाद हो जाए

 

आज की खबर यही है कि कश्मीर के राज्यपाल रहे सत्यपाल मलिक ने करण थापर से द वायर के लिए बात की। इस बातचीत की चर्चा (विस्फोटक अंशों को तो छोड़िये) आज मेरे पांच में से चार अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है। द टेलीग्राफ ने इसे विस्तार से छापा है। उसपर आने से पहले बता दूं कि सोशल मीडिया पर चर्चा है कि सरकार ने नोएडा मीडिया को आदेश दिया है कि इसकी खबर न छपे। और ऐसा इसी कारण है। जो भी हो, इमरजेंसी में सेंसर का विरोध करने वाले लोगों के सत्ता में रहने पर बिना सेंसर, बिना घोषणा सरकार विरोधी खबरें नहीं छपना जादुई प्रशासनिक क्षमता की मिसाल है। इसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है। और ऐसे में इस इंटरव्यू का बीबीसी होने तक इसी चर्चा की जा सकती है, इसे देखा जा सकता है और लिंक शेयर किया जा सकता है। 

इसलिए आज यही बताता हूं कि इस बारे में द टेलीग्राफ ने क्या लिखा है। पेश है द टेलीग्राफ की आज की खबर या लीड का अनुवाद। इंटरव्यू तो आप पूरा देख सकते हैं और संभवतः देखेंगे भी पर इस खबर के साथ टेलीग्राफ ने जो बताया है वह भी दिलचस्प और रेखांकित करने लायक है। इसलिए भी कि एक तरफ भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार का कथित अभियान जारी है और दूसरी ओर अदानी मामले में सरकार ने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है। ना यह बताया है कि 20,000 करोड़ रुपए किसके हैं और न राहुल गांधी के सामान्य सवालों का जवाब दिया है। आप जानते हैं कि राहुल गांधी के शुरुआती पांच सवाल थे, 

  1. विदेश यात्रा पर कितनी बार गौतम अदानी प्रधानमंत्री के साथ गए?
  2. कितनी विदेश यात्राओं में अदानी बाद में प्रधानमंत्री के पास गए ?
  3. कितनी बार प्रधानमंत्री के किसी देश में पहुंचने के बाद अदानी पहुंचे?
  4. कितने देशों ने पीएम की यात्रा के बाद गौतम अदानी को ठेका दिया है?
  5. अदानी ने बीजेपी को पिछले बीस साल में कितने पैसे दिए हैं?

भ्रष्टाचार के खिलाफ माफ कीजिएगा, अपनी ईमानदारी के प्रचार में सरकार अभियान चला रही है पर पांच सवालों के जवाब नहीं दे सकती है और गोदी मीडिया भी इसका जवाब जनहित में नहीं दे रहा है। कारण समझना मुश्किल नहीं है लेकिन कहानियां बनाई जा रही हैं और इससे बचने के लिए तरह-तरह के उपाय किए जा रहे हैं। दूसरी ओर संकट पर संकट आए जा रहे हैं। द टेलीग्राफ की आज की खबर का आधार है ‘दि इनसाइडर’ यानी अंदर का आदमी। खराब अर्थों में आप इसे भेदिया भी कह सकते हैं। वैसे ही जैसे गुलाम नहीं आजाद कांग्रेस और राहुल गांधी की पोल खोल रहे हैं वैसे ही सत्यपाल मलिक नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार की कार्यशैली की पोल खोल रहे हैं। दोनों सिस्टम में रहे हैं पर अब उससे नाराज लग रहे हैं। यह तुलना बहुत ठीक नहीं है और संभव है बहुतों को पसंद नहीं आये लेकिन मु्द्दा वह नहीं है। अभी मु्द्दा है सत्यपाल मलिक ने जो कहा है और सत्यपाल मलिक हैं कौन।     

राहुल गांधी ऐसी स्थिति में ही नहीं रहे हैं कि गुलाम नबीं आजाद वैसा कुछ बोल सकें जो सत्यपाल मलिक ने कहा है। इसलिए दि इनसाइडर सत्यपाल मलिक ही हैं। आजाद को शायद ऐसा कहना ठीक नहीं हो। लेकिन मुद्दे पर आता हूं – आज अखबार का शीर्षक नहीं है। इंट्रो जैसा है और इसमें अगर कुछ शीर्षक है तो वह दि इनसाइडर ही है। इस तरह सत्यपाल मलिक ने जो कहा वह उतना ही महत्वपूर्ण है कि वे हैं कौन। आप भले उन्हें कश्मीर के राज्यपाल के रूप में जानते पर वे उससे आगे भी बहुत कुछ हैं। पढ़िये।  नरेन्द्र मोदी ने सत्यपाल मलिक को जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाया था। मलिक उस समय शिखर पर थे जब पुलवामा नरसंहार हुआ और जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा छीन लिया गया था। बाद में मोदी ने मलिक को और राजभवनों में भेजा। अब जब वे कहानी सुना रहे हैं, तो हमें क्या करना चाहिए?

नई दिल्ली डेटलाइन से ब्यूरो की खबर इस प्रकार है, नरेंद्र मोदी सरकार के भरोसेमंद रहे सत्यपाल मलिक ने एक साक्षात्कार में आरोप लगाया है कि प्रधानमंत्री ने उन्हें “तुम अभी चुप रहो” कह कर शांत कर दिया था। राज्यपाल के रूप में उन्होंने प्रधानमंत्री को बताया था कि पुलवामा में नरसंहार का दोष केंद्र की अपनी चूक है। शुक्रवार शाम को अपलोड किए गए द वायर न्यूज पोर्टल के लिए पत्रकार करण थापर के साथ साक्षात्कार में, मलिक ने यह भी कहा है कि प्रधानमंत्री को “भ्रष्टाचार से बहुत नफरत नहीं है” और उनकी सूचनाएं काफी कमजोर हैं या उनके पास “गलत जानकारी” है। साक्षात्कार अपलोड होने के बाद, द टेलीग्राफ ने मलिक द्वारा किए गए दावों पर पीएमओ और अन्य संबंधित मंत्रालयों से टिप्पणी मांगी, लेकिन शुक्रवार देर रात तक कोई जवाब नहीं मिला। दल बदलने के स्थापित रिकॉर्ड के साथ एक रोलिंग स्टोन, मलिक ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चरण सिंह की छाया में अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया था और विभिन्न जनता व समाजवादी दलों से होते हुए भाजपा में पहुंच गये। 

हाल ही में उन्होंने 2024 में कांग्रेस के लिए प्रचार करने की इच्छा व्यक्त की, लेकिन कहा है कि वह किसी भी राजनीतिक दल में शामिल नहीं होंगे या चुनाव नहीं लड़ेंगे। मलिक को मोदी सरकार ने 2017 में बिहार का राज्यपाल नियुक्त किया गया था और 2018 में जम्मू-कश्मीर में स्थानांतरित कर दिया गया था। पुलवामा नरसंहार 2019 में हुआ था। इसी साल कश्मीर से उसका विशेष दर्जा छीन लिया गया और लंबे समय तक इंटरनेट बंद रखा गया। जब राज्य एक केंद्र शासित प्रदेश बन गया, तो इसका नेतृत्व एक राज्यपाल की बजाय एक लेफ्टिनेंट गवर्नर को सौंपा जाना था और तब मलिक को गोवा भेज दिया गया था। इंटरव्यू में, मलिक ने फरवरी 2019 में पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर बमबारी के बारे में बात की। इसमें 40 जवान मारे गए थे भाजपा ने इसे चुनावी मुद्दे में बदल दिया था। “सीआरपीएफ के लोगों ने अपने लोगों को ले जाने के लिए एक विमान मांगा था क्योंकि इतना बड़ा काफिला कभी सड़क मार्ग से नहीं चलता है …. उनलोगों ने गृह मंत्रालय से पूछा … उन्होंने देने से इनकार कर दिया … उन्हें केवल पांच विमानों की जरूरत थी, उन्हें विमान नहीं दिया गया” – मलिक ने कहा। 14 फरवरी 2019 की शाम को याद करते हुए उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने उन्हें उत्तराखंड के कॉर्बेट नेशनल पार्क के बाहर से फोन किया था। 

उन्होंने कहा, “मैंने इसे उसी शाम पीएम को बताया। यह हमारी गलती है। अगर हमने विमान दिया होता तो यह नहीं होता। उन्होंने मुझसे कहा, ‘तुम अभी चुप रहो’ …. मैंने यह बात पहले भी कुछ चैनल से कहा था। उन्होंने कहा, ‘ये सब मत बोलो, ये कोई और चीज है। हमें बोलने दो… (राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत) डोभाल ने भी मुझसे कहा, ‘ये सब मत बोलिए। आप चुप रहिये।’   …. मुझे लग गया था कि अब सारा ठीकरा पाकिस्तान पर फोड़ा जाएगा इसलिए चुप रहिये, मलिक ने कहा। उन्होंने केंद्रीय गृह मंत्रालय और सीआरपीएफ को दोषी ठहराते हुए कहा कि जिस राजमार्ग पर काफिला चल रहा था, उससे मिलने वाली किसी भी सड़क (लिंक रोड) को अवरुद्ध नहीं किया गया था। पूर्व गवर्नर ने कहा, “यह 100 प्रतिशत खुफिया विफलता थी।” मलिक ने कहा कि अनुमानित 300 किलोग्राम विस्फोटक से लदी कार (जो काफिले से टकराई थी) बमबारी से पहले 10-12 दिनों तक इलाके के गांवों में घूमती रही थी और उसका पता नहीं चला था जबकि इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक केवल पाकिस्तान से ही आ सकते थे, उन्होंने कहा, ये सुरक्षा चूक मौतों के लिए जिम्मेदार हैं। मलिक ने कहा कि उन्हें राज्य से विशेष दर्जा वापस लेने की मोदी सरकार की योजना के बारे में पहले नहीं बताया गया था, लेकिन उन्हें पता था कि ऐसा होने वाला है क्योंकि यह एजेंडे में था और इसके बारे में बात की गई थी।

मलिक ने कहा, “(अनुच्छेद 370 के तहत विशेष दर्जे को समाप्त करने से) एक दिन पहले, मुझे गृह मंत्री का फोन आया, जिन्होंने कहा कि वह मुझे एक पत्र भेज रहे हैं, जिसे समिति से पास करवाकर अगले दिन सुबह 11 बजे से पहले उन्हें भेज दूं।” मलिक ने कहा कि अगर उनसे सलाह ली जाती तो वे जम्मू-कश्मीर को राज्य से कम करके केंद्र शासित प्रदेश बनाने के खिलाफ सलाह देते। उन्होंने कहा कि ऐसा किए जाने का  अनुमान उन्होंने इस आधार पर लगाया था कि विद्रोह के डर से केंद्र पुलिस को अपने नियंत्रण में चाहता था। “जब मैंने मुख्य सचिव को  (गृह मंत्री के) पत्र के बारे में बताया, तो उन्होंने कहा … वे पुलिस थानों में घुसेंगे, हथियार छीनेंगे, पुलिस विद्रोह करेगी …. मैंने कहा, ‘चिंता मत करो, मैंने छह महीने काम किया है। मुझे विश्वास है कि एक कुत्ता भी नहीं भौंकेगा …” उन्होंने कहा। 

मलिक ने कहा कि 2018 में कश्मीर पर अपनी चर्चा के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री को “आधी-अधूरी या गलत जानकारी” वाला पाया था, जबकि मोदी उस समय तक शीर्ष पद पर चार साल बिता चुके थे। साक्षात्कार में, मलिक ने एक बीमा सौदे और एक बिजली परियोजना में भ्रष्टाचार के बारे में पहले लगाए गए आरोपों को दोहराया, जिसे उन्होंने राज्यपाल के रूप में रोक दिया था। उन्होंने अपने आरोपों के संबंध में एक व्यापारिक घराने, जम्मू-कश्मीर के एक पूर्व मंत्री और एक आरएसएस नेता का नाम लिया। आरएसएस नेता ने इन आरोपों के लिए मलिक के खिलाफ मानहानि का मामला दायर किया है। मलिक ने कहा, “मैं सुरक्षित रूप से कह सकता हूं कि पीएम को भ्रष्टाचार से बहुत नफरत नहीं है।”

आगे जोड़ा, हालांकि, प्रधानमंत्री ने जम्मू-कश्मीर में “संदिग्ध” परियोजनाओं को रद्द करने पर उनका समर्थन किया था। इसके साथ उन्होंने बताया कि गोवा में राज्यपाल रहते हुए वहां के कथित भ्रष्टाचार के बारे में मोदी को बताने के बाद हफ्ते भर में ही गोवा से स्थानांतरित कर दिया गया था। मलिक ने कहा कि पाकिस्तान से कथित खतरे के कारण उनके लिए एक घर के साथ जेड प्लस सुरक्षा की सिफारिश होने के बावजूद, उनके पास इस समय सुरक्षा के लिए एक ही कांस्टेबल है, जो उनकी रक्षा कर रहा है। सुरक्षा की कमी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, “सरकार चाहती है साले को कोई मार दे।”

“काश हम कश्मीर में ईमानदारी से काम करते। हमने वहां कभी निष्पक्ष चुनाव नहीं कराए। हमने नतीजों में धांधली की है… इन हथकंडों की वजह से हम विश्वास नहीं जगाते।” 2018 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा को भंग किये जाने के बारे में मलिक ने पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती के आरोपों से इनकार किया कि सरकार बनाने का दावा करने के लिए उन्होंने उनसे मिलने से मना कर दिया या नहीं मिले। अपना बचाव करते हुए उन्होंने कहा, “मैं उनके (मोदी) संपर्क में नहीं था। वह ईद का दिन था … मेरे कार्यालय में फैक्स या किसी चीज की निगरानी करने वाला कोई नहीं था… मैं दिल्ली में था। मैं  4 बजे यहां पहुंचा। मेरे मुख्य सचिव और हमारे खुफिया प्रमुख आए और कहा कि बहुमत है और अगर वे पत्र भेजते हैं, तो उन्हें शपथ दिलाएं …. लेकिन नियम क्या है? सरकारें ट्विटर पर नहीं बनती हैं। मलिक ने कहा: “मैंने रात 8 बजे के बाद विधानसभा को भंग कर दिया। उनके पास पूरा दिन था। श्रीनगर से जम्मू के लिए तीन उड़ानें हैं …. फारूक अब्दुल्ला साहब की पार्टी ने कहा, ‘हम दिल्ली जा रहे हैं और कल फैसला करेंगे। गुलाम नबी आजाद स्पष्ट रूप से नहीं कहा कि वे समर्थन करेंगे। केवल महबूबा कह रही थीं कि उनके पास बहुमत है। 

“बड़े पैमाने पर खरीद-फरोख्त चल रही थी। उन्होंने खुद शिकायत की थी और विधानसभा को जल्द भंग करने की मांग की थी, ‘हमारे विधायकों की खरीद-फरोख्त की जा रही है, हम पर दबाव डाला जा रहा है। फारूक खुद शिकायत करते थे …. अगर वे अक्षम थे तो इसके लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूं….बेशक, वह झूठ बोल रही हैं। उस अवधि में उन्होंने मुझसे कोई मुलाकात नहीं की” – उन्होंने कहा। मेघालय के राज्यपाल के रूप में मलिक ने किसान आंदोलन से निपटने के केंद्र के तरीके की आलोचना की थी। केंद्र और राज्यों में भाजपा के मंत्रियों द्वारा मुस्लिमों के खिलाफ बयान देने और पार्टी के लोगों के लिए सांकेतिक भाषा में बात करने की आलोचना की थी। उन्होंने कहा कि अडानी-हिंडनबर्ग घोटाला मोदी सरकार के लिए मुश्किल साबित हो सकता है बशरते विपक्ष अगले लोकसभा चुनाव के लिए एकजुट हो जाए। इसे  (अदानी-हिंडनबर्ग कांड) को उन्होंने (एक चुनावी मुद्दा) कहा और यह भी कि अगर वे (मोदी सरकार) नहीं सुधरे, तो अदानी(घोटाला) उन्हें खत्म कर देगा। अगर विपक्ष आमने-सामने का मुकाबला देता है, तो वे (मोदी सरकार) को बचाया नहीं जा सकता है…. वह (प्रधानमंत्री) अपने बचाव में (संसद में) एक भी शब्द नहीं बोल सके।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।