राहुल को घेरने में जुटी दिल्ली पुलिस रोहन जेटली पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोप पर कब कुछ करेगी? 

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
ओप-एड Published On :


पुलिस को राजनीतिक संरक्षण तो ठीक है, उसे राजनीतिक दल की तरह बेशर्म न बनाया जाए 

 

आज के मेरे सभी अखबारों में यह खबर पहले पन्ने पर है कि दिल्ली पुलिस कल यानी इतवार, 19 मार्च 2023 को राहुल गांधी के घर पहुंच गई। मकसद बताया गया, भारत जोड़ो यात्रा के दौरान की गई टिप्पणी, “महिलाओं का अभी भी यौन उत्पीड़न किया जा रहा है” के मामले में अपने सवालों का जवाब लेना। पहले यह बता दूं कि आज के मेरे अखबारों में यह खबर कहां, कैसे किस शीर्षक से छपी है। आधी से ज्यादा बात तो उसी से समझ में आ जाएगी। जो बचेगा वह मैं अंत में बताउंगा। अभी मैं सिर्फ पहले पन्ने पर शीर्षक और खबर पढ़ता व बताता जाउंगा। 

हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर लीड है। इसलिए आज सबसे पहले हिन्दुस्तान टाइम्स की बात करता हूं। वैसे भी, अंग्रेजी वर्णक्रम के अनुसार एच सबसे पहले आएगा और मैं कोशिश करता हूं कि हिन्दुस्तान टाइम्स की चर्चा सबसे पहले हो। हिन्दुस्तान टाइम्स में चार कॉलम की लीड का शीर्षक है, भारत जोड़ो (यात्रा के) भाषण पर पुलिस ने राहुल से घर पर पूछताछ की। हिन्दुस्तान टाइम्स ने इसके साथ कांग्रेस का पक्ष भी तीन कॉलम में छापा है पर शीर्षक ध्यान देने लायक है। इसमें अंग्रेजी के क्विज शब्द का इस्तेमाल किया गया है और इसका मतलब है पूछताछ, जानकारी लेना नहीं – जो कल दिन भर प्रचारित किया गया। जानकारी लेने और पूछताछ में अंतर आप समझते हैं। 

राहुल गांधी कुछ नहीं तो सांसद हैं ही और चार बार के सांसद हैं। चाहते तो 2004 में मनमोहन सिंह की जगह प्रधानमंत्री बन सकते थे और वैसे भी देश की राजधानी दिल्ली में सांसद के रूप में प्रधानमंत्री से सीनियर हैं। नरेन्द्र मोदी अगर प्रधानमंत्री नहीं होते तो उनका बंगला राहुल गांधी से छोटा होता। पर यह अलग मुद्दा है। हालांकि, एक नागरिक के रूप में राहुल गांधी के सम्मान से संबंधित तो है ही। पुलिस और कानून के लिए, वोट के लिए भी हर कोई बराबर है लेकिन इन दिनों जो भक्ति चल रही है उसमें भी राहुल गांधी के साथ आम आदमी या अपराधी जैसा व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए। मैं सामान्य शिष्टाचार और संस्कार की बात कर रहा हूं। आप अगर अधिकार की बात  करेंगे तो मुझे कुछ नहीं कहना है। इसलिए इसे भी छोड़ता हूं। 

मेरा मानना है कि राहुल गांधी से पूछताछ ही करनी थी तो संबंधित जांच अधिकारी उन्हें फोन करके, समय लेकर, अकेले जाकर मिल सकता था और राहुल गांधी नहीं मिलते, मना करते या अधिकारी का सम्मान नहीं करते तो कायदे कानून नियम हैं। उसे लागू किया जा सकता था कोई शिकतायत नहीं करता। लेकिन जो खबरें छपी हैं उससे ऐसा नहीं लगता है और कल की चर्चा से भी यही लग रहा है कि अचानक एक टीम को उनके घर भेज दिया गया। यह तरीका नहीं है, सरकारी संसाधनों की बर्बादी है। आम आदमी तो डर ही जाएगा। राहुल गांधी को डराना मकसद नहीं भी रहा हो, खबर बनाना तो था ही। कहने की जरूरत नहीं है कि यह काम भी कायदे से नहीं किया गया। पुलिस ने नहीं किया या सरकार ने नहीं करने दिया – खबर यह है जो शायद कभी न हो, कोई न करे। 

द हिन्दू में यह खबर विज्ञापनों के बीच चार कॉलम में, पर छोटी सी है और शीर्षक भी बिना तस्वीर के बहुत सामान्य या रूटीन किस्म का है, “दिल्ली पुलिस राहुल के घर पहुंची, फिर से नोटिस दिया”। यह खबर अंदर के पन्ने पर जारी है और लिखा है कि विवरण अंदर है। मैं अंदर की खबरें नहीं देखता इसलिए इसे भी सामान्य खबर या सामान्य रिपोर्टिंग मानकर छोड़ देता हूं। मैं ऐसे मामले तलाशता हूं जहां पहले पन्ने पर ही पक्षपात या भेदभाव बिल्कुल स्पष्ट हो। इस लिहाज से इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर सेकेंड लीड है, तस्वीर के साथ। शीर्षक है, “दिल्ली पुलिस राहुल के दरवाजे पर, कांग्रेस ने इसे बदला … अदानी से ध्यान हटाने की साजिश कहा”। पुलिस दरवाजे पर कहने सुनने से एक सिपाही या अधिकारी का ही बोध होता है। अधिकारी अकेले नहीं आएगा उसके साथ गाड़ी होगी, ड्राइवर होगा और संभव है कोई सहायक भी हो। इसलिए फोटो लगाकर इंडियन एक्सप्रेस ने सही किया है। 

मुख्य शीर्षक के साथ उपशीर्षक है, “यौन हमले पर टिप्पणी: राहुल ने पुलिस के नोटिस का प्राथमिक जवाब दिया।” यहां खास बात यह है कि खबर के साथ दो जनों को बाइलाइन है। ऐसी खबरों में बाइलाइन तब होती है जब लगता है कि खबर कुछ खास है, किसी और के पास नहीं है या रिपोर्टर ने कुछ खास तरीके से लिखा है या कुछ खास सूचना दी है। यहां बाइलाइन क्यों है समझना मुश्किल है क्योंकि पहली ही खबर एएनआई ने जारी की थी और तभी लग गया था कि पुलिस पूछताछ के लिए कम, खबर बनाने के लिए ज्यादा गई है। वरना इतने तामझाम की जरूरत ही नहीं थी (एएनआई का ट्वीट देंखे)। दरअसल इतवार को लुटियन की दिल्ली में जो पत्रकार ड्यूटी पर थे उन्हें इसमें नहीं फंसाया गया होता तो संभव है वे 34 मीना बाग देखने पहुंच जाते और कुछ ऐसा लिख देते जिससे सरकार के आराम में खलल पड़ता। पर वह तो उनका विशेषाधिकार है। 

इंडियन एक्सप्रेस की खबर से लगता है कि पुलिस बिना समय लिये गई थी और राहुल गांधी जवाब के लिए तैयार नहीं थे और मकसद जवाब देने के लिए मजबूर करने से अलग जवाब लेकर कार्रवाई करना होता तो फोन करके काम बताकर जाना सामान्य शिष्टाचार तो है ही, काम करने का तरीका भी यही है। वरना सामने वाला हमेशा कह सकता है कि सूचनाएं तैयार नहीं हैं। और इस मामले में वही हुआ जो इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है और बताया है कि शाम को उनने जवाब लिखकर भेज दिया। इससे जाहिर है कि यह सब बिना शक्ति प्रदर्शन के भी हो सकता था और राहुल गांधी की छवि पुलिस से सहयोग नहीं करने की नहीं रही है। फिर भी इस तरह की छापमार कार्रवाई क्यों की गई समझना मुश्किल नहीं है।

टाइम्स ऑफ इंडिया में भी यह दो कॉलम में सेकेंड लीड है। यहां बाइलाइन नहीं है पर दिल्ली पुलिस की ओर से भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा का बयान है। इसके अनुसार, राहुल गांधी को अपना बयान दर्ज कराना चाहिए था …. चूंकि उन्होंने नहीं कराया इसलिए दिल्ली पुलिस का कर्तव्य था कि उनसे संपर्क करती – संबित पात्रा । मुझे नहीं पता मूल नोटिस में कोई समय दिया गया था कि नहीं और दिया गया था तो वह समय निकल चुका था कि नहीं और निकल गया था तो पात्रा (और टाइम्स ऑफ इंडिया) उसका साफ उल्लेख क्यों नहीं करते हैं और अगर समय निकल जाने के बावजूद जवाब नहीं आया था तो क्या फोन करके या पहले की ही तरह या उससे भी कम में किसी के हाथ एक रिमाइंडर भेज कर (आम मामले में तो शायद पुलिस स्पीडपोस्ट से भी न पूछे) यह काम नहीं कर सकती थी। वैसे भी पात्रा का पक्ष लेने की टाइम्स ऑफ इंडिया की जरूरत मुझे समझ में नहीं आई। अगर कारण मल्लिकार्जुन खडगे का आरोप है तो भाजपा या संबित पात्रा न तो दिल्ली पुलिस के प्रमुख हैं और ना उसकी पार्टी के प्रवक्ता। जो भी हो, गौर कीजिये, यह अमृत काल की रिपोर्टिंग है। 

अब अंत में कोलकाता का द टेलीग्राफ। यहां भी यह खबर चार कॉलम में लीड है, फ्लैग शीर्षक के साथ। मुख्य शीर्षक है, महिलाओं की चिन्ता पुलिस वालों को राहुल तक ले गई। फ्लैग शीर्षक है, श्रीनगर में भारत जोड़ो भाषण के 40 से ज्यादा दिन बीतने के बाद। खबर के साथ वर्दी में कुछ पुलिस वालों की तस्वीर है जो ड्यूटी में तैनात लगते हैं। कैप्शन है, पुलिस वालों को गिनिये – रविवार को नई दिल्ली में दिल्ली पुलिस के लोग  राहुल गांधी के घर पहुंचे। तस्वीर में कम से कम 12 लोग तो दिख ही रहे हैं। संजय के झा की बाइलाइन वाली इस खबर में बताया गया है, कांग्रेस ने पुलिस के उत्साह का हवाला दिया जो संसद में चल रहे गतिरोध के समय नजर आया है और अपने आप में बेवकूफी है।  राहुल ने 48 दिन पहले श्रीनगर में महिलाओं की बात कही थी। और अब उससे संबंधित सवाल पूछना डराने और परेशान करने  की राजनीति का भी सभी हदें पार कर जाना था। राहुल गांधी ने एक पत्र भेजकर नोटिस का जवाब देने के लिए 10 दिन का समय मांगा था। केंद्रीय गृह मंत्रालय को रिपोर्ट करने वाली   दिल्ली पुलिस ने राहुल को तीन दिन पहले ही यह नोटिस भेजा था। लेकिन विशेष आयुक्त सागर प्रीत हुड्डा के नेतृत्व में एक टीम रविवार सुबह उनके घर पर पहुंच गई। 

खबर में आगे कहा गया है और मुझे पता नहीं है कि इससे देश और भाजपा की लोकतांत्रिक सरकार का दुनिया में कितना नाम हुआ – राहुल के घर पर दो घंटे तक की पुलिस की मौजूदगी ने कांग्रेस में बेचैनी पैदा कर दी। कई नेताओं ने ट्वीट कर अपनी चिंता व्यक्त की। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा, “कोई नहीं जानता कि (प्रधानमंत्री) नरेंद्र मोदी और (केंद्रीय गृह मंत्री) अमित शाह इस देश को कहां खींच लेंगे। स्थिति खतरनाक है और हर नागरिक को चिंतित होना चाहिए।” “क्या लोकतंत्र ऐसे काम करता है? ईडी, सीबीआई, पुलिस का तमाशा देखने के बाद… क्या आपको लोकतंत्र को खतरे में दिखाने के लिए किसी सबूत की जरूरत है? और जब कोई इसके बारे में बात करता है, तो आप सच्चाई से विचलित हो जाते हैं,” उन्होंने आगे कहा। राहुल ने अपनी हालिया यूके यात्रा के दौरान भारत में लोकतंत्र के लिए खतरा होने का आरोप लगाया था। इस कारण केंद्रीय मंत्रियों और भाजपा नेताओं ने उन पर विदेशी धरती पर भारत का अपमान करने का आरोप लगाया था।

(पीटीआई ने पुलिस के हवाले से कहा कि चूंकि यात्रा दिल्ली से भी गुजरी थी, वे यह पता लगाना चाहते थे कि क्या किसी पीड़ित ने यहां कांग्रेस नेता से संपर्क किया था ताकि वे मामले की जांच शुरू कर सकें। “पुलिस ने उनसे विवरण देने के लिए कहा इन पीड़ितों को सुरक्षा प्रदान की जा सके,” एक अधिकारी ने पीटीआई को बताया।) कहने की जरूरत नहीं है कि इस खबर से यही दिखाने की कोशिश की गई है कि दिल्ली पुलिस जनहित में बहुत चिन्तित हैं और राहुल गांधी ने आरोप लगाया है तो बतायें कि पीड़ित कौन है। मैं तो इसे हेडलाइन मैनेजमेंट का भाग मानता हूं लेकिन आप चाहें तो इसे सामान्य कार्रवाई मान सकते है। अभी मुद्दा यह नहीं है। मुद्दा यह है कि दिल्ली पुलिस को अगर पीड़ितों की चिन्ता है तो उसने खुद को अरुण जेटली के बेटे की यौन हिंसा का शिकार बता रही युवती के मामले में क्या किया। वह तो सरकार के प्रिय विषय, भ्रष्टाचार से भी संबंधित था। 

ज़ी न्यूज की इसी एक खबर के अनुसार, पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली के बेटे और दिल्ली जिला क्रिकेट संघ (डीडीसीए) के अध्यक्ष रोहन जेटली पर एक महिला ने गंभीर आरोप लगाये हैं। ज्योत्सना साहनी नाम कि इस महिला ने बीसीसीआई के पास एक शिकायत दर्ज कराई है जिसमें साहनी ने जेटली पर उनका शोषण करने का आरोप लगाया है। इतना ही नहीं जर्नलिस्ट साक्षी जोशी की ओर से चलाये जाने वाले एक यूट्यूब चैनल पर यह रिपोर्ट भी जारी की गई है कि पीड़िता का यौन शोषण करने के लिये जो कमरे बुक किये गये थे उनका पैसा डीडीसीए के फंड्स से निकल कर आया था। क्या माना जाए कि राहुल गांधी के मामले में 45 दिन बाद सक्रिय हुई दिल्ली पुलिस को इस मामले में भी इतना ही समय चाहिए। क्या इस मामले में उचित कार्रवाई करके वह राहुल गांधी से सबूत मांगने की बजाय उन्हें सबूत देने के लिए प्रेरित नहीं कर सकती थी।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।