अशोक कुमार पाण्डेय
दिल्ली के दंगा-पीड़ित इलाक़ों में घूमते हुए एक तरफ़ वर्षों की सरकारी उपेक्षा के चलते फैली गंदगी और अव्यवस्था, लटकते हुए बिजली के तारों के गुच्छे और संकरी सड़कों के दोनों तरफ़ एक-दूसरे में उलझे डब्बानुमा मकानों और फिर ठीक उनके बीच उभर आने वाले आलीशान मंदिरों और मस्जिदों को देखकर निदा फ़ाज़ली का वह बेहद मक़बूल शे’र याद आना तो स्वाभाविक था – ‘बच्चा बोला देखकर मस्जिद आलीशान/अल्ला तेरे एक को इतना बड़ा मकान !’ लेकिन दूसरी तरफ़ यह सोचता रहा कि इन इलाक़ों में इनके निर्माण के लिए पैसा कहाँ से आता है? दक्षिण के मंदिरों की अरबों की संपत्तियाँ, तबलीग के मरकज़ की कई मंज़िला इमारत, सफ़ेद संगमरमर के शानदार गुरुद्वारे और ज़िंदगी भर मूर्तिपूजा का विरोध करने वाले बुद्ध और कबीर तक के नाम पर बने पूजास्थलों की भव्यता इंसानी पेट काटकर बनी है। कह सकते हैं कि सिर्फ़ पेट भरने से काम नहीं चलता आध्यात्मिक शांति जरूरी है, लेकिन उन्हीं बस्तियों के खस्ताहाल स्कूलों और सरकारी अस्पतालों से जो मानसिक और शारीरिक शांति मिलनी है उसे इतने नीचे दर्जे पर क्यों रखा जाता है?
खैर, 2020 का मार्च आधा गुज़रा तो कोविद-19 का खतरा हिंदुस्तान मे भी पसरने लगा और शुरुआत इन्हीं पूजास्थलों और धार्मिक विश्वासों के सहारे इस कोप को टालने की कोशिशों से हुई। जिस देश मे चेचक माता हों, मानसिक बीमारियाँ ओझा झाड़-फूँक से ठीक करते हों, मंतर,आयत फूँक के धागे और ताबीज़ से भविष्य बनाने के सपने देखे जाते हों, वहाँ यह अस्वाभाविक तो बिल्कुल नहीं था। तो सब हुआ। हिन्दू महासभा ने गोमूत्र पार्टी की तो मुल्ला जी लोग कहते रहे कि वबा का वक़्त अल्लाह के क़रीब जाकर माफ़ी मांगने का है। आयत आ गई जिसे पढ़ने से कोरोना को दूर रहना था। मंत्र भी आ गया। लेकिन पाकिस्तान मे एक मौलवी साहब जो टीवी पर लानतें दे रहे थे बीमारी को और बेकार की बात बता रहे थे अस्पताल मे वेन्टीलेटर पर पाए गए। कोलकाता में एक साहब गोमूत्र पीकर बीमार हो गए। दुबई से आकर माताजी का श्राद्ध कराते एक श्रद्धालु ने सैकड़ों लोगों को संक्रमित कर दिया तो तबलीग का क़िस्सा सब जानते ही हैं। न देवी बचा सकीं न खुदा। हालत यह कि मंदिरों मस्जिदों मे ताले लग गए मानो वे भी हमारे नेताओं की तरह खुद को क्वारंटीन करके भक्तों को अस्पताल भरोसे छोड़ रहे हों।
और तब हुआ एहसास कि काश ये खस्ताहाल अस्पताल खस्ताहाल न होते। काश मंदिरों और मस्जिदों को बनाने मे जो लाखों/करोड़ों लगा दिए गए उनसे अस्पताल बन जाते। सरकारें तो पहले ही इलाज़ और पढ़ाई-लिखाई को धंधा करने वालों के लिए छोड़ चुकी हैं, जिनके कैंटीन मे दो छोटे-मोटे क्लीनिक खुल जाएँ और जिनकी पार्किंग में तो छोटा-मोटा अस्पताल ही खुल जाए। मालूम हुआ कि सर्वशक्तिमान इस संकट की घड़ी मे अनुपस्थित है।
वैसे सर्वशक्तिमान संकट की किस घड़ी मे साथ होता है? आपके पास पैसे नहीं होते, बच्चा बीमार होता है, मंदिर-मस्जिद में गिड़गिड़ाते हैं। कहाँ आता है साथ आपके सर्वशक्तिमान? किसी इंसान ने पैसे दे दिए तो इलाज़ हो जाता है वरना बीमारी नहीं ग़रीबी मार डालती है और आप भगवान/खुदा के दरवाज़े पर फिर जाकर रोते हैं। बच गया तो उसे श्रेय देते हैं लेकिन यह कभी नहीं पूछते कि यार ये ग़रीबी हमें क्यों दे दी? पिछले जनम का बहीखाता दिखाओ। हमें नहीं भरोसा। और जब सब पिछले जनम के हिसाब से होना ही है तो मंदिर पर सर तोड़ने से क्या फ़ायदा? मरने के बाद हुए फ़ैसलों के इंतज़ार मे ज़िंदगी भर तकलीफ़ उठाना ग़ज़ब है। जन्नत-जहन्नुम सब यहीं है लेकिन कौन समझे! बाढ़ आए, तूफ़ान आए, सूनामी आए, दंगे मे कोई क़ातिल गला काट दे, ट्रेन पलट जाए.. ऊपरवाले को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। छोड़ देता है नीचे वालों को अपने हाल पर। मरो। और बच जाओ तो फिर से भक्ति शुरू कर दो। परसाद दो, बलि दो, कुर्बानी दो, चन्दा दो, घर फूँकों। लेकिन भक्ति करो। मुझे तो सर्वशक्तिमान एकदम अपने नेताओं जैसा लगता है वैसे।
खैर, सच तो यही है कि कोरोना ने सर्वशक्तिमान को एक बार और हरा दिया। डर गया उस पिद्दी से कीड़े का कोई इलाज़ ऊपरवाले के पास नहीं था। वैष्णो देवी हो कि काबा, स्वर्ण मंदिर हो कि बड़ा से बड़ा चर्च सब पर ताले लग गए। यहाँ तक कि इनकी तिजोरियों मे रखा माल भी नहीं काम आया नीचे वालों के। जब अभिनेता, खिलाड़ी, आमलोग सब जब बेहाल कामगारों की मदद करने के लिए आगे आ रहे थे तो इन पूजास्थलों से एक रूपये न दिया गया। कोई खुदा/कोई भगवान किसी पुजारी/मौलवी के सपने मे यह कहने नहीं आया कि ये जो लाखों करोड़ों बंद हैं बक्सों मे इससे मेरे भक्तों को दो रोटी खिला दो। बुझे चूल्हों मे दीवारों पर टंगे सर्वशक्तिमानों ने किसी जादू से चावल की देग नहीं रखी। मीलों पैदल चलने को मजबूर लोगों के पैरों के छाले का इलाज़ तो छोड़िए उन्हें पीटती लाठियों को रोकने का भी कोई जादू नहीं किया सर्वशक्तिमान ने।
जानता फिर भी चलता रहेगा धर्म का कारोबार। सजते रहेंगे मंदिर-मस्जिद। लोग पटकते रहेंगे सर। बंद कमरों मे आज भी गिड़गिड़ा रहे होंगे लोग। जो बच जाएँगे उन्हें सर्वशक्तिमान की दया सिद्ध कर देंगे जो मारे जाएँगे उसे सर्वशक्तिमान की शिक्षा लेकिन सच तो यही है कि इस कोरोना ने सबसे पहले सर्वशक्तिमान को हरा दिया है।
बाक़ी भरम है, पाले रहिए।
शहीद-ए-आज़म भगत सिंह का लेख भी पढ़ लीजिए- मैं नास्तिक क्यों हूँ (संपादक)