तेलंगाना ने सीबीआई को दी आम सहमति वापस ली पर मीडिया में ख़बर आधी-अधूरी 

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
ओप-एड Published On :


तेलंगाना सरकार ने राज्य में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को मामलों की जांच के लिए दी गई आम सहमति वापस ले ली है। इससे पहले राज्य में सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) अब भारत राष्ट्र समिति के विधायकों की खरीदफरोख्त का मामला सामने आया था। शुक्रवार, 28 अक्तूबर को तेलंगाना टुडे में एक खबर छपी थी जिसका शीर्षक था, “भाजपा के संदिग्ध अभियान ने राजनीतिक तूफान मचा दिया है खबरों के अनुसार, सायबराबाद पुलिस ने भाजपा के एजेंट के रूप में काम कर रहे तीन लोगों को गिरफ्तार किया था। इनसे पूछताछ कर इन्हें अदालत में पेश किया गया था। अदालत ने उन्हें रिहा कर दिया।  

तंदुर के विधायक, पायलट रोहित रेड्डी ने शिकायत की थी कि रामचंद्र भारती और नंद कुमार ने उनसे महीने भर पहले संपर्क किया था और उन्हें दल बदलने के लिए 100 करोड़ रुपए तथा केंद्र सरकार के ठेके दिलाने का लालच दिया था। उनसे तीन अन्य विधायकों को साथ लाने और उनके लिए 50 करोड़ रुपए प्रति विधायक की पेशकश की गई थी। यही नहीं, भाजपा में शामिल नहीं होने पर ईडी और सीबीआई  के छापों की धमकी भी दी गई थी। यह सब अखबारों में छपा है। खबर यह भी है कि विधायक की शिकायत पर तेलंगाना पुलिस ने जाल बिछाकर सबूत जुटाए और तब कार्रवाई की।   

पत्रकार विनीत नारायण ने संबंधित सबूत एक अनिवासी भारतीय को भेजे तो उनका कहना था कि भ्रष्टाचार विरोधी जज ने मामले को स्वीकार नहीं किया और तीन गिरफ्तार लोगों की रिहाई के आदेश दिए। जज का मानना था कि इस मामले में गलत करने का कोई सबूत नहीं है। इसका कुल प्रभाव यह है कि दोनों पक्षों को नुकसान हुआ है और इसका असल 3 तारीख को होने वाले उपचुनाव पर पड़ेगा। अनाम अनिवासी भारतीय ने यह भी कहा कि इससे टीआरएस का राष्ट्रीय मीडिया में मजाक बना है। 

इसपर विनीत नारायण ने उन्हें लिखा है, राष्ट्रीय मीडिया या गोदी मीडिया। यह राष्ट्रीय मीडिया तब होता था जब हमारे जैसे पत्रकार यूपीए सरकार का निडर होकर खुलासा करते थे और उसपर हमला करते थे। अब वे भाजपा के पीआरओ हैं। रिटायरमेंट के बाद राज्यपाल या राज्यसभा का सदस्य बनने के लिए समझौता करने वाले जज नहीं एचएमवी के रिकार्ड हैं। कुल मिलाकर, विधायक खरीदने के आरोपों पर अभी तक कुछ नहीं हुआ है और कथित सबूतों को अदालत ने नहीं माना है। पर बात इतनी ही नहीं है।     

भाजपा ने हाईकोर्ट से इस मामले की सीबीआई जांच कराने की अपील की है। क्यों की होगी समझना मुश्किल नहीं है। पर देश भर के मीडिया में खबरें वैसे नहीं छपी जैसे छपनी चाहिए थी और इसी का नतीजा है ऊपर अनिवासी भारतीय की राय और पत्रकार की दशा – जो मित्रों को तो बता रहे हैं पर उसे मीडिया में जगह नहीं के बराबर मिल रही है। मैंने भी इस मामले की चर्चा नहीं की होती अगर आज मुझेभाषा की यह खबर नहीं दिखती जो शीर्षक है या जिसकी चर्चा पहले पैरे में की गई है। नहीं जानने वालों को बता दूं किभाषा देश की जानीमानी समाचार एजेंसी प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया (स्वायत्त) की हिन्दी सेवा है और पीटीआई – भाषा को नियंत्रित करने के सरकारी प्रयासों की चर्चा पूर्व में हो चुकी है। एक निजी समाचार एजेंसी को सरकारी प्रश्रय सर्व विदित है पर वह अलग मुद्दा है। 

कहने की जरूरत नहीं है कि भाषा या प्रेस ट्रस्ट की खबरें (सरकारी प्रश्रय पाने वाले निजी समाचार एजेंसी की खबरें भी) कई अखबारों और मीडिया संस्थानों में उपयोग होती हैं और उसमे खबर आधीअधूरी हो या पक्षपातपूर्ण ढंग से लिखी हो तो जनता को सही और पूरी सूचना नहीं मिलेगी। आज इस मामले में भी यही हुआ है। अखबारों में खबर यही है कि तेलंगाना की टीआरएस सरकार ने सीबीआई को दी आम सहमति वापस ले ली। कारण बताना विचार देना होगा और विचारों की जरूरत सरकार को है नहीं इसलिएशुद्ध खबर से तेलंगाना सरकार की छवि खराब करने की कोशिश हो रही है जिसने अपना नाम टीआरएस से भारत राष्ट्र समिति क्यों किया होगा समझना मुश्किल नहीं है। 

यहां यह बताना अनुपयुक्त नहीं होगा कि टीआरएस (बीआरएस) ने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से अपील की है कि इस मामले में मीडिया से बात करने से बचें क्योंकि मामला अभी प्राथमिक स्तर पर है। पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष ने एक ट्वीट में कहा है कि रंगे हाथ पकड़े गए चोर बोलते रहेंगे पार्टी काडर को उनपर ध्यान देने की जरूरत नहीं है। आप समझ सकते हैं कि मीडिया का साथ मिलने के मामले में विपक्षी दलों की क्या स्थिति है। उसपर भी तुर्रा यह कि राज्य के विधायक खरीदने के मामले की जांच राज्य सरकार राज्य की पुलिस से कराए तो केंद्र की सीबीआई से क्यों हो? राज्य सरकार के आरोप पर यकीन नहीं करना या शक करना तब सही होता जब यह पहला या शुरुआती मामला होता। दूसरी ओर, सीबीआई पर यकीन करने का कोई कारण नहीं है।

देश के कई राज्यों में जब यह सब खुले आम कई बार हो चुका है, झारखंड के मुख्यमंत्री की विधानसभा की सदस्यता से संबंधित फैसला राज्यपाल बता नहीं रहे हैं और बम विस्फोट जैसी बातें हो रही हैं तो राज्य सरकार गिराने की कोशिश और उसमें अनियमितता का मामला निराधार नहीं हो सकता है। और निष्पक्ष जांच से डर क्यों होना चाहिए। राज्य के नेता अगर राज्य पुलिस की जांच पर भरोसा नहीं करेंगे और केंद्र सरकार सीबीआई की छवि का ख्याल नहीं रखेगी तो काम कैसे चलेगा और वह भी तब जब मीडिया ने खुलेआम पक्ष लेना शुरू कर दिया हो। इस संबंध में आज द प्रिंट में प्रकाशित भाषा की खबर खासतौर से उल्लेखनीय जिसमें विधायक खरीदने की कोशिश का जिक्र तो नहीं है लेकिन मुख्यमंत्री के पुराने बयानों के हवाले से खबर ऐसी बनाई गई है जैसे ये तो होना ही था और राज्य सरकार की मनमानी है जबकि मुझे लगता है कि मामला मजबूरी का ज्यादा है। अगर फैसला पुराना है तब भी। 

प्रिंट में यह खबर इस नोट के साथ है, ‘भाषान्यूज़ एजेंसी सेऑटोफीडद्वारा ली गई है। इसके कंटेंट के लिए दि प्रिंट जिम्मेदार नहीं है। इसलिए मैं मान कर चल रहा हूं कि इसमें से कुछ काटा नहीं गया होगा। मुझे लगता है कि इस खबर का संदर्भ विधायक खरीदने की कोशिश है और उसे जरूर बताया जाना चाहिए था लेकिन उसकी जानकारी उतनी ही है जितनी मजबूरी थी। इसमें बताया गया है 

  1. राज्य सरकार की ओर से 30 अगस्त को जारी एक आदेश के अनुसार, तेलंगाना में प्रत्येक मामले की जांच के लिए केंद्रीय जांच एजेंसी को प्रदेश की पूर्व अनुमति लेना आवश्यक कर दिया गया है।
  2. सरकारी आदेश दो महीने पहले जारी किया गया था, लेकिन यह शनिवार को तब सार्वजनिक हुआ जब अतिरिक्त महाधिवक्ता (एएजी) ने तेलंगाना उच्च न्यायालय को तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के विधायकों की खरीदफरोख्त मामले की सीबीआई जांच की मांग करने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह जानकारी दी। (इस तरह का फैसला गोपनीय नहीं हो सकता है पर भाषा को खबर नहीं मिली और उसका ठीकरा भी राज्य सरकार पर जैसे गोपीनय ढंग से घोषणा कर दी)
  3. हाल के दिनों में कई मुद्दों पर सत्तारूढ़ टीआरएस और भाजपा के बीच जुबानी जंग के कारण दोनों दलों के मध्य कटुता बढ़ी है तथा इसके बाद राज्य सरकार का यह फैसला सामने आया है।
  4. भाजपा ने दिल्ली के आबकारी नीति घोटाला मामले में मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की बेटी के. कविता का नाम भी घसीटा। इस मामले की जांच सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय कर रहे हैं। हालांकि, कविता ने आरोपों से इनकार किया है।
  5. मुख्मयंत्री ने 31 अगस्त को बिहार की राजधानी पटना में कहा था कि सभी राज्यों को सीबीआई को दी गयी आम सहमति वापस ले लेनी चाहिए।
  6. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ पटना में एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए, राव ने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए सभी केंद्रीय एजेंसियों का ‘‘दुरुपयोग’’ कर रही है।
  7. उन्होंने कहा था, ‘‘देश में भारतीय जनता पार्टी के रजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को निशाना बनाने के लिए सीबीआई समेत सभी केंद्रीय जांच एजेंसियों का केंद्र दुरुपयोग कर रहा है। इसे अब रोका जाना चाहिये और सभी सरकारों को सीबीआई को दी गयी आम सहमति वापस ले लेनी चाहिये। आखिर पुलिस राज्य का विषय है।’’

मुझे लगता है कि इन और खबर के अन्य ऐसे ही तथ्यों के मद्देनजर आज खबर यह होनी चाहिए थी कि विधायकों की खरीदफरोख्त का मामला जब राज्य में हुआ है और भाजपा पर आरोप है तो राज्य के भाजपा नेता क्यों चाहते हैं कि मामले की जांच सीबीआई करे और फिर सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति से लेकर आधीरात की कार्रवाई तक की याद दिलाई जानी चाहिए थी पर मामला जो है सो आपके सामने है। भाजपा नेताओं से यह सवाल भी किया जाना चाहिए था। 

आज यह खबर हिन्दुस्तान टाइम्स, टाइम्स ऑफ इंडिया और इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर है लेकिन खबर का जो हिस्सा यहां है उसमें विधायक खरीदने की कोशिशों की चर्चा यही बताने के लिए है कि मामला हाईकोर्ट में क्यों है। इसमें अकेले इंडियन एक्सप्रेस अपवाद है जिसने लिखा है कि टीआरएस विधायक की शिकायत पर पुलिस ने कैमरे और वॉयस रिकार्डर लगाए थे। ठीक है कि अदालत ने नहीं माना और जमानत दे दी लेकिन अखबारों का काम राय बनाना नहीं, खबर देना है और सबको चाहिए था कि वे पूरी खबर देते जबकि सब यह बता रहे हैं कि 30 अगस्त के फैसले की जानकारी उन्हें अब मिली। हालांकि यह शिकायत भी उन्हें राज्य सरकार से करनी चाहिए, पता नहीं की या नहीं।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।