“यह आठ शूरवीर हैं इन्हें पहचान लो। आंख बंद करके इनके पीछे चले जाना जब यह बुलाएं। जब यह मिलें इनके हाथों को चूम लेना, जब यह कुछ कहें तो मान लेना क्योंकि इन्होंने उनकी आवाज संसद में उठाई जिनसे यह देश हैं, जिनसे इस देश की पहचान है। एक ऐसे वक्त में जब सब भय से थर थर कांप रहे हों यह देश के किसानों के पक्ष में बोल रहे थे।8 सांसदों को आज राज्यसभा से एक सप्ताह के लिए निलंबित कर दिया गया है। हम इसके लिए लानत भेजते हैं। यह किसी भी विचारधारा, किसी भी पार्टी के हों। यह जिंदाबाद रहें, यह आठ आवारा संसद के होनहार सिपाही हैं।”
आक्रोश से भरी ये आवाज़ रायपुर के चर्चित युवा पत्रकार आवेश तिवारी की है। मानसून सत्र से निलंबित किये गये सभी सांसदों की तस्वीर समेत यह टिप्पणी उन्होंने अपनी फ़ेसबुक दीवार पर चस्पा की।
ये वो सांसद हैं जिन्होंने 20 सितम्बर को कृषि बिलों के विरोध में कथित तौर पर उत्पात मचाया। सरकारी मीडिया इसे उत्पात बता रहा है, जबकि कृषि बिलों का विरोध कर रहे किसान संगठनों और विपक्ष की नज़र में यह ज़रूरी था ताकि लोकतंत्र के अपहरण की इस खुली कोशिश के प्रति ज़ोरदार प्रतिवाद दर्ज किया जाये। सबसे ज़्यादा निशाने पर हैं पूर्व पत्रकार और मौजूदा उपसभापति हरिवंश जिन्होंने बिलों को पास कराते वक्त इस बात का ख़्याल ही नहीं रखा कि नियमानुसार एक भी सदस्य की माँग पर मतविभाजन होना चाहिए। उन्होंने हो-हल्ले के बीच ध्वनिमत से बिल पास होने की घोषणा कर दी।
बहरहाल, सरकार रौ में है। संसद से लेकर सड़क तक हो रहे प्रतिवाद को दरकिनार कर वह कृषि बिलों को भारतीय किसानों की आज़ादी का ऐलान बता रही है। 21 सितंबर को राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओ ब्रायन और डोला सेन सहित आम आदमी पार्टी के संजय सिंह, कांग्रेस के राजीव साटव, सैयद नासिर हुसैन, रिपुन बोरा और सीपीआई (एम) से केके रागेश और एल्मलारान करीम को मानसून सत्र भर के लिए निलंबित कर दिया। कहा गया कि 20 सितंबर को उपसभापति हरिवंश के सामने इन सांसदों के दुर्व्यव्हार के चलते उन पर ये कड़ी कार्रवाई की गई है।
विपक्ष ने राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव दिया था जिसे सभापति वैंकेया नायडू ने खारिज कर दिया है
लेकिन बहुमत के बल पर की गयी इन कार्रवाइयों का प्रतिफल सरकार को जब मिलेगा तब मिलेगा, लेकिन एक ज़माने में सिद्धांतवादी पत्रकार के रूप में अपनी छवि गढ़ने वाले हरिवंश की साख हमेशा के लिए बरबाद हो गयी। मीडिया विजिल की कल की ख़बर में हमने वह वीडियो लगाया था जिसमें स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने रूँधे गले के साथ उपसभापति हरिवंश से समाजवादी चिंतक किशन पटनायक की याद दिलाते हुए पश्चातापस्वरूप इस्तीफ़ा देने की माँग की थी।
लेकिन यह केवल योगेंद्र यादव ही नहीं हैं जो हरिवंश के व्यवहार से दुखी हुए। हरिवंश के साथ पत्रकारिता कर चुके और मशहूर पत्रकार वीरेंद्र सेंगर ने भी अपने मित्र पत्रकार घनश्याम दुबे की टिप्पणी का जवाब देते हुए फेसबुक पर ही जो लिखा है, वह सोचने को मजबूर करता है। सेंगर जी ने लिखा है-
“आप कहना क्या चाहते हैं दुबे जी? हरिवंश जी आपके करीबी मित्र रहे हैं। मैं भी उन्हें दशकों जानता हूं। कुछ समय दिल्ली से उनके अखबार के लिए काम भी किया है। दोस्ती बरकरार है। वे एक दौर में मेरे चहेते संपादक भी थे। लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रखर प्रवक्ता भी रहे हैं। सो उनकी एक अलग पहचान रही है। ऐसे में उनसे ज्यादा अपेक्षाएं भी हैं। लेकिन अब जो खास कुर्सी पर विराजमान हैं हरिवंश ,वे कोई और शख्स हैं। मैं तो यही मान रहा हूं।
क्या उनकी आलोचना इसलिए न की जाए क्योंकि वे हम जैसौं के सहज मित्र हैं या भूतकाल में बेहतरीन पत्रकार रहे हैं? बताइए! घनश्याम जी! क्या सरकार की कठपुतली बने अन्यायी हरिवंश जी की आरती उतारी जाए? विश्वास मानिए ! मेरे भोले भंडारी दुबे जी !अब नये हरिवंश जी कोई और हैं। जो कांग्रेसियों से भी गये बीते हैं।
पिछले दिनों इन्हीं महाशय ने कोयला खानों के निजीकरण के पक्ष में बड़ी बेशर्मी के कुतर्क भरे कई लेख मीडिया में लिखे थे। क्योंकि केंद्र इसकी तैयारी में है। ये श्रीमान झारखंड में ही दशकों रहे हैं। जानते हैं कि कोयला खदानों में काम करने लाखों मजदूरों के हालात कितने नारकीय थे? इंदिरा गांधी ने क्रांतिकारी कदम उठाकर राष्ट्रीयकरण किया था। सभी जानते हैं, काला सोना उगलने वाली खानों को फिर से चहेते पूंजीपतियों को सौंपने की तैयारी है।इसमें स्वनामधन्य आपके और हमारे मित्र भी बड़े मोहरे हैं। ये ज्ञानी हैं। सब जानते हैं । लेकिन सियासत की सत्ता कुर्सी ,किसी भले,ज्ञानी व लोकतंत्र के चौकीदार को कैसे कठपुतली बना देती है ? इसका बेहतर उदाहरण हरिवंश जी ही हो सकते हैं।
कल राज्यसभा में उन्होंने ठीक वही किया ,जो सुपारी लिए किलर करता है। ऐसे तो जबरन ध्वनि मत से हरिवंश बाबू एक दिन भारत के हिंदू राष्ट्र होने का बिल भी पास करवा देंगे। केवल मासूम चेहरे और शानदार आतीत से किसी कठपुतली पर रहम नहीं किया जा सकता? यह भी कि आलोचना किसी कंपार्टमेंट में नहीं होती। यह तो नहीं कह सकते कि हम 2017 के पहले वाले हरिवंश जी की आरती उतारते हैं। वे लोकतंत्र बचाने के जबरदस्त पत्रकार रहे हैं। अब वाले कुछ डंडीमार हो गये हैं। इसका कुछ रंज है। आप शायद, ऐसी ही मुलायम आलोचना की कल्पना करते हैं। दुबे जी! आप कवि हृदय हैं। असली जीवन में ऐसा होता नहीं है।
तो आइये! मिलकर शोक मनांए कि वोअच्छे वाले हरिवंश लापता हो गये। मैं फिर दोहराना चाहता हूं,मित्रवर हरिवंश जी आप तो ऐसे नहीं थे! बुरी संगत का इतना भयानक असर? राम जी !आपकी रक्षा करें!”
20 सितंबर को ये हुआ था–
कृषि बिल पास: सांसदों का वोटिंग हक़ छीना, RSTV म्यूट! हरिवंश झेलेंगे अविश्वास प्रस्ताव!