भारतीय लोकतंत्र में निरंतर चलने वाली सभा को राज्यसभा के नाम से जाना जाता है. जहां लोकसभा में सदस्य सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं तो वहीं दूसरी तरफ राज्यसभा के सदस्य हर राज्य में जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि यानि विधायकों द्वारा चुने जाने की प्रक्रिया से होकर गुजरती है. राज्यसभा में एक तिहाई सीट हर 2 वर्ष के अंतराल पर खाली होती रहती है. हर एक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है और हर 2 वर्ष पर एक तिहाई सीटें खाली होती हैं. जिससे राज्यसभा हमेशा अस्तित्व में रहती है.
ऐसी ही कुछ सीटें 2020 में भी खाली हो रही है. इनमें जिन सदस्यों का कार्यकाल पूरा हो चूका है या फिर वह जो किसी कारण रिक्त हैं. ऐसे में खाली सीटों पर तमाम राजनीतिक पार्टियां जिनके चुनाव चिन्ह पर चुनकर आये विधायक उन राज्यों में मौजूद हैं, जिन राज्यों की खाली हुई सीटों के लिए चुनाव होने हैं, उन्होंने राजनितिक समीकरण और जोड़तोड़ करना शुरू कर दिया है. ऐसा ही एक राज्य मध्य प्रदेश है जहां पर खाली होने वाली राज्यसभा की तीन सीटों के लिए राजनितिक सरगर्मी शुरू हो चुकी है.
राज्यसभा तो बहाना है,भाजपा को कमल खिलाना है
सियासी उठापटक का केंद्र बन चुके मध्य प्रदेश में राज्यसभा के लिए खाली होने वाली 3 सीटों के लिए चुनाव होने हैं, लेकिन दोनों सियासी पार्टियां इस चुनाव की आड़ लेकर राज्य में सरकार बनाने/बचाने की भी क़वायद में जुटी हुई हैं.
मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार कुछ निर्दलीय और सपा विधायको के भरोसे चल रही थी. राज्यसभा चुनाव की रस्साकसी देखते हुए मध्य प्रदेश की राजनीति में ख़ास पकड़ रखने वाले कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राज्यसभा सीट की दावेदारी को भंवर में पड़ता देख हाल ही में अपनी पार्टी से रिश्ता तोड़कर भाजपा के पाले में जाने का फैसला कर लिया ,इतना ही नहीं बल्कि वे अपने साथ कुछ विधायकों को भी तोड़कर ले गये जिनकी संख्या लगभग 22 के करीब बतायी जा रही है. सिंधिया और उनके कुछ करीबी विधायको का कांग्रेस से दूर जाना मध्य प्रदेश की राजनीति में आसान बने समीकरण को बहुत ही जटिल बना दिया है.
जब यह कयास लगाये जा रहे थे कि राज्यसभा की खाली होने वाली 3 सीटों में कांग्रेस के 2 सदस्य और भाजपा का एक ही सदस्य पहुंच पाएगा ठीक उस वक्त सिंधिया और कुछ विधायको के कांग्रेस छोड़ते ही समीकरण उल्टा पड़ने के साथ-साथ राज्य की चलती सरकार पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं. राजनीतिक विश्लेषक तो इसे राज्य में भाजपा के मिशन कमल से जोड़कर देखने लगे हैं, जिनमे कांग्रेस सरकार को अस्थिर करके राज्य में कमल खिलाना है.
राज्यसभा सीट और उम्मीदवार
राज्य में खाली होने वाली तीन सीटों पर होने वाले चुनाव के लिए दोनों पार्टियों ने तीन-तीन उम्मीदवारों के नामांकन दाख़िल किये हैं. जहां एक ओर भाजपा की तरफ से उनक पुराने दुश्मन और नए नवेले दोस्त ज्योतिरादित्य सिंधिया को एक सुरक्षित सीट दी गयी है वहीं बाकी बची दो सीटों पर क्रमशः सुमेर सिंह सोलंकी और रंजना बघेल का नामांकन करवाया है.
अंदरखाने में खबर चल रही है कि पहले सुमेर सिंह सोलंकी का नाम आलाकमान ने फाइनल किया था लेकिन राज्य के अंदरूनी सलाह पर सोलंकी को नामांकन वापस लेने को कहा गया और उनकी जगह श्रीमती रंजना बघेल को नामांकन करने को कहा गया. वहीं दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी ने भी चौंकाते हुए तीनों सीट पर अपने तीन प्रत्याशी उतार दिए हैं जिनमें वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह पहले नम्बर पर और फूल सिंह बरैया दूसरे तथा तीसरे नम्बर पर रामदास को नामांकन करवाया है.
फूल सिंह बरैया चंबल क्षेत्र में काफी पकड़ रखते हैं और सिंधिया के जाने के बाद की भरपाई के लिए कांग्रेस ने उनका नाम फाइनल किया है. वहीं तीसरे प्रत्याशी के बारे में कयास लगाया जा रहा है कि राजनीतिक समीकरण कब बन बिगड़ जाए इसका कोई भरोसा नहीं. इसलिए नामांकन करवा कर राम भरोसे छोड़ दिया गया है और मौका लपकने की उम्मीद में लोग बैठे हैं.
विधानसभा में दलीय स्थिति और अनुमानित समीकरण
मध्य प्रदेश विधानसभा में कुल 230 सीटें है जिनमें वर्तमान समय में कांग्रेस के 108 विधायक हैं. कांग्रेस के कुल 114 विधायक थे, जिनमें से हाल ही में 6 विधायकों के इस्तीफ़े स्पीकर ने स्वीकार कर लिए हैं. जिससे इस समय कांग्रेस के विधायकों की कुल संख्या 108 बची हुई है. हालांकि अभी लगभग 13 और कांग्रेसी विधायकों के इस्तीफों को स्वीकार नहीं किया गया है जो इस वक्त बैंगलोर के एक होटल में आराम फरमा रहे हैं. भाजपा अपने 107 विधायको के साथ नम्बर 2 पर मौजूद है. हालांकि भाजपा के भी कुछ विधायको के पाला बदलने की खबरें बीच बीच में उठती रहती है. बाकी बची हुई 15 सीटों पर 2 सीटें सपा के कब्जे में,1 सीट बसपा के कब्जे में, 4 सीटें निर्दिलीय विधायको के पास और बाकी की 8 सीटें रिक्त हैं.
इस सियासी उठापठक के दौर को देखते हुए कुछ भी अनुमान लगाया जाना मुश्किल है. लेकिन अगर इन्हीं संख्याबल पर दोनों पार्टियां राज्यसभा चुनाव में उतरती हैं, तो एक-एक सीट दोनों पार्टियों के लिये सुरक्षित है. लेकिन तीसरी सीट जिस पर सबसे अधिक जटिलता है उसे हासिल करने के लिए दोनों पार्टियों को जीतोड़ मेहनत करने की ज़रूरत पड़ सकती है. फिलहाल एक राज्यसभा सीट जीतने के लिए 58 वोट (विधायको)की ज़रूरत पड़ने वाली है.
इस हिसाब से एक एक सीट निकल जाने के बाद भाजपा के पास 49 वोट और वही कांग्रेस के पास 50 वोट बचे रहेंगे इस स्थिति में निर्दलीय विधायक और अन्य छोटे दलो की स्थिति बहुत ही निर्णायक होने वाली है.वहीं दोनों तरफ से क्रॉस वोटिंग होने की भी पूरी संभावना है. सबकी निगाहें उन बागी विधायकों पर भी हैं जो कमलनाथ सरकार का साथ छोड़ने का एलान कर चुके हैं.
आगामी 26 मार्च को इन सीटों पर चुनाव होने हैं जहां विधायक अपने मत का प्रयोग करके राज्यसभा में अपनी पार्टी का प्रतिनधित्व सुनिश्चित करेंगे. मौजूद माहौल ने मध्य प्रदेश के राजनीतिक तापमान को काफी हद तक बढ़ा दिया है.