अस्सी का सांस्कृतिक असर शहर के जीवन में नगण्य था, जबकि दी रेस्त्रां के अड्डे दशकों तक शहर के राजनीतिक व सांस्कृतिक जीवन पर असर डालते रहे
उनकी लिखी एकमात्र किताब ‘यादों की रोशनी में’ पेरिन के अपने जज्बे, अपनी जीजीविषा की भी कहानी है
उन्होंने दशकों पहले बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की थी और उसके बाद उन्होंने अनेक पुस्तकों और लेखों का हिंदी अनुवाद किया जिसका प्रकाशन साहित्य अकादमी ने किया
कयास हैं कि राहुल गांधी अमेठी से पलायन तो नहीं करेंगे लेकिन वह महाराष्ट्र के नांदेड़ अथवा मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा से भी लोक सभा चुनाव लड़ सकते हैं
वह आज़ादी के आंदोलन से उभरे विरल प्रजाति के एक प्रतिनिधि थे, जो अब राजनीतिक जीवन में नहीं दिखते हैं
जिस हिंदू महासभा की नेता ने कल गांधी के पुतले को गोली मारी, उसी के नेता गोडसे ने बापू को गोली मारी थी
पूर्वोत्तर भारत में भाजपा के चुनावी मंसूबों में नागरिकता विधेयक अड़चन डाल सकता है
अगर खोने का डर न हो तो ऐसे दोस्त ही ज़िंदगी को जीने लायक बनाते हैं. बनाते हैं, फिर खो जाते हैं
संविधािन में अंतरिम बजट जैसी कोई व्यवस्था नहीं है। बस वोट ऑन अकाउंट होता है।
जागरण की सूत्रों वाली पत्रकारिता के कारण भ्रम है और मजेदार यह है कि ‘सूत्र’ जागरण का होता तो मैं भी उसके सूत्रों की खबरों के आधार पर अटकल लगाता। लेकिन इस बार…
सिर्फ प्रचार पर ही ख़त्म कर दिया गया ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का 56 फीसदी बजट
आज नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की जयंती पर भी गाँधीजी के साथ उनके आपसी संबंधों पर चर्चा करना इसीलिए जरूरी है कि जब तक लोगों के दिमाग में भर दिया गया कचरा निकाला नहीं…
देश के भीतर का सिस्टम या तो पूंजी पर जा टिका है या पूंजीपतियो पर, जो सत्ता को भी गढ़ते हैं और सत्ता के जरिये खुद को भी। फिर सियासत डगमगाने लगे तो…
'वोटर और रिजल्ट के बीच टेक्नोलॉजी पर निर्भर करना असंवैधानिक है'- यह सिध्दांत जर्मनी की कोर्ट ने ईवीएम के इस्तेमाल के सुनवाई करते समय निर्धारित किया था
वामपंथी दलों का कहना है कि राज्य में साम्प्रदायिक सौहार्द में बिगाड़ और भाजपा के उभार के लिए टीएमसी जिम्मेवार है।
जागरण की खबर में कुछ तथ्यात्मक गलतियां हैं। जैसे हैकर ने श्रेय नहीं लिया, उसने बताया कि चुनाव कब हैक किए गए थे और कब नहीं। संभवतः वह भी पूछने पर।
महत्ता तभी होगी जब आप सत्ता केन्द्रित सियासत के साझीदार बन जायें। वरना आप हो कर भी कही नहीं हैं।
नवोदय टाइम्स का शीर्षक, "भारत अब कमजोर देश नहीं" किसी विदेशी अखबार का लगता है।
राहुल गांधी के खिलाफ सोशल मीडिया पर जिस तरह फर्जी अभियान चलता है (हाल में दुबई के आयोजन को लेकर भी चला) उससे लगता है कि नाम जानने का जोर ऐसे ही अभियान…
रफाल पर नई जानकारी गोल, हिन्दी में पहले पन्ने लायक तो नहीं !!
ऐसा लगता है कि बीजेपी की सरकार रहते कुंभ में पत्रकारों का पिटना कोई रस्म बन गई है।
अजीत डोभाल और उनके बेटों की ‘डी कंपनी’ का करनामा किसी अखबार में दिखा?
अमित शाह का एक मामले में बरी होना संदेह से परे नहीं है लेकिन उसपर नेता बयान नहीं देता तो वह खबर नहीं बनती है
रोजा लक्जमबर्ग की आज से कोई 100 साल पहले 15 जनवरी 1919 को हत्या कर दी गई थी
रथयात्रा की अनुमति नहीं मिली तो जागरण ने छापा, “भाजपा को बंगाल में रैलियों की मंजूरी, रथयात्रा में पेंच”