चुनाव चर्चा: पूर्वोत्तर भारत में भाजपा की उम्मीद और नागरिकता विधान का वबाल


पूर्वोत्तर भारत में भाजपा के चुनावी मंसूबों में नागरिकता विधेयक अड़चन डाल सकता है




चंद्र प्रकाश झा 

भारतीय जनता पार्टी ने 17 वीं लोक सभा चुनाव में पूर्वोत्तर भारत में अधिकतम सीटों पर जीतने का मंसूबा बाँध रखा है। लेकिन इस क्षेत्र के सभी आठ राज्यों – असम, मेघालय , नगालैंड , त्रिपुरा , अरुणांचल प्रदेश ,मणिपुर , मिजोरम और सिक्किम में कुल मिलाकर 25 लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र ही हैं। इनमें सर्वाधिक 14 सीटें असम की हैं। त्रिपुरा , मणिपुर , अरुणाचल प्रदेश और मेघालय में दो -दो तथा सिक्किम , नगालैंड और मिजोरम में एक -एक सीट ही है। इसकी पूरी संभावना है कि लोक सभा चुनाव के साथ सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश विधान सभा के भी नए चुनाव कराये जाएँ। मौजूदा विधान सभा का कार्यकाल सिक्किम में 27 मई और अरुणाचल प्रदेश में एक जून को समाप्त होगा। सिक्किम में सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट ( एसडीएफ) की सरकार है। अरुणाचल प्रदेश में भाजपा की सरकार है।

भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने पूर्वोत्तर की 25 में से 21 जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है। असम के उत्साहित मुख्यमंत्री सर्बानंदा सोनोवाल को लगता है कि भाजपा सभी 25 सीटों पर जीतेगी। भाजपा अभी असम , अरुणांचल प्रदेश , मणिपुर और त्रिपुरा में सरकार का नेतृत्व कर रही है। वह नागालैंड और मेघालय की गठबंधन सरकार में शामिल है। भाजपा ने 2014 के पिछले लोकसभा चुनाव में पूर्वोत्तर भारत में आठ सीटें जीती थीं जिनमें से सात असम की और एक अरुणाचल प्रदेश की है।

कुछ राजनीतिक टीकाकारों के अनुसार पूर्वोत्तर भारत में भाजपा के चुनावी मंसूबों में नागरिकता विधेयक अड़चन डाल सकता है। लोकसभा ने शीतकालीन सत्र में इस विधेयक को पारित कर दिया। लेकिन उसे राज्यसभा में पेश नहीं किया जा सका जहां भाजपा का जोर नहीं है और बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार के जनता दल यूनाइटेड जैसे सहयोगी दल भी इसके विरोध में उठ खड़े हुए हैं। अब इसे संसद के बजट सत्र में राज्यसभा में पेश करने की संभावना है। इसके तहत बांग्लादेश , पाकिस्तान , अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी देशों से भारत आये मुस्लिमों को छोड़ सभी हिन्दुओं, सिख, जै , बौद्ध और ईसाईयों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है।क्षेत्र के मूल निवासियों को आशंका है कि इस कानून के कारण बांग्लादेश से पूर्वोत्तर के राज्यों में अचानक हिन्दुओं की बाढ़ आ जाएगी जहां अवैध रूप से रह रहे ‘बाहरी’ लोगों के खिलाफ लम्बे अर्से से आंदोलन होते रहे हैं। ऐसे में मूल निवासियों को अपनी संस्कृति के वर्चस्व की समाप्ति का ख़तरा नज़र आता है।

इस विधेयक के लोक सभा में पारित होने के बाद पर पूरे क्षेत्र में विरोध प्रदर्शन का सिलसिला जारी है। लेकिन भाजपा को लगता है कि वह इस विधेयक की बदौलत पूर्वोत्तर भारत में और ख़ास कर पश्चिम बंगाल, असम और त्रिपुरा के कुल मिलाकर 58 लोक सभा निर्वाचन क्षेत्रों के हिन्दुओं के वोट रिझा सकती है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने हाल में पश्चिम बंगाल में एक रैली में खुल कर कहा कि हिन्दुओं को इस विधेयक से डरने की कोई जरुरत नहीं है। कांग्रेस ने इस विधेयक का विरोध करते हुए कहा है कि यह धार्मिक आधार पर है जो संविधान के खिलाफ है।

असम के पूर्व मुख्यमंत्री एवं एजीपी नेता प्रफुल कुमार मोहन्ता ने कहा कि उनकी पार्टी के साथ चुनाव -पूर्व गठबंधन कीं बदौलत ही भाजपा राज्य की सत्ता में आयी। एजीपी के समर्थन वापसी के बाद राज्य में भाजपा की गठबंधन सरकार को नया जनादेश लेना चाहिए। मेघालय के मुख्यमंत्री एवं नेशनल पीपुल्स पार्टी के अध्यक्ष कोनार्ड संगमा ने इस विधेयक को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताते हुए संकेत दिए हैं कि इस मुद्दे को लेकर उनकी पार्टी भी भाजपा से अपना सम्बन्ध तोड़ सकती है। मेघालय सरकार के मंत्रिमंडल की बैठक में विधेयक के खिलाफ बाकायदा एक प्रस्ताव भी पारित किया गया। मणिपुर में एनपीपी के चार विधायक है और यह पार्टी वहाँ भाजपा के एन बीरेन सिंह की सरकार में शामिल है। त्रिपुरा में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ़ त्रिपुरा ने भी विधेयक का जोरदार विरोध किया है। मिजोरम के हालिया चुनाव के बाद नई सरकार बनाने वाली मिजोरम पीपुल्स फ्रंट ने भी विधेयक का विरोध किया है। नागालैंड की गठबंधन सरकार के मंत्रिमंडल ने एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार से इस विधेयक पर पुनर्विचार करने कहा है। नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के नेतृत्व वाली इस गठबंधन सरकार में भाजपा भी शामिल है.

असम

पूर्वोत्तर के राज्यों में सर्वाधिक 14 लोकसभा सीटें असम में है , जहां भाजपा की गठबंधन सरकार है। 2014 के पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सात, ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट और कांग्रेस ने तीन -तीन सीटें जीती थीं। एक सीट निर्दलीय ने जीती थी। भाजपा के गठबंधन से असम गण परिषद (एजीपी ) मोदी सरकार द्वारा नागरिकता विधेयक को संसद में पारित करने के विरोध में अपना समर्थन वापस ले चुकी है। असम की 126 -सदस्यीय विधान सभा में अभी भाजपा के 61 और एजीपी की 14 सीटें हैं। भाजपा के गठबंधन में बोडो पीपुल्स फ्रंट शामिल है और उसकी सरकार को तत्काल कोई ख़तरा नहीं माना जाता है। एजीपी के अब कांग्रेस से गठबंधन करने की संभावना है। ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट ने भी कांग्रेस से गठबंधन करने के संकेत दिए हैं। एजीपी अध्यक्ष अतुल बोरा के अनुसार असम समझौता और अन्य मुद्दों पर स्पष्ट समझ के आधार पर ही उनकी पार्टी ने भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल होने का निर्णय किया था। लेकिन भाजपा के इरादे असम समझौता को निरर्थक करने का लगता है। एजीपी के पास भाजपा से अपना गठबंधन तोड़ने के सिवा और कोई विकल्प नहीं बचा था। एजीपी इस विधेयक को ‘असंवैधानिक’ कहती है , जिसके तहत 31 दिसंबर 2014 से पहले पड़ोसी देशों से भारत आने वाले गैर -मुस्लिमों को ही नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है। जबकि असम समझौता में कहा गया है कि 25 मार्च 1971 के बाद भारत आने वाले सभी लोग, चाहे वे किसी भी धर्म , जाति आदि के हों अवैध विदेशी हैं। यह समझौता असम में ‘अवैध वि’देशियों’ के खिलाफ छह बरस के आंदोलन के बाद 1985 में केंद्र में कांग्रेस शासन काल में किया गया था, जब दिवंगत राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। एजीपी के संस्थापक अध्यक्ष प्रफुल्ल कुमार महन्ता इसी समझौता के बाद असम के मुख्यमंत्री बने थे।

गौरतलब है कि 2016 के इस नागरिकता विधेयक के प्रति चौतरफा विरोध के बाद उसे समीक्षा के लिए संसद की संयुक्त प्रवर समिति को भेज दिया गया था। संयुक्त प्रवर समिति ने उसे संसद को पारित करने भेज दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी असम में प्रचार अभियान की शुरुआत सिलचर में 4 जनवरी को कर चुके हैं। नई दिल्ली में भाजपा की हालिया बैठक में मोदी जी , पार्टी अध्यक्ष अमित शाह , असम के मुख्यमंत्री सर्बानंदा सोनोवाल और वित्त एवं स्वास्थ्य मंत्री हिमंत बिश्व सरमा ने राज्य में चुनावी रणनीति तय की गई। बैठक में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार में मंत्री महेंद्र सिंह को इस राज्य के लिए भाजपा का चुनाव प्रभारी नियुक्त करने का निर्णय किया गया। वह 2016 के राज्य विधान सभा चुनाव में पार्टी के राज्य प्रभारी थे।

अरुणाचल प्रदेश

इस राज्य के दक्षिण में भारत के असम और नगालैंड राज्य हैं। पश्चिम में भूटान है और पूर्व में म्यांमार। इसकी उत्तर की ‘मैकमोहन लाइन’ कही जानी वाली अंतरराष्ट्रीय सीमा चीन से लगती है जिसने 1962 के युद्ध के समय से इस राज्य के अधिकतर भाग को ‘दक्षिण तिब्बत’ कह उस पर अपना दावा कर रखा है। 890 किलोमीटर की यह लाइन 1913–1914 में चीन, तिब्बत और भूटान के प्रतिनिधियों के शिमला समझौता के बाद तत्कालीन ब्रिटिश प्रशासक सर हेनरी मैकमोहन के नाम पर है , जिसे चीन ने स्वीकार नहीं किया। अरुणाचल प्रदेश में अभी मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री दोर्जी खांडू के पुत्र ,पेमा खांडू हैं जो पिछले विधानसभा में कांग्रेस की टिकट पर जीते थे। 2016 में राष्ट्रपति शासन, विधान सभा की सदस्यता से 14 विधायकों के अयोग्य ठहराए गए आदेश , उस आदेश को निरस्त करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद कलिखो पुल के मुख्यमंत्री बनने और फिर कांग्रेस के नबाम तुकी के मुख्यमंत्री के रूप में विधान सभा में विश्वास मत हासिल करने के ऐन पहले एक जटिल राजनीतिक घटनाक्रम के बाद कांग्रेस खेमे से मुख्य मंत्री बने थे। बाद में पेमा खांडू बहुमत विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ पीपीए में और फिर भाजपा में शामिल हो गए। मौजूदा केंद्रीय गृह राज्य मंत्री, किरेन रिज्जू अरुणाचल प्रदेश से ही लोक सभा सदस्य है। वहाँ 2014 के चुनाव में दूसरी लोकसभा सीट कांग्रेस ने जीती थी।

सिक्किम

सिक्किम में राजतन्त्र की समाप्ति के बाद वह पहले भारत का अधिराज्य बना। और फिर वह 1975 में भारत गणराज्य का नया राज्य बन गया। वहाँ अभी सत्तारूढ़ सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एसडीएफ ) के मुख्यमंत्री पवन कुमार चामलिंग 1994 से इस पद पर बरकरार हैं। एसडीएफ ने एकमात्र लोक सभा सीट पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है जो भाजपा का सहयोगी दल है। पिछली बार यह सीट एसडीएफ ने ही जीती थी। सिक्किम की 32 सदस्यों की 7 वीं विधान सभा के चुनाव 2014 में हुए थे।

अन्य राज्य

मिजोरम की एकमात्र लोक सभा सीट कांग्रेस ने जीती थी। एनपीपी ने मिजोरम के हालिया विधान सभा चुनाव में भाजपा से गठबंधन करने के बजाय अपने दम पर प्रत्याशी खड़े किये थे। नागालैंड में एकमात्र लोकसभा सीट भाजपा के सहयोगी एनपीएफ ने जीती थी। एनपीपी मणिपुर में भी गठबंधन सरकार में भाजपा के साथ शामिल है। मणिपुर की दोनों लोकसभा सीट पिछली बार कांग्रेस ने जीती थी। मेघालय में मुख्यमंत्री कोनार्ड संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी ने राज्य की दोनों लोकसभा सीट पर खुद चुनाव लड़ने की घोषणा की है।

मेघालय में पिछली बार के लोक सभा चुनाव में एक सीट कांग्रेस ने और दूसरी एनपीपी ने जीती थी। एनपीपी की गठबंधन सरकार में भाजपा भी शामिल है। त्रिपुरा की दोनों लोकसभा सीट पिछली बार मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने जीती थी। अब वहाँ भाजपा के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार है जो राज्य में धार्मिक ध्रुवीकरण के जोर पर विधान सभा में अपनी जीत को लोकसभा चुनाव में दोहराने के लिए प्रयासरत है।

(मीडिया विजिल के लिए यह विशेष श्रृंखला वरिष्ठ पत्रकार चंद्र प्रकाश झा लिख रहे हैं, जिन्हें मीडिया हल्कों में सिर्फ ‘सी.पी’ कहते हैं। सीपी को 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण, फोटो आदि देने का 40 बरस का लम्बा अनुभव है।)