चुनाव चर्चा: मोदी के मास्क हैं नीतीश कुमार!

चन्‍द्रप्रकाश झा चन्‍द्रप्रकाश झा
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन,  नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (एनडीए) संसद के बाहर सिर्फ बिहार में है. हम चुनाव चर्चा के इस अंक में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जनता दल (यूनाइटेड) पर ध्यान केंद्रित करेंगे।  उन्हें  मोदी जी की पार्टी ने 2018 में ही बिहार में एनडीए का चेहरा घोषित कर आगामी विधानसभा चुनाव के लिये मुख्यमंत्री पद के लिये दावेदार के रूप में पेश कर दिया था. कहते हैं कि चुनावी राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता. मोदी जी के साथ नीतीश कुमार के सम्बंध भी स्थायी नहीं हैं. लेकिन फिलहाल नीतीश कुमार को बिहार के चुनाव में मोदी जी का मास्क कहा जा सकता है.

मोदी जी लोकसभा के 2014 के जिस चुनाव के बाद प्रधानमंत्री बने उसमें नीतीश कुमार का जनता दल-यूनाइटेड, एनडीए में शामिल ही नहीं था. तब उसने प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी जी को एनडीए का दावेदार घोषित करने के विरोध में इस गठबंधन को छोड दिया था. उसने वह चुनाव अपने बूते लडा था. पर वह दो ही सीटें जीत सकी थी. अलबत्ता 2019 के लोक सभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी फिर एनडीए में लौट आई. उनका दल मोदी सरकार में अभी तक शामिल नहीं है. ये दीगर बात है कि उनके दल के प्रतिनिधि के रूप में पूर्व पत्रकार हरिवंश राज्यसभा के उपसभापति बन चुके हैं.

2015 का चुनाव

जनता दल-यूनाइटेड ने राज्य विधानसभा का 2015 का चुनाव राष्ट्रीय जनता दल ( आरजेडी ) और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बना कर भाजपा के खिलाफ लड़ा था. चुनाव बाद नीतिश कुमार ही मुख्यमंत्री बने हालांकि सब से ज्यादा सीट आरजेडी ने जीती थी. आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के सबसे छोटे पुत्र तेजस्वी यादव को उप मुख्यमंत्री बनाया गया और एक अन्य पुत्र को मंत्री पद दे दिया गया. लेकिन साल भर गुजरते ही  नीतिश कुमार ने भाजपा के सियासी दांवपेंच और लालू प्रसाद यादव के परिजनों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप की केंद्रीय जांच ब्यूरो की छानबीन के राजनीतिक फायदा उठाने की जुगत के फलस्वरूप जुलाई 2017 में राजद और कांग्रेस का संग छोड़ अपनी सरकार का इस्तीफ़ा दे दिया. फिर उन्होने भाजपा के साथ खुल्लम-खुल्ला मिल कर अपने ही मुख्यमंत्रित्व में नई साझा सरकार बना ली.

2014 के लोकसभा चुनाव में जेडीयू ने बिहार की कुल 40 सीटों में से दो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के लिए छोड़ कर 38 सीट पर अपने उम्मीदवार खड़े किये थे. पर वह सिर्फ दो जीत सकी थी. चुनावी हार के बावजूद नीतीश कुमार सत्ता से बहुत दूर नहीं रहते. ये उनकी बडी ख़ासियत है. हम इस स्तम्भ के आगे के अंकों में उनकी भी चर्चा करेंगे. लेकिन उसके पहले बिहार में एनडीए के इतिहास पर एक नज़र डाल ले तो बेहतर रहेगा.

बिहार में एनडीए

एनडीए का इतिहास टेढा है. बिहार के मुजफ्फरपुर से सांसद रहे दिवंगत पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस 1996 के लोकसभा चुनाव के बाद गठित एनडीए के पहले कन्विनर (संयोजक) थे. गठबंधन की राजनीति में कन्विनर का एक काम उसके अध्यक्ष के निर्देश पर घटक दलों के बीच सीधा सम्पर्क रखना और उनकी औपचारिक बैठक बुलाना है. बिहार से ही चुनाव लड़ते, जीतते और हारते रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद यादव भी एनडीए के कन्विनर रहे हैं. वह दुनिया के एकलौते ऐसे नेता हैं जो चुनावी धांधली के अपने आरोप को लेकर मत गणना से पहले ‘आमरण अनशन’ पर बैठ गये थे. मतगणना हुई तो वे जीत गये. ये ‘चमत्कार’ अन्य पिछड़ा वर्ग बहुल मधेपुरा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में हुआ जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव अप्रत्याशित रूप से हार गये थे. तब शरद यादव एनडीए में शामिल दल के प्रत्याशी थे. शरद यादव 2019 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के साथ थे. उन्होने खुद हार जाने के बाद अपना अलग ‘राष्ट्रीय लोकतांत्रिक जनता दल’ बनाया. उन्हे मधेपुरा सीट पर जेडीयू नेता दिनेश चन्द्र यादव ने भारी मतो के अंतर से हराया था. तुर्रा ये कि तब शरद यादव राजद के नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन समर्थित प्रत्याशी थे. अभी वह लालू प्रसाद यादव और बिहार के मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जैसे अपने लगभग समकालीन सियासी नेताओं से पीछे रह गये हैं. बहुतों को पता ही नहीं है कि वह किस पार्टी में हैं.

लोकसभा चुनाव 2019

पिछले लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में एनडीए का प्रबंधन चुस्त करने के लिये तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह पटना गए थे. भाजपा अध्यक्ष ने 11 जुलाई 2018 को नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री आवास पर रात्रि भोज के बाद सार्वजनिक घोषणा की थी कि दोनों दल आगे के चुनाव साथ लड़ेंगे और नीतीश कुमार ही बिहार में एनडीए का ‘चेहरा’ हैं. वह जुलाई 2017 में नीतीश कुमार के मुख्यमंतृत्व में जनता दल-यूनाइटेड और भाजपा की गठबंधन सरकार बनने के बाद पहली बार बिहार गए थे।

भाजपा की अंदरूनी रणनीति

फिलहाल, एनडीए विधानसभा चुनाव तैयारी में विपक्षी दलों से ज्यादा तेज नजर आती है. कहते हैं कि भाजपा की अंदरूनी रणनीति है कि वह बिहार की सबसे बडी पार्टी बन जाये. वह सीटों के बँटवारे में ज्यादा से ज्यादा जिताऊ सीट लेने की फिराक में है. वह राज्य में सत्ता से फिर बाहर नहीं जाना चाहती है. वह किसी भी हाल में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को विपक्षी महागठबंधन की तरफ नहीं छिटकने देना चाहती है, जिसके कयास लगते रहते हैं.



 

वरिष्ठ पत्रकार चंद्र प्रकाश झा का मंगलवारी साप्ताहिक स्तम्भ ‘चुनाव चर्चा’ लगभग साल भर पहले, लोकसभा चुनाव के बाद स्थगित हो गया था। कुछ हफ़्ते पहले यह फिर शुरू हो गया। मीडिया हल्कों में सी.पी. के नाम से मशहूर चंद्र प्रकाश झा 40 बरस से पत्रकारिता में हैं और 12 राज्यों से चुनावी खबरें, रिपोर्ट, विश्लेषण के साथ-साथ महत्वपूर्ण तस्वीरें भी जनता के सामने लाने का अनुभव रखते हैं। सी.पी. आजकल बिहार में अपने गांव में हैं और बिहार में बढ़ती चुनावी आहट और राजनीतिक सरगर्मियों को हम तक पहुँचाने के लिए उनसे बेहतर कौन हो सकता था।