राहुल गाँधी की सज़ा को लेकर डर और झूठ फैलाता मीडिया!

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
ओप-एड Published On :


 

राजकमल झा के व्यंग पर सूजे चेहरे क्या कहते हैं? 

यह देशद्रोहियों-संविधान विरोधियों की पहचान करने का समय नहीं है?

आज मेरे पांचों अखबारों में राहुल गांधी को सजा होने की खबर लीड है। सबका अंदाज अलग है। टाइम्स ऑफ इंडिया का अंदाज लोगों को डराने वाला है जबकि द टेलीग्राफ ने इस खबर के साथ की राजनीति और इस तरह टाइम्स ऑफ इंडिया की प्रस्तुति के संभावित कारण भी बता दिए हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इस खबर को पांच कॉलम में दो लाइन के शीर्षक से लीड बनाया है। शीर्षक का हिन्दी अनुवाद कुछ इस तरह होगा, 2019 की मोदी टिप्पणी के लिए राहुल को दो साल जेल हुई; सांसद के रूप में उनका भविष्य दांव पर। इस खबर का इंट्रो है, अदालत ने सजा को 30 दिन के लिए मुल्तवी की ताकि अपील की जा सके। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसके साथ यह भी बताया है कि एक अध्यादेश जो उन्हें राहत दिलाता उसे उन्होंने ही खारिज कर दिया था। 

अखबार ने बताया है और आपको याद होगा, चारा घोटाले में लालू यादव के खिलाफ फैसला आने से कुछ पहले (24 सितंबर 2013) को यूपीए की तब की सरकार ने एक अध्यादेश का  प्रस्ताव किया था ताकि सजायाफ्ता सांसदों और विधायकों की तत्काल गिरफ्तारी रोकी जा सके। इसके बाद यह अध्यादेश पास नहीं हुआ। भाजपा ने इसपर पूरी राजनीति की लेकिन लालू यादव राहुल गांधी के समर्थक है और आज मीडिया को यह बात याद नहीं है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपनी मूल खबर के साथ, कांग्रेस का बयान भी छापा है जिसमें कहा गया है कि सजा कानून के अनुसार गलत या खराब है। आम आदमी पार्टी ने कहा है कि यह विपक्ष को खत्म करने की साजिश है। फिर भी अखबार ने कुछ कानून विशेषज्ञों का राय छापी है। इसका शीर्षक है, जमानत के बावजूद राहुल की अयोग्यता तत्काल और ऑटोमेटिक। इसके साथ एक खबर का शीर्षक है, राहत के लिए मुश्किल कानूनी लड़ाई लड़नी होगी। 

मेरा मानना है कि इस समय जब साफ दिख रहा है कि सरकार के समर्थकों के लिए कानून और नियमों की व्याख्या एक है और सरकार विरोधियों के लिए अलग तथा कांग्रेस ने कहा है और लोग समझ भी रहे हैं कि यह फैसला कानून के हिसाब से खराब है। इसे चुनौती दी जा सकती है तो इसे लागू करने का कोई मतलब नहीं है। संभव है राहुल गांधी के खिलाफ है तो लागू हो जाए या कर दिया जाए लेकिन उसे चुनौती दी जा सकेगी कि नहीं खबर तो यह होनी थी। पर जो खबर है उससे पाठक कोई राय नहीं बना सकता है और आम आदमी में डर तो हो ही जाएगा। सरकार अगर कुछ गलत (या सही भी) कर रही है तो मीडिया का काम है कि लोगों को सच बताएं, पूरी बात बताएं, तमाम संभावनाएं बतायें। 

स्थिति यह है कि मीडिया तो सारी खबरें नहीं दे रहा है सारी संभावनाएं कैसे बताएगा। यहां यह दिलचस्प है कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सीबीआई प्रमुख को पत्र लिखकर कहा है कि, मैं राष्ट्रहित में आपसे आग्रह करता हूं कि अमित शाह को तलब किया जाए और उनसे वह सभी सूचना और तथ्य देने के लिए कहा जाए, जिनके आधार पर उन्होंने मेघालय की पूर्ववर्ती कोनराड संगमा सरकार को ‘भ्रष्ट’ कहा था। जाहिर है यह खबर पिछले दिनों राहुल गांधी से विवरण लेने पहुंची दिल्ली पुलिस की कार्रवाई के जवाब में है और खबर के लिहाज से इसका महत्व कम नहीं है। लेकिन आज इस खबर को अखबारों में वह महत्व नहीं मिला है जो राहुल के खिलाफ कथित पुलिस कार्रवाई को मिला था।    

कहने की जरूरत नहीं है कि मीडिया ने आज भी अपने आम रुख के अनुकूल राहुल गांधी के खिलाफ खबर को प्रमुखता दी है और कांग्रेस का पक्ष या उसके आरोप दब गए हैं या दबा दिए गए हैं। राहुल गांधी को जब अपील के लिए एक महीने की मोहलत मिल गई है तो सामान्यतया सजा की खबर लीड लायक नहीं ही है। सरकार इस आधार पर उनकी सदस्यता खत्म कर दे तो कल बड़ी खबर होगी लेकिन आज ही दूसरी खबरों को छोड़कर इसे महत्व देना राहुल गांधी का राजनीतिक कद है। इस खबर को महत्व द टेलीग्राफ ने भी दिया है लेकिन उसकी प्रस्तुति अन्य अखबारों  अलग है। द टेलीग्राफ की खबर पर आने से पहले आज की कछ और खबरों की चर्चा कर लूं जो आज लीड हो सकती थीं। ऐसी एक खबर टाइम्स ऑफ इंडिया में है। इसका शीर्षक है, लोकसभा ने नौ मिनट में बिना चर्चा 45 लाख करोड़ रुपये के खर्च पास कर दिये। ऐसी ही एक खबर हिन्दुस्तान टाइम्स में भी है। पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर यह खबर दिल्ली में अचानक लगे पोस्टर से संबंधित है जिनपर लिखा था, मोदी हटाओ देश बचाओ। 

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार को जंतर-मंतर में एक जनसभा के दौरान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा संचालित केंद्र पर निशाना साधा और पूरे शहर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करने वाले पोस्टर चिपकाए, जिसके लिए छह लोगों को गिरफ्तार किया गया है। खबर के अनुसार, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने राजधानी के कुछ हिस्सों में “मोदी हटाओ, देश बचाओ” के पोस्टर लगाने वालों पर पुलिस कार्रवाई की तुलना ब्रिटिश शासन के दौरान सेंसरशिप से की है। उन्होंने कहा, ‘सौ साल पहले अंग्रेजों ने भी अपने खिलाफ पोस्टर लगाने के लिए किसी को गिरफ्तार नहीं किया था। किसे पता था कि एक पीएम आएगा और 24 घंटे में अपने खिलाफ पोस्टर लगाने के लिए 138 एफआईआर दर्ज करवा देगा। छह गरीब लोगों को गिरफ्तार किया गया है। मोदी इतना डरे हुए क्यों हैं ?”

इंडियन एक्सप्रेस में भी राहुल गांधी वाली खबर पांच कॉलम में दो लाइन के शीर्षक के साथ है। शीर्षक हिन्दी में कुछ इस तरह होगा, अवमानना मामले में राहुल को सजा, उन्हें संसद में रखने के लिए कांग्रेस की कोशिशें। इस शीर्षक के साथ कांग्रेस का पक्ष तो है ही कांग्रेस की कोशिशों के बारे में क्या लिखा है इसे जानने में मेरी दिलचस्पी है लेकिन उसे बाद में देख लूंगा। फिलहाल आपको यह बता दूं कि एक्सप्रेस एक्सप्लेन्ड का शीर्षक है, अगर सजा स्टे हो गई तो अयोग्यता टल सकती है। कहने की जरूरत नहीं है कि स्टे लेने के लिए अभी 30 दिन का समय है। द हिन्दू में यह खबर चार कॉलम में दो लाइन के शीर्षक के साथ लीड है। शीर्षक है, अवमानना मामले में राहुल गांधी को दो साल की सजा मिली। सूरत की अदालत के खिलाफ कांग्रेस अपील करेगी क्योंकि श्री गांधी की लोकसभा की सदस्यता खतरे में पड़ गई है। संसदीय मामलों के मंत्री ने कहा, विधि विशेषज्ञ फैसले का अध्ययन करेंगे।  कुल मिलाकर, मुझे लगता है कि इस खबर को अखबारों में आज ज्यादा महत्व मिला है क्योंकि यह राहुल गांधी से संबंधित है।  

इंडियन एक्सप्रेस ने पहले पन्ने की ही अपनी एक अन्य खबर में कहा है कि सूरत का यह मामला इंग्लैंड में की गई टिप्पणियों के लिए शोर मचा रही भाजपा के हमले को और मजबूत करता है। इसलिए अखबार ने लिखा है, कांग्रेस संस्थाओं का सम्मान नहीं करता है, वे गाली देने की आजादी चाहते हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस मामले में राहुल गांधी से बहुत आगे हैं और संस्थानों का सम्मान लोग देख रहे हैं। जहां तक राहुल गांधी या कांग्रेस का संबंध है, अदानी मामले में उनके सवाल जवाब देने लायक नहीं हैं, और कहने की जरूरत नहीं है कि उनके सवालों से परेशान होकर ही भाजपा राहुल मुक्त संसद चाहती है। कांग्रेस मुक्त भारत करना ही था। द टेलीग्राफ ने आज यह खबर छह कॉलम में छापी है। मुख्य शीर्षक है, मोदी के नाम पर। इसके आगे दो लाइन का शीर्षक है, गुजरात में सजायाफ्ता; कांग्रेस को लगता है कि राहुल मुक्त लोकसभा सरकार के एजंडा में है। 

द टेलीग्राफ ने फैसले के बाद राहुल गांधी के ट्वीट का भी उल्लेख किया है, “मेरा धर्म सत्य और अहिंसा पर आधारित है। सत्य मेरा भगवान है और अहिंसा उसे पाने का साधन।” द टेलीग्राफ की खबर के अनुसार कांग्रेस नेताओं ने फैसले में कमियां गिनाई हैं और कई वरिष्ठ वकीलों ने भी राहुल को मानहानि के लिए अधिकतम दो साल की सजा दिए जाने पर आश्चर्य जताया है। इन लोगों ने द टेलीग्राफ को बताया कि मानहानि के मामलों में सजा आमतौर पर प्रतीकात्मक होती है (वह भी माफी नहीं मांगने, खेद नहीं जताने पर), जिसमें एक दिन की जेल की अवधि से लेकर एक महीने तक की सजा होती है। हालांकि, एक जनप्रतिनिधि को अयोग्य घोषित करने के लिए आवश्यक न्यूनतम सजा – दो साल है। तब सजा पूरी होने के बाद छह साल के लिए उसे चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करने का नियम है। राहुल गांधी को अधिकतम सजा मिली है। खबर के अनुसार, कांग्रेस चुनावी प्रतिबंध को लेकर ज्यादा चिंतित नहीं है क्योंकि उसका मानना ​​है कि दोषसिद्धि को खारिज कर दिया जाएगा। 

यह तो हुई राहुल गांधी को सजा और उसकी खबर की प्रस्तुति। जैसा स्पष्ट है, सजा को चुनौती दी जानी है और उसके लिए एक महीने का समय है। इसलिए अभी इसपर ना अटकल लगाने का समय है और ना डर फैलाने की जरूरत। नीचे की अदालतों के फैसले वैसे भी पलटे जाते रहे हैं इसलिए इसे गंभीरता से देखना राजनीति ही है और इसी राजनीति के तहत न सिर्फ डर फैलाया जा रहा है बल्कि झूठ भी फैलाया जा रहा है और ऐसा करने वाले सरकार समर्थक लोग इसमें इतनी गंभीरता से लगे हुए हैं कि पत्रकारिता पर गोयनका पुरस्कार से संबंधित आयोजन में संपादक राजकमल झा ने व्यंग के साथ स्थिति का बयान किया तो वहां मौजूद सरकार के दो खास प्रचारकों के उतरे हुए चेहरे पर सबने गौर किया। इसके बाद जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने 23 मार्च 2023 को आईटीएम, ग्वालियर में आयोजित राममनोहर लोहिया व्याख्यायानमाला को संबोधित करते हुए कह दिया कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पास कोई डिग्री नहीं थी। 

उनके इस अजीबोगरीब दावे पर कांग्रेस नेताओं और सोशल मीडिया यूजर्स ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने सवाल पूछा है कि गांधीजी के पास डिग्री नहीं थी तो उन्होंने अदालतों में केस कैसे लड़े। गांधी जी के बारे में हर जगह लिखा है कि वे बैरिस्टर थे। उसके बावजूद मनोज सिन्हा ने ऐसा क्यों और कैसे कहा और ऐसे जानकार को बोलने के लिए क्यों बुलाया गया था मैं नहीं जानता। पर जब ऐसा माहौल है तो क्या देश के दुश्मनों की पहचान शुरू करने का समय नहीं आ गया है? या मनोज सिन्हा के खिलाफ कार्रवाई होगी। 2019 में जब भारत से ‘फरार’ विदेश में रह रहे ललित मोदी को पत्नी को इलाज के लिए भारत सरकार से विशेष अनुमति मिलने और नोटबंदी के बाद बैंक कर्ज लेकर नीरव मोदी के भाग जाने पर मोदी सरकार की आलोचना हो रही थी तब राहुल गांधी का यह पूछना कि नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेन्द्र मोदी  …. ऐसा कैसे है कि सभी चोरों का एक ही उपनाम है – मोदी,  ज्यादा बुरा था या छात्रों से शिक्षा का महत्व बताते हुए कहना कि शिक्षा डिग्री से अधिक महत्वपूर्ण होती है। गांधीजी का उदाहरण देना और कहना कि, अधिकतर लोगों को भ्रांति है कि गांधीजी के पास लॉ की डिग्री थी। सच्चाई यह है कि उनके पास कोई डिग्री नहीं थी। इसके बावजूद वे राष्ट्रपिता बने।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।