क्या गौतम नवलखा जैसे मानवाधिकारवादियों को जेल में मारने की साज़िश है ?

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यह सरकार हमारे समाज के कुछ सबसे बेहतरीन, मेधावी और जनता के पक्ष में खड़े लोगों की हत्या करने पर आमादा है!

प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा की पार्टनर सहबा हुसैन की ओर से फ़िल्मकार आनन्द पटवर्धन को लिखा यह ख़त गौतम और दूसरे राजनीतिक बन्दियों की स्थिति को लेकर बेहद चिन्ता पैदा कर रहा है। हम सब जानते हैं कि महाराष्ट्र इस समय देश में कोरोना महामारी का सबसे बड़ा केन्द्र है और वहाँ राजनीतिक बन्दियों के साथ जो व्यवहार हो रहा है वह उनके जीवन के बुनियादी अधिकार और मानवाधिकारों के सभी स्थापित अन्तरराष्ट्रीय मानकों का घोर उल्लंघन है।

सहबा ने लिखा है (मूल पत्र अंग्रेज़ी में है):

प्रिय आनंद,

गौतम ने 15 दिनों के अंतराल के बाद कल मुझे फोन किया। तब तक मुझे बस इतना पता था कि दिल्ली की तिहाड़ जेल से अचानक मुंबई ले जाये जाने के बाद उन्हें 26 मई को तलोजा में एक क्वारंटीन सेंटर में भेज दिया गया था। यह क्वारंटीन सेंटर तलोजा में एक स्कूल की इमारत में चलता है जहाँ नए कैदियों को तलोजा जेल में स्थानांतरित करने से पहले लाया जाता है।

गौतम ने फोन पर मुझे वहाँ के कुछ भयावह ब्यौरे बताये जो मैं आपके साथ साझा कर रही हूँ।

गौतम ने बताया कि उनके साथ इमारत के छह क्लासरूम में 350 कैदियों को रखा गया है। गौतम 35 अन्य कैदियों के साथ एक क्लासरूम में हैं, बहुत से लोग गलियारों और रास्तों में सोते हैं। वहाँ सिर्फ़ 3 शौचालय, 7 मूत्रालय और एक खुली नहाने की जगह है जिसमें बाल्टी या मग तक नहीं है। उन्होंने कहा कि भीड़भाड़ ऐसी है कि कोविड-19 के डर के अलावा, कैदियों को त्वचा के संक्रमण भी हो सकते हैं।

उन्होंने बताया कि उन्हें ताज़ा हवा भी नहीं मिलती क्योंकि ज़्यादातर उन लोगों को बन्द रखा जाता है और चलने या व्यायाम करने की जगह भी नहीं होती। हालाँकि वह योग कर ले रहे हैं क्योंकि दूसरे कैदी उनके लिए कुछ जगह बना देते हैं। क्वारंटीन के इन तीन हफ्तों में उनका वज़न 2 किलो कम हो गया है और उन्हें पता नहीं कि अधिकारी उन्हें और अन्य कैदियों को ऐसी अमानवीय परिस्थितियों में कब तक रखेंगे।

इस समय तलोजा जेल में उनके जैसे नए कैदियों के लिए जगह नहीं है। इन परिस्थितियों में उन्हें और दूसरे कैदियों को रोज़ाना स्वास्थ्य के जिस गंभीर जोखिम के बीच रखा जा रहा है उसके बारे में सोचकर मुझे चिन्ता हो रही है।

उन्होंने यह भी ज़ि‍क्र किया कि वे सभी बाहरी दुनिया से पूरी तरह से कट गये हैं क्योंकि इस क्वारंटीन सेंटर में न तो बाहर की कोई ख़बर आती है और न ही यहाँ की कोई ख़बर बाहर जाती है। वह सोचते रहते हैं कि बाहर की दुनिया में क्या कुछ चल रहा है!

उन्होंने कल मुझसे जो कुछ बताया उसने मुझे क्षुब्ध और व्याकुल कर दिया है।

मुझे उन्होंने जिन विकट परिस्थितियों के बारे में बताया, उनके बावजूद आवाज़ से वह ठीक लग रहे थे और उन्होंने कहा कि वह इन हालात में ख़ुद को सँभालने की पूरी कोशिश कर रहे हैं और इन यंत्रणादायी ‍स्थितियों के बोझ से दबकर कमज़ोर नहीं पड़ेंगे।

मुझे लगा कि मुझे आपके साथ इसे साझा करना चाहिए क्योंकि आप अक्सर मुझसे उनकी कुशलक्षेम पूछते रहे हैं। उनके वकील और मैं यह देखने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या किया जा सकता है, हालाँकि मैं मानती हूँ कि गौतम जैसे राजनीतिक बन्दी – बल्कि इस समय जेल में बन्द भीमा कोरेगाँव मामले के सभी 11 लोगों के साथ इस तरह के अमानवीय व्यवहार के ख़ि‍लाफ़ आवाज़ उठाना बहुत महत्वपूर्ण है।

आपने जेल में वरवर राव के स्वास्थ्य की बेहद बुरी हालत के बारे में भी सुना होगा जो लगातार बिगड़ती जा रही है।

सम्बन्धित अधिकारियों को तत्काल इस पर ध्यान देने और आवश्यक कदम उठाने की ज़रूरत है।

आज मुझे फ़ोन करने के लिए शुक्रिया।

सलाम,
सहबा

 

सत्यम वर्मा के फ़ेसबुक पेज से साभार।