अल्पसंख्यकों और न्याय का पक्षधर वह कृष्ण काला..!

प्रेमकुमार मणि प्रेमकुमार मणि
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कृष्ण संभवतः पौराणिक पात्र हैं, ऐतिहासिक नहीं. यह भी संभव है कि किसी दुनियावी इंसान को पौराणिक पात्र के रूप में रखा गया हो. जो हो, एक कथा तो है ही. मैं उस कथा के कृष्ण को ही पसंद करता हूँ. जनश्रुतियों के अनुसार आज उसका जन्मदिन है.

कृष्ण-कथा में ऐसा कुछ है कि मुझे बार-बार खींचता है. जेल में जन्म. जान पर आफत. पिता किसी प्रकार उसे लिए-दिए निकलते हैं. अपने नवजात को उन्हें अपने उस ग्वाले मित्र के यहां रख आना है, जिससे उसके प्राण बच सके. राजा रिश्तेदार, लेकिन दुष्ट है. उसी से जान को खतरा है. भादो की अंधियारी रात. यमुना की बाढ़. अपने चंद बचे-खुचे (यानी शेष) नाग साथियों के साथ वह बालक को टोकड़ी में लिए प्रस्थान करते हैं. साथी नन्द बाबा के घर बेटे को रख निश्चिन्त होते हैं. बालक नंदगांव में भी सुरक्षित नहीं है. कंस को लोकेशन की जानकारी हो गयी है. जाने कितनी पूतनाएँ उसे मारने की फिराक में हैं. और भय के इसी वातावरण में वह पल-बढ़ रहा है. मुश्किलें कम नहीं हैं. नन्द के घर में ही दाऊ बलराम हैं, जिन्होंने जीना हराम कर रखा है. गोरे ग्वालों के गांव में नाग वंश का काला कृष्ण! जाने कितने हज़ार साल बाद एक कवि ने उनकी पीड़ा समझी. सूरदास का कृष्ण अपनी यसुमति मैया के सामने रो रहा है. फरियाद सुना रहा है.

मैया मेरी, दाऊ ही बहुत खिझायो
मोसों कहत मोल को लीन्हो, जसुमति तोहे कब जायो
गोरे नन्द, जसोदा गोरी, तू कत स्याम सरीर
चुटकी दे-दे हँसत ग्वाल सब, सिखै देत बलवीर…

बेचारे कृष्ण की नन्द-गांव में कोई इज़्ज़त नहीं. उसके कालेवर्ण होने का लोग मज़ाक उड़ाते हैं. वह सब समझता है. करे तो क्या करे! ले-दे राधा का संग साथ है अन्यथा ब्रजमंडल में उसके दिल की परवाह किसे है! सयाना होता है, तो आततायी कंस को पटक मारता है, और नाना कहे जाने वाले उग्रसेन को राजा बना देता है. लेकिन वही राजा बना हुआ नाना, अब उसे ब्रजमंडल से भाग जाने का आदेश देता है. कृष्ण लड़ाई नहीं चाहता. वह भागना पसंद करता है. भारत के उस छोर पर जहाँ से और नहीं भागा जा सकता, वह अपनी नगरी बसाता है द्वारका. उसकी नगरी गेट वे ऑफ़ इंडिया थी. उसकी अपनी सेना है. जब महाभारत छिड़ता है, तब वह उन पांडवों की मदद करता है, जो अल्पसंख्यक और न्याय से वंचित हैं. लेकिन उनकी अपनी बनाई सेना ही उनसे विद्रोह कर जाती है. लेकिन कृष्ण डिगते नहीं. महाभारत का युद्ध कृष्ण को मानने और कृष्ण को नहीं मानने वालों के बीच का युद्ध था. कृष्ण को मानने वालों की जीत हुई.

कृष्ण का नारा था- “यतो धर्मः ततो जयः”. जहाँ धर्म होता है, वहीँ जीत होती है. धर्म के मानी आज वाले पोंगापंथ और घडी-घंट धर्म की नहीं, धर्म मतलब न्याय. कृष्ण ने न्याय केलिए संघर्ष किया. उत्पीड़ितों का नेतृत्व किया. दीन-दुखियों के दर्द और मर्म को समझा. उनके ज़माने में हज़ारों औरतें थीं, जिनके पति नहीं थे, हज़ारों बच्चे थे जिनके पिता नहीं थे. कृष्ण का उद्घोष हुआ- जिनका कोई नहीं, उनका कृष्ण है. कृष्ण हज़ारों स्त्रियों के पति और हज़ारों-लाखों बच्चों के पिता बन गए. भगवान बन गए. साक्षात् ईश्वर. ऐसे कृष्ण से अब भला कौन लड़ सकता था. वह जननायक बन गए. लोगों के कंठहार बन गए.

इस कृष्ण को याद करना अच्छा लगता है. भारत को ऐसे कृष्ण की आज बहुत जरुरत है, जो बांसुरी के राग से पूरी दुनिया को बांध सके. प्रेम और भाईचारे से हिंदुस्तान को सँवार सके. लेकिन राजाओं और शासकों को ऐसे कृष्ण से डर लगता है. यह डर उनके ज़माने में भी था, आज भी है.

 



 प्रेमकुमार मणि

कथाकार प्रेमकुमार मणि 1970 में सीपीआई के सदस्य बने। छात्र-राजनीति में हिस्सेदारी। बौद्ध धर्म से प्रभावित। भिक्षु जगदीश कश्यप के सान्निध्य में नव नालंदा महाविहार में रहकर बौद्ध धर्म दर्शन का अनौपचारिक अध्ययन। 1971 में एक किताब “मनु स्मृति:एक प्रतिक्रिया” (भूमिका जगदीश काश्यप) प्रकाशित। “दिनमान” से पत्रकारिता की शुरुआत। अबतक चार कहानी संकलन, एक उपन्यास, दो निबंध संकलन और जोतिबा फुले की जीवनी प्रकाशित। प्रतिनिधि कथा लेखक के रूप श्रीकांत वर्मा स्मृति पुरस्कार(1993) समेत अनेक पुरस्कार प्राप्त। बिहार विधान परिषद् के सदस्य भी रहे।