यह भी एक विडंबना है कि, सरकार को, 1980 से लंबित पड़ी, धर्मवीर कमीशन की रिपोर्ट जो पुलिस सुधार के बारे में है, को सुप्रीम कोर्ट के अनेक आदेश देने के बाद भी, लागू करने की जल्दी नही है, पर लगभग सभी बड़े हवाई अड्डों को, अडानी समूह को सौंप देने के बाद, यह निर्णय ले लिया गया कि, हवाई अड्डों पर, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल की संख्या कम कर दी जाय और उसकी जगह कॉर्पोरेट के गार्ड नियुक्त किए जाएं। हालांकि, यह भी कहा गया है कि, निजी गार्ड गैर संवेदनशील क्षेत्र में रहेंगे। मीडिया के अनुसार, “केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया है कि, वर्तमान में, 65 नागरिक हवाई अड्डों की सुरक्षा के लिए तैनात सीआईएसएफ के 33,000 जवान तैनात हैं। इनमें से समाप्त किए गए 3,049 पदों में से 1,924 पदों पर निजी सुरक्षा कर्मियों को तैनात किया जाएगा। यानी, 3049 पद समाप्त कर दिए जायेंगे। यह जनशक्ति तीन कंपनी के बराबर होती है। इसमें केवल सिपाही या जवान ही नहीं, बल्कि, सूबेदार, इंस्पेक्टर, असिस्टेंट कमांडेंट, डिप्टी कमांडेंट और कमांडेंट स्तर तक के अधिकारी भी प्रभावित होंगे।
दरअसल, सीआईएसएफ को हटाना है और कॉरपोरेट को घुसाना है, इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए, केंद्रीय नागरिक उड्डयन और गृह मंत्रालयों द्वारा एक संयुक्त बैठक 2018 में की गई और तभी यह तय हुआ कि, सीआईएसएफ की जनशक्ति को हवाई अड्डा सुरक्षा से, क्रमवार तरीके से, घटा दिया जाय। दोनो ही संबंधित विभागों द्वारा, साल, 2018 और 2019 में संयुक्त सचिव और सचिव स्तर पर कई बैठकें हुई जिसमें सीआईएसएफ के वरिष्ठ अफसर भी सम्मिलित हुए और उस विचार विमर्श के बाद, दोनो ही मंत्रालयों द्वारा, संयुक्त रूप से एक कार्य योजना बनाई गई। उक्त कार्ययोजना के अनुसार, नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो (बीसीएएस) और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, अपने अपने क्षेत्रीय कार्यालयों के साथ-साथ पूरे देश के 50 नागरिक हवाई अड्डों पर, निजी सुरक्षा गार्ड योजना लागू करेंगे। यह योजना का आगामी चरण है।
इस संबंध में यह कहा जा रहा है कि. ‘‘इस नए सुरक्षा ढांचे से विमानन क्षेत्र में 1,900 से अधिक नौकरियां पैदा होंगी।” लेकिन इससे सीआईएसएफ के 3000 से अधिक पद खत्म भी तो होंगे, इसकी बात क्यों नहीं की जा रही है ? सच तो यह है कि, नौकरियां, बढ़ नही रही है, बल्कि घट रही हैं। लेकिन असल बात, जो बताई गई, वह इस प्रकार है, “हवाईअड्डों के संचालकों का विमानन सुरक्षा पर होने वाला खर्च भी कुछ कम होगा।” निश्चित रूप से हवाई अड्डे जब, सरकार के नियंत्रण में थे तो, खर्च से अधिक महत्वपूर्ण सुरक्षा थी, पर अब, जब उन्हे अडानी समूह ने ले लिया तो, कॉर्पोरेट का ‘खर्च कम करो’ जिसे कॉर्पोरेट की जुबान में कॉस्ट कटिंग कहा जाता है, एजेंडा लागू हो गया। अब कहा जा रहा है कि, “एक विश्लेषण में पाया गया है कि कई गैर-संवदेनशील कामों के लिए सशस्त्र सीआईएसएफ जवानों की जरूरत नहीं है और ऐसे काम निजी सुरक्षाकर्मी भी कर सकते हैं जबकि कुछ क्षेत्रों में सीसीटीवी कैमरे लगाकर निगरानी की जा सकती है।” यहां यह बताना जरूरी है कि, सीसीटीवी कैमरे, देखते हैं, वे रोक, टोक और ठोक नहीं सकते हैं। यह काम तो किसी प्रशिक्षित बल का जवान ही कर सकता है।
ब्यूरो ऑफ सिविल एविएशन सिक्युरिटी, बीसीएएस के संयुक्त महानिदेशक जयदीप प्रसाद ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया है कि, “निजी सुरक्षा एजेंसियों और उनके कर्मियों को मंजूरी बीसीएएस देगा और वे विमानन सुरक्षा के लिए बने नियमों से संचालित होंगे।” एक अन्य अधिकारी ने बताया कि, “दिल्ली, मुंबई तथा अन्य हवाईअड्डों पर गैर-संवदेनशील ड्यूटी के लिए निजी सुरक्षाकर्मी लगाए गए हैं. इनमें कतार प्रबंधन, एयरलाइन कर्मियों और यात्रियों को सुरक्षा सहायता और टर्मिनल क्षेत्र के भीतर कुछ स्थानों पर निगरानी जैसे काम शामिल हैं. इसके साथ ही अधिकारी ने यह साफ किया कि हवाईअड्डा में प्रवेश पर यात्रियों के विवरण की जांच, यात्रियों की जांच, तोड़फोड़-रोधी अभियान, आगे की जांच और सभी आतंकवाद-रोधी सेवाएं सीआईएसएफ पहले की ही तरह देती रहेगी।”
सीआईएसएफ, का गठन, 10 मार्च 1969 को, संसद द्वारा पारित एक अधिनियम के अंतर्गत किया गया और 15 जून 1983 को पारित संसद के एक अन्य अधिनियम द्वारा भारत का सशस्त्र बल बनाया गया। यह बल, लगभग, 300 औद्योगिक इकाइयों, सरकारी इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं और प्रतिष्ठानों को सुरक्षा कवर प्रदान करता है। औद्योगिक क्षेत्र जैसे परमाणु ऊर्जा संयंत्र, अंतरिक्ष प्रतिष्ठान इसरो, विभिन्न खदानें, तेल क्षेत्र और रिफाइनरी, प्रमुख बंदरगाह, भारी इंजीनियरिंग और इस्पात संयंत्र, बैराज, उर्वरक इकाइयां, हवाई अड्डे और केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू) के स्वामित्व और नियंत्रण वाले जलविद्युत / थर्मल पावर प्लांट, और भारतीय मुद्रा का उत्पादन करने वाले करेंसी नोट प्रेस नाशिक, सीआईएसएफ द्वारा संरक्षित हैं। इस प्रकार यह विभिन्न भूभाग और जलवायु परिस्थितियों में फैले पूरे भारत में प्रतिष्ठानों को यह बल कवर करता है। सीआईएसएफ भारत सरकार के साथ साथ, निजी उद्योगों और अन्य संगठनो को, सुरक्षा परामर्श और अग्नि सुरक्षा परामर्श भी प्रदान करता है। इस बल की कुछ आरक्षित बटालियन हैं जो राज्य पुलिस के साथ मिलकर कानून और व्यवस्था बनाए रखने का भी काम करती हैं। आपदा प्रबंधन में सीआईएसएफ की अहम भूमिका होती है और इस बल की एक ‘फायर विंग’ भी है जो उन उद्योगों में आग लगने की दुर्घटनाओं के दौरान, अग्नि शमन और अन्य सहायता उपलब्ध कराता है।
पहले, हवाईअड्डा सुरक्षा का दायित्व, राज्य पुलिस (संबंधित राज्य सरकार के अधीन) के नियंत्रण में था। मैं 1988 में कानपुर में डीएसपी था तो, कानपुर हवाई अड्डे की सुरक्षा कानपुर पुलिस के जिम्मे थी, और मैं उसका प्रभारी था। 1999 में इंडियन एयरलाइंस की उड़ान 814 के अपहरण के बाद, हवाई अड्डों की सुरक्षा सीआईएसएफ को सौंपने का विचार किया गया। शुरुआत में यह प्रस्ताव अगले दो वर्षों के लिए ही बनाया गया था। लेकिन जब, अमेरिका मैं 11 सितंबर 2001 को एक बड़ा आतंकवादी हमला जिसे 911 कहा जाता है में, आतंकियों द्वारा विमान का अपहरण कर के किया गया तो इस नई आतंकी चुनौती से निपटने के लिये, सभी हवाई अड्डों की सुरक्षा का जिम्मा सीआईएसएफ को देने का निर्णय सरकार द्वारा किया गया। जयपुर एयरपोर्ट, पहला हवाई अड्डा है, जिसकी सुरक्षा, 3 फरवरी 2000 को सीआईएसएफ के नियंत्रण में दी गई। इस के बाद, धीरे धीरे, भारत के सभी, वाणिज्यिक हवाई अड्डों की सुरक्षा, सीआईएसएफ को सौंप दी गई। फिलहाल, सीआईएसएफ देश में कुल 64 अंतरराष्ट्रीय और घरेलू हवाई अड्डों की सुरक्षा व्यवस्था संभाल रहा है।
सुरक्षा व्यवस्था का समय समय पर विशेषज्ञों द्वारा मूल्यांकन और उसके स्केल में उस मूल्यांकन के अनुसार, वृद्धि और कमी होती रहती है। जब 1999 में इंडियन एयरलाइंस के विमान का बलान्नयन और अमेरिका में 9/11 की घटना हुई तो, दुनियाभर के सभी हवाई अड्डों की सुरक्षा बढ़ा दी गई। और हवाई अड्डों में प्रवेश, परिसर, बोर्डिंग पास काउंटर, सामान की चेकिंग, शरीर की फ्रिस्किंग आदि के लिए नए और संवेदनशील उपकरण खरीदे गए, जवानों को प्रशिक्षण और पर्यवेक्षण दुरुस्त किया गया, उनकी नियमित शारीरिक और मानसिक फिटनेस का ध्यान रखा गया और एक ऐसा वातावरण बनाया गया जिससे, यात्रीगण तो खुद को आश्वस्त और सुरक्षित महसूस करें ही साथ ही किसी हादसे की योजना बना रहे अपराधी या आतंकी समूह भी, अपनी किसी अपराध की योजना को कार्यान्वित करने के पहले, अनेक बार यह भी सोचें कि, यहां किसी भी आपराधिक घटना को अंजाम दिया जाना असंभव है या बेहद मुश्किल है। सुरक्षा व्यवस्था में, जनता या यात्रियों की आश्वस्ति, सबसे महत्वपूर्ण पक्ष होती है, जो सतर्क, और दक्ष सुरक्षाबलों के जवान को देख कर खुद ब खुद उत्पन्न होती है। यह आश्वस्ति भाव, एक प्रशिक्षित सुरक्षा बल ही दे सकता है न कि, अप्रशिक्षित या अल्प प्रशिक्षित कोई निजी सुरक्षा गार्ड की एजेंसी, जो सुरक्षा के प्राथमिक दृष्टिकोण के बजाय लाभ कमाने या खर्चा कम करके, काम करने के लिए खड़ी की गई है।
यहीं एक महत्वपूर्ण बात यह उठती है कि, जब 1999 में विमान अपहरण और 2011 में 9/11 जैसी आतंकी घटना जो विमान का अपहरण कर के ही अंजाम दी गई थी, के बाद एक प्रशिक्षित और विशेषज्ञ सुरक्षा बल सीआईएसएफ की नियुक्ति की गई तो, क्या अब सरकार को ऐसा कोई फीडबैक मिल गया है कि, अब कोई आतंकी घटना या विमान अपहरण की घटना होने की कोई संभावना नहीं है, या खतरा कम हो गया है, इस लिए सीआईएसएफ के स्थान पर निजी सुरक्षा गार्ड लगाए जा रहे हैं ? सुरक्षा की व्यवस्था, जोखिम की संभावना, जिसे थ्रेट परसेप्शन कहते हैं, की समीक्षा के बाद ही की जाती है। एक गनर भी जब किसी को सुरक्षा में दिया जाता है तो, उसका भी थ्रेट परसेप्शन आंका जाता है और एक्स, वाई, जेड सुरक्षा व्यवस्था भी उसी थ्रेट परसेप्शन के आधार पर दी जाती हैं। थ्रेट परसेप्शन आंकने का कार्य इंटेलिजेंस विभाग का है। यह बात अलग है कि, सरकार चाहे तो, सुरक्षा श्रेणी किसी विशेष कारणवश बढ़ा दे, या घटा दे। पर जब कोई अनहोनी घट जाती है तो उसकी जांच में थ्रेट परसेप्शन की रिपोर्ट सबसे पहले ढूंढी जाती है। तो क्या सरकार, एयरपोर्ट की सुरक्षा में जो शिथिलता या बदलाव करने जा रही है, वह इसलिए है कि, अब आतंकी खतरा कम हो गया है या यह भी आर्थिक संकट से जूझ रही सरकार का खर्चा घटाओ अभियान है, यह सरकार को स्पष्ट करना होगा।
सिविल एविएशन की सुरक्षा समिति का तर्क है कि, निजी सुरक्षा गार्ड की तैनाती से पैसों की बचत होगी। यह बात सही है कि सीआईएसएफ की तैनाती पर अपेक्षाकृत अधिक खर्च आता है। क्योंकि, उनका प्रशिक्षण, अनुशासन और सुरक्षा के प्रति समझ और दृष्टिकोण उन्नत होता हैं साथ ही, तैनाती के नियम कड़े और वेतन और भत्ते अधिक होते हैं। जबकि निजी गार्ड की ट्रेनिंग, उस स्तर की है या नहीं इसका कुछ अभी पता नहीं है। उनका वेतन, सीआईएसएफ की तुलना में कम होगा और ट्रेनिंग कितनी होगी, यह तो एजेंसी पर निर्भर करता है। ट्रेनिंग का अर्थ केवल ड्रिल और स्मार्ट रूप से दिखना ही नही होता है बल्कि एक ऐसी समझ और परख का विकसित होना होता है जो किसी भी संदिग्ध हरकत, दृश्य, आवाज या परिस्थितियों पर सतर्क हो जाय। बिलकुल रिफ्लेक्स एक्शन की तरह। सीआईएसएफ या अन्य पुलिस बल, अपने जवानों को इस तरह की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए नियमित ट्रेनिंग देते रहते हैं और ट्रेनिंग प्रोग्राम भी समय समय पर अपग्रेड किए जाते हैं। इस तरह की सुविधा और प्रशिक्षण, निजी सुरक्षा गार्ड को नहीं दी जाती है, क्योंकि वे जिस निजी कंपनी द्वारा गठित की जाती हैं, उनकी भी सीमाएं, धन, ट्रेनिंग उपकरण और ट्रेनर आदि की होती है।
सरकार की निजीकरण की नीति के चलते, पहले बंदरगाह अडानी समूह को सौंपे गए और अब, इन आठ हवाईअड्डों, दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, जयपुर, लखनऊ, गुवाहाटी, तिरुवनंतपुरम और मंगलुरू को, पीपीपी मॉडल के आधार पर परिचालन, प्रबंधन और विकास के लिए, निजी कम्पनी को दे दिए गए हैं। प्रबंधन और सुरक्षा में अंतर होता है। प्रबंधन में मुख्य उद्देश्य, कॉर्पोरेट को वित्तीय लाभ पहुंचाना और व्यापार का विकास करना रहता है, और इस हेतु, कॉर्पोरेट, अपनी नीतियों में जरूरी समझौता करता रहता है, पर सुरक्षा में किसी भी समझौते की गुंजाइश नहीं रहती है। यदि आदेश है कि बिना जांच, चेकिंग, फ्रिस्किंग कोई भी, किसी भी व्यक्ति का प्रवेश निषेध क्षेत्र में प्रवेश नहीं होगा तो, इसका सीधा और स्पष्ट अर्थ है कि किसी को भी बिना चेकिंग प्रवेश नहीं दिया जाएगा और ऐसे क्षेत्र में जबरन प्रवेश, कानूनी दंडनीय भी होता है। सरकार को चाहिए था कि, यदि प्रबंधन निजी कम्पनी को दे भी दिया गया है तो सुरक्षा के सभी आयाम वह खुद सभालती न कि प्रबंधन कंपनी को, यह जिम्मेदारी भी सौंप देती कि वह यह काम भी एक सिक्युरिटी गार्ड की कंपनी खोल कर कर ले। इस नई व्यवस्था से, धन की बचत भले ही हो जाय, पर यदि एक भी आतंकी घटना घट जाएगी तो, उसका वैश्विक प्रभाव पड़ेगा। यही सब सोचकर, 1999 में विमान अपहरण और अमेरिका की 9/11 आतंकी घटना के बाद सभी हवाई अड्डे, सीआईएसएफ को सुरक्षा के लिए सौंप दिए गए और उसके बाद कोई बड़ी घटना नहीं हुई।
नवंबर, 26, 2008 का मुंबई हमला समुद्र के रास्ते हुआ था, और उसी के बाद कोस्ट गार्ड और नौसेना ने अपना निगरानी और सुरक्षा तंत्र मजबूत भी किया। हवाई अड्डे और बंदरगाह भी एक प्रकार की सीमा ही होते हैं। इनके द्वारा देश में घुसा जा सकता है और देश से निकल कर भागा जा सकता है, इसलिए इनकी सुरक्षा में जिस ट्रेनिंग और दक्षता की जरूरत पड़ती है, वह कोई निजी सुरक्षा गार्ड कंपनी नहीं दे सकती है। एयरपोर्ट में पॉकेटमारी या चोरी जैसी घटनाएं कम ही घटती हैं, कारण केवल यात्रियों को ही प्रवेश की अनुमति होती है, और पूरा एयरपोर्ट सीसीटीवी कैमरे से आच्छादित होता है। असल खतरा आतंकी घटना, या विमान अपहरण की कोशिश या अंधाधुंध फायरिंग आदि का होता है। ऐसी घटनाएं कम होती हैं और कभी कभी तो लम्बे समय तक कुछ नहीं होता है। तब एक धारणा यह बन जाती है कि, सब कुछ शांत हो गया है और सुरक्षा की उतनी जरूरत नहीं है। लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि, घटनाएं इसलिए भी नहीं हो पाई कि सुरक्षा दुरुस्त थी और अपराधियों को मौका नहीं मिला। इसलिए एयरपोर्ट सुरक्षा के प्रति केवल धन बचाने के लिए, निजी सुरक्षा गार्ड के प्रयोग कभी भी किसी बड़ी आतंकी घटना को आमंत्रित कर सकते हैं।
इसी बीच एक खबर यह भी है कि, ‘1 सितंबर 2022 से सीआईएसएफ ने नागपुर में आरएसएस मुख्यालय हेडगेवार भवन की सुरक्षा संभाल ली है।’ क्या यह हैरान करने वाली खबर नही है कि, एयरपोर्ट, जहां हजारों यात्रियों का आवागमन होता है, वहां निजी सुरक्षा गार्ड तैनात होंगे, और आरएसएस मुख्यालय, मुकेश अंबानी, गौतम अडानी आदि की निजी सुरक्षा, सीआईएसएफ और सीआरपीएफ करेगी? यह, निर्णय सरकार का जन सुरक्षा के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट कर देता है। आरएसएस हो या मुकेश अंबानी या गौतम अडानी, जीवन भय के आकलन पर किसी को भी उचित सुरक्षा दी जा सकती है पर इसका यह मतलब नहीं कि, जनता को जो सुरक्षा मिल रही है उसे बिना सुरक्षा का आकलन किए, हटा लिया जाय या घटा दिया जाय। दरअसल, निजीकरण के एजेंडे के दौर में धीरे धीरे सुरक्षा बल भी आयेंगे। अग्निवीर योजना ने सेना की भर्ती नीति में दस्तक दे ही दी है, और देर सबेर, अन्य सुरक्षा बलों में भी यही योजना लाई जा सकती है। खबर एक बार यह भी उड़ी थी कि सम्मन, वारंट, नोटिस आदि की तामीली भी निजी कंपनी करेगी। क्या पता, सरकार के अंदरखाने, यह सब योजनाएं चल भी रही हों। लेकिन एक बात सरकार को समझ लेनी चाहिए कि सुरक्षा एक प्रशिक्षित और समर्पित क्षेत्र है। वह लाभ कमाने का साधन नहीं है, बल्कि वह एक ऐसा वातावरण प्रदान करता है जिससे लोग शांति और सुरक्षित महसूस कहते हुए जीवन बिता सकें। सुरक्षा बलों में कॉर्पोरेट के प्रवेश की अनुमति देने के पहले सरकार को सुरक्षा विशेषज्ञों से हर पहलू पर विचार विमर्श कर लेना चाहिए। मैं विचार विमर्श की बात कर रहा हूं, एकालापी परंपरा के अनुसार, निर्णय थोपने की नहीं।
लेखक भारतीय पुलिस सेवा के अवकाशप्राप्त अधिकारी हैं।