सरकार ने कश्मीरी महिला पत्रकार को पुलित्ज़र पुरस्कार लेने नहीं जाने दिया, अख़बारों ने फोटो नहीं छापी 

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
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अखबारों का काम है खबर देना। कुछ खबरें ऐसे दी जा सकती हैं जो मन मस्तिष्क में दर्ज हो जाए। टालू अंदाज में अखबार के पन्ने भरना अखबार निकालना नहीं है और ना अखबार में नौकरी करना। आप अखबार में नौकरी करते हों या मालिक हों – अखबार ऐसा हो जो याद किया जाए। मुझे लगता है द टेलीग्राफ अकेला ऐसा अखबार है जिसके संस्थापक संपादक एम.जे अकबर कांग्रेस होते हुए भाजपा में पहुंच गए और अखबार अब भी वैसा ही है (यानी बाद में कोई कोशिश नहीं कर रहा है)। मुझे लगता है राजनीति में एमजे अकबर का जो हश्र हुआ वह भी एक कारण हो सकता है पर वह अलग मुद्दा है और पत्रकारिता से संबंधित विषयों पर अनुसंधान में एक यह भी हो सकता है। 

फिलहाल चर्चा इस तस्वीर और उसके साथ के रेखाचित्र की करनी थी। शीर्षक से स्पष्ट है एक खाली जगह की बात हो रही है जो भारत सरकार या उसके प्रधान या भारत की जनता के स्वघोषित प्रधानसेवक की राजनीति और नीतियों के कारण खाली है। अखबार ने उसे प्रमुखता देने के लिए साथ में एक रेखांकन लगाया है और कैप्शन में सारा विवरण है। गौर कीजिए कि यह रेखांकन जिसका प्रतिनिधित्व कर रहा है उसकी तस्वीर भी लगाई जा सकती थी पर रेखांकन लगाया गया है। भारत को विश्वगुरू बनाने की बात हमारे प्रधान सेवक करते हैं लेकिन जो उदाहरण पेश कर रहे हैं वह एक डरे हुए नेता का है। 

पुलित्जर पुरस्कार के विजेताओं की यह तस्वीर इंडियन एक्सप्रेस में भी पहले पन्ने पर है लेकिन वहां रेखाचित्र नहीं है और आज खबर यह रेखाचित्र ही है। वैसे इंडियन एक्सप्रेस ने प्रधानमंत्री की घाघरा वाली फोटो भी पहले पन्ने पर छापी है। हालांकि, जगह अलग है। टाइम्स ऑफ इंडिया में भी प्रधानसेवक की इसी ड्रेस वाली फोटो है। वही फोटो द हिन्दू में भी है। हिन्दुस्तान टाइम्स क्यों पीछे रहता। यहां पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर तीन कॉलम में यह फोटो छपी है जबकि इसपर आधा विज्ञापन है। यही हाल पहले पन्ने का है। मुझे याद नहीं है कि प्रधानमंत्री रहते हुए नरेन्द्र मोदी कितने मंदिरों में गए और कितने धार्मिक आयोजनों में शामिल हुए। फिर भी यह फोटो पहले पन्ने पर है और यह हो नहीं सकता कि वे प्रधानमंत्री तो सबके हैं पर जाते सिर्फ मंदिर हैं या इतनी जल्दी-जल्दी मंदिर जाकर भगवाने से कुछ मांगते भी हैं या सिर्प प्रचार के लिए जाते हैं।   

इस बार अगर किसी को पुलित्जर मिला था और उसे पुरस्कार लेने नहीं जाने दिया गया तो उसकी तस्वीर भी छापी जा सकती थी। कहने की जरूरत नहीं है कि पुलित्जर वाली फोटो बाकी के तीन अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है। इस बार तस्वीर की खासियत यह है कि पुरस्कार पाने वालों के साथ छह साल का युनूस सिद्दीक भी है जो अफगानिस्तान में मारे गए भारतीय फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीक का बेटा है। लॉकडाउन के दौरान पैदल चलते प्रवासियों, दिल्ली दंगे के दौरान धार्मिक आधार पर दो पक्षों के बीच हिंसा, जामिया के छात्रों पर एक कथित नाबालिग द्वारा पिस्तौल से गोली चलाने की तस्वीरों के साथ सीमापुरी श्मशान घाट पर उनका लिया एरियल शॉट खास तौर से चर्चित हुआ था। 

अखबार ने पुरस्कार पाने वाले अन्य लोगों के साथ सन्ना इरशाद मट्टू का भी नाम लिखा है और बताया है कि वह तस्वीर में नहीं हैं। यह बात इंडियन एक्सप्रेस की तस्वीर में भी है और बताया गया है कि क्यों नहीं है। द टेलीग्राफ एक कदम आगे है। यहां रेखाचित्र का कैप्शन है, पुलित्जर पुरस्कार जीतने वाली पहली कश्मीरी महिला पत्रकार, सन्ना इरशाद मट्टू; खुद यह पुरस्कार नहीं प्राप्त कर सकीं क्योंकि भारतीय अप्रवासन ने उन्हें विदेश जाने की अनुमति नहीं दी जबकि उनके पास वैध यात्रा दस्तावेज थे। इंडियन एक्सप्रेस की एक लाइन की सूचना और द टेलीग्राफ की नवीनता रेखांकित करने लायक है। बाकी अखबारों ने खबर को पहले पन्ने पर जगह नहीं दी वह तो है ही। 

जिन गोदीवालों को यह खबर पहले पन्ने की नहीं लगी उनकी क्या बात करूं। बस नोट कर लीजिए कि यह सवाल कौन बनेगा करोड़पति में पूछा जा सकता है और तब इस बात का मतलब होगा कि आप कौन सा अखबार पढ़ते हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि सरकार विरोधी नागरिकों को विदेश जाने देने से डरती है और हर संभव तरीके से रोक लेती है क्योंकि उसे डर है कि नागरिक वहां भारत की शिकायत करेंगे। खबरें छपेंगी और बदनामी होगी। यह अलग बात है कि विदेशी अखबारों में शिकायत फिर भी छपती है और सरकार पूरी बदनामी उठाकर भी अपने खिलाफ छपने वाली खबरें नहीं रोक पा रही है। 

आपने पढ़ा होगा कि हाल में अमेरिकी अखबार, वाल स्ट्रीट जर्नल में पूरे पन्ने का एक विज्ञापन छपा था तो तलाश है (वांटेड) कि अंदाज में मोदी सरकार के 11 प्रमुख लोगों के लिए था। अंग्रेजी में इन्हें मोदी के 11 मैगनिटस्की कहा गया था और बताया गया था कि ये वो अधिकारी हैं जो भारत को रहने और निवेश के लिए असुरक्षित बनाते हैं। अखबार में इनके नाम पदनाम के साथ छपे थे जो इस प्रकार हैं, 1) निर्मला सीतारमन, वित्त मंत्री 2) राकेश शशिभूषण, चेयरमैन (एंट्रिक्स कॉर्प लिमिटेड) 3)  तुषार मेहता, सोलिसिटर जनरल 4) हेमंत गुप्ता, जज, सुप्रीम कोर्ट  5) वी रामसुब्रमणियन, जज, सुप्रीम कोर्ट 6) चंद्रशेखर, स्पेशल पीसी ऐक्ट जज, नई दिल्ली,  7) आशीष पारीक, डीएसपी, सीबीआई, नई दिल्ली  8) संजय कुमार मिश्रा, डायरेक्टर एनफोर्समेंट, प्रवर्तन निदेशालय 9) आर राजेश, सहायक निदेशक, एनफोर्समेंट 10) एन वेंकटरामन, एडिशनल सोलिसिटर जनरल और 11) ए सादिक मोहम्मद नैजनार, डिप्टी डायरेक्टर एनफोर्समेंट।  

         

ऐसा नहीं है कि सरकार की बदनामी कम है या बदनामी वाले काम लोगों को मालूम नहीं हैं पर देश के अखबारों में खासकर भाषाई अखबारों में वास्तविक स्थिति नहीं छपने और सिर्फ प्रचार छपने के साथ व्हाट्सऐप्प पर झूठी-सच्ची बातों से सरकार की छवि बनाने का काम अब खुले आम चल रहा है और सरकार कुछ सकारात्मक करने की बजाय कपड़े बदलने, नाम बदलने और विरोधियों को नियंत्रित करने में लगी हुई है। 

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।