सीबीआई को वाक़ई काम करने दिया जाएगा या भ्रष्टाचार पर कार्रवाई भी जुमला है?

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
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सीबीआई की हीरक जयंती पर आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री के भाषण को आज के कई अखबारों ने लीड बनाया है। पर भाषण मुख्य रूप से विरोधियों पर हमला ही है और इस आरोप से छुटकारा पाने की कोशिश भी कि सरकार सीबीआई का उपयोग विरोधियों से निपटने में करती रही है, और जो भाजपा के साथ है उसके खिलाफ कोई जांच नहीं हुई। यह सब अखबारों में जिस ढंग से छपा है उससे साफ है कि कम से कम भविष्य के लिए प्रधानमंत्री ने सीबीआई को पूरी आजादी दी है या कम से कम जनता को यही संदेश दिया है। सीबीआई इस आश्वासन या प्रचार की कोशिश को कैसे देखती है उसका पता भविष्य में चलेगा।

कहने की जरूरत नहीं है कि सीबीआई निष्पक्ष होकर काम करने लगी तो भारत की राजनीति पूरी तरह बदल सकती है। नरेन्द्र मोदी ने ऐसा कहा है तो बेमतलब नहीं कहा होगा। इसे 2014 से पहले उनके कहे, मेरा कोई नहीं है और हाल के आरोप अडानी ही मोदी हैं से जोड़कर देखिये। संभव है कि वाशिंग मशीन की छवि सुधारने के लिए काम हो – पर यह तो नियंत्रित सीबीआई भी कर सकती है। स्वतंत्र सीबीआई डिग्री के मामले की भी जांच कर सकती है और तब जो होगा वह ‘भूतो न भविष्यति’ हो सकता है। इसलिए सीबीआई की इस आजादी का मतलब रस्सी ढीली करना है या तोड़ देना है उसे समझने की जरूरत है।

खबर और उसमें शामिल प्रचार के तत्व को समझने के लिए पहले कुछ शीर्षक देख लें। इंडियन एक्सप्रेस की लीड का शीर्षक हिन्दी में कुछ इस तरह होगा, “सीबीआई के हीरक जयंती आयोजन पर प्रधानमंत्री ने सीबीआई से कहा, भ्रष्ट छवि खराब करते हैं …. रुको मत, किसी को छोड़ो मत।” उपशीर्षक है, “मोदी ने कहा, भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई के लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति की कोई कमी नहीं है।” अमर उजाला में भी यह खबर लीड है। शीर्षक, “पीएम मोदी बोले – भ्रष्टाचार लोकतंत्र और न्याय के लिए सबसे बड़ी बाधा” (फ्लैग)। मुख्य शीर्षक है, “ताकतवर भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई से हिचकें नहीं, सीबीआई को खुली छूट।” अमर उजाला में इस खबर के साथ कई छोटी-छोटी खबरें हैं जो प्रधानमंत्री के कहे का भाग है और इनमें से एक बॉक्स का शीर्षक है, “सीबीआई ने आम लोगों का भरोसा जीता। इसमें कहा गया है कि सीबीआई सच्चाई और न्याय का पर्याय बन गई है। उसने अपने काम व कौशल से सामान्य जन को एक विश्वास दिया है।”

टाइम्स ऑफ इंडिया समेत कुछ अखबारों ने राहुल गांधी को सूरत कोर्ट से जमानत मिलने की खबर को लीड बनाया है। वहां यह खबर सेकेंड लीड है। नवोदय टाइम्स में भी ऐसा ही है। यहां इसका का शीर्षक है, “भ्रष्टाचार से जंग के लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति में कमी नहीं : पीएम।” द हिन्दू में राहुल गांधी की खबर तो लीड है लेकिन सीबीआई वाली खबर पहले पन्ने पर नहीं है। स्पष्ट है कि आज के अखबारों में सीबीआई को सरकार से आजादी मिलने की खबर सबसे महत्वपूर्ण है। अभी तक आपने देखा कि अखबारों ने इसे कितना महत्व दिया है। ऐसे में यह स्पष्ट है कि सीबीआई कार्रवाई करेगी तो प्रधानमंत्री उसे रोकेंगे नहीं और इसलिए यह सीबीआई पर है कि वह अपनी और सरकार की छवि दुरुस्त करे। देश सेवा में अपने काम निष्पक्ष होकर करे।

प्रधानमंत्री ने जो कुछ कहा है वह ऐसे ही नहीं कहा होगा। सीबीआई चाहे तो यह साबित कर सकती है कि प्रधानमंत्री न तब कुछ भी बोल देते थे न अब कुछ भी बोल देते हैं या फिर वास्तविकता इसके विपरीत हो तो वह भी साबित हो जाएगा। कहने की जरूरत नहीं है इसमें कोई जोखिम नहीं है और है भी तो बहुत मामूली और देश सेवा में इतना जोखिम किसी को भी लेना चाहिए। प्रधानमंत्री ने हाल में कहा था और यह बहुत चर्चित हुआ था कि उनकी छवि खराब करने की सुपारी दी है। ऐसे में अब सीबीआई का काम है कि वह अपनी और सरकार की छवि ठीक करे – सुपारी चाहे न मिली हो, प्रधानमंत्री ने सार्वजनक रूप से आजादी तो दे ही दी है। अभी कुछ मामले प्रमुखता से चर्चा में हैं अगर इन मामलों में कुछ ठोस हो जाए तो यह माना जा सकेगा कि सीबीआई वाकई स्वतंत्र है।

प्रधानमंत्री ने यह भी कहा है और अमर उजाला ने प्रमुखता से छापा है कि आज भी जब किसी को लगता है कि कोई केस असाध्य है तो आवाज उठती है कि मामला सीबीआई को दे देना चाहिए। मुझे लगता है कि यह पुरानी बात हो गई और सीबीआई का मुखिया बदलने की आधी रात की कार्रवाई और सिर्फ विपक्षी नेताओं के मामले देखने से पिछले कुछ वर्षों में उसकी छवि काफी खराब हुई है और प्रधानमंत्री अब न सिर्फ सीबीआई की बल्कि अपनी छवि भी इस भाषण से ठीक करने की कोशिश कर रहे हैं। प्रधानमंत्री का मामला राजनीतिक हो भी तो सीबीआई की साख का मामला गंभीर है और उससे राजनीति नहीं होनी चाहिए। उसे भी अपनी निष्पक्ष साख बहाल करने के लिए काम करना चाहिए और ऐसे में जरूरी है कि

  1. मनीष सिसोदिया और सत्येन्द्र जैन का मामला संतोषजनक ढंग से स्पष्ट करे। संभव हो और अदालत में भी तेजी से निर्णय हो तो कुछ बकाया नहीं रहेगा। अगर मामले में दम न हो तो इसकी भी घोषणा शीघ्र हो या फिर एक प्रेस कांफ्रेंस आयोजित की जाये। सवाल -जवाब से हम समझ जाएंगे कि आरोपों में दम है या कोई और मामला है।
  2. प्रधानमंत्री के डिग्री का मामला – इसका एक पहलू यह भी है कि प्रधानमंत्री ने शपथ पत्र के अलावा खुद इसकी पुष्टि में डिग्री जारी नहीं किया है। यह काम उनके सहयोगियों ने किया है। कानूनन खुद डिग्री जारी करना आईपीसी 420 का भी मामला बनेगा जो गैर जमानती है। इसलिए डिग्री फर्जी होने की आशंका मुझे और ज्यादा लगती है। बेशक मैं गलत हो सकता हूं लेकिन संतोषजनक ढंग से पुष्टि जरूरी है।
  3. मेरे ख्याल से सीबीआई को अपनी साख बनाने के लिए राकेश अस्थाना की जांच जरूरर करनी चाहिए। इन्हें बचाने के लिए आधी रात की कार्रवाई हुई थी और इससे सीबीआई की ही नहीं, प्रधानमंत्री औऱ भाजपा सरकार की साख को भी बट्टा लगा था। इतिहास गवाह है कि सीबीआई के दो सर्वोच्च अधिकारी एक दूसरे पर आरोप लगा रहे थे। सरकार ने निष्पक्ष कार्रवाई की बजाय झगड़ा खत्म कर दिया मामले का कुछ पता नहीं चला क्योंकि तार दूर तक जुड़े थे। बाद में राकेश अस्थाना को दिल्ली पुलिस का प्रमुख बनाकर ईनाम भी दिया गया।
  4. हिमन्त बिस्वा सरमा, कोनार्ड संगमा, नारायण राणे, प्रताप सार्निक, शूवेंदु अधिकारी, यशवंत व जामिनी जाधव व भावना गावली वो ‘चर्चित नेता’ हैं जिनके विरुद्ध मोदी जी व अमित शाह चुनावी सभाओं में भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लगाते थे। आज ये भाजपा में हैं या भाजपा इनके साथ सरकार चला रही हैं। इसलिए यह ज़रूरी है कि जाँच एजेंसियां भी बिना पक्षपात या दबाव के अपना काम करें।
  5. जज लोया, हरेन पंडया और दूसरे मामलों में ऐसा क्या है कि सरकार जांच से भागती है और कहती है कि उसमें कुछ नहीं है। अगर कुछ है ही नहीं तो वह जांच से डरती क्यों है। गुजरात मॉडल और जांच में कोई ऐसा तो नहीं है जो सरकार को ब्लैकमेल कर पाने की हैसियत में है और सरकार उससे डरती है।

अभी तक की स्थिति और खबरों के अनुसार यही लगता है कि जो भाजपा में शामिल हो जाता है उसके खिलाफ जांच रुक जाती है। इसके समर्थन में उपरोक्त नाम हैं। राकेश अस्थाना को सीबीआई की कार्रवाई से बचाया गया था – सीबीआई अपनी और सरकार की साख दुरुस्त करने के लिए इस मामले की जांच कर दूध का दूध और पानी का पानी कर दे। वरना अभी तो सीबीआई की साख बहुत ही खराब है। इस जांच के बाद या साथ-साथ अदानी की भी जांच हो सकती है। सरकार की छवि ठीक (या साफ) करने के लिए यह जांच जरूरी है। सीबीआई प्रमुख के कार्यकाल वगैरह का मामला वैसे दुरुस्त किया जा चुका है। बीच में हटाने का डर है नहीं और आश्वासन ताजा है। इतनी जल्दी लोग भूलेंगे भी नहीं।

इसपर विनीत नारायण ने ट्वीट किया है, सीबीआई! 60 वर्ष पूरे होने पर बधाई। आप जानते हैं कि मैंने भी आपको अधिक शक्ति दिलाने में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है (विनीत नारायण मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले), आप इस अवसर पर मुझे आमंत्रित करना कैसे भूल गए? मुझे यह कहते हुए खेद है कि आज आप राजनीतिक विरोधियों को ठीक करने के लिए प्रधान मंत्री कार्यालय के हाथों के एक औजार बनकर रह गए हैं। जैसा कि नरेंद्र मोदी जी ने इस अवसर पर अपने संबोधन में कहा है; भारत को भ्रष्टाचार मुक्त बनाइए। फिर आपको किस बात की हिचक है? शुरुआत अपने ही घर से कीजिए। राजनीतिक परिणामों की परवाह किए बिना आपको पहले सरकार में बैठे लोगों के भ्रष्टाचार पर ध्यान देना चाहिए और फिर विपक्ष की ओर बढ़ना चाहिए। यह दृष्टिकोण आपकी विश्वसनीयता को बहाल करेगा। आप क्या सोचते हैं?

जहां तक प्रधानमंत्री के भाषण और उनके पार्टी के शीर्ष प्रचारक होने का मामला है, इंडियन एक्सप्रेस में महेन्द्र सिंह मनराल ने लिखा है, “केंद्रीय जांच एजेंसियों के कथित दुरुपयोग को लेकर विपक्ष की आलोचना के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को कहा कि जो लोग दशकों तक भ्रष्टाचार से लाभान्वित हुए, उन्होंने एक ऐसा तंत्र बनाया है, जो जांच एजेंसियों को निशाना बनाता है। लेकिन एजेंसियों को इससे विचलित नहीं होना चाहिए और अपने काम पर ध्यान देना चाहिए।

“आज देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की कोई कमी नहीं है। आपको संकोच करने और रुकने की जरूरत नहीं है। मुझे पता है कि सरकार और व्यवस्था का हिस्सा होने के कारण कई वर्षों से बहुत शक्तिशाली लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। कई वर्षों में, उन्होंने एक ऐसा तंत्र बनाया है, जो उनकी गलत गतिविधियों को कवर करता है और वे आपकी छवि को धूमिल करने के लिए सक्रिय हो गए हैं।

“ये लोग आपका ध्यान भटकाते रहेंगे, लेकिन आपको अपने काम पर ध्यान देना होगा। किसी भी भ्रष्ट व्यक्ति को बख्शा नहीं जाना चाहिए। यह देश की इच्छा है, यह देशवासियों की इच्छा है। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि देश, कानून और संविधान आपके साथ है। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘दुर्भाग्य से भारत को आजादी के समय भ्रष्टाचार की विरासत मिली और… इसे हटाने के बजाय कुछ लोग इस बीमारी को पालते रहे।’

द टेलीग्राफ में इमरान अहमद सिद्दीक ने लिखा है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को भ्रष्टाचार को देश की सबसे बड़ी समस्या के रूप में प्रस्तुत कर दिया और इसे परिवारवाद से जोड़ दिया। पर अडानी समूह या गौतम अडानी से अपनी करीबी पर एक शब्द नहीं बोले। पत्रकार विनीत नारायण ने आज ही प्रकाशित अपने साप्ताहित कॉलम में लिखा है, नई दिल्ली स्थित हमारे कालचक्र समाचार ब्यूरो से पिछले आठ  साल में कितने ही मामलों में सीवीसी, ईडी, सीबीआई और पीएमओ को मय प्रमाण के भ्रष्टाचार के बड़े मामलों में अनेकों शिकायतें भेजी गई हैं, जिन पर बरसों से कोई कार्यवाही नहीं हुई, आख़िर क्यों? अभी हाल में गुजरात सरकार ने अपने  एक वीआईपी पायलट को निकाला है। इस पायलट की हज़ारों करोड़ की संपत्ति पकड़ी गई है। ये पायलट पिछले बीस वर्षों से गुजरात के मुख्य मंत्रियों के निकट रहा है। इस पायलट के भ्रष्टाचार को 2018 में हमने उजागर किया था। पर कार्यवाही 2023 में आ कर हुई। सवाल उठता है कि गुजरात के कई मुख्य मंत्रियों के कार्यकाल के दौरान जब यह पायलट घोटाले कर रहा था तभी इसे क्यों नहीं पकड़ा गया? ऐसे कौन से अधिकारी या नेता थे जिन्होंने इसकी करतूतों पर पर्दा डाला हुआ था? इसपर मेरा सवाल है, जब इस मामले में कार्रवाई हो गई तो भी इसका अपेक्षित प्रचार नहीं हुआ, क्यों? मुझे लगता है गुजराती ठग किरण पटेल जैसे और भी कई मामले हैं जिनकी जांच ही नहीं उसपर हुई कार्रवाई का प्रचार भी जरूरी है।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।

 

 

 


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