2014 का चुनाव समाप्त हो गया था । भाजपा को लोकसभा में पूर्ण बहुमत मिल चुका था। कांग्रेस अपने इतिहास के सबसे बुरे दिनों में थी। मोदी का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा था। शपथ ग्रहण के मुहूर्त की प्रतीक्षा थी। इतिहास का यह एक करवट था। मोदी जिस प्रचार और समर्थन के ज़ोर पर दिल्ली की गद्दी पर पहुंचे थे उसकी प्रतिध्वनि सुनायी दे रही थी। इन सब के बीच पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का एक अख़बार के लिये इंटरव्यू चल रहा था।
डॉ सिंह स्वभाव से ही अल्पभाषी और मृदुभाषी हैं। ज़ोर से भी नहीं बोलते और नाटकीयता और मंचीय भंगिमा से दूर, किताबों की दुनिया में रमे रहने वाले शख्श हैं । नियति ने उन्हें प्रधानमंत्री बना दिया और वे नेहरू , इंदिरा के बाद सबसे अधिक समय तक रहने वाले पीएम बने। अध्यापक, बैंकिंग प्रशासक, रिजर्व बैंक के गवर्नर, वित्त मंत्री के आर्थिक सलाहकार, फिर स्वयं वित्त मंत्री, और अंत में प्रधान मंत्री की कुर्सी तक वे पहुंचे।
1991 के कठिन दिनों में जब देश अस्थिर था, राजीव गांधी की हत्या हो चुकी थी, रामजन्मभूमि आंदोलन से सांप्रदायिक वातावरण और मण्डल आयोग की संस्तुतियों के माने जाने के कारण जातिगत संघर्ष का वातावरण बन गया था। एक अनिश्चय, अविश्वास और अस्थिरता का माहौल, अर्थव्यवस्था में बन चुका था। ऐसे वातावरण में, तब पीवी नरसिम्हाराव ने देश की कमान संभाली और मनमोहन सिंह देश के वित्त मंत्री बने।
तब तक दुनिया एक ध्रुवीय बन चुकी थी। सरकार की नीति मुक्त व्यापार की बनी । देश की खिड़कियाँ और दरवाज़े खोल दिए गए। अचानक समृद्धि आयी। पर जीवन की मूल समस्या और नेताओं का प्रिय वाक्य कि समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति का उत्थान , अफ़साना ही बना रहा। फिर भी इंफ्रास्ट्रक्चर में वृद्धि, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में वैश्वीकरण जन्य प्रतियोगिता और निजीकरण से देश मे नौकरियाँ बढ़ी और जीवन स्तर भी लोगों का बदला।
फिर वही डॉ मनमोहन सिंह, 2004 से 2014 तक देश के प्रधान मंत्री बने। 2009 में वे दूसरे कार्यकाल के लिये चुने गए। पर यूपीए 2 के कार्यकाल के अंतिम तीन साल, उनके और सरकार के लिये कठिन बीते । कई घोटालों की शिकायतें हुयी, और अकर्मण्यता और उनकी अनदेखी करने के आरोप भी उनपर लगे। अंततः 2014 में इनके नेतृत्व में कांग्रेस को अत्यंत शर्मनाक हार झेलनी पडी।
लेखक भारतीय पुलिस सेवा के अवकाशप्राप्त अफ़सर हैं।