आख़िरकार गुजरात कांग्रेस के पूर्व कार्यकारी अध्यक्ष हार्दिक पटेल ने कांग्रेस से इस्तीफ़ा दे दिया है। करीब 3 महीने से हार्दिक पटेल के कांग्रेस से जाने की अफ़वाहें और अटकलें बनी हुई थी। वे भी लगातार ऐसे ट्वीट्स और बयान दे रहे थे, जिनसे साफ हो रहा था कि वे कांग्रेस में अपनी हैसियत को कहीं पा ही नहीं रहे हैं। पर्दे के पीछे की 3 कहानियां हैं, जिनमें से लगभग सभी सच हैं क्योंकि उनके अपने ही बयानों से ये सब सच साबित होती रही हैं।
उनके इस्तीफ़े को पढ़कर भी ये साफ पता चल रहा है कि वे उसमें जिस तरह से अपने इस्तीफ़े के कारणों की जगह भाजपा की अप्रत्यक्ष प्रशंसा कर रहे हैं – ये इस्तीफ़ा उनके अगले राजनैतिक पड़ाव का दस्तावेज ज़्यादा है। साथ ही, इसमें कांग्रेस का राजनैतिक नुकसान करने की मंशा भी साफ ही है। गुजरात में इस समय विधानसभा चुनाव को लेकर, एक ओर भाजपा इस चिंता में है कि आम आदमी पार्टी का गुजरात में प्रदर्शन, कहीं पंजाब जैसा न हो जाए, कांग्रेस चिंता में है कि वो क्या पिछले शानदार प्रदर्शन से आगे जाएगी या फिर 2017 के पहले से भी बुरी स्थिति में जा पहुंचेगी और आम आदमी पार्टी इस जुगत में है कि सरकार न सही तो मुख्य विपक्ष तो वो बन ही जाए। ऐसे में हार्दिक जिनको गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था, उनका जाना कांग्रेस के लिए कितनी बड़ी चिंता है – इसका जवाब ढूंढना नहीं है क्योंकि उनकी शिकायतों और बयानों के बावजूद उनको मनाने की कोई कोशिश नहीं की गई।
आज मैं हिम्मत करके कांग्रेस पार्टी के पद और पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा देता हूँ। मुझे विश्वास है कि मेरे इस निर्णय का स्वागत मेरा हर साथी और गुजरात की जनता करेगी। मैं मानता हूं कि मेरे इस कदम के बाद मैं भविष्य में गुजरात के लिए सच में सकारात्मक रूप से कार्य कर पाऊँगा। pic.twitter.com/MG32gjrMiY
— Hardik Patel (@HardikPatel_) May 18, 2022
पहले अंतर्कथाएं…इनसाइड स्टोरी
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कथा 1 – हार्दिक क्या वाकई बड़े नेता हैं?
गुजरात कांग्रेस में शामिल होने से पहले, हार्दिक पाटीदारों के एक ऐसे आंदोलन के नेता बनकर उभरे थे – जो गुजरात में संभवतः सबसे प्रभावी राजनैतिक समुदाय यानी कि पटेलों या पाटीदारों के लिए आरक्षण की मांग करने वाला आंदोलन था। इस आंदोलन ने भाजपा सरकार के केंद्र में आते ही, गुजरात में सनसनी मचा दी थी और इसके परिणामों के तौर पर हार्दिक को क़ानूनी कार्रवाई और सज़ा तक झेलनी पड़ी थी। हार्दिक और भाजपा दो ध्रुव बन गए थे और लगा था कि ये नौजवान पाटीदारों के लिए बड़े नेता के तौर पर उभरेगा। पाटीदार समाज के एक बड़े तबके को हार्दिक में हीरो दिखने भी लगा था। लेकिन समय के साथ धीरे-धीरे साफ होने लगा कि हार्दिक दरअसल अपनी राजनैतिक महात्वाकांक्षा में अधिक मग्न थे। वे कई मंचों पर भाजपा के ख़िलाफ़ तो दिखे लेकिन उनकी बातों में कोई स्पष्ट वैचारिकी नहीं दिखती थी। वे कन्हैया और जिग्नेश जैसे नौजवान नेताओं के साथ दिखने लगे लेकिन हर बार वे किसी स्पष्ट वैचारिक धरातल या अपने ही शुरू किए गए आंदोलन से विलग होते दिखे। वे कांग्रेस में भी शामिल हो गए लेकिन अंततः इसका कोई ख़ास फ़ायदा कांग्रेस को भी नहीं मिला। पाटीदारों का वोट, भाजपा के साथ ही दिखा। 2019 के लोकसभा चुनावों में हार्दिक का भाजपा विरोध, ख़ास काम नहीं आया। इसका एक कारण, पाटीदार समाज में ये प्रभाव बनना भी था कि भले ही कम उम्र में हार्दिक एक आंदोलन के नेता बन गए हों पर उनका इस मक़सद को लेकर कोई खास रुझान, कोई ज़िद या फिर उनकी राजनैतिक समझ नहीं थी। नतीजतन, अभी भी हार्दिक भले ही ख़ुद को पाटीदारों का नेता मानते रहें – वे ऐसा साबित नहीं कर पाए हैं। साथ ही अल्पसंख्यकों, पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों में उनकी पहुंच शून्य ही रही।
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कथा 2 – कन्हैया, जिग्नेश और फिर नरेश पटेल
हार्दिक पटेल को एक समय कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी के साथ खूब देखा जाता था। इनकी दोस्ती के चर्चे भी चारों ओर थे। लेकिन समय के साथ हार्दिक पटेल की हैसियत कम होती गई और इन दोनों की राजनैतिक हैसियत बढ़ती गई। अगर आप ध्यान से देखें तो आप पाएंगे कि हार्दिक पटेल को गुजरात कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष तो 2020 में ही बना दिया गया लेकिन उनको इस पद से कभी भी प्रोन्नति देकर, गुजरात कांग्रेस का पूर्णकालिक अध्यक्ष नहीं बनाया गया। न ही उनको कभी भी पूरी तरह से पार्टी में वो जगह मिली, जो वह अपने लिए महसूस करने लगे थे। ऐसे में कन्हैया या जिग्नेश की बढ़ती हैसियत (जिग्नेश, कांग्रेस का बाहर से समर्थन करते हैं और गुजरात विधानसभा के सदस्य हैं) तो उनको दिख ही रही थी – जिसमें कम से कम जिग्नेश, पार्टी में न होते हुए भी पार्टी के सदस्य की तरह ही दिखते रहे और उनसे ज़्यादा अहमियत, जिग्नेश को पार्टी में मिलती रही। साथ ही हार्दिक की राजनैतिक समझ और वैचारिक झुकाव को लेकर केवल कांग्रेस ही नहीं, कोई भी राजनीति शास्त्र को समझने वाला व्यक्ति सशंकित ही रहेगा। हार्दिक ने बीते 3 महीनों से इस बाबत शिकायत शुरू कर दी थी कि उनको पार्टी में वो सम्मान या हैसियत या आज़ादी नहीं मिलती, जैसी मिलनी चाहिए। वैसे तो उनको ये इसी बात से समझ जाना चाहिए था कि वे कार्यकारी अध्यक्ष ही बने रहे, उससे आगे नहीं बढ़े।
इस सबके बाद कांग्रेस में नरेश पटेल की एंट्री को लेकर हार्दिक का भय साफ सामने दिखने लगा। नरेश पटेल फिलहाल किसी पार्टी में नहीं लेकिन पाटीदार समाज में बड़ी हैसियत रखते हैं…हार्दिक से बहुत ज़्यादा बड़ी और संभवतः तमाम राजनेताओं से बड़ी। नरेश पटेल, कोडलधाम मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष और पाटीदारों के बड़े कद से सामाजिक नेता हैं। हार्दिक ने अपने एक साक्षात्कार में बाक़ायदा इस पर ज़ुबान भी खोल दी और ये दरअसल कोई समझदार राजनीति नहीं है। वे बोले थे, “आपने 2017 में हार्दिक का इस्तेमाल किया, आप 2022 में नरेश भाई का उपयोग करना चाहते हैं और 2027 में दूसरे पाटीदार नेता का इस्तेमाल करेंगे। आप हार्दिक का समर्थन और उसे मजबूत क्यों नहीं करते।”
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कथा 3 – निकाले नहीं गए तो ये ही रास्ता था…
यहां से ये तय होने लगा था कि हार्दिक, कांग्रेस आलाकमान को इशारे दे रहे हैं और इंतज़ार कर रहे हैं कि या तो कांग्रेस उनको निकाल दे या फिर कोई हैसियत ही बख़्श दे। ज़ाहिर है कि निकाले जाने की स्थिति में हार्दिक को अधिक राजनैतिक फ़ायदा मिलने की उम्मीद थी। वे अपने लिए इस बहाने सहानुभूति जुटाने की कोशिश करते, अपने पुराने फ़ायरब्रांड को मांजने-चमकाने की कोशिश करते। या फिर ये होता कि कांग्रेस घबराकर, उनको मनाने में जुट जाती। पर ये दोनों ही चीज़ें नहीं हुई। इस बीच, हार्दिक कभी आम आदमी पार्टी की ओर जाते दिखाई देते, जिसकी राजनीति में हार्दिक फिट नहीं होते और वो भी हार्दिक की जगह नरेश पटेल को मनाती दिखती, तो कभी भाजपा के करीबी धर्मगुरुओं से विशेष भेंट करते। लेकिन कांग्रेस ने हार्दिक के साथ ज़्यादा बड़ा खेल कर दिया, उनको न तो निकाला गया और न ही उनकी शिकायतों को सुना गया। ज़ाहिर है, ये शिकायतें भी क्या थी? हार्दिक, जितने बड़े नेता हैं नहीं…उससे ज़्यादा कद की मांग कर रहे थे। ऐसे में अंत में उनके पास एक ही विकल्प था कि वे इस्तीफ़ा लिखते, भाजपा या जहां भी वे अगला पड़ाव बनाना चाहते हैं, उसकी तारीफ़ करते और कांग्रेस की कमियां गिनाते। उन्होंने वही किया है और उनका इस्तीफ़ा, भले ही हर जगह जनता की बात कर रहा हो लेकिन आम आदमी भी उसे पढ़कर, समझ सकता है कि वो क्या करना चाह रहे हैं। इसमें कोई समस्या भी नहीं है, सभी को राजनीति करने का अधिकार है…
क्या भाजपा में जाएंगे हार्दिक?
यहां पर बात ये नहीं है कि भाजपा, हार्दिक पटेल को स्वीकार करेगी या नहीं! यहां पर सवाल है कि क्या कांग्रेस में हार्दिक की जगह नहीं थी तो आम आदमी पार्टी या भाजपा में उनकी जगह होती? यहां ये जान लेना ज़रूरी है कि आम आदमी पार्टी ख़ुद भी लंबे समय से नरेश पटेल को अपने साथ लाने की जुगत भिड़ाती रही है। ऐसे में ये साफ है कि भाजपा में पहले से मौजूद पाटीदार नेताओं के अलावा, अगर किसी पाटीदार नेता की कोई वोट लाने की हैसियत है, तो वे हार्दिक पटेल नहीं है बल्कि नरेश पटेल हैं।
इसके अलावा हार्दिक पटेल को लेकर, पाटीदार समुदाय ही नहीं बल्कि पूरे गुजरात में यह एक बड़ी आबादी की समझ है कि उनको राजनीति की कोई ख़ास समझ नहीं है। यहां पर अब जब हार्दिक का रथ, भाजपा में जाने की ओर बढ़ रहा है तो पाटीदार समुदाय का जो धड़ा उनके साथ आया था, वो भी उनके मोह से निकल सकता है क्योंकि उनका पूरा आंदोलन ही भाजपा और नरेंद्र मोदी के विरोध पर आधारित था। इतना ही नहीं गुजरात भाजपा में कद्दावर पाटीदार नेता हैं, जिनके रहते हुए हार्दिक की हैसियत एक इंटर्न या प्रशिक्षु से ज़्यादा क्या होगी, इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है। अधिक से अधिक उनको किसी सीट पर टिकट मिल सकता है या फिर युवा मोर्चा में कोई बड़ा पद…पर क्या गुजरात भाजपा ये कर के, अपने वोटरों को ये संदेश देना चाहेगी कि हार्दिक पटेल, जिसको वे जेल भेजने पर आमादा थे – अब वो पार्टी में बड़े पदाधिकारी होंगे? ये सवाल बेहद अहम है…और अगर हार्दिक अपनी पुरानी लाइन से हटते हैं, तो उनका समर्थन कितना रह जाएगा, ये हार्दिक भी जानते हैं।
इस्तीफ़े में क्या है?
हार्दिक पटेल के कांग्रेस से इस्तीफ़े में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो भाजपा में जाने की इच्छा रखने वाले किसी और नेता की चिट्ठी, बयान या इस्तीफ़े में न रहा हो। इसको हम बिंदुवार आपके सामने विश्लेषण कर के रख दे रहे हैं तो ये पैटर्न समझने में आसानी रहेगी;
- बिना नाम लिए राहुल गांधी पर निशाना, संबिता पात्राई शैली में वही विदेश जाने का आरोप
- धारा 370, राम मंदिर, नागरिकता क़ानून का समर्थन, भले ही पहले वे नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ थे
- कांग्रेस को देश निर्माण के काम में बाधक बताना
- केंद्र सरकार की तारीफ़ सीधे न कर के, कांग्रेस को सिर्फ केंद्र का विरोध करने वाली पार्टी बताना
- कांग्रेस के बाकी नेताओं को काम न करने वाला बताना
- आलाकमान के शिकायतों पर ध्यान न देने की शिकायत
- कांग्रेस को गुजरातियों का अपमान करने वाली पार्टी बताना
- कांग्रेस को एक ख़ास धर्म के ख़िलाफ़ बताना
आप इस इस्तीफ़े को बिना पढ़े भी इन बिंदुओं को पढ़कर समझ सकते हैं कि ये एक मोनोटोन है, जो भाजपा के प्रवक्ता से लेकर पीएम तक एक ही स्वर में उचारते रहते हैं। यही पैटर्न कांग्रेस या किसी भी और पार्टी से भाजपा में जाने वाले नेताओं के बयान और इस्तीफ़ों में दिखता है। ये इतना दोहराया जा चुका है कि अब संभावित नहीं, अपेक्षित पैटर्न है और कोई इससे अलग इस्तीफ़ा लिख दे तो ये मान लेना चाहिए कि वो भाजपा में नहीं जाएगा। संभवतः एक मानक प्रारूप जो ऐसा लगने लगा है कि सारे उन नेताओं को दे दिया जाता हो, जो कहीं और से भाजपा ज्वाइन करना चाहते हों।
ख़ैर हार्दिक पटेल को ये ग़लतफ़हमी है कि वे पाटीदारों के बड़े नेता हैं या फिर ये सच है, इसका फ़ैसला तब होगा जब वे किसी भी अन्य पार्टी में जाएंगे और वहां उनको क्या हैसियत मिलेगी। क्योंकि उनसे बड़े नेता अब कहां हैं, ये हम सब जानते हैं या फिर नहीं जानते हैं कि वे कहां हैं…