मैं तीस्ता सेतलवाड़ के घर पर, 25 जून शाम 4 बजे पहुंची थी। एटीएस इस वक़्त उनके बेडरूम में थी। तीस्ता, बेडरूम के फ़र्श पर बैठी थी और एटीएस अधिकारी उनको घेरे हुए थे। तीस्ता के वकील, एफआईआर पढ़ रहे थे। मैंने पूछा कि क्या कोई वारंट भी है। तीस्ता ने कहा, ‘नहीं’। तीस्ता ने आगे, सभी अफसरों के सामने ही कहा, “इन्होंने मुझे दीवार की ओर धकेला, पकड़ा और मुझे चोट पहुंचाई।” तीस्ता ने मुझे उनकी बांई बांह के ऊपरी हिस्से पर पड़ गया, काला निशान दिखाया।
उनके पास सुबह ही एक कॉल आई थी।
तीस्ता ने कहा, “मुझे नोएडा सीआईएसएफ से फोन आया कि मेरी सुरक्षा में कितने लोग लगे हुए हैं। मैंने उनसे कहा कि मैं फोन पर अपनी सुरक्षा से जुड़े प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सकती।”
तीस्ता ने आगे कहा, “मुझे बताया गया कि गुजरात एटीएस, महज मुझसे सांता क्रूज़ थाने में ले जाकर कुछ पूछताछ करना चाहती है। फिर धीरे-धीरे उन्होंने ये ज़ाहिर किया कि वे मुझे गुजरात ले जाएंगे।” मैंने पूछा कि क्या वहां कोई मुंबई पुलिस से भी है। तीस्ता ने यूनिफॉर्म में कुछ पुलिसवालों की ओर इशारा किया। वे मुंबई पुलिस से थे।
तीस्ता ने फिर एक महिला एटीएस अधिकारी से पूछा, जिन्होंने अपनी पहचान जैस्मीन (रोजिया) के तौर पर दी थी, “प्रक्रिया के पालन में आपने बताया है कि ये हिरासत है न कि गिरफ़्तारी। तो फिर मैं अपने थाने में जा कर, शिकायत दर्ज कराना चाहती हूं कि आप बिना वारंट के मेरा अपहरण कर रहे हैं।”
एमजे पांडे और मैंने इस बात पर ज़ोर दिया कि क्योंकि ये गिरफ्तारी नहीं है – हम दोनों को अपनी मित्र तीस्ता सेतलवाड़ की चिंता हो रही है। हम उनके साथ ही उनकी गाड़ी में चलेंगे। काफी जद्दोजहद के बाद, एटीएस इसके लिए राज़ी हुई कि हम तीस्ता की गाड़ी में जा सकते हैं। साथ में दो अधिकारी, जिन्होंने अपना परिचय सब इंस्पेक्टर्स के तौर पर दिया; वो भी गाड़ी में साथ गए।
सांताक्रूज़ पर, ऑफिसर जैसमीन, पटेल और महिला सब इंस्पेक्टर्स ने पूरी कोशिश की, कि तीस्ता को थाने में न घुसने दिया जाए।
उन्होंने तीस्ता से धक्कामुक्की और अभद्रता की। तीस्ता, किसी तरह थाने में अंदर गई और मीडिया से पूरे स्वर में कहा कि उनको, शिकायत दर्ज कराने नहीं दिया जा रहा है। साथ ही गुजरात एटीएस किसी तरह का अरेस्ट वारंट लेकर नहीं आई है। ये भी कि ये हिरासत या गिरफ्तारी, अवैध है। उन्होंने सांताक्रूज़ पुलिस स्टेशन में इसकी एक लिखित शिकायत दी। मुंबई पुलिस ने सारी प्रक्रियाओं का पालन करते हुए, वहां मौजूद सभी एटीएस अधिकारियों के नाम दर्ज किए।
हम, 26 जून की सुबह 6 बजे के लगभग, अहमदाबाद क्राइम ब्रांच के दफ्तर पहुंचे।
इस बात का ज़िक्र करना ज़रूरी है कि तीस्ता के फोन, जुहू में उनके घर निरंत पर ही बिना किसी पंचनामे के ज़ब्त कर लिए गए थे। गुजरात में प्रवेश करने के बाद, पैपिलोन नाम के एक रेस्तरां पर रुकते वक़्त, तीस्ता ने अपने फोन मांगे। उनमें से दो फोन उनके और एक उनके सहकर्मी का था।
उन्होंने इस बात की ज़िद की कि या तो उनकी जांच अधिकारी से बात कराई जाए या फिर वे उस रेस्तरां से आगे नहीं जाएंगी। ये आधी रात से अधिक का समय था। काफी चर्चा के बाद क्राइम ब्रांच के जांच अधिकारी, एसीपी चुडासामा फोन पर आए। तीस्ता ने उनसे कहा कि उनके फोन, बिना पंचनामा किए ज़ब्त नहीं किए जा सकते।
बंद किए गए फोन, तीस्ता को नहीं बल्कि हमारे साथी को दिए गए और ये कहा गया कि हम उनका इस्तेमाल नहीं करेंगे। तीस्ता ने जांच अधिकारी और एटीएस अधिकारियों से कहा कि वह अभी तक जैसा करती आ रही हैं, वैसे ही सहयोग करती रहेंगी, बशर्ते वे लोग प्रक्रियाओं का पालन करें। पुलिस अधिकारियों ने कहा कि वे उन फोन्स को इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं। इसके जवाब में तीस्ता ने पूछा कि अगर उनको फोन का इस्तेमाल करना ही नहीं है, तो बिना पंचनामे के फोन कैसे ज़ब्त कर रहे हैं। अधिकारियों के ये कहने पर कि जब वो फोन का इस्तेमाल नहीं करना चाहती हैं, तो फोन वापस क्यों मांग रही हैं। इसके जवाब में तीस्ता ने कहा कि यह उनका एक नागरिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता के तौर पर निजता का अधिकार है और उनका कर्तव्य है कि वह क़ानून और प्रक्रियाओं का पालन करें। अगर वे उनके फोन इस्तेमाल नहीं कर रहे थे, तो उनको अपने पास क्यों रखना चाहते थे? अपने ही फोन को वापस मांगना, क्या असामान्य बात है? उनकी निगाह में एक नागरिक द्वारा अपने प्रक्रियाओं के पालन की मांग करना, असामान्य क्यों है?
26 जून, 2022 को सुबह 6 बजे हम क्राइम ब्रांच, अहमदाबाद पहुंचे। एक अधिकारी (जो महिला जैस्मीन या पटेल नहीं थे), जिनका नाम मुझे नहीं याद उन्होंने हमारे मित्र पत्रकार एमजे पांडे को धक्का दिया और तीस्ता को अश्लील गाली दी और सारे फोन ले लिए।
तीस्ता ने शांति से कहा, “अब आप अपने असली रंग में आ रहे हैं। आप मुझे डराना चाहते हैं।” हम तीनों ही लोग शांत रहे और पूछा, “वे ऐसा बर्ताव क्यों कर रहे थे? ऐसा क्या हुआ है, जो वह इतने आक्रामक हैं?” ये अहमदाबाद क्राइम ब्रांच के मध्य प्रांगण में हुआ।
तीस्ता और मैं पहले तल पर पहुंचे। मुझे वहां से जाने को कहा गया लेकिन मैंने अनुरोध किया कि जांच अधिकारी के आने तक मुझे वहां रुकने दिया जाए।
हम एक कमरे में बैठे, जहां हमारे साथ 7 महिला पुलिसकर्मी थी। तीस्ता ने पूछा कि क्या आरबी श्रीकुमार भी वहीं हैं। हमको बताया गया कि वे बगल के कमरे में सो रहे हैं।
अगले ही घंटे हमने आरबी श्रीकुमार को वॉशरूम जाते देखा। तीस्ता ने उनका नाम पुकारा। उन्होंने अंदर झांका। दोनों ने एक दूसरे का अभिवादन किया। तीस्ता ने उनकी सेहत का हाल लिया। उन्होंने पूछा कि वे कब पहुंची। मैंने महसूस किया वे एक बुज़ुर्ग और क्षीणकाय व्यक्ति हैं। शारीरिक रूप से कमज़ोर पर एक मज़बूत हौसले से मुस्कुराते हुए।
सुबह 8 बजे, एसीपी चुडासामा, दफ्तर पहुंचे। वे तीस्ता से मिले। तीस्ता ने उनसे, मौखिक रूप से अपनी हिरासत के अवैध होने की शिकायत की। बताया कि कैसे उनके अधिकारियों ने तीस्ता से धक्कामुक्की की, गालियां दी और उनका फोन अवैध तरीके से ज़ब्त किया। तीस्ता की शिकायत का अंत, ये कहने के साथ हुआ कि ये राजनैतिक मामला है, “ये गिरफ्तारी अवैध है”। तीस्ता ने एसीपी चुडासामा से कहा कि वह हमेशा की तरह, हर जांच में सहयोग करेगी लेकिन सारी पूछताछ, उनको मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने के बाद ही हो सकती है। उन्होंने कहा कि ये ही सही प्रक्रिया है। उन्होंने एसीपी से अनुरोध किया कि जब भी उनके वकील आएं, तो उनको मुलाक़ात करने दी जाए। साथ ही उनको सही कोर्टरूम बताया जाए और उनको मजिस्ट्रेट के दफ्तर में जाने दिया जाए। मैं इस मीटिंग में मौजूद थी।
जब तक उनको कोविड टेस्ट और मेडिकल परीक्षण के लिए, अहमदाबाद के एसवी अस्पताल तक नहीं ले जाया गया, मैं उनके साथ रही। तीस्ता, वहां पर पहली बार, मीडिया को अपने साथ हुई धक्कामुक्की में लगी हाथ की चोट दिखा सकी।
इसके बाद उनको वापस क्राइम ब्रांच लाया गया।
2 बजे के आसपास उनको अहमदाबाद के मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया।
आरबी श्रीकुमार को भी इसी समय लाया गया। ये एक बंद दरवाज़े में हुई सुनवाई थी, जहां प्रेस की अनुमति नहीं थी। तीस्ता के चारों ओर लगातार क्राइम ब्रांच और गुजरात पुलिस के लोग बड़ी संख्या में घेरा बनाए हुए थे।
तीस्ता शांत थी। हर मौके पर उन्होंने पुलिस, क्राइम ब्रांच अधिकारियों और अभियोजन पक्ष को याद दिलाया कि ये एक राजनैतिक मामला है।
उन्होंने अपने साथ हुई धक्का मुक्की से लेकर, अनाधिकृत स्पर्श और अपने निरपराध होने तक सभी कुछ अदालत से कहा।
शाम को उन्होंने मजिस्ट्रेट के पूछने पर कहा कि वे हर हाल में एक और मेडिकल जांच चाहती हैं। मैं मजिस्ट्रेट की अनुमति से उनके साथ गई और उनको सिविल अस्पताल ले जाया गया। एक महिला डॉक्टर ने उनकी जांच की और फिर एक हड्डी रोग विशेषज्ञ से उनकी जांच करने को कहा। एक्स रे किया गया। हमको बताया गया कि कोई फ्रैक्चर नहीं है। तीस्ता ने सभी डॉक्टर्स को धन्यवाद दिया। उनको अस्पताल से दर्दनिवारकों की दो स्ट्रिप दी गई। उन्होंने वे लेते हुए फिर आभार प्रकट किया। महिला चिकित्सक ने उनकी चोट-खरोंच और उसके निशान की अंगुलियों से माप ली और अपनी मेडिकल रिपोर्ट में उसका उल्लेख किया। न तो हमको बताया गया कि उसमें क्या लिखा गया और न ही हमको उसकी कॉपी दी गई।उन्होंने तीस्ता की शिनाख़्त के लिए उनके अंगूठे का निशान लिया।
हम उस समय अस्पताल में ही थे और ऑर्डर अभी तक नहीं आया था, मेरे पास एक मित्र ने दो लिंक भेजे। वे यहां साझा कर रही हूं। उनकी तारीख और समय देखा और दर्ज किया जाना ज़रूरी है।
Just In | #Gujarat Police has set up a SIT headed by #Gujarat ATS DIG Deepan Bhadran to probe the case against activist #TeestaSetalvad and former cops RB Sreekumar and Sanjiv Bhatt, reports @LangaMahesh
अदालत का आदेश आप देख सकते हैं, जो विभिन्न वेबसाइट्स पर उपलब्ध भी होगा, जिसमें पहले रिमांड के 5 दिन और फिर 2 जुलाई तक 6 दिन की रिमांड का उल्लेख है।
तीस्ता को फिर से क्राइम ब्रांच लाया गया। मुझे नहीं पता कि उनके पास सोने के लिए पलंग था कि नहीं। जिन दो कमरों में हम बैठे थे, वहां एक मेज़, कुछ कुर्सियां और एक बेंच थी। श्रीकुमार ने कहा कि वे भी एक ऐसे ही कमरे में सोए थे। आदेश में कहा गया कि वे प्रतिदिन परिवार के एक सदस्य और वकीलों से मिल सकती हैं।
मैं अगली सुबह मुंबई लौट आई। मैंने जावेद आनंद को शाम 7.45 पर संदेश भेजा कि तीस्ता कैसी हैं। उन्होंने कहा कि वे वकीलों के साथ लगे हुए हैं और उनको तीस्ता से मिलने का समय ही नहीं मिला। मैंने पूछा कि क्या आगे कुछ घटनाक्रम घटा है। उन्होंने मुझे ये संदेश भेजा
तीस्ता के पति और सीजेपी में उनके सहभागी जावेद आनंद से मेरा टेक्स्ट मैसेज पर संवाद
मैं – हाय जावेद, आप कैसे हैं? तीस्ता कैसी हैं?
जावेद – मैं ठीक हूं। तीस्ता से अभी मिल नहीं सका हूं। वकीलों के आगे-पीछे घूम रहा हूं।
मैं – कुछ नया घटनाक्रम?
जावेद – चुडासामा अब जांच अधिकारी नहीं हैं। जांच के लिए विशेष एसआईटी नियुक्त कर दी गई है।
मैं भारतीय संविधान की सिपाही, अपनी दोस्त – तीस्ता सेतलवाड़ के लिए चिंतित हूं।
मुझे बताएं कि मुझे क्या करना चाहिए।
हमको क्या करना चाहिए? मैं जानना चाहती हूं कि विपक्ष क्या करेगा? क्या नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं के साथ खड़ा होना और उनकी रक्षा करना, राजनैतिक दलों का काम नहीं है? क्या कांग्रेस इसको बिल्कुल ही भुला चुकी है? केवल वाम दल, वकील और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता ही खुले तौर पर इसका विरोध कर रहे हैं।
रुक्मिणी सेन, वरिष्ठ पत्रकार हैं और तीस्ता सेतलवाड़ को हिरासत में लिए जाने के समय, उनके घर से लेकर, अहमदाबाद में अदालत के पुलिस कस्टडी के आदेश तक उन के साथ ही थी।