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आख़िरकार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सुप्रीमों मोहन भागवत ने ‘ विज्ञानं ‘ और ‘सत्य ‘ के महत्व को स्वीकार कर लिया. इसके साथ ही उन्हें अपने भक्तों सहित शेष समाज को आयुर्वेदिक ओषधियों के प्रति भी सावधान करना पड़ा। उन्हें कहना पड़ा कि ऐसी ग़लत जानकारियों पर बिल्कुल ही विश्वास नहीं करें जिनका वैज्ञानिक परीक्षण नहीं किया गया है. उक्त तीनों सच्चाइयों को उन्होंने संघ द्वारा आयोजित “ असीमित सकारात्मकता” व्याख्यान माला के तहत अपने समापन भाषण में स्वीकार करना पड़ा.
हाँलाकि भागवत की स्वीकृति उनकी मौलिक नहीं है. उनसे तीन-चार रोज़ पहले प्रसिद्ध उद्योगपति अज़ीम प्रेमजी अपने व्याख्यान में विज्ञान और सत्य के महत्व को रेखांकित कर चुके थे. सुप्रीमो मोहन भागवत ने भी अपने भाषण में इस बात को स्वीकार कर इन दोनों बातों के महत्व को दर्शाया है। आयुर्वेदिक दवाइयों की प्रामाणिकता व वैज्ञानिकता की बात जोड़ कर उन्होंने इस विमर्श को आगे बढ़ाया है। इसी सन्दर्भ में वैज्ञानिक परीक्षण को ज़रूरी बताया है. अब जब विज्ञान,सत्य और वैज्ञानिक परीक्षण की वक़ालत मोहन भागवत जी ने की है तो यह बात दूर तलक जाएगी। पिछले एक अरसे से देश में चरम अंधविश्वास का माहौल बना हुआ है; प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मिथकीय बातों को वैज्ञानिक चोला पहनाने की कोशिश की और प्राचीन काल में प्लास्टिक सर्जरी की बात की; स्वास्थ्य मंत्री ने गोबर की बात की; बाबा रामदेव ने आनन फानन में कोरोना की चिकित्सा के लिए आयुर्वेदिक औषधि के आविष्कार का दावा किया; कोरोना संकट से निपटने के लिए यज्ञ -हवन किये गए; इससे पहले धार्मिक कट्टरपंथियों ने अंधविश्वास के विरुद्ध अभियान चलाने वालों की महाराष्ट्र और कर्णाटक में हत्याएं की. ऐसी बेशुमार घटनाएं हैं जिनका सम्बन्ध न विज्ञान से है, न ही सत्य से और न ही वैज्ञानिक परीक्षण से.
अंधविश्वासी अपने भावावेश में किसी भी सीमा तक जा सकता है. उससे कुछ भी करवाया जा सकता है. सरकार गलतियां करती हैं। यदि मोदी -सरकार चाहती तो हरिद्वार में कुंभ को रोका जा सकता था, पश्चिम बंगाल के 8 चरणों के चुनाव को 4 चरणों में समाप्त किया जा सकता था. अब मोदीजी ने स्वयं मान लिया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना फ़ैल रहा है. सरकार को पहले से ही मालूम होना चाहिए था कि जब लाखों लोग कुंभ से लौटेंगे तो संक्रमण फैलेगा ही. इस बात को स्वयं भागवत जी ने भी माना है। उन्होंने कहा है कि कोरोना की लहर को लेकर जहां जनता से ढिलाई हुई है वहीं सरकार और अधिकारियों से भी लापरवाही हुई है.
अगर आप अंधविश्वासी हैं और मोदी-शाह भक्त हैं तो इस भयावह दुष्परिणाम को कभी स्वीकार नहीं करेंगे. क्योंकि ‘मोदी है तो मुमकिन है’ जैसा अलोकतांत्रिक नारा अंधविश्वास की देन है. मोदीजी को ‘अवतार’ तक घोषित किया जा चुका है. भक्तों सहित जनता को याद रखना चाहिए कि किसी की भी सरकार दैविक नहीं होती है, उसे भौतिक संसार में ही काम करना पड़ता है. इसलिए विवेक,विज्ञान, तर्क,परीक्षण और सत्य की कसौटियों पर सरकार और उसकी संस्थाओं -फैसलों को परखने की ज़रूरत है. इसके लिए ज़रूरी है कि सरकार ‘ वैज्ञानिक मानसिकता’ ( साइंटिफिक टेम्पर ) को प्रोत्साहन व संरक्षण दे. इस सदी में मध्ययुगीन मानसिकता जहां मानवता -विरोधी है वहीं राष्ट्र-विरोधी भी है क्योंकि अंधविश्वास, अवैज्ञानिकता, असत्य और अपरीक्षण के आधार पर न आधुनिक राष्ट्र बन सकते हैं और न ही मंगल ग्रह को छू सकते हैं; वैज्ञानिक आविष्कार व परीक्षण अपने ढंग से होते हैं; विज्ञान की किसी भी शाखा को राजनीतिक दबावों से नहीं हाँका जा सकता है. यह सत्य सभी धर्मावलम्बी समाजों पर लागू होता है, किसी धर्म विशेष पर ही नहीं। इस युग में अंधविश्वास ही ‘ विश्व गुरु’ के नारे का वाहन बना हुआ है. अब भागवत जी को चाहिए कि वे अपने कार्यकर्ताओं की विशाल सेना को देश में वैज्ञानिक मानसिकता, विज्ञान और सत्य के प्रचार में लगाएं। सरकार से भी कहें कि वह असत्य से ऊपर उठ कर जनता के समक्ष पारदर्शिता से काम करे ; उत्तर सत्य मीडिया और उत्तर सत्य राजनीति के मोहजाल से मुक्ति ले. अंधविश्वास, असत्य और अवैज्ञानिकता के आधार पर पलने वाला राष्ट्र कभी महान नहीं बन सकता. वह औसत दर्ज़े का ही रहेगा,डॉ. मोहन भागवत!
रामशऱण जोशी देश के जाने-माने पत्रकार हैं।