सूज़न बी एंथनी: औरतों के लिए मताधिकार माँगा तो अदालत चढ़ी, पर वो अमेरिकी सिक्कों पर ढली!


पूरी सुनवाई के दौरान यह होता रहा कि जज उसे टोकते रहे और वह अपनी बात कहती रही. एक बार उसने कहा, “जिस तरह गुलामों ने आपके अन्यायपूर्ण कानून के क्रूर हाथों से अपनी आजादी छीन कर हासिल की है, उसी तरह अब हम औरतों की बारी है. हम उसे ले कर रहेंगी और जब भी मौक़ा मिलेगा हम कुछ भी कर उसे छीन लेंगी.”


अशोक पाण्डे अशोक पाण्डे
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“कैदी पर स्थापित कानून के मुताबिक़ मुकदमा चलाया गया है.” वार्ड हंट नाम के जज ने फैसला सुनाने से पहले प्रस्तावना बांधी.

कैदी तिरेपन साल की एक जांबाज औरत थी और अपराधी के कठघरे में थी. उसने जज की बात काटते हुए कहा, “जी हां योर ऑनर. यह मुकदमा उस कानून के मुताबिक़ चलाया गया है जिसे औरतों के खिलाफ पुरुषों ने बनाया है. पुरुषों ने इसकी समीक्षा की है और पुरुषों ने ही इसे पुरुषों के पक्ष में लागू किया है.”

जज ने उसे अनसुना करते हुए फैसला दिया, “अपराधी सूज़न बी. एंथनी पर कानूनी कार्रवाई पर हुए खर्च की भरपाई के अलावा 100 डॉलर का जुर्माना लगाया जाता है.”

सूज़न बी. एंथनी को इसलिए गिरफ्तार किया गया था कि उसने एक साल पहले देश के राष्ट्रपति के आम चुनाव में वोट देने की हिमाकत की थी और अपने साथ की कई औरतों को ऐसा करने के लिए ‘भड़काया’ था. संसार के अधिकतर देशों की तरह तब अमेरिका में भी औरतों को वोट देने का अधिकार नहीं था. 5 नवम्बर 1872 को हुए राष्ट्रपति चुनाव की वोटिंग के दौरान ने चौदह साथिनों के साथ बूथ पर पहुंच कर चुनाव-निरीक्षकों को अपने तर्कों से इस बात पर राजी कर लिया कि वे उन्हें वोट देने दें. तीन दिन बाद इन सभी को गिरफ्तार किया गया. सूज़न बी. एंथनी को छोड़ बाकी महिलाओं को जल्दी ही रिहा कर दिया गया.

महिलाओं के अधिकारों के लिए ताजिंदगी संघर्ष करती रही इस बहादुर औरत के मुक़दमे की सुनवाई 17 जून 1873 को शुरू हुई. देश भर की प्रेस अदालत में इकठ्ठा थी. परिणाम की परवाह किये बिना सूज़न बी. एंथनी ने निडर होकर अपनी पूरी बात कही. उन्होंने पूछा, “क्या अमेरिकी नागरिक का वोट डालना अपराध है?

जजों ने उससे शांत हो जाने को कहा तो वे बिफर कर बोलीं, “एक नागरिक के तौर पर यह मेरे अधिकारों का हनन है. आपने अपने पैरों तले हमारी सरकार के सबसे मूल सिद्धांतों को कुचला है. आप मेरे मेरे नैसर्गिक, नागरिक, राजनैतिक और कानूनी अधिकारों की अनदेखी कर रहे हैं.”

पूरी सुनवाई के दौरान यह होता रहा कि जज उसे टोकते रहे और वह अपनी बात कहती रही. एक बार उसने कहा, “जिस तरह गुलामों ने आपके अन्यायपूर्ण कानून के क्रूर हाथों से अपनी आजादी छीन कर हासिल की है, उसी तरह अब हम औरतों की बारी है. हम उसे ले कर रहेंगी और जब भी मौक़ा मिलेगा हम कुछ भी कर उसे छीन लेंगी.”

जज द्वारा जुर्माना लगाए जाने के बाद उनका उत्तर था, “जहाँ तक इस अन्यायपूर्ण जुर्माने का सवाल है मैं एक कौड़ी भी नहीं दूंगी!”

सूज़न बी. एंथनी ने वाकई एक भी पैसा नहीं भरा. मुकदमे के एक माद बाद अदालत ने जुर्माना वसूल करने उनके घर मार्शल को भेजा. मार्शल ने बताया कि सूज़न के घर ऐसी कोई भी चीज नहीं थी जिसे जब्त कर जुर्माने की रकम पैदा की जा सके. अदालत ने उसके बाद कोई कार्रवाई नहीं की.

इस जीत के बाद उन्होंने अमेरिकी कानून में महिलाओं को संपत्ति का अधिकार दिलाने की लम्बी लड़ाई लड़ी. उन्होंने रोचेस्टर यूनिवर्सिटी में महिलाओं को दाखिला दिलाये जाने के लिए आन्दोलन भी खड़ा किया. इस आन्दोलन का खर्च निकालने के लिए उन्होंने अपनी जीवन बीमा पालिसी तक तुड़ा ली. बाद में जब रोचेस्टर यूनिवर्सिटी में महिलाओं को लिया जाने लगा, यूनिवर्सिटी प्रशासन ने उनके बीमे की रकम भर दी.

अमेरिका की औरतों को वोट डालने का कानूनी अधिकार मिलने में करीब पचास साल और लगे. सूज़न बी. एंथनी की मृत्यु के चौदह साल बाद 1920 में अमेरिकी कानून में संशोधन हुआ. उसके भी अठ्ठावन साल बाद 1978 में सूज़न बी. एंथनी की छवि को अमेरिकी डॉलर के सिक्के में ढाला गया. इसके पहले किसी भी औरत को यह सम्मान नहीं मिला था.

अपने हौसलों से उपलब्धियों की नई इबारतें लिखने वाली औरतों-लड़कियों की छोटी-बड़ी कैसी भी खबर निगाह से गुजरे, एक याद सूज़न बी. एंथनी की जरूर होनी चाहिए जिसने 148 साल पहले ठीक आज के दिन यानी 18 जून 1873 को, सिर्फ पुरुषों के भरे कोर्टरूम को इतना भर कह कर झकझोर डाला था – “नहीं!”

 

 

लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।