एक जर्मन ‘लव जिहादी’ जिसने यहूदी से प्रेम किया और हिटलर को सलामी ना दी !

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नितिन ठाकुर

बात ज़रा लंबी है लेकिन आज के दौर में काम की है। मेरी इस पोस्ट में कुछ तस्वीरें और एक कहानी है। ये तस्वीरें और कहानी मानव इतिहास का वो दस्तावेज़ हैं जिन पर हमें नाज़ होगा। पहले आपको कहानी सुना देता हूं ताकि तस्वीरें समझने में मदद मिले।

दोनों हाथ छाती पर बांधे ये आदमी ऑगस्ट लैंडमेसर है। जब उसके चारों तरफ लोग नाज़ी सैल्यूट कर रहे हैं तब वो अपने आसपास के शोर से बेपरवाह धूप में आंखें मिचमिचाए खड़ा है। जिस सीने के आगे उसने हाथ बांधे हैं उसमें धधकते विरोध को तब शायद लोगों ने ना समझा हो पर 22 मार्च 1991 के दिन जब Die Zeit (द टाइम्स) में ये तस्वीर छपी तो अचानक खलबली मच गई। लोगों को पहली बार ऑगस्ट के बारे में मालूम पड़ा। अहसास हुआ कि जब पूरा जर्मनी नाज़ी रंग में रंगा था उस वक्त एक आदमी ऐसा भी था जिसने अपना हाथ सलामी में नहीं उठाया। तस्वीर खिंची थी 13 जून 1936 को। हर कोई जानता था कि जिस दौर में ऑगस्ट ने नाज़ी सलामी नहीं दी थी तब ऐसा करने का मतलब क्या था?

ऑगस्ट तब पानी के जहाज बनाने वाली कंपनी में कर्मचारी था। मौका था एक ताकतवर जहाज होर्स्ट वेसेल की लॉन्चिंग का। उसने साल 1931 में ही नाज़ी पार्टी की सदस्यता ले ली थी ताकि नौकरी पाने में कोई मदद मिल सके, लेकिन 1935 में एक यहूदी लड़की इरमा एकलर से सगाई के बाद पार्टी ने उसे निकाल बाहर किया। वो दोनों शादी करना चाहते थे लेकिन नाज़ी लोग रक्त शुद्धता के सिद्धांत में बड़ा भरोसा करते थे। वो मानते थे कि नाज़ी शुद्ध आर्य हैं और उनकी शादियां यहूदियों से नहीं होनी चाहिए। ये उनकी तरह का लव जिहाद था।

बहरहाल, 15 सितंबर 1935 को जर्मनी में न्यूरेमबर्ग कानून लागू हो गया जो इस तरह की शादियों को गैर कानूनी ठहराता था। नतीजतन दोनों ने बिना शादी के साथ रहने का फैसला किया। इस कानून के लागू होने के महीने भर बाद ही इरमा ने एक प्यारी सी बच्ची को जन्म दिया। ऑगस्ट जर्मनी में रह तो रहा था लेकिन तानाशाही से ऊब चुका था। उसे हिटलर के तौर तरीके नापसंद थे। आखिरकार 1937 में उसने परेशान होकर जर्मनी छोड़ने का फैसला किया और परिवारके साथ डेनमार्क जाने का मन बनाया। उसकी बदकिस्मती थी कि वो सरहद पर पकड़ा गया और नस्ल को बेइज़्ज़त कराने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिया गया। एक साल तक उसका ट्रायल चलता रहा और अंत में उसे सबूतों के अभाव में सिर्फ चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। परेशानियों का अंत नहीं था। वो अपने प्यार को छोड़ने के लिए राजी नहीं था। नाज़ियों की हर धमकी को वो उड़ाता ही चला जा रहा था। सरकार ने 1938 में उसे पकड़कर तीन सालों के लिए यातनागृह में भेज दिया। ये वही बदनाम यातनागृह थे जिनकी कल्पना आज भी रूह कंपकंपा देती है। इस सज़ा के बाद ऑगस्ट कभी अपने प्यार इरमा से मिल ना सका।

सीक्रेट पुलिस ने इरमा (तस्वीर देखें) को भी नहीं बख्शा था। सात महीने की गर्भवती इरमा को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया जहां उसने आईरीन को जन्म दिया। इसके बाद जल्द ही इरमा को एक यातनागृह में ट्रांसफर कर दिया गया जिसके बाद वो 14 हज़ार दूसरी महिलाओं के साथ कहां गई आप समझ सकते हैं।

साल 1941 में ऑगस्ट जेल से बाहर आया। उसने फोरमैन के तौर पर नौकरी शुरू की। दो ही साल बीते थे कि उसे पीनल इन्फैंट्री में नौकरी करने के लिए मजबूर किया गया। ये सेना का वो हिस्सा था जहां उन लोगों को काम करने के लिए मजबूर किया जाता था जिन्हें किसी मामले में सज़ा दी गई हो। क्रोएशिया में ही वो गुम हो गया जिसके बाद मान लिया गया कि वो मर गया। लाश मिलने का तो सवाल था ही नहीं। साल 1949 में दोनों पति-पत्नी को औपचारिक तौर पर मृत घोषित कर दिया गया और इस तरह नाज़ी जर्मनी में घटी आर्य और यहूदी जोड़े की प्रेम कहानी का अंत हो गया।

ऑगस्ट और इरमा की बेटियों ने अपने माता-पिता की कहानी को दिल में बसाए रखा। साल 1996 में इरीन ने एक किताब छपवाई जिसमें इस कहानी से जुड़े तमाम सबूत थे। जिसने भी बहादुर और ज़िद्दी ऑगस्ट के बारे में पढ़ा वही अभिभूत था। ऑगस्ट अपने दौर में सरकारी प्रतिरोध की मिसाल बन गया। वो तस्वीर जिसमें सैकड़ों लोगों के बीच वो अकेला अपने सीने के सामने हाथ बांधे खड़ा है, उसी तस्वीर ने लोगों को अहसास दिलाया कि चाहे जैसा भी वक्त हो, विरोध अकेला आदमी भी कर सकता है। मेरे लिए ऑगस्ट हीरो है। चाहे उसके विरोध की वजह नितांत राजनीतिक ना होकर यही क्यों ना हो कि उसकी मुहब्बत को व्यवस्था ने स्वीकार नहीं किया। जब वो विरोध कर रहा था तब दुनिया उसके खिलाफ थी, और आज जब वो नहीं है तो उसकी तस्वीर हर उस इंसान के लिए मिसाल है जो किसी ना किसी मज़बूत व्यवस्था के खिलाफ कोई ना कोई वजह लेकर संघर्षरत है।

(जिस पानी के जहाज को ऑगस्ट के साथी सलामी दे रहे थे, दूसरी वर्ल्ड वॉर में जीत के बाद अमेरिका ने उसे अपने बेड़े में ईगल नाम से शामिल कर लिया। वो आज भी समंदर में अपने काम पर है।)

 




(लेखक आज तक से जुड़े युवा पत्रकार हैं )