झूठ का मंत्र जपने वाला फ़ासिस्ट संगठन है RSS- विनोबा भावे

मीडिया विजिल मीडिया विजिल
दस्तावेज़ Published On :


गाँधी की हत्या : मैं कुछ कहना चाहता हूँ

 

मैं उस प्राँत का हूँ जिसमें आरएसएस का जन्म हुआ। जाति छोड़कर बैठा हूँ। फिर भी भूल नहीं सकता कि उसकी जाति का हूँ जिसके द्वारा यह घटना हुई। कुमारप्पा जी और कृपलानी जी ने फौजी बंदोबस्त के ख़िलाफ़ परसों सख्त बातें कही। मैं चुप बैठा रहा। ये दुख के साथ बोलते थे। मैं दुख के साथ चुप रहा। न बोले वाले का दुख जाहिर नहीं होता। मैं इसलिए नहीं बोला कि मुझे दुख के साथ लज्जा भी थी। पवनार में मैं वर्षों से रहा रहूँ, वहाँ पर भी चार-पाच आदमियों को गिरफ़्तार किया गया है। बापू की हत्या से किसी न किसी तरह का संबंध होने का सुबाह है। वर्धा मे गिरफ़्तारियाँ हुईं, नागपुर में हुईं, जगह-जगह हो रही हैं। यह संगठन इतने बड़े पैमाने पर बड़ी कुशलता के साथ फैलाया गया है। इसके मूल बहुत गहरे पहुँच चुके हैं। यह संगठन ठीक फ़ासिस्ट ढंग का है। उसमें महाराष्ट्र की बुद्धि का प्रधानतया उपयोग हुआ है । चाहे वह पंजाब में काम करता हो मद्रास में। सब प्रांतों में उसके सालार और मुख्य संचालक अक्सर महाराष्ट्रीय और अक्सर ब्राह्मण रहे हैं। गुरुजी भी महाराष्ट्रीय ब्राह्मण हैं। इस संगठन वाले दूसरों को विश्वास में नहीं लेते। गाँधीजी का नियम सत्य का था। मालूम होता है कि इनका नियम असत्य का होना चाहिए। असत्य उनकी टेक्निक-उनके मंत्र और उनकी फ़िलोसॉफ़ी है

एक धार्मिक अख़बार में मैंने उनके गुरुजी का एक लेख या भाषण पढ़ा। उसमें लिखा था कि “ हिंदू धर्म का उत्तम आदर्श अर्जुन है, उसे अपने गुरुजनों के लिए आदर और प्रेम था, उसने अपने गुरुजनों को प्रणाम किया और उनकी हत्या की। इस प्रकार की हत्या जो कर सके, वह स्थितप्रज्ञ है।” वे गीता के मुझसे कम उपासक नहीं हैं। वे गीता उतनी श्रद्धा से रोज़ पढ़ते होंगे जितनी श्रद्धा मेरे मन में है। मनुष्य यदि पूज्य गुरुजनों की हत्या कर सके, वह स्थितप्रज्ञ होता है, यह उनकी गीता का तात्पर्य है। बेचारी गीता का इस प्रकार से उपयोग होता है। मतलब यह कि वह सिर्फ़ दंगा-फ़साद करने वाले उपद्रवकारियों की जमात नहीं है। वह फिलोसफ़रों की जमात है। उनका एक तत्वज्ञान है और उसके अनुसार निश्चय के साथ काम करते हैं। धर्मग्रंथों के अर्थ करने की भी उनकी एक ख़ास पद्धति है।

गाँधी जी की हत्या के बाद महाराष्ट्र की कुछ अजीब हालत है। यहाँ सबकुछ आत्यंतिक रूप में होता है। गाँधी हत्या के बाद गाँधी वालों के नाम पर जनता की तरफ से जो प्रतिक्रिया हुई। वह भी वैसी ही अराजक हुई, जैसे पंजाब में पाकिस्तान के निर्माण के वक्त हुई थी।

नागपुर से लेकर कोल्हापुर तक भयानक प्रतिक्रिया हुई। साने गुरुजी ने मुझसे आह्वान किया कि मैं महाराष्ट्र में घूमूँ। जो पवनार को भी नहीं सँभाल सका, वर्धा-नागपुर के लोगों पर असर न डाल सका, वह महाराष्ट्र घूमकर क्या करता। मैं चुप बैठा रहा।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की और हमारी कार्यप्रणाली में हमेशा विरोध रहा है। जब हम जेल में जाते थे, उस वक्त उसकी नीति फौज में, पुलिस में दाखिल होने की थी। जहाँ हिंदू-मुसलमानों का झगड़ा खड़ा होने की संभावना होती, वहाँ ये पहुँच जाते। उस वक्त की सरकार इन सब बातों को अपने फ़ायदे की बात समझती थी। इसलिए उसने भी उनको उत्तेजन दिया, नतीजा हमको भुगतना पड़ रहा है।

आज की परिस्थिति में मुख्य ज़िम्मेदारी मेरी है, महाराष्ट्र के लोगों की है। यह संगठन महाराष्ट्र में पैदा हुआ है। महाराष्ट्र के लोग ही  इसकी जड़ों तक पहुँच सकते हैं।

(सर्वोदय जगत )

 

विनोबा भावे के लेख का यह पन्ना अरुण महेश्वरी की फ़ेसबुक दीवार से साभार