आख़िरकार टाटा ने तनिष्क का वो विज्ञापन वापस ले लिया जो उनके मुताबिक़ सांप्रदायिक सद्भाव बढ़ाने के लिए और कई के लिए धंधा चमकाने के लिए जारी किया गया था। जिस तरह से टाटा जैसी बड़ी कंपनियों ने ट्रोल के सामने घुटने टेके वह संदेह पैदा करता है। कई लोग मानते हैं कि यह सोची समझी रणनीति थी। विज्ञापन बनाने वालों को पता था कि इस माहौल में मुस्लिम घर में हिंदू बहू का दृश्य कैसी प्रतिक्रिया पैदा करेगा और विवाद का रंग जो भी हो, ब्रांड तनिष्क लोगों के दिमाग़ में घर कर जायेगा।
पता नहीं, यह बात सही है या ग़लत, लेकिन इस विज्ञापन पर हुए विवाद ने भारतीय समाज में हिंदू-मुस्लिम रिश्तों को लेकर एक नफ़रती तस्वीर पेश की है। पिछले दिनों जिस तरह से ‘लव’ और ‘जिहाद’ जसे दो अलग संदर्भों वाले शब्दों को जोड़कर राजनीतिक उद्देश्यों के लिए जो एक ‘पद-बंध’ गढ़ा गया, विज्ञापन उसे बढ़ाने का ज़रिया बन गया।
तो क्या हिंदू-मुस्लिम शादी की बात इतनी आपत्तिजनक है। शायद नहीं, अगर लड़की मुस्लिम हो तो। ‘हिना’, ‘बांबे’, ‘वीर ज़ारा’ से लेकर हालिया आयी ‘बाजीराव मस्तानी तक हिंदू प्रेमी और मुस्लिम प्रेमिका’ वाली फ़िल्मों को समाज ने हाथो-हाथ लिया है। फ़िल्में हिट हुई हैं। (यह हिंदू समाज के पुरुषार्थ का प्रतीक है!)
भारतीय संविधान इस बात की इजाज़त देता है कि किसी भी जाति-धर्म के बालिग लोग शादी कर सकते हैं। समाज या परिवार को इसे रोकने का हक़ नहीं है। इसी क़ानूनी कवच का नतीजा है कि हज़ारों लोगों ने अंतरधार्मिक विवाह किया है और उनके रिश्ते उतने ही अच्छे या बुरे साबित होते हैं जितना समान धर्म वालों के होते हैं।
‘लव जिहाद’ को लेकर हुए दुष्प्रचार का मक़सद यह बताना है कि शातिर मुस्लिम नौजवान, भोली-भाली हिंदू लड़कियों को बहकाकर शादी कर लेते हैं। फिर लड़की का धर्म बदल दिया जाता है। यह वही ‘मनुस्मृति-वादी’ मिज़ाज है जो स्त्री को निर्णय लेने लायक़ नहीं मानता। जो कहता है कि स्त्री को बचपन में पिता, जवानी में पति और बुढ़ापे में पुत्र के अधीन रहना चाहिए। ऐसे लोग मान ही नहीं सकते कि कोई हिंदू लड़की अपनी मर्ज़ी से किसी मुस्लिम से शादी कर सकती है। जबकि ऐसे अनेक उदाहरण मौजूद हैं। धर्म बदलना भी ज़रूरी नहीं। महान रंगकर्मी हबीब तनवीर की पत्नी जीवन भर मोनिका मिश्र ही रहीं। जब शादी धार्मिक रीति से होती है तो ही क़ानूनन धर्म बदलना ज़रूरी हो जाता है, वरना स्पेशल मैरिज एक्ट में धर्म का कोई रोल नहीं है।
बहरहाल, हक़ीक़त ये है कि हिंदू ही नहीं मुस्लिम लड़कियों ने भी ख़ूब अंतरधार्मिक विवाह किये हैं। जहाँ प्रेम एक संभावना है, वहाँ विवाह के रिश्ते की भी संभावना रहती है। प्रेम की भावना किसी धर्म की बाधा नहीं मानती।
नीचे की लिस्ट में कुछ ऐसी लव जिहादिनो का नाम है जो पैदा तो मुस्लिम घर में हुईं लेकिन उन्होंने शादी हिंदू या ग़ैरमुस्लिम से की। लिस्ट में ज़्यादातर मशहूर शख्सियत हैं, वरना आम जीवन में ऐसे लोग मिलते ही रहते हैं-
सलमा सिद्दिकी–कृशन चंदर
इरफ़ाना–शरद जोशी
रोशन आरा (अन्नपूर्णा देवी)–पं.रविशंकर
सुरैया–इन्द्रजीत गुप्ता
मेहरुन्निशा–अनिल विश्वास
गौहर बाई कर्नाटकी–बाल गंधर्व
शमा ज़ैदी–एम.एस.सथ्यु
शमशाद बेग़म–गनपत लाल भट्टी
ज़ोहरा सहगल–कामेश्वर नाथ सहगल
शीरीन मोहम्मद अली-नानाभाई भट्ट (महेशभट्ट के पिता)
नर्गिस–सुनील दत्त
वहीदा रहमान-कमल जीत
मधुबाला (मुमताज़ बेगम)-किशोर कुमार
तबस्सुम–विजय गोविल
मुमताज़–मयूर वाधवानी
रेहाना सुल्ताना–बी. आर इशारा
नादिरा–वी.एस.नायपॉल
नीलोफ़र–विष्णु भागवत
चांद उस्मानी–महेश कौल
मलिका बानो–किशोर शर्मा
असग़री बाई–चमन लाल गुप्ता
शकीला–पी जी सतीश
इम्तियाज़ गुल–अनिल धारकर
नीलिमा अज़ीम–पंकज कपूर
नादिरा ज़हीर–राज बब्बर
सीमा चिश्ती–सीताराम येचुरी
सारा अब्दुल्ला–सचिन पायलट
नफ़ीसा अली-कर्नल आर.एस. सोढ़ी
दिलनवाज शेख़ (मान्यता)-संजय दत्त
सुज़ैन खान–ऋतिक रोशन
अलविरा ख़ान–अतुल अग्निहोत्री
लैला ख़ान–रोहित राजपाल
मुनिरा जसदानवाला–नाना चुडास्मा
सिमोन ख़ान–अजय अरोरा
ज़रीना वहाब–आदित्य पंचोली
फ़ातिमा घड़ियाली–अजीत आगरकर
माना कादरी–सुनील शेट्टी
नज़ीम–अरुण आहूजा (गोविंदा के पिताजी )
फ़राह ख़ान–शिरीष कुंदर
ख़ुशबू(नक़हत ख़ान) –सुंदर सी
शबाना रज़ा–मनोज वाजपेयी
सबीना यास्मीन- कबीर सुमन
सोनम (बख्तावर)–राजीव राय
तस्नीम–विक्रम मेहता
शहनाज़–टीनू आनंद
फ़ौजिया फ़ातिमा–दिलीप चेरियन
फ़रीदा–पंकज उधास
जाहिदा हुसैन– के.एन सहाय
सईदा ख़ानम–बृज सदाना
कौसर मुनीर–निर्मल पांडेय
फ़रहीन–मनोज प्रभाकर
शबनम–रोहित रामकृष्णन
शहनाज़ हुसैन–आर.के.पुरी
तजोर सुल्ताना–टी. के सप्रू
साजिदा–हेमंत भोंसले
शाहीन– सुमित सहगल
हबीबा रहमान–गजेंद्र चौहान
सबा नकवी–संजय भौमिक
नाज़नीन- मनीष तिवारी
नासिरा शर्मा (लेखिका)–डॉ.शर्मा
‘लव’ के गुनहगार, इधर भी हैं, उधर भी
जिहादिनों का प्यार, इधर भी है उधर भी..!