आपातकाल की याद -1
राष्ट्रपति के नाम प्रधानमंत्री का अत्यंत गोपनीय पत्र
(यह पत्र राष्ट्रपति कार्यालय की फाइल में मिला)
प्रधानमंत्री, भारत सरकार
नयी दिल्ली, 25 जून 1975
आदरणीय राष्ट्रपति जी,
जैसा कि कुछ देर पहले आपको बताया गया है कि हमारे पास जो सूचना आयी है उससे संकेत मिलता है कि आंतरिक गड़बड़ी की वजह से भारत की सुरक्षा के लिए गंभीर संकट पैदा हो गया है। यह मामला बेहद जरूरी है।
मैं निश्चय ही इस मसले को कैबिनेट के समक्ष ले जाती लेकिन दुर्भाग्यवश यह आज रात में संभव नहीं है। इसलिए मैं आप से इस बात की अनुमति चाहती हूं कि भारत सरकार (कार्य संपादन) अधिनियम 1961 संशोधित नियम 12 के अंतर्गत कैबिनेट तक मामले को ले जाने की व्यवस्था से छूट मिल जाय। सुबह होते ही कल मैं इस मामले को सबसे पहले कैबिनेट में ले जाऊंगी।
इन परिस्थितियों में और अगर आप इससे संतुष्ट हों तो धारा 352-1 के अंतर्गत एक घोषणा किया जाना बहुत जरूरी हो गया है। मैं उस घोषणा का मसौदा आपके पास भेज रही हूं। जैसा कि आपको पता है धरा-353 (3) के अंतर्गत इस तरह के खतरे के संभावित रूप लेने की स्थिति में, जिसका मैंने उल्लेख किया है, धारा-352 (1) के अंतर्गत आवश्यक घोषणा जारी की जा सकती है।
मैं इस बात की संस्तुति करती हूं कि यह घोषणा आज रात में ही की जानी चाहिए भले ही कितनी भी देर क्यों न हो गयी हो और इस बात की सारी व्यवस्था की जाएगी कि इसे जितनी जल्दी संभव हो सार्वजनिक किया जाएगा।
आदर सहित
भवदीय
(इंदिरा गांधी)
राष्ट्रपति अहमद द्वारा आपातकाल की घोषणा
संविधान के अनुच्छेद 352 के खंड 1 के अंतर्गत प्राप्त अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए मैं, फखरूद्दीन अली अहमद, भारत का राष्ट्रपति इस घोषणा के जरिए ऐलान करता हूँ कि गंभीर संकट की स्थिति पैदा हो गयी है जिसमें आंतरिक गड़बड़ी की वजह से भारत की सुरक्षा के सामने खतरा पैदा हो गया है।
नयी दिल्ली, राष्ट्रपति / 25 जून 1975
आपातकाल की याद-2
कैबिनेट से कोई सलाह नहीं
कैबिनेट सचिव बी.डी. पांडेय को 25-26 जून की रात में लगभग साढ़े चार बजे प्रधानमंत्री निवास से फोन आया जिसमें कहा गया कि सवेरे छह बजे मंत्रिमंडल की एक बैठक होनी है। उन्हें इस बात की हैरानी थी कि 25 और 26 की रात में इतने बड़े पैमाने पर गिरफ्तारी का आदेश किसने और कैसे जारी किया। सामान्य तौर पर इस तरह के सभी निर्देश गृहमंत्रालय के जरिए जारी होते थे और उनके संचार के अपने चैनल थे।
बी.डी.पांडेय के अनुसार 26 जनवरी 1975 से पहले कैबिनेट की किसी भी बैठक में इसका जिक्र नहीं हुआ था कि देश के हालात इस कदर खराब हो गए हैं कि इमरजेंसी लगाने की जरूरत पड़ रही है।
इंटेलिजेंस ब्यूरो के डायरेक्टर आत्मा जयराम ने अपने बयान में बताया कि देश में इमरजेंसी लगा दी गयी है। इसकी जानकारी उन्हें 26 जून को अपने दफ्तर जाने के बाद ही हुई।
भारत सरकार के गृह सचिव एस.एल.खुराना को इसकी जानकारी 26 जून को सवेरे छह बजे उस समय हुई जब उन्हें कैबिनेट मीटिंग की सूचना मिली। वह लगभग साढ़े छह बजे पहुंचे तो उन्होंने देखा कि कैबिनेट की बैठक चल रही थी।
पूर्व कानून और न्यायमंत्री एच.आर.गोखले को इमरजेंसी लगने की जानकारी पहली बार तब हुई जब 26 जून 1975 को सबेरे वह मंत्रिमंडल की बैठक में भाग लेने पहुंचे। आपातकाल की घोषणा के बारे में न तो उनसे और न उनके मंत्रालय से किसी तरह का सलाह मशविरा किया गया।
शाह कमीशन की रिपोर्ट ने पाया कि भारत में उस समय कहीं भी ऐसी कोई असाधारण स्थिति नहीं पैदा हुई थी जिसकी वजह से सामाजिक, आर्थिक अथवा कानून की ऐसी समस्या पैदा हुई हो जो आंतरिक इमरजेंसी की घोषणा के लिए बाध्य करे। सरकारी दस्तावेजों से आयोग ने निम्नांकित तथ्यों को जुटाया-
1. आर्थिक मोर्चे पर किसी भी तरह का खतरा नहीं था।
2. कानून और व्यवस्था के बारे में हर पखवाड़े आने वाली रपटों से पता चलता है कि सारे देश में स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में थी।
3. इमरजेंसी की घोषणा से एकदम पहले की अवधि पर ध्यान दें तो राज्य सरकारों की ओर से गृहमंत्रालय को कोई भी ऐसी रिपोर्ट प्राप्त नहीं हुई थी जिसमें कानून और व्यवस्था के बिगड़ने का संकेत मिलता हो।
4. आंतरिक इमरजेंसी लगाने के सिलसिले में 25 जून 1975 से पूर्व गृहमंत्रालय ने किसी भी तरह की योजना नहीं तैयार की थी।
5. इंटेलिजेंस ब्यूरो ने 12 जून 1975 से लेकर 25 जून 1975 के बीच की अवधि की कोई भी ऐसी रिपोर्ट गृहमंत्रालय को नहीं दी थी जिससे यह आभास हो कि देश की आंतरिक स्थिति इमरजेंसी लगाने की मांग करती है।
6. गृहमंत्रालय ने प्रधानमंत्री के पास ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं दी जिसमें उसने देश की आंतरिक स्थिति पर चिंता प्रकट की हो।
7. गृह सचिव, कैबिनेट सचिव और प्रधानमंत्री के सचिव जैसे वरिष्ठ अधिकारियों को इमरजेंसी की घोषणा के मुद्दे पर विश्वास में नहीं लिया गया लेकिन प्रधानमंत्री के तत्कालीन अतिरिक्त निजी सचिव आर.के.धवन शुरू से ही इमरजेंसी की घोषणा की तैयारियों में लगे रहे।
8. गृहमंत्री ब्रह्मानंद रेड्डी की बजाय गृह राज्यमंत्री ओम मेहता को काफी पहले से इस मुद्दे पर विश्वास में लिया गया। केवल कुछ मुख्यमंत्रियों और दिल्ली के लेफ्टिनेंट गर्वनर को इमरजेंसी लगाने के बारे में विश्वास में लिया गया।
9. दिल्ली के लेफ्टिनेंट गर्वनर और हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, राजस्थान, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्रियों को प्रधानमंत्री द्वारा आंतरिक आपातकाल के अंतर्गत संभावित कार्रवाई की अग्रिम जानकारी दी गयी लेकिन इस तरह की कोई अग्रिम जानकारी उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु, जम्मू कश्मीर, त्रिपुरा, उड़ीसा, केरल, मेघालय और केन्द्र शासित प्रदेशों की सरकारों को नहीं दी गयी। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा ने बताया कि आपातकाल की घोषणा के बारे में उनको 26 जून की सुबह उस समय जानकारी मिली जब वह केंद्रीय मंत्रियों उमाशंकर दीक्षित और केशव देव मालवीय के साथ नाश्ते की मेज पर थे और इस खबर से उन लोगों को भी उतनी ही हैरानी हुई। इमरजेंसी का आदेश गृहमंत्रालय से और मंत्रिमंडल सचिवालय के जरिए आना चाहिए था।
जैसा कि पहले ही उल्लेख किया जा चुका है प्रधानमंत्री ने राष्ट्रपति को भेजे गए अपने ‘अत्यंत गोपनीय’ पत्र में बताया था कि भारत सरकार (कार्य निष्पादन) अधिनियम 1961 के नियम 12 के अंतर्गत अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए उन्होंने इस निर्णय की सूचना कैबिनेट को नहीं दी है और वह इसका उल्लेख सुबह होते ही सबसे पहले कैबिनेट में करेंगी।
शाह आयोग की सिफारिशें
खुफिया विभाग का दुरुपयोग: आयोग ने सिफारिश की कि इस बात की पूरी सावधानी बरती जाय और हर तरह के उपाय किए जाएं ताकि खुफिया विभाग को सरकार अथवा सरकार में शामिल किसी व्यक्ति द्वारा अपने निजी हित के लिए राजनीतिक जासूसी के उपकरण के रूप में इस्तेमाल न किया जा सके। इस मुद्दे पर अगर जरूरी हो तो सार्वजनिक बहस चलायी जाए।
आपातकाल की याद-3
जब अंबिका सोनी ने पत्रकार को गिरफ़्तार कराया
1 नवंबर 1975 को 21वें राष्ट्रमंडल संसदीय सम्मेलन के प्रतिनिधियों का नागरिक अभिनंदन लाल किले के दीवान-ए-आम में शाम को 7 बजे आयोजित किया गया था। इस समारोह की रिपोर्टिंग के लिए ‘फाइनेंशियल एक्सप्रेस’ के रिपोर्टर वीरेन्द्र कपूर को जिम्मेदारी सौंपी गयी थी।
समारोह के समाप्त होने के बाद युवकों के एक समूह ने नारे लगाए और हवा में पर्चें फेंके। तुरत ही पुलिस ने पहुंच कर वहां उन युवकों को गिरफ्तार कर लिया। वीरेन्द्र कपूर ने देखा कि एक युवक की कलाई को एक महिला ने कस कर पकड़ लिया है और इस महिला के बारे में उन्हें बाद में पता चला कि वह अंबिका सोनी हैं। वीरेन्द्र कपूर ने बताया कि उन्होंने अंबिका सोनी से कहा कि ‘लोगों को गिरफ्तार करने का काम आप पुलिस पर छोड़ दीजिए।’
कपूर ने बताया कि अंबिका सोनी के साथ उनको बहस करते देख तत्कालीन एसपी (सीआईडी) के. एस. बाजवा वहां दौड़ते हुए पहुंचे और श्रीमती सोनी से बातचीत करने के बाद पुलिस वालों को आदेश दिया कि वे कपूर को गिरफ्तार कर लें। उन्हें गेट के बाहर खड़ी पुलिस की गाड़ी तक ले जाया गया। कपूर का कहना है कि इस बीच शायद अंबिका सोनी को जानकारी मिली कि मैं एक पत्रकार हूं और फिर वह मेरे पास आयीं और आकर मुझसे कहा कि ‘क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि उस लड़के को गिरफ्तार कराने में आपको मेरी मदद करनी चाहिए थी न कि मुझे रोकना चाहिए था?’
वीरेन्द्र कपूर को लगा कि यह महिला मुझसे चाहती है कि मैं खेद व्यक्त करूं और उन्होंने कहा कि ‘मैं अभी भी मानता हूं कि जब भारी संख्या में यहां पुलिस तैनात है तो आपको इससे कोई सरोकार नहीं होना चाहिए।’ वीरेन्द्र कपूर ने बताया कि यह सुनकर अंबिका सोनी ने कहा-‘ठीक है फिर जाओ बंद रहो।’ वीरेन्द्र कपूर को कोतवाली पुलिस स्टेशन ले जाया गया और फिर जेल भेज दिया गया।
(स्रोत: शाह आयोग की रिपोर्ट)
आपातकाल की याद-4
कैसे किशोर कुमार को प्रताड़ित किया गया
सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने जनवरी 1976 में फिल्म उद्योग के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत शुरू की ताकि आकाशवाणी और टीवी पर इंदिरा गांधी के 20 सूत्री कार्यक्रम की प्रशंसा में तैयार किये जाने वाले कार्यक्रमों के लिए सहयोग लिया जा सके। इस मकसद से मंत्रालय के संयुक्त सचिव सी बी जैन, दूरदर्शन के महानिदेशक पी वी कृष्णमूर्ति और फिल्म्स डिवीजन के निदेशक ए के वर्मा तत्कालीन सूचना व प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल के आदेश पर अप्रैल 1976 के पहले सप्ताह में बंबई रवाना हुए।
बंबई में एक बैठक बुलाई गयी जिसमें श्रीराम वोहरा, जी पी सिप्पी, बी आर चोपड़ा और सुबोध मुखर्जी शामिल हुए। इस बैठक में जी पी सिप्पी ने बताया कि गायक किशोर कुमार इस सिलसिले में किसी तरह का सहयोग करने को तैयार नहीं हैं और मंत्रालय के अधिकारियों को उनसे सीधे बातचीत करनी चाहिए। इसके बाद सी बी जैन ने टेलीफोन पर किशोर कुमार से बातचीत की और इस संदर्भ में सरकार की नीति से उन्हें अवगत कराया। श्री जैन ने यह भी कहा कि इस सिलसिले में वह और उनके कुछ अधिकारी उनसे मिलना चाहते हैं लेकिन किशोर कुमार इसके लिए तैयार नहीं हुए। उन्होंने कहा कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है, मैं स्टेज पर गाता नहीं हूं और यह कि उन्हें दिल की बीमारी है इसलिए डॉक्टरों ने उन्हें पूरी तरह आराम करने की सलाह दी है। फिर उन्होंने यह भी कहा कि वह किसी भी हालत में इस तरह के कार्यक्रमों के लिए गाना नहीं चाहते। श्री जैन को उनका यह व्यवहार और मिलने से भी इनकार करना बहुत अभद्रतापूर्ण लगा।
दिल्ली वापस पहुंचकर जैन ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय के सचिव एस एम एच बर्नी को सारी बातें बताते हुए कहा कि किशोर कुमार ने न केवल सरकार के साथ असहयोग करने की बात कही है बल्कि उनका व्यवहार भी बहुत अभद्रतापूर्ण रहा।
इसके बाद 30 अप्रैल 1976 को श्री बर्नी ने एक आदेश जारी किया जिसमें कहा गया था कि- 1. किशोर कुमार के सभी गानों के रेडियो और दूरदर्शन से प्रसारण पर प्रतिबंध लगा दिया जाय। 2. जिन फिल्मों में किशोर कुमार ने अभिनय किया है उनकी सूची तैयार की जाय ताकि उस पर आगे की कार्रवाई हो। 3. किशोर कुमार के गीतों के ग्रामोफोन रिकार्ड्स की बिक्री पर रोक लगा दी जाय।
इस कार्रवाई का मकसद अन्य फिल्म निर्माताओं और कलाकारों को सबक सिखाना था। 4 मई 1976 को आकाशवाणी ने और 5 मई 1976 को दूरदर्शन ने किशोर कुमार के गानों के प्रसारण पर प्रतिबंध लगा दिया। 20 मई 1976 को मंत्रालय के अअधिकारियों ने पॉलीडोर से और 4 जून 1976 को एच एम वी रेकार्ड कंपनियों से संपर्क किया और यह पता लगाना चाहा कि किशोर कुमार के गाये गीतों के रेकार्ड्स की बिक्री को कैसे रोका जाय। मंत्रालय के सचिव बर्नी के इस कदम को विद्याचरण शुक्ल ने 14 मई 1976 के अपने पत्र से अपनी स्वीकृति दी। उन्होंने शाह आयोग के समक्ष इन सारी कार्रवाइयों के लिए खुद को जिम्मेदार माना।
(स्रोत:शाह आयोग की रिपोर्ट)
(यह सामग्री समकालीन तीसरी दुनिया, जून 2011 अंक में छपी थी। मशहूर पत्रकार आनंद स्वरूप वर्मा इस पत्रिका के संपादक हैं।)