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“आज ही 1989 में डॉ.केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म नागपुर (महाराष्ट्र) में हुआ। स्वतंत्रता सेनानी डॉ.बी.एस.मुंजे ने उन्हें मेडिकल की शिक्षा के लिए 1910 में कलकत्ता (कोलकाता) भेजा। वहाँ राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आए और केशव चक्रवर्ती के छद्म नाम से काकोरी कांड में भागीदारी निभाई। विजय दशमी (27 सितंबर) के दिन 1925 में कुछ स्वयंसेवकों के साथ नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। राष्ट्र व समाज को संगठित और सामर्थ्यवान बनाने में पूरी जिंदगी खपा दी। 21 जून, 1940 को नागपुर में अंतिम सांस ली।”
यह हिंदी के सबसे बड़े अख़बार दैनिक जागरण, जो प्रसार संख्या के लिहाज़ से दुनिया में नंबर एक होने का दावा करता है, में 1 अप्रैल को छपा। आरएसएस के संस्थापक डा.केशव बलिराम हेडगवार उसके मुताबिक 1925 में हुई प्रसिद्ध काकोरी ट्रेन डकैती में शामिल थे जिसे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्यों ने चंद्रशेखर आज़ाद, बिस्मिल और अश्फाक़ जैसे क्रांतिकारियों के नेतृत्व में अंजाम दिया गया था। बहुत लोगों के लिए यह नयी जानकारी थी। लोगों ने पढ़ा और पन्ना पलट दिया। अखबार का दावा है कि वे केशव चक्रवर्ती के छद्म नाम से शामिल हुए थे।
लेकिन कानपुर और लखनऊ में बैठे दो लोगों के लिए यह बेचैन करने वाली बात थी। वे इसे बरदाश्त नहीं कर सके और सोशल मीडिया में उन्होंने तुरंत इसका प्रतिवाद किया। उन्होंने बताया कि केशव चक्रवर्ती और केशव हेडगेवार दो अलग लोग हैं। इन्हें जानबूझकर एक बताना षड़यंत्र है। साथ ही कलकत्ता पढ़ने गये हेडगेवार की बिस्मिल से मुलाकात होने की बात तो हास्यास्पद ही है, क्योंकि तब बिस्मिल की उम्र ही बारह साल थी और वे शाहजहाँपुर में थे।
एचआरए (हिंदुस्तान रिपब्लिक आर्मी) के सक्रिय सदस्य क्रांतिकारी रामकृष्ण खत्री को काकोरी षड़यंत्र केस में दस साल की सज़ा हुई थी, हालाँकि वे ट्रेन डकैती वाले एक्शन में शामिल नहीं थे। उनके बेटे उदय खत्री अब करीब 75 साल के हो चुके हैं। उन्होंने जागरण की इस ख़बर को ‘नया इतिहास’ बताते हुए फेसबुक पर अख़बार की कतरन लगाई। वहीं 80 किलोमीटर दूर क्रांति कुमार कटियार भी इसे लेकर बेचैन हो रहे थे। उन्होंने भी इस पर कड़ी आपत्ति जतायी। (ऊपर मुख्य तस्वीर में दोनों की टिप्पणियाँ हैं।)
लखनऊ के कै़सरबाग़ में रह रहे उदय खत्री ने मीडिया विजिल से कहा-” क्रांतिकारियों के परिजन संगठित नहीं हैं, इसलिए ऐसी गड़बड़ियाँ हो रही हैं। जब तक क्रांतिकारी लोग जीवित थे, कोई अख़बार ऐसा करने की हिमाक़त नहीं कर सकता था। लेकिन या तो आज के संपादकों में कुछ ज्ञान ही नहीं है, या फिर जानबूझकर बदमाशी की जा रही है।”
कानपुर में रह रहे क्रांति कुमार कटियार, भगत सिंह और आज़ाद के साथी डॉ.गया प्रसाद कटियार के बेटे हैं जिन्हें लाहौर षड़यंत्र केस में कालापानी की सज़ा हुई थी। वे एचएसआरए ( भगत सिंह के वैचारिक ताप ने एचआरए में सोशलिस्ट शब्द जोड़कर उसे एचएसआरए यानी हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन बना दिया था) के तमाम एक्शन में शामिल रहे और 15 मई 1929 को सहारनपुर बम फैक्ट्री का संचालन करने के आरोप में गिरफ्तार हुए। 17 साल जेल में रहने के बाद वे 1946 में रिहा किये गये जब आज़ादी मिलने की पूरी तैयारी हो चुकी थी। क्रांतिकुमार कटियार भी दैनिक जागरण के इस फ़र्जीवाड़े पर भड़के हुए हैं।
क्रांति कुमार कटियार ने मीडिया विजिल से कहा-” दरअसल, आरएसएस आज़ादी की लड़ाई में शामिल नहीं था। उसके खेमे में क्रांतिकारी हैं ही नहीं, इसलिए वो जानबूझकर झूठी कहानियाँ रचता है जिसे अख़बार बेशर्मी से छाप रहे हैं।”
यह वाक़ई हैरानी की बात है कि लखनऊ का कोई अख़बार ऐसी हरक़त करे। इस शहर में क्रांतिकारी दल के तमाम लोग निवास करते रहे हैं। रामकृष्ण खत्री से लेकर यशपाल तक ने इसी शहर में अपना पूरा जीवन बिताया है। उन्होंने क्रांतिकारी दल के आँखों देखा क़िस्सा लिखा हुआ है। वहाँ ऐसी हरक़त किसी बड़े डिज़ायन का हिस्सा ही लगता है।
उदय खत्री कहते हैं कि केशव चक्रवर्ती उन दस क्रांतिकारियों में शामिल थे जिन्होंने काकोरी ट्रेन डकैती को अंजाम दिया था। वे पकड़े नहीं गये थे। 1968 में जब आरएसएस के मुखपत्र पाँचजन्य ने क्रांतिकारियों पिर विशेषांक निकाला तो एक लेख उनका भी शामिल किया गया था।उनकी तस्वीर भी छापी थी। दैनिक जागरण उन्हें केशव हेडगेवार बताने का अपराध कर रहा है। उदय जी ने पाँचजन्य के विशेषांक के पन्ने भी सोशल मीडिया पर डाले। इसका संपादन प्रसिद्ध पत्रकार, पद्मश्री वचनेश त्रिपाठी ने किया था। तमाम क्रांतिकारियों ने इसके लिए अपना संस्मरण भेजा था। दिलचस्प बात ये है कि भगत सिंह के दल के तमाम सहयोगी आज़ादी के बाद वामपंथी विचारधारा के साथ थे, लेकिन उनसे भी इस अंक में लिखवाया गया था।
काकोरी ट्रेन डकैती को 9 अगस्त 1925 को अंजाम दिया गया था। यह एचआरए का बड़ा एक्शन था जिसने अंग्रेजी सरकार ही नहीं, विदेशी मीडिया का भी ध्यान खींचा था। एचआरए के सिर्फ दस क्रांतिकारियों ने लखनऊ के करीब आठ डाउन सहरनपुर-लखनऊ पैसेंजर ट्रेन को रोककर सरकारी ख़ज़ाना लूट लिया था। इस एक्शन का नेतृत्व चंद्रशेखर आज़ाद ने किया था जो पकड़े नहीं गये। बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान के कारण बाद में कई अन्य लोग पकड़े गये। रामप्रसाद बिस्मिल, अश्फाक उल्ला खाँ, ठाकुर रोशन सिंह और राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को फाँसी की सज़ा सुनायी गयी वहीं 16 अन्य क्रांतिकारियों को चार साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सज़ा मिली। इसमें कई लोग डकैती में शामिल नहीं थे, लेकिन एचआरए के अन्य एक्शन में शामिल पाये गये थे।
बहरहाल, काकोरी डकैती में शामिल केशव चक्रवर्ती को पकड़ा नहीं जा सका। पाँचजन्य में छपे उनके संस्मरण के साथ उनकी तस्वीर छपी है और परिचय में संपादक ने लिखा है कि केशव चंद चक्रवर्ती ‘इदरीस अली’ के उपनाम के साथ क्रांतिकारी दल में काम करते थे। काकोरी कांड में शामिल रहे बाद में उन्हें किसी अन्य मामले में छह साल की सज़ा हुई। बहरहाल, ‘इदरीस अली’ बने केशव चक्रवर्ती को दैनिक जागरण केशव बलिराम हेडगेवार के रूप में पेश कर नया इतिहास रच रहा है।
हेडगेवार कलकत्ता जानवरों के डाक्टरी पढ़ने गये थे और शुरूआती क्रांतिकारी दल अनुशीलन समिति से उनका जुड़ाव भी हुआ था, लेकिन बाद में कांग्रेस में गये और फिर 1925 में उन्होंने आरएसएस का गठन किया और आज़ादी की लड़ाई से अपने को अलग कर लिया। आरएसएस ने लगातार अंग्रेज़ों का साथ दिया। यही नहीं अपने दल को भगत सिंह और साथियों के प्रभाव से बचाने के लिए वे काफी सतर्क थे। आरएसएस के तीसरे सरसंघचालक बाला साहेब देवरस ने स्वयं बताया है कि कैसे डा.हेडगेवार ने भगत सिंह के प्रभाव से बचाने के लिए हफ्ते भर तक क्लास ली थी।
अफ़सोस, अब उन्हीं हेडगेवार को क्रांतिकारी दल में स्थापित करने का फ़र्ज़ीवाड़ा गोदी मीडिया के ज़रिये किया जा रहा है।
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जब हेडगेवार ने देवरस को भगत सिंह से ‘बचाने’ के लिए हफ़्ते भर तक क्लास ली !