कभी-कभार कुछ रचनाएं कालजयी हो जाती हैं जो बरसों तक व्यक्तियों और राष्ट्रों के लिए प्रेरणा का काम करती हैं। ”इनविक्टस” ऐसी ही एक कविता है, जिसे अंग्रेज़ कवि विलियम अर्नेस्ट हेनली (1849-1903) ने 1875 में लिखा था और यह पहली बार उनके संग्रह में 1888 में प्रकाशित हुई थी। इनविक्टस का अर्थ होता है अपराजेय यानी जिसे जीता न जा सके। नेल्सन मंडेला ने 27 साल के अपने कारावास के दौरान एक पर्ची पर इस कविता को लिख कर अपने पास सहेजे रखा था। यह कविता कैदगाह के अंधेरे में उनकी आत्मा की रोशनी बनकर दमकती रही। मंडेला के मुताबिक यही कविता थी जिसने उन्हें इतने लंबे कारावास के दौरान जि़ंदा रहने का साहस दिया। वे इस कविता को जेल में साथी कैदियों को सुनाया करते थे।
”इनविक्टस” के बारे में बर्मा की नेता आंग सान सू की ने लिखा है, ”इस कविता ने मेरे पिता को और उनके समकालीनों को आज़ादी के संघर्ष में प्रेरणा दी है, और दुनिया भर में अलग-अलग वक्त पर इसने तमाम लोगों के लिए प्रेरणास्रोत का काम किया है।” कोई डेढ़ सौ साल पहले लिखी गई इस कविता की प्रासंगिकता का पता इस बात से लगता है कि 2009 में नेल्सन मंडेला के ऊपर क्लाइंट ईस्टवुड की बनाई फिल्म का नाम भी ”इनविक्टस” था। यह कविता आज भी प्रासंगिक है और कल भी रहेगी। नेल्सन मंडेला के सौवें जन्मदिन पर मीडियाविजिल अपने पाठकों से यह कविता साझा कर रहा है। इसका हिंदी में अनुवाद अभिषेक श्रीवास्तव ने किया है।
INVICTUS (अपराजेय)
ईश्वर क्या है, ये मैं नहीं जानता
लेकिन शुक्रगुज़ार हूं उसका कि धरती को बेधती मौत की सुरंग तले
पैठे गहरे अंधेरे में चिपटी देह के बावजूद
अजेय है आत्मा मेरी।
हालात के खूंखार पंजों में कैद
ना मैं चीखा ना चिल्लाया
बेशिकन रहा चेहरा
चलता रहा किस्मत का हथौड़ा सिर पर लहूलुहान हुआ माथा
पर न झुका, न हुआ कभी दोहरा।
दर्द और आंसुओं के सैलाब के उस पार
नाचती हैं मौत की परछाइयां
बरसों से जारी दर्द का ये आलम
पर दहला न सका मुझको
रहूंगा निडर ऐसे ही
हर दम।
फर्क नहीं पड़ता मुझको
हो कितनी भी तंग राह मुक्ति की
चाहे जितनी भीषण हो नर्क की आग
मैं
मालिक अपनी तकदीर का
अपनी आत्मा का सरताज।