एक दिन मोदीजी अचानक हामिद अंसारी साहब के संसद स्थित कक्ष में चले आए।वह पहले तो चकित हुए।फिर उनका औपचारिक स्वागत किया।मोदीजी ने कहा- ‘ हमें आपसे और बड़ी जिम्मेदारी निभाने की उम्मीद है मगर आप हमारी मदद नहीं कर रहे ‘।अंसारी साहब ने कहा -‘मैं राज्यसभा में और बाहर जो करता हूँ, वह सबके सामने है।’
इस पर मोदी जी ने कहा-‘आप शोरगुल के बीच विधेयक पारित क्यों नहीं करवाते? ‘ उपराष्ट्रपति जी ने कहा ‘ जब सदन के नेता तथा उनके साथी विपक्ष में हुआ करते थे तो शोरशराबे के बीच कोई भी विधेयक पारित न करवाने के मैंने जो व्यवस्था दी थी,उसका उन्होंने स्वागत किया था।अभी भी उसी सामान्य तरीक़े से विधेयक पारित होंगे।’
इसके बाद प्रधानमंत्री जी ने कहा कि राज्यसभा टीवी सरकार का पक्ष नहीं लेता।इस पर अंसारी साहब का जवाब था कि यह सही है कि उसकी स्थापना में मेरी भूमिका जरूर रही है मगर उसकी संपादकीय नीति को मैं नियंत्रित नहीं करता।
स्पष्ट है कि अंसारी साहब को इससे भी बड़ी जिम्मेदारी देने की बात तो आईगई होनी ही थी,बाद में राज्यसभा टीवी का भी जो हश्र हुआ,वह सब जानते हैं।अंसारी साहब की राज्यसभा सभापति पद से विदाई के समय भी मोदी जी अंसारी साहब की विचारधारा पर तंज कसने से नहीं चूके थे।जाहिर है उनकी धर्मनिरपेक्ष विचारधारा, प्रधानमंत्री की अपनी हिन्दूत्ववादी विचारधारा के अनुकूल नहीं थी।