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मद्रास प्रेसीडेंसी में 1927 में एक G.O. पास किया था जिसके द्वारा सरकारी मेडिकल और इंजीनियरिंग कालेजों में पिछड़ी जातियों को आरक्षण प्रदान किया गया था. भारत का संविधान लागू होने के बाद State of Madras v. Champakam Dorairajan के केस में एक ब्राह्मण महिला ने मद्रास प्रेसीडेंसी के इस शासनादेश को चुनौती दी और कहा कि इस प्रावधान से भारत के संविधान के अनुच्छेद 16(2) के तहत प्रदान किए गए उसके समता के अधिकार का उल्लंघन होता है.
मद्रास उच्चन्यायालय ने आरक्षण के इस प्रावधान को अनुच्छेद 16(2) के तहत समता के अधिकार का उल्लंघन माना और मद्रास प्रेसीडेंसी के उक्त प्रावधान को असंवैधानिक घोषित कर दिया. मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा जहाँ सुप्रीम कोर्ट ने भी मद्रास उच्चन्यायालय के उक्त निर्णय को बरक़रार रखा.
स्टेट ऑफ़ मद्रास बनाम चंपकम दोरईराजन के मामले में दिए गए निर्णय को निष्प्रभावी बनाने के लिए जवाहर लाल नेहरू ने संसद में प्रथम संविधान संशोधन बिल प्रस्तुत किया. डॉ. आम्बेडकर ने इस बिल के पक्ष में ज़ोरदार अपील की लेकिन जनसंघ के श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने इसका ज़ोरदार विरोध किया. बिल पास हो गया और आरक्षण पर आया पहला अवरोध दूर हो गया.यह 1951 की बात है।
इस इतिहास को जानने की ज़रूरत इसलिए है क्योंकि जनसंघ जो आज भाजपा है, शुरू से ही पिछड़ा विरोधी रही है. ग़ौर करने वाली बात ये भी है कि आरक्षण के इस प्रावधान को एक ब्राह्मण महिला ने चुनौती दी. इसलिए इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि महिला की कोई जाति नहीं होती.