बीते 8 नवंबर को 500 और 1000 की नोटबंदी की घोषणा से लोगों को हुई परेशानी को छुपाने के लिए अब पुलिस ने पत्रकारों को धमकाना शुरू कर दिया है। ऐसी पहली घटना राजधानी दिल्ली के बीचोबीच सफ़दरजंग एंक्लेव में घटी है। यहां स्थित आइसीआइसीआइ बैंक के कर्मचारियों द्वारा अंग्रेज़ी की मशहूर पत्रिका कारवां के पत्रकार सागर के साथ बदसलूकी के बाद आई दिल्ली पुलिस ने पहचान पत्र देखने के बावजूद न केवल उन्हें पत्रकार मानने से इनकार कर दिया, बल्कि उलटे धमकाते हुए सलाह दी, ”सरकार बदल गई है… ऐसे कहीं वीडियो मत बनाया कर।”
आख्यानपरक रिपोर्टिंग के लिए मशहूर दिल्ली प्रेस की अंग्रेज़ी पत्रिका दि कारवां के पत्रकार सागर घोषणा के बाद से ही इससे लोगों को हो रही दिक्कत पर काम कर रहे थे। उन्होंने 11 नवंबर को इस पर एक रिपोर्ट भी लिखी थी कि 500 और 1000 के नोट बंद होने से कैसे लोगों को कतारों में खड़ा होकर परेशान होना पड़ रहा है और घंटों की मशक्कत के बाद भी वे खाली हाथ लौट आने को मजबूर हैं। रिपोर्ट छपने के ठीक दो दिन बाद 13 नवंबर यानी रविवार को उन्हें खुद इसका शिकार होना पड़ा।
कारवां पर सोमवार को लिखी स्टोरी में सागर ने पूरी घटना का ब्योरा दिया है। बात रविवार शाम 4 बजे के बाद की थी जब वे दक्षिणी दिल्ली के सफ़दरजंग एंक्लेव स्थित आइसीआइसीआइ बैंक की शाखा से पैसे निकालने गए। उनके वहां पहुंचने के दस मिनट बाद बैंक के कर्मचारियों ने कांच का दरवाज़ा बंद कर दिया। चूंकि कोई घोषणा नहीं की गई थी इसलिए लोगों को उम्मीद थी कि दरवाज़ा दोबारा खुल जाएगा। बाहर बैठा एक कर्मचारी जो अपने फोन पर कुछ कर रहा था, उसने लोगों के पूछने पर इतना ही बताया कि ”सर्वर डाउन है”। लोगों ने पूछा कि फिर भीतर गए लोग कैसे पैसे निकाल पा रहे हैं, लेकिन उसने जवाब नहीं दिया।
थोड़ी देर बाद कतार में खड़े लोग बेचैन होने लगे। करीब 4.50 पर सफेद शर्ट पहना एक कर्मचारी बैंक के बाहर आया तो एक अधेड़ शख्स ने प्रबंधक से मिलवाने और बात करवाने की उससे गुज़ारिश की। इस दौरान एक बूढ़ी महिला भीतर के कर्मचारियों का ध्यान खींचने के लिए कांच का दरवाज़ा खटखटए जा रही थी। जब कर्मचारी ने कोई जवाब नहीं दिया तो लोग भड़क गए। अधेड़ उम्र के शख्स के साथ उसकी झड़प हुई और बुजुर्ग महिला दोनों के बीच फंस गई।
सागर लिखते हैं कि ऐसी घटना कोई अपवाद नहीं थी क्योंकि एक दिन पहले शनिवार को दिल्ली पुलिस के पास ऐसी घटनाओं से संबंधित 4500 कॉल आए थे। इस घटना को सागर अपने मोबाइल फोन के कैमरे से रिकॉर्ड करने लगे, जिस पर सफेद शर्ट वाले कर्मचारी ने उन्हें रोका। उसके बाद वह आगे बढ़ा और सागर को खींचता हुआ सीढि़यों से नीचे सड़क तक ले गया। वे कहते कि वे प्रेस से हैं लेकिन उसने नहीं सुनी। इसके बाद दूसरे कर्मचारियों और सुरक्षा कर्मियों ने उन्हें घेर लिया।
सागर लिखते हैं कि सफेद शर्ट वाले बैंक कर्मचारी ने उनसे कहा, ”तेरे को मैं बताता हूं। तू बच के नहीं जाएगा। तू जानता नहीं मेरे को…। मेरे ऊपर पहले से केस है। मैं खुद पुलिस हूं…।” दूसरे कर्मचरी ने आवाज़ लगायी, ”पुलिस को बुलाओ, इसे थाने ले जाओ।” फिर सफेद शर्ट वाले ने किसी को फोन लगाकर बुलवाया। घबराकर पत्रकार ने 100 नंबर पर फोन लगाया और पुलिसवालों को वहां के हालात के बारे में सूचना दी। उनके पास ऑटोमेटेड संदेश आया, ”पीसीआर पैट्रोल वाहन ईजीएल-22 मोबाइल 9821002822 आपके पास जल्द पहुंच रहा है।” इस दौरान सागर इंतज़ार करते रहे और सफेद शर्ट वाला शख्स उन पर नज़र बनाए हुए था।
थोड़ी देर बाद एक सिपाही मोटरसाइकिल से आया। यह मानते हुए कि पुलिस उनके कहने पर आई है, वे उसके पास जाकर अपनी शिकायत कहने लगे। पुलिसवाले ने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा कि बैंक कर्मचारी को ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था, लेकिन वे यहां से निकल जाएं वरना बड़े अधिकारी आ जाएंगे। करीब पंद्रह मिनट बाद दो पुलिसवाले बैंक में आए। उनमें से एक सुमेर सिंह हाथ में डायरी लिए उनके पास पहुंचा। सागर लिखते हैं, ”जब मैंने उसे अपना परिचय बताया तो वह उसका सबूत मांगने के लिए आगे आया औश्र बोला- दिखा भाई, कार्ड दिखा। क्या प्रेस है देखते हैं।”
दि कारवां से जारी प्रेस कार्ड दिखाने पर वह नहीं माना औश्र उसने कहा, ”ये कोई प्रेस नहीं है। ले चल थाने इसको।” सागर ने उन्हें समझाने की कोशिश की लेकिन उसने कहा, ”थाने ले जा के तहकीकात करेंगे, सब समझ आ जाएगा तुझे।” फिर सिंह ने उनसे पूछा, ”किसने परमीशन दिया… कन्हैया को हमने अंदर किया था, याद है। तू क्या है। सरकार बदल गयी है। ऐसे कहीं वीडियो मत बनाया कर।”
इसके बाद सुमेर सिंह बैंक कर्मचारी की ओर पलटे जिसके खिलाफ़ सागर ने शिकायत की थी और उनसे सलाह ली कि क्या करना है, ”आप कहोगे तो हम थाने ले जाएंगे, मगर फिर तहकीकात होगी। नहीं तो जाने दूंगा।”
सागर लिखते हैं, ”कर्मचारी ने कहा कि वह मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहता। ‘वीडियो डिलीट करो’- सिंह ने मुझसे कहा और तब तक मुझे नहीं जाने दिया जब तक कि मैंने उसे दिखा नहीं दिया कि मैंने वैसा ही किया है। उस वक्त तक हालांकि मैंने वीडियो की एक कॉपी अपने सहकर्मियों को भेज दी थी।”
सागर लिखते हैं, ”अपना नाम, पिता का नाम, पता आदि लिखवाने के बाद 6 बजे के बाद मुझे जाने दिया गया, एक शिकायतकर्ता के तौर पर नहीं बल्कि एक अपराधी के रूप में जिसे पुलिसवाले की उदारता के कारण छोड़ दिया गया था। मैंने अपना प्रेस कार्ड वापस लिया और दरवाज़े की ओर बढ़ा, तो सिंह ने कहा- ‘भारत के नागरिक हैं, छोड़ रहे हैं। छोटी-मोटी तो झड़प होती रहती है, तो वीडियो बनाओगे।”
सागर आगे लिखते हैं, ”मैं हिल गया था और इस बात से ज्यादा परेशान था कि पुलिसवालों ने मेरा विवरण ले लिया है। मुझे चिंता थी कि वे मुझे बाद में भी कॉल करेंगे और अगर मैंने उनके हिसाब से नहीं किया तो वे मेरे परिवार का उत्पीड़न करेंगे। मुझे इस बात का डर था कि इतनी देर में मेरे मन में जो डर समा चुका था, उसके चलते मैं एक पत्रकार के बतौर अपना काम नहीं कर पाऊंगा… दुनिया बहुत अलग नहीं दिख रही थी लेकिन मैं अब उसे अलहदा तरीके से देख रहा था।”
कारवां ने इस घटना पर दिल्ली के पुलिस आयुक्त आलोक कुमार वर्मा और दक्षिणी दिल्ली के पुलिस उपायुक्त ईश्वर सिंह से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उनकी प्रतिक्रिया अब तक नहीं मिल सकी है। वर्मा और सिंह दोनों की ओर से पलट कर कोई जवाब नहीं आया है।
नीचे देखें शुरुआती झड़प का वीडियो साभार कारवां