बीहड़ों और बाग़ियों की धरती पर शाह आलम बना रहे हैं अपने किस्म का इकलौता संग्रहालय

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बीहड़ और बागियों के लिए कुख्यात चम्बल में स्वाधीनता आंदोलन की एक लंबी और निर्णायक लड़ाई लड़ी गई है. अधिकतर लोग इस आख्यान से पहली बार शाह आलम की मार्फ़त परिचित हुए जब उन्होंने चम्बल के गाँवों की यात्रा साइकिल से की और आजादी की धरोहर पर लेख लिखे. इस इतिहास पर अभी तक किसी मुख्यधारा की संस्था की नज़र नहीं पड़ी है या जानबूझकर उपेक्षा की गई. स्थितियाँ अब बदल चुकी हैं. चम्बल अब वैसा नहीं रह गया है, वह अब स्वयं ही अपने शहीदों-सुधारकों और नायकों की अमूल्य धरोहरों और उनकी स्मृतियों व उनसे जुड़ी तमाम लिखित-अलिखित सामग्री को सहेजने को स्वयं ही कमर कस चुका है. उनकी अगुवाई कर रहे शाह आलम चंबल संग्राहलय को बनाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं. चम्बल संग्रहालय की कल्पना उन्हीं की उपज है. अंतरराष्ट्रीय अभिलेख दिवस (9जून) पर विशेष शाह आलम की कलम से विशेष लेख प्रस्तुत है.

(संपादक)


चम्बल संग्रहालय की परिकल्पना शाह आलम ने की है

चंबल का ज़िक्र होता है तो डकैतों की तस्वीर ज़ेहन में उमड़ती है. चंबल के प्रति ये नकारात्मकता भी लाता है, लेकिन चंबल हमेशा डकैतों के लिए क्यों जाना जाए, इसी सवाल को लेकर चंबल संग्रहालय की नींव रखी गई है. देश के सबसे बड़े गुप्त क्रांतिकारी दल ‘मातृवेदी’ के शताब्दी वर्ष के दौरान करीब 2700 किमी की चंबल संवाद यात्रा मैंने सायकिल से की थी. इसी शोध यात्रा के दौरान ज़ेहन में चंबल संग्रहालय का ख्वाब बुना गया था. फिर मार्च, 2018 में चंबल संग्रहालय की यात्रा आरंभ हुई.

चंबल संग्रहालय में अब तक करीब 14 हजार पुस्तकें, सैकड़ो दुर्लभ दस्तावेज, विभिन्न रियासतों के डाक टिकट, विदेशों के डाक टिकट, राजा भोज के दौर से लेकर सैकड़ों प्राचीन सिक्के, सैकड़ों दस्तावेजी फिल्में आदि उपलब्ध हो चुके हैं. संग्रहालय में आठ कांड रामायण से लेकर रानी एलिजाबेथ के दरबारी कवि की 1862 में प्रकाशित वह किताब भी मौजूद है, जिसके हर पन्ने पर सोना जड़ा है. यहां दुर्लभ और दुनिया के सबसे पुराने स्टांप, डाक टिकट भी होंगे. इसके साथ ही यहां ब्रिटिश काल से लेकर दुनिया भर के करीब चालीस हजार डाक टिकट मौजूद हैं. इसके अलावा संग्रहालय में करीब तीन हजार प्राचीन सिक्कों का कलेक्शन भी किया जा चुका है. चंबल संग्राहलय को सहयोग और शोध के लिए विदेशों से भी लोग संपर्क कर रहे हैं. यह वाकई सुखद है कि जहां सिर्फ बदहाली और डकैतों के खौफनाक किस्से हैं, उस हिस्से में संग्रहालय बन चुका है.

चंबल संग्रहालय में सहेजी जा रही अमूल्य किताबें

संग्रहालय को बेहतर बनाने के लिए और भी शोध सामग्री तलाश की जा रही है. संग्रहालय समाज में बिखरे अमूल्य ज्ञान स्रोत सामग्री सहेजने के मिशन में जुटा है, जहां से भी बौद्धिक संपदा मिलने की रोशनी दिखती है, संग्रहालय उन सुधी जनों से संपर्क कर रहा है. दुर्लभ दस्तावेज, लेटर, गजेटियर, हाथ से लिखा कोई पुर्जा, डाक टिकट, सिक्के, स्मृति चिन्ह, समाचार पत्र, पत्रिका, पुस्तकें, तस्वीरें,पुरस्कार, सामग्री-निशानी, अभिनंदन ग्रंथ, पांडुलिपि आदि के गिफ्ट करने के लिए हर दिन हमख्याल लोगों के दर्जनों फोन आ रहें है. इस ज्ञानकोष से चंबल संग्रहालय समृद्ध और गौरवांवित होगा.

पहले चरण में सन्दर्भ सामग्री के संरक्षण के लिये डिजिटाइजेशन, लेमिनेशन आदि पर बीते तीन महीने से शिद्दत से काम चल रहा है. दुर्लभ वस्तुओं की सहेजने वाले किशन पोरवाल की पांच दशकों की कड़ी मेहनत और दस्तावेजी फिल्म निर्माता शाह आलम की दो दशकों की सामग्री से यह यात्रा शुरु हुई है. चंद ही दिनों में इस पहल से आज तमाम लोग खुले दिल से जुड़ रहे हैं.

सारिका, का इमरजेंसी अंक

आठ कांड रामायण से लेकर रानी एलिजाबेथ के दरबारी कवि की किताब मौजूद

चंबल संग्रहालय में आठ कांड की रामायण है, जिसमें लव कुश कांड भी है. प्राचीन गीता, संस्कृत और उर्दू में साथ-साथ लिखी दुर्लभ मनुस्मृति तो है ही, रानी एलिजाबेथ के दरबारी कवि की 1862 में प्रकाशित वह किताब जिसके हर पन्ने पर सोना है, वह भी यहां मौजूद है. 1913 में छपी एओ ह्यूम की डायरी. प्रभा पत्रिका के सभी अंक. चांद का जब्तशुदा फांसी अंक और झंडा अंक, गणेश शंकर विद्यार्थी जी द्वारा अनुदित ‘बलिदान’ और आयरलैण्ड का इतिहास पुस्तक, जिस पढ़कर नौजवान क्रांतिकारी बनने का ककहरा सीखते थे] इनकी मूल प्रति. तमाम गजेटियर, क्रांतिकारियों के मुकदमे से जुड़ी फाइलों के अलावा देश और विदेश की 18वीं और 19वीं शताब्दी के हर मुद्दों की दुर्लभ किताबों का जखीरा भी मौजूद है.

इन दुर्लभ पत्रिकाओं का भी जखीरा है

सरस्वती, माधुरी, विश्वमित्र, चांद, प्रभा, सुधा, विश्व मित्र, सुकवि, कन्या मनोरंजन, नवजीवन विशाल भारत, हंस, सारिका, धर्मयुग, दिनमान, साप्ताहिक हिन्दुस्तान आदि सहित देश-विदेश की सात हजार दुर्लभ पत्रिकाएं के अलावा प्रमुख साहित्यकारों की दुर्लभ कृतियां आकर्षित कर रही हैं. आजादी आंदोलन के दौरान के साहित्य का जखीरा मौजूद है. सबसे दिलचस्प बात यह है कि सैकड़ों प्रत्रिकाओं के प्रवेशांक भी मौजूद हैं। आजादी के पहले के कुछ मैगजीनों के भेजे गए टिकट लगे लिफाफे भी संरक्षित किये गए हैं।

दुनिया से सबसे पुराने स्टांप-डाकप्राचीन सिक्कों का भी कलेक्शन

चंबल संग्रहालय में डाक टिकट और स्टांप भी सहेजे जा रहे हैं. राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के शाहपुरा स्टेट का स्टांप, इसे दुनिया का सबसे पुराना स्टांप माना जाता है, यहां मौजूद है. इसके साथ ही ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा जारी स्टांप का संग्रह, तथागत बुद्ध की 2550वीं जयंती पर जारी स्टांप, आजादी की 25वीं वर्षगांठ पर भारत और सोवियत संघ द्वारा जारी स्टांप, जंग-ए-आजादी 1857 की 150वीं वर्षगांठ पर रानी लक्ष्मीबाई पर जारी स्टांप प्रमुख संकलन में हैं. देश के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. आर. वेंकटरमन को विदेशी दौरों के दौरान गिफ्ट अनोखे डाक टिकटों का संग्रह भी यहां है. ब्रिटिश काल से लेकर दुनिया भर के करीब चालीस हजार डाक टिकट मौजूद हैं. हजारों लिखित और अलिखित पत्र लिफाफे भी मौजूद हैं, इसके अलावा संग्रहालय में करीब तीन हजार प्राचीन सिक्कों का कलेक्शन भी मौजूद है.


कौन हैं शाह आलम?

शाह आलम ने अवध विश्वविद्यालय, फैजाबाद और जामिया सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली से पढ़ाई की. डेढ़ दशक से घुमंतू पत्रकारिता का देश-दुनिया में चर्चित नाम रहे हैं. भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के जानकार हैं. 2006  में ‘अवाम का सिनेमा’ की नींव रखी और देश में 17 केन्द्र हैं, जहां कला के विभिन्न माध्यमों को समेटे एक दिन से लेकर हफ्ते भर तक आयोजन अक्सर चलते रहते हैं. अवाम का सिनेमा के जरिये वे नई पीढ़ी को क्रांतिकारियों की विरासत के बारे में बताते हैं. शाह आलम का नाम चम्बल में 2700 किमी से अधिक दूरी साइकिल से तय करके मातृवेदी के गहन शोध के लिए जाना जाता है. अभी हाल में ‘चंबल जन संसद’ और आजादी के 70 साल पूरे होने पर ‘आजादी की डगर पे पांव’ और 2338 किमी की उनकी यात्रा काफी सुर्खियों में रही. दर्जनों दस्तावेजी फिल्मों का निर्माण करने वाले शाह की इसी साल‘ मातृवेदी-बागियों की अमरगाथा’ पुस्तक प्रकाशित हुई है।