नरेश बारिया स्वदेशी
गांधीजी अखंड भारत चाहते थे । वे दुनिया के सामने ऐसी मिसाल पेश करना चाहते थे कि भारत में सभी वर्ण -जाति के लोग शांति से रहते हैं । इसलिए गांधीजी बंटवारे के सख्त खिलाफ थे । उनकी मर्जी के बावजूद बंटवारा हुआ । बंटवारा होने के बाद गांधीजी ने पदयात्रा करके पाकिस्तान और भारत को फ़िर से एक करने की घोषणा कर दी थी ।
जब देश का विभाजन हुआ तब भारत और पाकिस्तान की ओर से पूंजी के बंटवारे का हिसाब लगाने के लिये कई समितियां बैठी थीं । हर चीज़ का बंटवारा हुआ । घोड़े पाकिस्तान भेज दिए गए, बग्घियाँ भारत में रह गयीं । मेज-कुर्सी , पुस्तकालय वगैरह सब चीजों का बंटवारा ऐसे ही हुआ। अंत में खजाने में उपलब्ध रुपयों का हिसाब हुआ। आकलन के मुताबिक तय हुआ कि पाकिस्तान के हिस्से कुल जमा 75 करोड निकलते थे। इनमें से भारत सरकार ने कामचलाने हेतु 20 करोड़ रुपये पाकिस्तान को एडवांस में दे दिए थे। अब रह गए बाकी के 55 करोड़ रुपये ।
इतने में कश्मीर की ओर से कबायली और पाकिस्तानी सेना का हमला हो गया। भारत सरकार ने एलान कर दिया कि जब तक पाकिस्तान अपने घुसपैठिये वापस लेकर युद्ध बंद नहीं करेगा तब तक भारत सरकार पाकिस्तान के 55 करोड़ रुपये की दूसरी किश्त रोककर रखेगी । दूसरी ओर पाकिस्तान ने भारत पर वचनभंग का आरोप लगाते हुए उसे इन्टरनेशनल कोर्ट में घसीटने की धमकी दे दी ।
12 जनवरी 1948 के दिन माउन्टबेटन ने महात्मा गांधी को पाकिस्तान की धमकी वाली ये बात बताई । उस दिन गांधीजी का मौन था लेकिन गांधीजी ने अपना सिर हिलाते हुए बात समझने का इशारा किया ।
वैसे भी गांधीजी 13 जनवरी से दिल्ली में शांति स्थापना करने हेतु अनशन करनेवाले थे । तब संयोग से गांधीजी के मंच से एग्रीमेंट के अनुसार पाकिस्तान को उनके हिस्से के 55 करोड लौटाने की बात उठी । यहाँ पर गौर करनेवाली बात यह है कि 13 जनवरी के दिन गांधीजीने 55 करोड़ लौटाने की बात कही थी। जबकि कोर्ट में पुलिस ने सबूत रखते हुए ये साबित किया था कि गांधीजी की हत्या का षड्यंत्र 1 जनवरी 1948 को रच लिया गया था ! इसका मतलब गोडसे का 55 करोड़ का बहाना सरासर झूठ था ! वो उसके काफी पहले से ही गांधीजी को मारने की कोशिश में लगा हुआ था जिसकी अलग वजहें थीं।
गांधीजी जानते थे कि ये आजाद भारत का पहला करार है और अगर पहले करार में ही भारत को अंतर्राष्ट्रीय कोर्ट का सामना करना पड़ा तो आने वाले दिनों में कौन सा देश भारत पर भरोसा करेगा ? गांधीजी को यह भय भी सता रहा था कि पाकिस्तान को उनके 55 करोड़ लौटाने में विलंब होगा तो वहां के अल्पसंख्यक हिंदुओ पर पाकिस्तान अधिक हिंसा कर सकता है . . . .गांधीजी की बात मानकर भारत सरकार ने 14 जनवरी 1948 के दिन नैतिक मूल्यों के आधार पर पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये दिए ।
फिर भी गांधीजी ने अपना अनशन नही तोड़ा क्योंकि उनका अनशन तो इस बात के लिए था ही नहीं। दंगा शांत होने के बाद जब दंगाइयों ने अपने-अपने हथियार बापू के सामने रखे तब जाकर 18 जनवरी 1948 के दिन गांधीजी ने अपना अनशन समाप्त किया ।
दिल्ली देश की राजधानी है , दिल्ली देश की नाक है । जब दिल्ली में ही हम दंगों को रोकने में हार जाते तो हम दुनिया के सामने क्या मुंह दिखाते ? गांधीजी ने जो अनशन किया था वो दिल्ली बचाने हेतु किया था, दंगा शांत करने हेतु किया था ना कि पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपये दिलवाने के लिए . . . . !
वैसे भी नैतिक आधार पर पाकिस्तान को 55 करोड़ लौटाने के पक्ष में अकेले गांधीजी ही नहीं थे । 55 करोड़ लौटाने के पक्ष में RBI गवर्नर एच.वी.देशमुख , सी . डी. कामत , राजेन्द्र प्रसाद , राजगोपालाचारी आदि भी थे ।
गांधीजी के खिलाफ दुष्प्रचार करने वालों को यह बात अच्छी तरह जान लेनी चाहिए कि अंग्रेजी राज में जितनी यातना हिंदुओं ने झेली थी उतनी ही यातना मुसलमानों ने भी झेली थी । गांधीजी ने पाकिस्तान के बच्चे , बुड्ढे , महिलाओं की लाचारी को ध्यान में रखकर , जिन्हें राजनीति से कोई लेना-देना नहीं था उन लोगो को ध्यान में रखकर मानवता के आधार पर , नैतिकता के आधार पर पाकिस्तान के 55 करोड़ लौटाने की बात कही थी । आजकल के नेताओं की तरह भ्रष्टाचार करके खा नहीं गए थे ! ! !
25 जून 1934 से लेकर लगातार 30 जनवरी 1948 तक गांधी हत्या का प्रयास करने वाले चाहे कितना भी झूठ फैलाए किंतु गांधी नामक सत्य के सूर्य को कभी अस्त नहीं कर पाएंगे ।