अख़बारनामा: सत्य नहीं सत्ता और उसके छल के साथ खड़ी पत्रकारिता

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
ओप-एड Published On :


भारत सरकार ने कोरोना से लड़ने की अपनी रणनीति नहीं बताई है. किसी योजना की भी घोषणा नहीं की है. अचानक घोषित लॉकडाउन 21 दिन के बाद नहीं बढ़ेगा ऐसा कैबिनेट सचिव बोल चुके हैं जिनका लॉकडाउन की घोषणा से कोई संबंध ज्ञात नहीं है. ऐसे में केंद्रीय मंत्रियों और राज्यों के मुख्यमंत्री अपनी डफली अपना राग अलाप रहे हैं   और हमारे गाजियाबाद के सांसद, केंद्रीय मंत्री और रिटायर जनरल वीके सिंह पूछे जाने पर टेलीविजन पर विश्व स्वास्थ्य संगठन के तथाकथित प्रोटोकोल का हवाला दे चुके हैं. इसके बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन कह चुका है कि उसने ऐसा कोई प्रोटोकोल जारी नहीं किया है. ऐसी हालत में चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों के लिए मास्क और पीपीई की कमी से लेकर क्वारंटाइन करने की व्यवस्था नहीं होने तक कई तरह की अव्यवस्था है.

लॉकडाउन होने से कुछ ही पहले कोविड के काम आने वाले उत्पादों का मानक तय हुआ था और राज्य सरकारों से कहा गया है कि वे अपने स्तर पर खरीदारी नहीं करें. ऐसे में अस्पतालों के ढेर सारे कर्मचारी क्वारंटाइन हो रहे हैं कहीं डॉक्टर कार में सो रहे हैं तो कहीं नर्सें आरोप लगा रही हैं कि उनके रहने की व्यवस्था ठीक नहीं है. नोएडा में नए जिलाधिकारी के आने के बाद क्वारंटाइन किए गए लोगों की शिकायत थी कि पुरुषों और महिलाओं को एक ही शौचालय का उपयोग करना पड़ रहा है.

इस हफ्ते प्रधानमंत्री के मांगने पर सोनिया गांधी ने उन्हें पांच सलाह दी और इनमें एक है सरकारी विज्ञापनों पर दो साल के लिए रोक. मीडिया में इससे बेहद घबराहट है और मालिकों के संगठन को छोड़िए पत्रकार एसोसिएशन भी मीडिया के लिए पैकेज की मांग कर रहे हैं. वही जो अपने सदस्यों को वेज बोर्ड की सिफारिशें नहीं दिला पाते हैं.

इसी हफ्ते यह भी हुआ कि अखबार और टेलीविजन चैनल बाकायदा गलत खबर चलाते पकड़े गए. खेद भी जताना पड़ा और इसके साथ यह भी बताया जाता रहा कि सही सूचनाओं के लिए देश में मीडिया का और इसके लिए सरकारी विज्ञापनों का कितना महत्व है.

इन सबके बीच भारत ने कोरोना संक्रमण में काम आने वाली हाइड्रोऑक्सीक्लोरोक्वीन गोलियों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया. अमेरिका ने इसकी मांग की, फिर धमकी दी और भारत सरकार ने तुरंत अपने ही प्रतिबंध में ढील दे दी. पर अखबारों में यह सब नहीं के बराबर छपा या फिर ऐसे जैसे कोई खास बात हुई ही नहीं. सोमवार, 6 अप्रैल को द टेलीग्राफ ने खबर छापी कि अमेरिकी राष्ट्रपति ड्रोनाल्ड ट्रम्प ने भारत से वो गोलियां मांगी हैं जिन्हें भारत ने अपनी जरूरत के लिए अलग कर रखा है.

भारत सरकार ने अमेरिकी राष्ट्रपति से इस टेलीफोन वार्ता का उल्लेख तो किया था पर यह खुलासा नहीं किया गया था कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने अब प्रतिष्ठित हो चुकी हाइड्रोऑक्सीक्लोरोक्वीन की गोलियों की मांग की है. ना ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने ट्वीट में ऐसी कोई बात बताई. पीआईबी की एक विज्ञप्ति में यह बताने का ख्याल रखा गया था कि दोनों नेताओं ने योग और आयुर्वेद पर चर्चा की. इसमें भी इस बात का कोई जिक्र नहीं था कि ट्रम्प ने टैबलेट की मांग की है.

अखबार ने लिखा था कि उसी दिन भारत ने इस दवा के निर्यात पर पाबंदी लगाई थी. इसके साथ यह संकेत दिया गया था कि निर्यातक को पूरा भुगतान एडवांस मिल गया हो तो स्पेशल एक्सपोर्ट जोन और एक्सपोर्ट यूनिट से मानवीय आधार पर निर्यात की अनुमति दी जाएगी. शनिवार को संबंधित महानिदेशालय ने एक नया आदेश जारी किया जिसने बगैर किसी अपवाद के प्रतिबंध आदेश को बढ़ा दिया. मतलब निर्यात की संभावना पूरी तरह खत्म कर दी. यह काम भारत सरकार ने खुद किया. किसी ज्ञात सार्वजनिक दबाव के बगैर.

इसके बावजूद अमेरिका की जिस मांग का जिक्र पीआईबी की विज्ञप्ति में नहीं था उस संबंध में उसी दिन इंडियन एक्सप्रेस ने पहले पन्ने पर खबर दी थी कि भारत इसपर विचार करता लग रहा है. अखबार ने सूत्रों के हवाले से लिखा कि मंत्री समूह की बैठक में इसपर चर्चा होने की संभावना है. सूत्रों ने ही कहा था कि इससे भारतीय फार्मास्यूटिकल उद्योग के लिए अमेरिकी बाजार में पहुंच हासिल करना संभव होगा.

हिन्दुस्तान टाइम्स और टाइम्स ऑफ इंडिया में भी यह खबर पहले पन्ने पर थी. इनके अनुसार भारत ने अमेरिका से कहा है कि वह जो कर सकता है करेगा और यह खबर ट्रम्प ने अमेरिका में जो कहा उसके आधार पर थी. एचटी ने सरकारी अधिकारियों के हवाले से लिखा कि भारत इस दवाई का स्टॉक तैयार कर रहा है और सबसे बुरी स्थिति के लिए तैयार हो जाने के बाद निर्यात पर विचार करेगा. स्थिति निर्यात के पक्ष में लगती है. और विचार कुछ घंटों में हो गया.

मंगलवार, सात अप्रैल को अमेरिका की धमकी का जिक्र सोशल मीडिया पर छाया हुआ था. हिन्दुस्तान टाइम्स की एक खबर का लिंक भी था लेकिन मैं जो अखबार देखता हूं उनके पहले पन्ने पर कुछ नहीं था. एचटी के वाशिंगटन संवाददाता की यह खबर देर रात की होगी फिर भी दोपहर होते-होते लोगों ने मान लिया कि भारत ने निर्यात न करने की अपनी ही पाबंदी तोड़कर अमेरिका को निर्यात करने की हामी भर दी है. बाद में पता चला कि यह खबर सुबह 08.39 की ही थी. खुद प्रतिबंध लगाना, खुद तोड़ना और अप्रत्यक्ष धमकी पर ही कुछ घंटे में काम हो जाना अपने आप में खबर है लेकिन क्रोनोलॉजी समझाने के इस जमाने में अगर ऐसे ही लिखा गया होता तो पाठकों पर उसका अलग प्रभाव पड़ता. फिर भी, पूरे मामले को भारतीय अखबारों ने ऐसे हल्के में निपटा दिया जैसे कुछ हुआ ही नहीं. दूसरी ओर, व्हाट्सऐप्प पर बताया जाना लगा कि अमेरिका को दवा देना कितना जरूरी था और भारत ने कितना महान काम किया है.

दैनिक भास्कर में अमेरिका की धमकी की खबर अगले दिन बुधवार, 8 अप्रैल को पहले पन्ने पर थी. ‘निर्यात रोकने से भड़का अमेरिका, ट्रम्प की धमकी- दवा नहीं दी तो भारत से बदला लेंगे, सरकार ने पाबंदी में ढील दी’. दैनिक जागरण की खबर थी, ‘अमेरिका समेत जरूरतमंद देशों को क्लोरोक्विन देगा भारत’. इस खबर के साथ एक और खबर थी, ‘मानवीय आधार पर पहले ही लिया था फैसला : विदेश मंत्रालय’ और तीसरी खबर थी, ‘कोविड-19 के खिलाफ विदेशी मदद बढ़ाएगा भारत’. इस तरह आप समझ सकते हैं कि अपने ही बनाए जाल में उलझने के बावजूद मोदी जी को अखबारों ने कैसे निकाला या कहिए कि उलझे यह बताया ही नहीं. सरकार के काम काज में पारदर्शिता का हाल यह है कि वह बताए या न बताए, उसकी मर्जी. आम अखबार ऐसा कुछ नहीं बताएंगे जो उसके खिलाफ हो.

अमेरिका ने पहले तो बदला लेने की धमकी दी. भारत सरकार ने 56 घंटे भी नहीं लगाए अपने ही प्रतिबंध में ढील दे दी और गुरुवार के अखबार में दवा का निर्यात करने की अनुमति देने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तारीफ करते हुए डोनाल्ड ट्रम्प का बयान छपा. उन्होंने कहा, “मैंने (हाइड्रोऑक्सीक्लोरोक्वीन की) लाखों खुराक खरीदी… मैंने प्रधानमंत्री मोदी से बात की… उनकी प्रतिक्रिया अच्छी रही… आप जानते हैं कि वे (निर्यात पर) रोक (लगा) चुके थे क्योंकि उन्हें भारत के लिए जरूरत थी.

शुक्रवार को हिन्दुस्तान में खबर थी, ‘भारत की मदद को याद रखेंगे : ट्रंप’ और इसके साथ बॉक्स में खबर थी, ‘प्रधानमंत्री मोदी का जवाब’. इसमें प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है,  ‘राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प आपके साथ पूरी तरह सहमत हूं. इस तरह का वक्त दोस्तों को और करीब लाता है.

भारत-अमेरिका की साझेदारी पहले से भी मजबूत है’. दैनिक भास्कर की खबर थी, ‘डब्ल्यूएचओ महामारी से गलत तरीके से निपटा, फंडिंग दें या नहीं, इसपर कर रहे विचार’. मुझे लगता है कि यह खबर भारत में आम लोगों के मतलब की नहीं है और हिन्दी अखबार में पहले पन्ने पर छापने का कोई औचित्य नहीं है.

इसमें कोई दो राय नहीं है कि मैं गलत हो सकता हूं लेकिन मेरा मानना है कि इस खबर को दूसरी खबर के लिए पहले पन्ने पर छापा गया है और दूसरी खबर है, ‘ट्रम्प बोले भारत की मदद को भुलाया नहीं जाएगा’. इस तरह, पाठक को पहले समझाया गया कि ट्रम्प क्या चीज हैं और फिर यह भी कि वे भारत के अहसानमंद हैं. संभव है यह इरादतन नहीं किया गया हो. पर पाठक यही समझेगा. इससे संबंधित पूरा मामला- कोरोना की दवा निर्यात नहीं करने का निर्णय करना, मित्र की बदले की कार्रवाई की धमकी और कुछ ही घंटे में भारत का रोक में ढील देकर निर्यात करने के लिए तैयार हो जाना सब गौण हो गया. इसमें गलत कुछ नहीं है. खबर परोसने का अंदाज है. आपको क्या बताया जाए कैसे बताया जाए यह तो आपका संपादक ही तय करेगा. पर इसमें समस्या यही होती है कि आप वही जानेंगे जो संपादक बताएगा और आप वह सब नहीं जान पाएंगे जिससे आपकी नजर में सरकार कमजोर लगे. या गलत निर्णय लेने वाली लगे. मेरा मकसद आपको यही बताते रहना है.

कोविड से लड़ाई अखबारों के जरिए ही लड़ने का एक और उदाहरण शनिवार को मिला. द हिन्दू में खबर छपी कि इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि कोविड-19 का प्रसार आम लोगों (यानी उनमें जो विदेश नहीं गए थे और वहां से आए या किसी अन्य संक्रमित के संपर्क में नहीं रहे हैं) में हो गया है. एक दिन पहले टेलीग्राफ ने छापा था कि देश के 36 जिलों में ऐसे मरीज पाए गए हैं और सरकार ने उन जिलों के नाम नहीं बताए. हिन्दू की खबर में था कि (टेलीग्राफ की खबर के अनुसार) जिन लोगों को कोविड संक्रमित पाया गया है उनके यात्रा इतिहास की जांच कराई जा रही है. यानी पुष्टि हो जाए तब सरकार मानेगी. उनके कहे से नहीं मानेगी. वैसे यह दो-चार दिन का ही खेल है पर लॉक डाउन में सब खाली हैं तो सरकार भी …

द टेलीग्राफ की यह खबर बताती है कि आईसीएमआर ने देश के 36 जिलों में ऐसे मरीज पाए हैं. आईसीएमआर ने उन जिलों का नाम नहीं बताया है पर ये जिले देश के उन 51 जिलों में हैं जहां एसएआरआई (सीवियर ऐक्यूट रेसपायरेट्री इलनेस) के मरीजों को कोविड पॉजिटिव पाया गया है. ऐसे मरीजों की संख्या 40 है. द हिन्दू की एक खबर स्वास्थ्य मंत्रालय के हवाले से है. अखबार ने लिखा है यह दावा तब किया जा रहा है जब भिन्न राज्यों ने अपने स्तर पर लॉक डाउन के विस्तार की घोषणा कर दी है.

अखबार के अनुसार स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता लव अग्रवाल ने कहा कि सभी मामले उन जिलों के हैं जहां बीमारी के पुष्ट मामले हैं. और एसएआरआई के मरीजों की यात्रा के इतिहास की जांच कराई जा रही है. लव अग्रवाल ने यह भी कहा कि ऐसा शुरू हो जाएगा तो सबसे पहले हम आपको बताएंगे. अखबार ने यह भी लिखा है कि मुख्यमंत्री अमरिन्दर सिंह ने शुक्रवार को एलान किया कि पंजाब में सीटी (कम्युनिटी ट्रांसमिशन) देखे गए हैं.

 


लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.