इंडियन एक्सप्रेस और टाइम्स ऑफ इंडिया ने आज फिर पहले पन्ने पर एक ही ख़बर एक जैसे शीर्षक से छापी और ख़बर है ग़ुलाम नबी आज़ाद की!
आज का दिन निर्विवाद लीड का नहीं है। मेरे पांच में से तीन अखबारों में टीकाकरण के अगले दौर की शुरुआत से संबंधित ‘सरकारी’ खबरें लीड हैं। ये तीन अखबार हैं – हिन्दुस्तान टाइम्स, इंडियन एक्सप्रेस और टाइम्स ऑफ इंडिया। द हिन्दू ने इसरो द्वारा ब्राजील के अमैजोनिया-1 और 18 अन्य उपग्रहों के प्रक्षेपण की खबर को लीड बनाया है। सेकेंड लीड म्यांमार के विरोध प्रदर्शन में 18 लोगों के मारे जाने की खबर है। टीके की खबर पहले पन्ने पर दो कॉलम में है। म्यांमार की खबर टाइम्स ऑफ इंडिया में सिंगल कॉलम में है। लेकिन द टेलीग्राफ में दो कॉलम में हैं। द हिन्दू ने उपग्रह के सफल प्रतिस्थापन पर एक और खबर दी है जो इस क्षेत्र में भारत की खासियत बताती है और आजकल की परिभाषा के अनुसार देशभक्ति वाली खबर की श्रेणी में आएगी।
यह खबर द टेलीग्राफ को छोड़कर बाकी अखबारों में भी पहले पन्ने पर है। द टेलीग्राफ में आधा पन्ना विज्ञापन है और कोलकाता के ब्रिगेड मैदान में कल एक राजनीतिक रैली हुई थी उसकी खबर फोटो के साथ लीड है जो दिल्ली के किसी अखबार में पहले पन्ने पर नहीं है। सोशल मीडिया पर खूब थी। उसके बारे में द टेलीग्राफ की खबर की चर्चा आगे है। द हिन्दू ने नगालैंड की एक खबर पहले पन्ने पर छापी है और इससे पता चलता है कि उत्तर पूर्व का यह राज्य देश की मुख्यधारा से कटा हुआ है और वहां अभी भी पुरातन व्यवस्था को लागू करने की बात चल रही है लेकिन दिल्ली में खबर एक ही अखबार में है।
इन और ऐसी खबरों के बीच आज फिर इंडियन एक्सप्रेस और टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर एक ऐसी खबर है जो किसी और अखबार में पहले पन्ने पर नहीं है जबकि इन दोनों में शीर्षक भी एक जैसे हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया (मुंबई) में यह खबर लीड के साथ टॉप पर तीन कॉलम में है। (गुलाम नबी) आजाद ने मोदी की तारीफ की, कहा वे अपना सही रूप नहीं छिपाते हैं। इंडियन एक्सप्रेस में यह दो कॉलम में है जिसका शीर्षक है, कांग्रेस-23 की आवाज तेज किए जाने के अगले दिन आजाद ने प्रधानमंत्री की तारीफ की : अपना सही रूप नहीं छिपाते हैं। आधे कॉलम की फोटो के साथ खबर वाले साइज के ही पर बोल्ड फौन्ट में लिखा है, पूर्व में प्रधानमंत्री राज्यसभा में आजाद को एक भावनात्मक विदाई दे चुके हैं।
इस खबर के साथ टाइम्स ऑफ इंडिया ने डांस ऑफ डेमोक्रेसी (लोकतंत्र का नृत्य) शीर्षक से एक बॉक्स में दो खबरें और दो कोट छापे हैं। पहली खबर पश्चिम बंगाल की है – कोलकाता में विपक्षी गठजोड़ की पहली रैली में प्रभावशाली मुस्लिम धर्मगुरु अब्बास सिद्दीक ने पूरे राज्य में वामपंथी उम्मीदवारों के लिए समर्थन देने का वादा किया पर कांग्रेस के लिए ऐसा कुछ करने से रुक गए। दूसरी खबर तमिलनाडु की है। इसमें बताया गया है कि (केंद्रीय गृहमंत्री) अमित शाह ने सीटों के बंटवारे को अंतिम रूप देने के लिए एआईएडीएमके नेता और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पलनीस्वामी तथा उपमुख्यमंत्री पनीरसेवलम से मुलाकात की । बैठक तीन घंटे तक चली पर कोई एलान नहीं किया गया।
दो कोट में एक अमित शाह का है जो राहुल गांधी द्वारा समुद्री मछुआरों (उन्होंने पानी में खेती करने वाले कहा था) के लिए मत्स्य मंत्रालय बनाने के आश्वासन से संबंधित है। अमित शाह ने कहा है कि राहुल गांधी ने हाल में पूछा कि मत्स्य विभाग क्यों नहीं है। एनडीए ने जब यह विभाग बनाया तो वे छुट्टी पर थे। यह विभाग दो साल से अस्तित्व (2019 से) में है। कहने की जरूरत नहीं है कि राहुल गांधी मंत्रालय की बात कर रहे हैं और भाजपा नेता विभाग की बात करके उन्हें गलत साबित करने में लगे हैं। अखबार ने यह सब नहीं बताया है, अमित शाह की बात भर रखी है और पता नहीं राहुल गांधी ने इसका जवाब दिया या नहीं (मुझे नहीं दिखा)। अखबार में उनका दूसरा कोट है, हम एक मुश्किल दुश्मन (मोदी) से लड़ रहे हैं। हम ऐसे दुश्मन से लड़ रहे हैं जो अपने विरोधियों को कुचल दे रहा है। पर हम पहले भी जीत चुके हैं। हमने इससे बहुत बड़े दुश्मन (अंग्रेजों) को हराया है।
राजनीतिक खबरों में हिन्दुस्तान टाइम्स ने पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम में एक खबर छापी है जो बाकी अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है। केजरीवाल ने मेरठ की महापंचायत में कृषि कानूनों की आलोचना की। इस खबर में बताया गया है कि मेरठ में किसानों की महापंचायत में आम आदमी पार्टी के नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल भी शामिल हुए। उन्होंने आरोप लगाया कि आंदोलन को लेकर किसानों के खिलाफ फर्जी मामले दर्ज किए जा रहे हैं। आप जानते हैं कि देश भर के किसान (सरकार समर्थकों की ओर से मुट्ठी भर और देश विरोधी, खालिस्तानी भी कहा गया और उनके साथ कई दौर की बात भी हुई) तीन महीने से ज्यादा समय से आंदोलन पर हैं और दिल्ली की सीमा पर डटे हैं।
अखबारों में कायदे से पहले पन्ने पर एक कॉलम शुरू हो जाना चाहिए था पर जरूरी खबरें भी पहले पन्ने पर नहीं होती है। आंदोलन कवर करने वाले पत्रकारों को गिरफ्तार किए जाने से लेकर उन्हें जमानत मिलने पर अत्याचार, यंत्रणा की खबर से लेकर प्रेस कांफ्रेंस तक की खबर तो नहीं ही छपी नोदीप कौर से मूर्खतापूर्ण सवाल की चर्चा भी पहले पन्ने पर नहीं हुई। एक टेलीविजन चैनल के रिपोर्टर ने किसानों की सभा में ही अपनी साढ़े 12 लाख रुपए प्रति वर्ष की नौकरी को लात मारने की घोषणा की। चैनल ने इस बदनामी पर दुख जताया। पत्रकार ने स्पष्ट किया कि वह चैनल से दुखी नहीं है पूरे माहौल से दुखी है। पर खबर नहीं छपी। किसान जहां-तहां महापंचायत कर रहे हैं उसकी भी खबर पहले पन्ने पर नहीं छपी। दिल्ली के मुख्यमंत्री की भागीदारी की खबर भी दिल्ली के अखबारों में सिर्फ हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने पर है। वह भी सिंगल कॉलम में।
पश्चिम बंगाल की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी की दिलचस्पी के कारण वहां का चुनाव दिलचस्प और महत्वपूर्ण हो गया है और इस कारण चुनाव से संबंधित खबरें दिल्ली में भी पढ़ी जाती हैं। कल सोशल मीडिया में ब्रिगेड रैली की खूब चर्चा थी और तस्वीरों में भारी भीड़ दिख रही थी। मैं कल खबर नहीं पढ़ पाया और आज सिर्फ टेलीग्राफ में खबर पहले पन्ने पर है। चूंकि मैंने खबर पढ़ी नहीं थी इसलिए आज पूरी खबर पढ़ गया। आपके लिए कुछ खास बातें हिन्दी में पेश हैं। मेरे ख्याल से आज जब दूसरी कोई बहुत बड़ी खबर नहीं है तो यह पहले पन्ने पर हो सकती थी। द टेलीग्राफ ने लिखा भी है, रविवार को एक नया आयाम दिखा। ब्रिगेड रैली में अब्बास सिद्दीक की मौजूदगी और तृणमूल कांग्रेस के साथ भाजपा को भी उखाड़ देने की उनकी प्रतिज्ञा महत्वपूर्ण है।
द टेलीग्राफ ने लिखा है कि ब्रिगेड रैली में आदर्शों का दोष स्पष्ट है। अखबार ने लिखा है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यधारा की राजनीति में मजहब के नाम पर ऐसी हिस्सेदारी दुर्लभ थी। अलीमुद्दीन स्ट्रीट के एक जानकार के हवाले से अखबार ने लिखा है, “पहचान आधारित राजनीति को छोड़कर दशकों तक हम बंगाल के करोड़ों अल्पसंख्यक मतदाताओं से सफलतापूर्वक कहते रहे हैं कि किसी मार्क्सवादी पार्टी या उसके सहयोगी का समर्थन किया जाए। उनमें से कई ममत बनर्जी के समर्थन में हमसे अलग हो गए थे फिर भी हमने आदर्शों से समझौता नहीं किया।” अखबार ने इसी जानकार के हवाले से आगे लिखा है, “पर सिद्दीक के तथाकथित इंडियन सेक्यूलर फ्रंट के शामिल होने और अलायंस में इस अनुभवहीन इकाई को वाम कोटे से 30 सीटें देने के बाद हम उन्हीं मतदाताओं से औपचारिक तौर पर कहेंगे कि वे अपनी सोच में भारी बदलाव लाएं। क्या निकट भविष्य में उसे फिर उल्टा जा सकेगा। हमें नहीं मालूम।” यही राजनीति है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।