पहला पन्ना: बीजेपी प्रत्याशी की गाड़ी में EVM की ख़बर देने को चुनाव आयोग की कहानी का इतंज़ार!  


एक नामी चैनल, बताता रहा कि ईवीएम लावारिश गाड़ी में मिली है। आज के समय में गाड़ी का नंबर हो तो उसका पूरा विवरण निकालना मुश्किल नहीं है। आपको याद होगा कि लॉकडाउन के समय उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने कांग्रेस पार्टी द्वारा मजदूरों को उनके गांव पहुंचाने के लिए पेश की जा रही एक हजार बसों (जो असल में कम और दूसरी गाड़ियां भी निकलीं) का फिटनेस विवरण निकाल लिया था।  


संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
काॅलम Published On :


आज के अखबारों में सबसे दिलचस्प खबर है, असम में एक भाजपा नेता की गाड़ी में ईवीएम मिलना, उसपर चुनाव आयोग की सफाई और कथित कार्रवाई। पांच में से चार अखबारों ने इस मामले में वही छापा है जो चुनाव आयोग की विज्ञप्ति में कहा गया है। चुनाव आयोग ने इस मामले में चार लोगों को निलंबित किया है और पुनर्मतदान का आदेश दिया है। इस लिहाज से खबर जैसी है वैसी छपी है। पर इसका एक रूप वह भी है जो टेलीग्राफ ने छापा है, ईवीएम टेक्स अ ‘लिफ्ट मैंने कल लिखा था,  “…. सोशल मीडिया पर खबर थी कि असम में भाजपा के एक उम्मीदवार की गाड़ी में ईवीएम मिले। यह खबर आज पहले पन्ने पर नहीं है। कल्पना कीजिए, बंगाल में या नन्दीग्राम में मिला होता, खास कर ममता बनर्जी की गाड़ी में तो क्या और कैसी खबर होती। चुनाव आयोग के लिए तो हरेक उम्मीदवार बराबर हैं पर अंतर दिखता है।”   

यह एक महत्वपूर्ण मामला है, चुनाव आयोग की निष्पक्षता से भी जुड़ा है, रिपोर्टिंग का उदाहरण तो है ही। इसलिए आपको बता दूं कि मामला गुरुवार की रात 9:00 बजे का है। चुनाव आयोग की कार्रवाई के अलावा बाकी सब कुछ इसके आसपास हो चुका था। सोशल मीडिया पर वीडियो था, उसमें गाड़ी का नंबर दिख रहा था और साफ कहा जा रहा था कि गाड़ी भाजपा विधायक/उम्मीदवार की है। नौ बजे रात की यह खबर अगले दिन अखबारों में नहीं छपी और आज छप रही है तो कारण यही हो सकता है कि उसमें चुनाव आयोग का पक्ष लेना होगा। यहां चुनाव आयोग का पक्ष इतना महत्वपूर्ण है कि खबर नहीं लगाई गई पर यही मीडिया सचिन वाजे का पक्ष नहीं छाप रहा है रिया चक्रवर्ती का नहीं छापा और तमाम मामलों में नहीं छापता रहा है। वीडियो के बावजूद खबर नहीं छपी क्योंकि नहीं छापनी थी। अंग्रेजी में कहा जाता है बेनीफिट ऑफ डाउट यानी शक का लाभ देना। खबर सही है कि नहीं, यह पक्का नहीं था तो शक का लाभ दिया गया और खबर छोड़ दी गई। 

यही है आजकल की पत्रकारिता। पर इतनी ही होती तो कोई बात नहीं थी। आज अखबार चुनाव आयोग का बाजा भी बजा रहे हैं, पुनर्मतदान और अधिकारी निलंबित आदि, आदि। जब सरकार गलती करके रातो रात पलट सकती है तो मीडिया या चुनाव आयोग क्यों नहीं? आप जानते हैं कि डबल इंजन वाली सरकारों में आम आदमी के लिए ठोंक दो का नियम है और मीडिया का समर्थन भी। सरकार के लिए गलती करने और सुधारना कोई खास बात नहीं है। बात इतनी ही नहीं है। सोशल मीडिया पर चर्चा है कि एक नामी चैनल, बताता रहा कि ईवीएम लावारिश गाड़ी में मिली है। आज के समय में गाड़ी का नंबर हो तो उसका पूरा विवरण निकालना मुश्किल नहीं है। आपको याद होगा कि लॉकडाउन के समय उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने कांग्रेस पार्टी द्वारा मजदूरों को उनके गांव पहुंचाने के लिए पेश की जा रही एक हजार बसों (जो असल में कम और दूसरी गाड़ियां भी निकलीं) का फिटनेस विवरण निकाल लिया था।  

ऐसे में अब एक गाड़ी का विवरण निकालना (कंफर्म ही करना था) कोई मुश्किल नहीं था। संबंधित विधायक को फोन करके भी पूछा जा सकता है। विधायक और उम्मीदवार का नंबर ढूंढ़ना कितना मुश्किल या आसान है यह बताने की जरूरत नहीं है। अखबारी भाषा में ऐसे व्यवहार को कहा जाता है, खबर की हत्या कर देना। संबंधित टेलीविजन चैनल ने अपनी तरफ से यह काम कर दिया था। अखबारों ने खबर नहीं छापकर अपने हिस्से की सेवा पूरी कर दी थी। मैंने चैनल पर खबर नहीं देखी इसलिए नाम नहीं लिख रहा हूं। आप जानना चाहें तो मुश्किल नहीं है, वीडियो भी मिल जाएगा। फिर भी एंकरएंकरानियां सेवा करने से बाज नहीं आते। बहुतों को सेवा की कीमत भी मिल रही है। क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है? पर यह अलग मुद्दा है।  

चुनाव आयोग की विज्ञप्ति कल सुबह ही गई थी। और बताई गई कहानी से पता चलता है कि मतदान खत्म होने के बाद अधिकारियों को ईवीएम जमा कराने की जल्दी रहती है, गाड़ी खराब हो गई तो दूसरी गाड़ी के लिए फोन किया गया, दूसरी गाड़ी नहीं आई (देर हो रही थी) तभी लिफ्ट मिल गई और बाद में पता चला कि गाड़ी किसकी है। अब इसमें अधिकारियों की गलती अपनी जगह और उन्हें मुअत्तल किया सरकारी कार्रवाई है मैं उसपर कोई टिप्पणी नहीं करता। पर जो बात जानी हुई है वह यह कि मतदान सुबहसवेरे शुरू हो जाता है और मतदान केंद्र पर पहुंचने के लिए बहुत सुबह से काम शुरू करने वाले अधिकारी जल्दीबाजी में तो रहेंगे। गाड़ी खराब क्यों हुई, विकल्प क्यों नहीं था। विज्ञप्ति में यह भी कहा गया है कि साथ वाले अलग हो गए। ऐसा क्यों हुआ। क्या कोई नियम नहीं है। अखबारों को ये सवाल पूछने थे और यह सुनिश्चित करने का प्रयास करना था कि ऐसा फिर हो। पर अखबारों की भूमिका मामले को दबा देने या कम महत्व देने से ज्यादा कुछ नहीं है और आज फिर चुनाव आयोग के प्रचारक के रूप में पूरी विज्ञप्ति छाप दी। चूंकि मैं 20 घंटे पहले विज्ञप्ति पढ़ चुका हूं इसलिए खबर क्या पढ़ूं। घटना का विवरण तो अब भूलने भी लगा हूं।  

आज के अखबारों में पहले पन्ने पर क्या है और क्या नहीं है उसकी चर्चा करने से पहले बताऊं कि टेलीग्राफ के पहले पन्ने पर जो खबरें हैं उसके अनुसार प्रधानमंत्री जयललिता के नाम पर (उनकी विशालकाय तस्वीर के नीचे खड़े होकर) वोट मांग रहे हैं, जयललिता के धुर विरोधी, उन्हें जेल भिजवाने वाले सुब्रमण्यम स्वामी भाजपा में हैं, राज्य सभा के सदस्य हैं अक्सर सरकार की आलोचना करते रहते हैं तब भी। ऐसी सरकार चुनाव के समय छापों से भ्रष्टाचार दूर करने का दिखावा करती है और ऐसे परिधानमंत्री चुनाव के समय सात घातक पापों की चर्चा कर रहे हैं और कहा है कि ममता बनर्जी नन्दीग्राम के अलावा कहीं और से चुनाव नहीं लड़ेंगी। वैसे तो कोई उनका जवाब देता नहीं है और दे तो अखबारों में छपेगा नहीं। पर ममता बनर्जी ने उनका जवाब दिया है। और टेलीग्राफ ने उसे प्रमुखता से छापा है। आज इन सारी खबरों की चर्चा तो मैं यहां नहीं कर सकता लेकिन प्रधानमंत्री जब सात पापों की चर्चा कर रहे हैं (खबरों के अनुसार) तो यह बताना जरूरी है वे ममता बनर्जी के बारे में भी घोषणा कर रहे हैं। 

टेलीग्राफ की खबर का फ्लैग शीर्षक है, नई सीट पर ममता ने मोदी के दावों का मुकाबला किया, नहीं प्रधानमंत्री जी, सिर्फ नंदीग्राम से : मुख्यमंत्री। सिलीगुड़ी डेटलाइन की इस खबर में बताया गया है कि ममता बनर्जी ने नरेन्द्र मोदी के मनोवैज्ञानिक युद्ध की रणनीति का जवाब दिया और कहा कि वे नंदीग्राम के अलावा कहीं और से चुनाव नहीं लडेंगी। यहां  24 घंटे पहले मतदान हो चुका है। इसे तृणमूल कार्यकर्ताओं के नैतिक बल को कमजोर करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा था। वह भी तब जब मतदान चालू था। मोदी ने गुरुवार को कहा था कि ममता नंदीग्राम से हारेंगी और अफवाह थी कि वे किसी और विधानसभा सीटे से भी लड़ेंगी। इसका जवाब देते हुए ममता बनर्जी ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री से पूछा है, “आप यह सब क्यों कह रहे हैं? क्या मैं आपकी पार्टी में हूं कि आप मुझे नियंत्रित करेंगे? मैं नंदीग्राम से जीतूंगी तथा कहीं और से नहीं लड़ूंगी।यही नहीं, ममता बनर्जी ने यह आरोप भी लगाया कि चुनाव कार्यक्रम इस ढंग से बनाए गए हैं कि उनका घूमना प्रतिबंधित रहे इसलिए वे जयादा प्रचार नहीं कर पाईं।

इस बीच चुनाव से थोड़ी राहत मिली तो आज के अखबारों में कोरोना को फिर से महत्व मिल गया है। कल किसान नेता राकेश टिकैत पर हमले की खबर सोशल मीडिया में थी वह आज मुझे सिर्फ हिन्दू में पहले पन्ने पर दिखी। इंडियन एक्सप्रेस में आज पश्चिम बंगाल में अर्थव्यवस्था की मंदी पर एक खबर है। कल के अखबारों में एक सरकारी खबर थी कि जीएसटी वसूली लगातार छह महीने से बढ़ रही है। वैसे तो यह इंडियन एक्सप्रेस में नहीं थी इसलिए आज की खबर को उससे जोड़कर नहीं देखना चाहिए लेकिन अखबारों में खबरों के जरिए सरकारी प्रचार का आलम यह है कि लगातार छह महीने एक लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की कर वसूली के बावजूद वित्त 20-21 में कुल वसूली 11.37 लाख करोड़ रुपए हुई। यह कोविड-19 या लॉकडाउन से पहले के वर्ष 2019-20 के 12.22 लाख करोड़ रुपए के मुकाबले करीब सात प्रतिशत कम है। कहने की जरूरत नहीं है कि पूरे साल की वसूली कम हुई फिर भी छह महीने प्रचार किया गया कि जीएसटी वसूली बढ़ गई। भले यह सूचना सही है लेकिन प्रचार का मुद्दा तो नहीं ही है। अब आप देखिए कि आपको अपने अखबार में कौन सी खबर कैसी और कितनी है। किस सूचना को प्रचार बना दिया गया। 

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और मशहूर अनुवादक हैं।